आत्मचिंतन के क्षण

सच्चा साथी प्यार करता है, सलाह देता है तथा सुख- दुःख में सहयोग भी देता है। इसके अलावा वह शक्ति और सुरक्षा भी दे और प्रत्युपकार की जरा भी अपेक्षा न रखे, तो वह सोने में सुहागा हो जायेगा- ईश्वर ऐसा ही साथी है।
मनुष्य इसीलिए श्रेष्ठ है कि वह धर्म, सदाचार, नीति विशेष और परमार्थ को प्रधानता देता है। यदि वह इन पाँचों को छोड़ दे, तब तो उसे सबसे निकृष्ट कहा जाएगा, क्योंकि बुद्धि का उपयोग करके वह संसार में दुःख और क्लेशों को ही बढाता है।
आरोग्य रक्षा एवं स्वस्थ जीवन का महत्त्व पूर्ण सूत्र-
मित भुक् -- अर्थात भूख से कम खाना।
हित भुक् -- अर्थात्- सात्विक खाना।
ऋत भुक्- अर्थात् न्यायोपार्जित खाना।
महत्त्व की बात यह नहीं है कि हमने कितने लोगों की सेवा की। निरहंकारितापूर्वक सेवा हुई या नहीं, सेवा का मूल्य इसी से आँका जाता है। संख्या अल्प होते हुए भी अगर इसका छेद शून्य हो ,तो उसका मूल्य अनन्त हो जाता है। उसी प्रकार अल्प सेवा को भी निरहंकारिता का छेद प्राप्त होने से उसका मूल्य अनन्त हो जाता है। यथार्थ सेवा से सन्तोष की मात्रा बढ़ती है। उस सन्तोष से सेवा वास्तविक है या आभासात्मक, यह जाना जा सकता है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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