KARMA

गहना कर्मणोगति: (अन्तिम भाग)
दुःख का कारण पाप ही नहीं है
दूसरे लोग अनीति और अत्याचार करके किसी निर्दोष व्यक्ति को सता सकते हैं। शोषण, उत्पीड़ित और अन्याय का शिकार कोई व्यक्ति दुःख पा सकता है। अत्याचारी को भविष्य में उसका दण्ड मिलेगा, पर इस समय तो निर्दोष को ही कष्ट सहना पड़ा। ऐसी घटनाओं में उस दुःख पाने वाले व्यक्ति के कर्मों का फल नहीं कहा जा सकता।
विद्या पढ़ने में विद्यार्थी को काफी कष्ट उठाना पड़ता है, माता को बालक के पालने में कम तकलीफ नहीं होती, तपस्वी और साधु पुरुष लोक-कल्याण और आत्मोन्नति के लिए नाना प्रकार के दुःख उठाते हैं, इस प्रकार स्वेच्छा से स्वीकार किए हुए कष्ट और उत्तरदायित्व को पूरा करने में जो कठिनाई उठानी पड़ती है एवं संघर्ष करना पड़ता है, उसे दुष्कर्मों का फल नहीं कहा जा सकता।
हर मौज मारने वाले को पूर...