
शक्ति व स्वास्थ्य प्राप्त करो
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(ले॰ श्री नित्यानन्द पारिक, आगरा)
इस प्रकार के कितने ही मनुष्य हैं जो दूसरों की भलाई करते हैं पर स्वयं अपना भला नहीं चाहते। वे न तो अपने शरीर और स्वास्थ्य की ही परवाह करते हैं और न अपनी शक्तियों का सदुपयोग। वे दूसरे के मित्र बनना चाहते हैं पर अपने शत्रु बने हुए हैं। दूसरों के साथ भलाई करना अच्छा है पर अपने साथ भलाई करना उससे भी अच्छा है। हर एक व्यक्ति का धर्म है कि मैं ईश्वर की सन्तान हूँ-उसी का प्रतीक हूँ।
ऐसे बहुत से मनुष्य हैं जो चाहें तो बहुत बड़े काम कर सकते हैं परन्तु कर नहीं पाते। उनका जीवन निराशा के झूले में झूलता हुआ उन छोटे कामों में ही व्यतीत हो जाता है। कारण यह है कि उनमें इतनी शक्ति नहीं रही कि वे अपनी कठिनाइयों को दूर कर सकें और विघ्न -बाधाओं को हटा सकें। उन्होंने अपने शरीर की रक्षा नहीं की है और इसी कारण उनका हृदय दुर्बल हो गया है तथा इन्द्रियाँ शिथिल पड़ गई हैं ज़रा ज़रा से कामों के करने पर वे थक जाते हैं।
हमारी शक्ति का बहुत बड़ा भाग क्रोधादि दुर्गुणों से नष्ट हो जाता है। शरीर को भस्म कर देने के लिये क्रोध से बढ़कर कोई चीज़ नहीं। क्रोधी मनुष्य रात-दिन अपने को जलाता रहता है । चिन्ता की उपमा चिता से होती है। ईर्ष्या, द्वेष, निन्दा, घृणा सब शरीर को घुलाने वाली हैं। इनसे मन और शरीर दोनों की अवनति होती है।
तुम्हारे जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य यह होना चाहिए कि अपनी शारीरिक और मानसिक शक्तियों को ऊंची से ऊंची बनाओ।