Gurudev
युग परिवर्तन का आधार भावनात्मक नव निर्माण (भाग १)
सूर्योदय पूर्व दिशा से होता है। उषा काल की लालिमा उसकी पूर्व सूचना लेकर आती है। कुक्कुट उस पुण्य बेला की अग्रिम सूचना देने लगते हैं। तारों की चमक और निशा कालिमा की सघनता कम हो जाती है। इन्हीं लक्षणों से जाना जाता है कि प्रभात काल समीप आ गया और अब सूर्योदय होने ही वाला है।
नव जागरण का, युग परिवर्तन का सूर्योदय भी इसी क्रम से होगा। यह सार्वभौम प्रश्न है, विश्व मानव से सम्बन्धित समस्या है। एक देश या एक जाति की नहीं। फिर भी उदय का क्रम पूर्व से ही चलेगा। कुछ चिरन्तन विशेष परम्परा ऐसी चली आती है कि विश्व मानव ने जब भी करवट ली है तब उसका सूत्र संचालन सूर्योदय की भाँति ही पूर्व दिशा से हुआ है। यों पाश्चात्य देशवासी भारत को पूर्व मानते हैं, पर जहाँ तक आध्यात्मिक चेतना का प्रश्न है नि...
युग परिवर्तन का आधार भावनात्मक नव निर्माण (भाग २)
युग परिवर्तन के जिस अभियान में हमें दिलचस्पी है वह चेतनात्मक उत्कर्ष ही है। इसके लिए ज्ञान तन्त्र को समर्थ और परिष्कृत करना पड़ेगा। इसका अर्थ यह नहीं कि भौतिक प्रगति व्यर्थ है। वह भी आवश्यक है, पर वह दूसरे लोगों का काम है, जिसे वे शक्ति भर सम्पन्न कर भी रहे हैं। सरकारें पंच वर्षीय योजनाएँ बनाती हैं। वैज्ञानिक शोध कार्यों में जुटे हुए हैं, अर्थशास्त्री व्यवसाय उत्पादन और वितरण का ताना- बाना बुन रहे हैं। सैन्य तन्त्र आयुधों के निर्माण और योद्धाओं के प्रशिक्षण में लगा है। शिक्षा शास्त्री बौद्धिक क्षमता के अभिवर्धन में लगे हैं। उपेक्षित तो ज्ञान तन्त्र ही पड़ा है उस नाम पर जो खड़ा है उसे तो विदूषकों जैसी विडम्बना ही कहा जा सकता है। धर्म के नाम पर जो कहा और किया जा रहा है उससे ऐसी आस्तिकता की अपे...
युग परिवर्तन का आधार भावनात्मक नव निर्माण (भाग ३)
यह हलचलें जन- जन में दृष्टिगोचर होंगी। समुन्नत आत्मा निजी सुख सुविधाओं को तिलाञ्जलि देकर विश्व के भावनात्मक नव निर्माण को इस युग की सर्वोत्तम साधना, उपासना, तपश्चर्या एवं आवश्यकता समझते हुए इसी में सर्वतो भावेन संलग्न होगी। साथ ही सामान्य स्तर के व्यक्तियों में इतना विवेक तो अनायास ही जागृत होगा कि वे अन्धकार और प्रकाश का अन्तर समझ सकें। अनुचित के लिए दुराग्रह छोड़कर न्याय और विवेक के आधार पर प्रतिदिन उचित को स्वीकार कर सकें। इस प्रकार उभय पक्षीय सुयोग संयोग उस प्रयोजन को अग्रगामी बनाता चला जायेगा जो युग परिवर्तन का मूलभूत आधार है।
आज की स्थिति को देखते हुए यह दोनों ही कार्य कठिन दीखते हैं। धर्म विडम्बना के सस्ते प्रलोभनों को तिरस्कृत कर धर्म प्रेमी लोग कष्ट...
युग परिवर्तन का आधार भावनात्मक नव निर्माण (भाग ४)
अगले दिनों ज्ञानतन्त्र ही धर्मतंत्र होगा। चरित्र निर्माण और लोक मंगल की गतिविधियाँ धार्मिक कर्मकाण्डों का स्थान ग्रहण करेंगी। तब लोग प्रतिमा पूजक देव मन्दिर बनाने को महत्त्व देंगे। तीर्थ- यात्राओं और ब्रह्मभोजों में लगने वाला धन लोक शिक्षण की भाव भरी सत्प्रवृत्तियों के लिए अर्पित किया जायेगा। कथा पुराणों की कहानियाँ तब उतनी आवश्यक न मानी जायेंगी जितनी जीवन समस्याओं को सुलझाने वाली प्रेरणाप्रद अभिव्यंजनाएँ। धर्म अपने असली स्वरूप में निखर कर आयेगा और उसके ऊपर चढ़ी हुई सड़ी गली केंचुली उतर कर कूड़े करकट के ढेर में जा गिरेगी।
ज्ञान तन्त्र वाणी और लेखनी तक ही सीमित न रहेगा, वरन् उसे प्रचारात्मक एवं संघर्षात्मक कार्यक्रमों के साथ बौद्धि...