
भारतीय भाषाओं की जननी संस्कृत का वैज्ञानिक पक्ष और तकनीकी शब्दावली
6 एवं 7 मार्च की तिथियों में भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय (उच्चतर शिक्षा विभाग) एवं देव संस्कृति विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्त्वावधान में देव संस्कृति विश्वविद्यालय में ‘भारतीय भाषाओं की जननी संस्कृत का वैज्ञानिक पक्ष और तकनीकी शब्दावली’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार सम्पन्न हुआ। इसके उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि उत्तराखण्ड के माननीय राज्यपाल ले.ज. (से.नि.) श्री गुरमीत सिंह जी, देसंविवि के प्रति कुलपति माननीय डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी, सीएसटीटी के अध्यक्ष प्रो. गिरीश नाथ झा एवं असिस्टेट डायरेक्टर श्री जे.एस. रावत थे।
संस्कृत मानवीय प्रकृति की निकटतम भाषा है। - माननीय राज्यपाल
माननीय राज्यपाल जी ने संस्कृत को मानवीय प्रकृति की निकटतम भाषा बताते हुए कहा कि जो सं (श्वास) से कृत है, वह संस्कृत है। संस्कृत का उच्चारण आनन्द की अनूभूति कराता है, इसका स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा कि गायत्री महामंत्र का उच्चारण मन को आनंदित करता है।
माननीय राज्यपाल जी ने कहा कि देव संस्कृति विश्वविद्यालय में जो संस्कृत, संस्कार व आधुनिक तकनीकी का संगम है। इस सेमीनार में जो अमृतसा विचार निकलेगा, वह पूरी दुनिया में जायेगा, ऐसा विश्वास है। उन्होंने प्रत्येक युवा से राष्ट्र के विकास में योगदान देने का आह्वान भी किया।
संस्कृत हमें अतीत, वर्तमान और भविष्य से जोड़ती है। - डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी
देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति एवं करोड़ों युवाओं के आदर्श आदरणीय डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी ने कहा कि संस्कृत और भारतीय संस्कृति का संबंध अतीत, वर्तमान व भविष्य से जुड़ा है। हम संस्कृत भाषा के माध्यम से ही प्राच्य विद्या से अवगत होते हैं। वर्तमान अनुसंधान में संस्कृत भाषा का विशिष्ट योगदान है। विश्व में जिस शान्ति और आनन्द की खोज की जा रही है, उसकी जड़ें संस्कृत में निहित हैं। जिस तरह छाया को काटना, मिटाना संभव नहीं है, उसी तरह भारतीय संस्कृति को मिटाना असंभव है।
प्रो० गिरिश नाथ झा ने कहा कि संस्कृत भारतीय भाषाओं की जननी है। प्रत्येक भारतीय भाषाओं में संस्कृत की शब्दावलियाँ समाहित हैं।
इससे पूर्व माननीय राज्यपाल श्री गुरमीत सिंह ने देसंविवि में निर्मित शौर्य दीवार में पुष्पांजलि अर्पित करते हुए देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले वीरों को श्रद्धा सुमन समर्पित किए।
साहित्य विमोचन
सेमीनार के उद्घाटन समारोह में मंचासीन गणमान्यों ने अश्वमेध महायज्ञ विशेषांक अनाहद, इंटरनेशनल जर्नल (यज्ञ पर शोध), यज्ञ ज्योति आदि का विमोचन किया। इस अवसर पर केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय, देवसंस्कृति
विवि और विभिन्न राज्यों से आये अनेक शिक्षाविद उपस्थित रहे।
इस राष्ट्रीय सम्मेलन में सीएसटीटी शिक्षा मंत्रालय (नई दिल्ली) के अध्यक्ष प्रो. गिरिश नाथ झा, सीएसटीटी शिक्षा मंत्रालय (नई दिल्ली) के सहायक निदेशक- श्री जे.एस. रावत, प्रो. ओमनाथ बिमाली (नई दिल्ली), उत्तराखण्ड संस्कृत विवि हरिद्वार के कुलपति प्रो दिनेशचन्द्र शास्त्री, श्री जनार्दन हेगडे-बैंगलुरूY, प्रो लक्ष्मी नारायण सिंह (बिहार), डॉ. संगीता कुमारी (हरिद्वार), श्री मेघ कल्याणसुन्दरम (चैन्नई), श्री सुमित कुमार भारती (नई दिल्ली), डॉ. सच्चिदानंद सनेही, डॉ. सुरेश वर्णवाल (हरिद्वार), डॉ. उमाकांत इंदौलिया आदि ने विचार रखे।