
चारों ओर मधुरता, स्वच्छता, सादगी एवं सज्जनता का वातावरण उत्पन्न करेंगे।
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सामान्य स्थिति में व्यक्ति वातावरण से प्रभावित होता है, पर अन्तरंग श्रेष्ठता का विकास होने पर वह वातावरण को प्रभावित करने लगता है। ऊपर जिन गुणों का उल्लेख किया गया है वे सभ्य समाज की रचना के लिए आवश्यक हैं। जिस व्यक्ति में वह विकसित होते हैं उसके व्यक्तित्व में जादू जैसा प्रभाव आ जाता है। हर व्यक्ति उसके सान्निध्य में रहना पसंद करता है तथा स्नेह सम्मान एवं सहयोग देना चाहता है।
मधुरता वाणी एवं व्यवहार दोनों में होती है। स्वच्छता शरीर, स्थान आदि के साथ अन्तरंग की भी होती है। सादगी का सीधा सम्बन्ध उच्च विचारणाओं, श्रेष्ठ उद्देश्यों से है। सज्जनता भीतरी सदाशयता से नियन्त्रित होती है। अस्तु व्यक्तित्व के विकास के लिए भी ये सभी अनिवार्य हैं।
चारों ओर मधुरता, स्वच्छता एवं सज्जनता का वातावरण उत्पन्न करना मनुष्यता का आवश्यक गुण है। चन्दन का वृक्ष अपने आस-पास के पेड़ पौधों को भी अपने समान सुगन्धित बना लेता है, दीपक स्वयं प्रकाशित होता है और अपनी आदत से समीपवर्ती क्षेत्र को आलोकित कर देता है। बर्फ के आस-पास की हवा ठंडी हो जाती है और अग्नि के समीप उष्णता का अनुभव किया जा सकता है। किसी मनुष्य में मानवोचित गुण हैं या नहीं, इसकी परीक्षा यह है कि वह अपने सम्पर्क की वस्तुओं को, देह, वस्त्र, घर, औजार आदि उपकरणों को स्वच्छ रखता है या नहीं। गन्दा, गलीज मैला, कुचैला, फूहड़, अव्यवस्थित व्यक्ति एक प्रकार का पशु ही माना जायेगा। मन और स्वभाव में स्वच्छता होगी तो आस-पास भी सफाई का वातावरण दृष्टिगोचर होगा।
भीतर की सज्जनता बाहर नम्रता और मधुरता बनकर मुखरित होती है। कठोर वाणी केवल कठोर हृदय व्यक्ति की बोल सकता है। जिसके व्यवहार में अहंकार, उद्दण्डता, कटाक्ष, व्यंग, निंदा, तिरस्कार, उपहास जैसे भाव टपकते हैं वह व्यक्ति वस्तुतः दुष्ट है। यदि हम किसी को कुछ दे नहीं सकते तो कम से कम मनुष्योचित नम्र और मधुर वाणी में उत्तर तो दे ही सकते हैं। मीठी और कड़ुई वाणी के कारण ही कोयल को प्रशंसा और कौए को निन्दा का भाजन बनना पड़ता है। हम यदि स्वच्छता मधुरता और सज्जनता का शिष्ट व्यवहार करना भी नहीं जानते तो क्यों कर मनुष्य कहलाने के अधिकारी बन सकते हैं? जिसके आस-पास का वातावरण गन्दगी, द्वेष, असन्तोष और क्षोभ से भरा हुआ है उसे मनुष्योचित सद्गुणों से रहित ही माना जायेगा। हमारा कर्तव्य है कि हम चन्दन वृक्ष की तरह बनें और अपनी सुगन्ध से सारे समीपवर्ती क्षेत्र को सुवासित बनावें।
मधुरता वाणी एवं व्यवहार दोनों में होती है। स्वच्छता शरीर, स्थान आदि के साथ अन्तरंग की भी होती है। सादगी का सीधा सम्बन्ध उच्च विचारणाओं, श्रेष्ठ उद्देश्यों से है। सज्जनता भीतरी सदाशयता से नियन्त्रित होती है। अस्तु व्यक्तित्व के विकास के लिए भी ये सभी अनिवार्य हैं।
चारों ओर मधुरता, स्वच्छता एवं सज्जनता का वातावरण उत्पन्न करना मनुष्यता का आवश्यक गुण है। चन्दन का वृक्ष अपने आस-पास के पेड़ पौधों को भी अपने समान सुगन्धित बना लेता है, दीपक स्वयं प्रकाशित होता है और अपनी आदत से समीपवर्ती क्षेत्र को आलोकित कर देता है। बर्फ के आस-पास की हवा ठंडी हो जाती है और अग्नि के समीप उष्णता का अनुभव किया जा सकता है। किसी मनुष्य में मानवोचित गुण हैं या नहीं, इसकी परीक्षा यह है कि वह अपने सम्पर्क की वस्तुओं को, देह, वस्त्र, घर, औजार आदि उपकरणों को स्वच्छ रखता है या नहीं। गन्दा, गलीज मैला, कुचैला, फूहड़, अव्यवस्थित व्यक्ति एक प्रकार का पशु ही माना जायेगा। मन और स्वभाव में स्वच्छता होगी तो आस-पास भी सफाई का वातावरण दृष्टिगोचर होगा।
भीतर की सज्जनता बाहर नम्रता और मधुरता बनकर मुखरित होती है। कठोर वाणी केवल कठोर हृदय व्यक्ति की बोल सकता है। जिसके व्यवहार में अहंकार, उद्दण्डता, कटाक्ष, व्यंग, निंदा, तिरस्कार, उपहास जैसे भाव टपकते हैं वह व्यक्ति वस्तुतः दुष्ट है। यदि हम किसी को कुछ दे नहीं सकते तो कम से कम मनुष्योचित नम्र और मधुर वाणी में उत्तर तो दे ही सकते हैं। मीठी और कड़ुई वाणी के कारण ही कोयल को प्रशंसा और कौए को निन्दा का भाजन बनना पड़ता है। हम यदि स्वच्छता मधुरता और सज्जनता का शिष्ट व्यवहार करना भी नहीं जानते तो क्यों कर मनुष्य कहलाने के अधिकारी बन सकते हैं? जिसके आस-पास का वातावरण गन्दगी, द्वेष, असन्तोष और क्षोभ से भरा हुआ है उसे मनुष्योचित सद्गुणों से रहित ही माना जायेगा। हमारा कर्तव्य है कि हम चन्दन वृक्ष की तरह बनें और अपनी सुगन्ध से सारे समीपवर्ती क्षेत्र को सुवासित बनावें।