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Magazine - Year 1942 - Version 2

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Language: HINDI
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वह काम जो आज ही करना है।

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सतयुग आन्दोलन का आरम्भ करने के लिये हम अखण्ड-ज्योति के पाठकों को आज विशेष रूप से आमंत्रित करते हैं। यह सूर्य की तरह स्पष्ट है कि भविष्य में शुभ समय आने वाला है। वह वर्तमान की बुराइयों का शोधन करके बुराई को हटा कर भलाई की नई व्यवस्था स्थापित करेगा। यह आने वाला समय किसी के रोके न रुकेगा। हमें प्रभु की उस महान इच्छा को पूरी होने देने के लिये अपना हिस्सा पूरा करना चाहिए। यदि रामचन्द्रजी को विश्वामित्र ऋषि शिक्षा न देते तो भी वे विद्वान हो जाते, पर उन्होंने अवसर को पहचाना और अपना भाग पूरा करके अपना जीवन सफल बना लिया। हनुमान, सुग्रीव, जामवन्त आदि की सहायता न मिलती तो भी रावण का नाश होकर राम-राज्य स्थापित होता ही, पर वे लोग अपना जीवन धन्य करने से वंचित रह जाते। भगवान कृष्ण के साथ ग्वाल-बालों का यश गान और कथा वर्णन होता है। यदि वे सहयोग देने में उपेक्षा करते तो भगवान का कार्य पूरा होता ही पर वे ही बेचारे अभागे रह जाते। गंगा जी आनी थी आई, पर भगीरथ का नाम अमर हो गया। जब तक भगवती भागीरथी रहेंगी तब तक भगीरथ भी रहेंगे।

अखण्ड-ज्योति के पाठक महानुभावों से हमारी यह गम्भीर प्रार्थना है कि वे सत्यनारायण के अवतार पर विश्वास करें। भविष्य में पाप घटेंगे और उनका स्थान पुण्य लेगा, यह बिल्कुल निश्चित है। मनुष्य सुस्थिर और विवेकपूर्ण जीवन व्यतीत करने को एक अदृश्य सत्ता द्वारा बाध्य किये जायेंगे। वर्तमान समय में जो भयंकर घनघोर घटाएं गरजती फिर रही हैं, वे जलते हुये ग्रीष्म को हरियाली वर्षा ऋतु में बदलने के लिए आयी है। इस समय डरने घबराने या आलस्य प्रमाद में व्यतीत न करना चाहिए, वरन् अवसर को पहचानते हुए भगवान सत्यनारायण के अवतार काल में अपने को धन्य बनाने के लिये प्रयत्न करना चाहिए। ‘सत्य’ आन्दोलन के सम्बन्ध में एक योजना पाठकों के सामने रखी जाती है।

सार्वदेशिक प्रचार करने के लिये एक बहुत ही प्राचीन और महत्वपूर्ण विधि यह है कि “एक व्यक्ति अपनी बात पाँच आदमियों से कहें। जिनमें कही जाए, वे भी उसी प्रकार अन्य पाँच आदमियों से कहें, फिर उनमें से हर एक पाँच-पाँच से कहें। बात कहते समय सुनने वाले को यह भी चेतावनी दे देनी चाहिए कि वह इस प्रचार चेन को तोड़ न दें, वरन् दूसरों से कहने व चेतावनी देने का क्रम जारी रखें।” इस समय सब से बड़ी आवश्यकता इस बात की है कि आगामी शुभ समय की सूचना और उसके लिये क्या तैयारी करनी चाहिए, इस बात का सन्देश घर-घर में पहुँचा दिया जाए। यह कार्य इस प्रकार हो सकता है कि पढ़े लिखे लोग कागज के छोटे-छोटे पाँच टुकड़े लें और उन पर एक ओर चेतावनी और दूसरी ओर सन्देश लिखकर पढ़े-लिखे लोगों को दें और जो लें, उनमें से हर एक उसी प्रकार के पाँच पाँच पर्चे दूसरों को बाँटे। इस अमर बेल को बढ़ाने और दूर-दूर तक शीघ्रता पूर्वक फैलाने के लिए विशेष रूप से प्रयास करना आवश्यक है, पर्चे की एक तरफ इस प्रकार निवेदन लिखा हुआ होनी चाहिए-

