
क्या भ्रम ? क्या गम? कैसा मातम?
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(रचयिता-श्री शशिभूषण)
हर दिल में एक जगह रक्खो, तो बढ़ा सको दो-चार कदम;
है दूर प्रेम की पगडण्डी, हे दूर बसेरा लिये सनम!
उम्मीद लिये जाना है तो दुख-दर्द झेलते आओ रे,
जो सीखो मुस्काना, तो पहले रो लो, फिर मुस्काओ रे !
गाने पर वह रोना कैसा, जो है हँसने के ही करीब?
रोते आओ, गाते जाओ, मत गाकर रोये जाओ रे?
फिर पहचानो जड़ प्रेमहीन, फिर पहचानो प्रेमी जंगम !
हर दिल में एक जगह रक्खो, तो बढ़ा सको दो-चार कदम !
हो चाह अगर साथी की तो डालों में लिपटो झूम-झूम;
कुछ बाहर की कुछ अन्दर की ले आओ आभा घूम-घूम!
हे टेढ़ी चाल तुम्हारी गर यह तो प्रेमी की गई डगर,
तुम चलो झूमते ठीक डगर, या लौटो रजकण चूम-चूम !!
ढलता जग अपने साँचे में रक्खो जारी तुम अपना क्रम ;
हर दिल में एक जगह रक्खो तो बढ़ा सको तो-चार कदम!
बेबसी वही जो जाय ऊब, जो रोज छिले बस वही घाव;
हे प्रेम वही जो बने जलन, जो लौट न पावे वही दाम!
इस ओर मिले आधी रजनी, टिमटिम ताराओं का प्रदीष ;
तुम जग के नभ से सदा दूर, जग के नभ का तुम से दुराव!
आशा की छबि तुम में चमचम, क्या भ्रम क्या गम, कैसा मातम?
हर दिल में एक जगह रक्खो तो बढ़ा सको दो-चार कदम !
जाओ, इस मंजिल से होकर दुख-तम से किन्तु न उठो सहम ;
जीवन की लाली किसी तरफ मिल जाए तो रे कम-से-कम?
पत्थर दिल बन जाना न कहीं इन ईंट पत्थरों को निरेख,
खुद झाँकी दीख पड़ेगी वह, सुन लोगों स्वयं तान पञ्चम !
फिर, देना सम पर नाल, प्राप्त होगा जब-जब वह स्वर-संगम ;
हर दिल में एक जगह रक्खो तो बढ़ा सको तो-चार कदम !
प्रकाशक-पं॰ श्रीराम शर्मा, फ्रीगंज आगरा। मुद्रक-पं॰ मधुसूदनशरण शर्मा, न्यू फाइन आर्ट प्रिंटिंग काटेज दौलत मारकीट, जौहरी बाजार, आगरा।
*समाप्त*