Man Ka Samadhan मन का समाधान
उपासना का अर्थ मात्र देवालय बना देना नहीं है। वैसा जीवन भी जीना होता है, तभी वह सफल है।
चित्रगुप्त अपनी पोथी के पृष्ठों को उलट रहे थे। यमदूतों द्वारा आज दो व्यक्तियों को उनके सम्मुख पेश किया गया था। यमदूतों ने प्रथम व्यक्ति का परिचय कराते हुए कहा, “यह नगर सेठ हैं। धन की कोई कमी इनके यहाँ नहीं। खूब पैसा कमाया है और समाज हित के लिये धर्मशाला, मन्दिर, कुआँ और विद्यालय जैसे अनेक निर्माण कार्यों में उसका व्यय किया है।” अब दूसरे व्यक्ति की बारी थी। उसे यमदूत ने आगे बढ़ाते हुए कहा, "यह व्यक्ति बहुत गरीब है। दो समय का भोजन जुटाना भी इसके लिए मुश्किल है।
एक दिन जब ये भोजन कर रहे थे, एक भूखा कुत्ता इनके पास आया। इन्होंने स्वयं भोजन न कर सारी रोटियाँ कुत्ते को दे दीं। स्वयं भूखे रहकर दूसरे की क्षुधा शान्त की। अब आप ही बतलाइये कि इन दोनों के लिये क्या आज्ञा है?" चित्रगुप्त काफी देर तक पोथी के पृष्ठों पर आँखें गड़ाये रहे। उन्होंने बड़ी गम्भीरता के साथ कहा-धनी व्यक्ति को नरक में और निर्धन व्यक्ति को स्वर्ग में भेजा जाये।"
चित्रगुप्त के इस निर्णय को सुनकर यमराज और दोनों आगन्तुक भी आश्चर्य में पड़ गये। चित्रगुप्त ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा-धनी व्यक्ति ने निर्धनों और असहायों का बुरी तरह शोषण किया है। उनकी विवशताओं का दुरुपयोग किया है और उस पैसे से ऐश और आराम का जीवन व्यतीत किया। यदि बचे हुये धन का एक अंश लोकेषणा की पूर्ति हेतु व्यय कर भी दिया, तो उसमें लोकहित का कौन सा कार्य हुआ?
निर्माण कार्यों के पीछे यह भावना कार्य कर रही थी कि लोग मेरी प्रशंसा करें, मेरा यश गायें। गरीब ने पसीना बहाकर जो कमाई की, उस रोटी को भी समय आने पर भूखे कुत्ते के लिए छोड़ दी। यह साधन-सम्पन्न होता, तो न जाने अभावग्रस्त लोगों की कितनी सहायता करता? पाप और पुण्य का सम्बन्ध मानवीय भावनाओं से है, क्रियाओं से नहीं। अतः मेरे द्वारा पूर्व में दिया गया निर्णय ही अंतिम है।" सबके मन का समाधान हो चुका था।
अखण्ड ज्योति – अक्टूबर 1995 पृष्ठ 32
Recent Post
आत्मचिंतन के क्षण
हे मनुष्य! इस संसार में दुःख का कारण असन्तोष है और सन्तोष ही सुख है। जिन्हें सुख की क ामना हो, वे सन्तुष्ट रहा करें। सन्तोष एक महान् अध्यात्मिक भाव है, जो मनुष्य के हृदय की विशालता को व्यक्त करता ह...
आत्मचिंतन के क्षण
आशा की जानी चाहिए कि नव- सृजन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मनीषो, समय दानी धनी आदि प्रतिभावान अपनी- अपनी श्रद्धांजलि लेकर नवयुग के अभिनव सृजन में आगे बढ़ेगें और कहने लायक योगदान देंगे। इक्कीसवी...
आत्मचिंतन के क्षण
आशा आध्यात्मिक जीवन का शुभ आरम्भ है। आशावादी व्यक्ति सर्वत्र परमात्मा की सत्ता विराजमान देखता है। उसे सर्वत्र मंगलमय परमात्मा की मंगलदायककृपा बरसती दिखाई देती है। सच्ची शान्ति, सुख और सन्तोष मनुष्य...
आत्मचिंतन के क्षण
प्रेम गंगा की भाँति वह पवित्र जल है, जिसे जहाँ छिडका जाय, वहीं पवित्रता पैदा करेगा। उसमें आदर्शेंकी अविच्छिन्नता जुड़ी रहती है। आदर्श रहित प्यार को ही मोह कहते हैं। दूरदर्शिता, विवेकशीलता, शालीनता, ...
आत्मचिंतन के क्षण
कोई व्यक्ति विद्वानों के साथ रहे पर उसके मन में वेश्याओं की छवि भाव भंगी, कुचेष्टाएँ नाचती रहें, और विकार पूर्ण अंगों तथा चेष्टाओं का चिंतन करता रहे तो निश्चय ही विद्वानों की संगति का उतना प्रभाव न...
आत्मचिंतन के क्षण
कुशलता पूर्वक कार्य करने का नाम ही योग है, कुशल व्यक्ति संसार में सच्ची प्रगति कर सकता है जीवन का सर्वाेच्च लक्ष्य यही है कि मनुष्य प्रत्येक कार्य को विवेक पूर्वक करे। इससे मन निर्मल रहता है,...
आत्मचिंतन के क्षण
स्वस्थ जीवन का आधार है- अध्यात्म सिद्धान्तों का जीवन के हर क्षण, हर गतिविधि में व्यापक समावेश। दवाओं से स्वास्थ्य नहीं खरीदा जा सकता। मनो,विकार व्यक्तिगत व समष्टिगत रोगों का मूल कारण है। राष्...
आत्मचिंतन के क्षण
सच्चा साथी प्यार करता है, सलाह देता है तथा सुख- दुःख में सहयोग भी देता है। इसके अलावा वह शक्ति और सुरक्षा भी दे और प्रत्युपकार की जरा भी अपेक्षा न रखे, तो वह सोने में सुहागा हो जायेगा- ईश्वर ऐसा ही...
आत्मचिंतन के क्षण
दम के समान कोई धर्म नहीं सुना गया है। दम क्या है? क्षमा, संयम, कर्म करने में उद्यत रहना, कोमल स्वभाव, लज्जा, बलवान, चरित्र, प्रसन्न चित्त रहना, सन्तोष, मीठे वचन बोलना, किसी को दुख न देना, ईर्...
आत्मचिंतन के क्षण
सुख- दुःख हर तरह की परिस्थिति में सन्तुष्ट रहने को सन्तोष कहते हैं। कुसंस्कारों के परिशोधन एवं सुसंस्कारों के अभिवर्द्धन के लिए स्वेच्छापूर्वक जो कष्ट उठाया जाता है- वह तप कहलाता है। स्वयं के अध्यय...