सार्वदेशिक प्रचार करने के लिये एक बहुत ही प्राचीन और महत्वपूर्ण विधि यह है कि “एक व्यक्ति अपनी बात पाँच आदमियों से कहें। जिनमें कही जाए, वे भी उसी प्रकार अन्य पाँच आदमियों से कहें, फिर उनमें से हर एक पाँच-पाँच से कहें। बात कहते समय सुनने वाले को यह भी चेतावनी दे देनी चाहिए कि वह इस प्रचार चेन को तोड़ न दें, वरन् दूसरों से कहने व चेतावनी देने का क्रम जारी रखें।” इस समय सब से बड़ी आवश्यकता इस बात की है कि आगामी शुभ समय की सूचना और उसके लिये क्या तैयारी करनी चाहिए, इस बात का सन्देश घर-घर में पहुँचा दिया जाए। यह कार्य इस प्रकार हो सकता है कि पढ़े लिखे लोग कागज के छोटे-छोटे पाँच टुकड़े लें और उन पर एक ओर चेतावनी और दूसरी ओर सन्देश लिखकर पढ़े-लिखे लोगों को दें और जो लें, उनमें से हर एक उसी प्रकार के पाँच पाँच पर्चे दूसरों को बाँटे। इस अमर बेल को बढ़ाने और दूर-दूर तक शीघ्रता पूर्वक फैलाने के लिए विशेष रूप से प्रयास करना आवश्यक है, पर्चे की एक तरफ इस प्रकार निवेदन लिखा हुआ होनी चाहिए-

निवेदन

इस की पीठ पर लिए हुए संदेश को पढ़िये, मनन कीजिए और उसके अनुसार आचरण कीजिए। तथा इसी प्रकार के दूसरे पाँच पर्चे लिखकर अन्य सज्जनों को दीजिए, ताकि वे भी आपकी ही तरह पाँच-पाँच लिखकर औरों को दें, सत्य-सन्देश की इस अमर बेल को फैलाने से आपको अमर फल मिलेगा। और इस अमर बेल को तोड़ देने से पाप के भागी होंगे।

इस की पीठ पर लिए हुए संदेश को पढ़िये, मनन कीजिए और उसके अनुसार आचरण कीजिए। तथा इसी प्रकार के दूसरे पाँच पर्चे लिखकर अन्य सज्जनों को दीजिए, ताकि वे भी आपकी ही तरह पाँच-पाँच लिखकर औरों को दें, सत्य-सन्देश की इस अमर बेल को फैलाने से आपको अमर फल मिलेगा। और इस अमर बेल को तोड़ देने से पाप के भागी होंगे।

पर्चे की दूसरी तरफ इस प्रकार का सत्य सन्देश लिखा हुआ होना चाहिए।

सत्य-सन्देश

बहुत शीघ्र सतयुग आने वाला है और भगवान सत्य नारायण अवतार लेंगे। इसलिए तीन काम आज से ही आरम्भ कर दीजिए।

1. सत्य को शोध कीजिए।

2. प्रेम का प्रसार कीजिए।

3. न्याय को स्वीकार कीजिए।

3. न्याय को स्वीकार कीजिए।

कागज की महंगाई के जमाने में बहुत बड़े पर्चे लिखने की जरूरत नहीं है। जितने स्थान में यह छपे हैं, उतने में ही या उससे कुछ अधिक बड़े कागज पर लिखना पर्याप्त है। कागज कुछ मजबूत हो तो अच्छा है, जिससे वह जल्दी ही खराब न हो जाए। पाँच की संख्या तो कम से कम और साधारण लोगों के लिए है। उत्साही और प्रेमी सज्जन पचास सौ या जितनी अधिक संख्या में वे फैला सके फैलावें। केवल लिखकर बाँट देना ही पर्याप्त नहीं है। इस सम्बन्ध में अच्छी तरह समझाना भी चाहिए और इस अमरबेल का पुण्य एवं महत्व सविस्तार बताना चाहिए। जो व्यक्ति पढ़े-लिखे नहीं हैं वे इस कार्य को वाणी द्वारा कर सकते हैं। जिन स्थानों में पाँच धार्मिक व्यक्तियों का संगठन हो सके, वहाँ सतयुग सभा बना लेनी चाहिए। एक इनका प्रमुख हो और अन्य सदस्य हों। मन्त्री आदि बहुत से पदाधिकारी चुनने की जरूरत नहीं है क्योंकि बहुत अधिकारी बनाने पर मनमुटाव, ईर्ष्या और नाना प्रकार के उपद्रव होने की आशंका रहती है। एक विचार के व्यक्तियों के एक संगठन में चाहे कितने ही थोड़े व्यक्ति क्यों न हों, पर वही संगठन अन्ततः बड़ा भारी, मजबूत और कामयाब प्रमाणित होता है, इसलिए सतयुग सभा का वह संगठन होना चाहिए। जहाँ चार-पाँच भी उत्साही सत्य प्रेमी हों उन सभाओं की स्थापना की सूचना अखण्ड-ज्योति में प्रकाशनार्थ भेज देनी चाहिए और उन्हें अखण्ड-ज्योति से सम्बन्धित कर लेना चाहिए। इन सभाओं के द्वारा अमरबेल का प्रचार किया जा सकता है, परन्तु एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि यह पर्चे छपाकर बाँटने से उद्देश्य की पूर्ति न होगी। लिखकर बाँटने में जो श्रम होता है, उसमें लिखने वाले के संस्कार दृढ़ होते हैं और लिखने में उसकी भावनाएं पर्चे में लिपट कर जाती हैं। जो दूसरे पर अधिक प्रभाव डालता है। सभाएं या विशेष रूप से प्रचार करने वाले महानुभाव अमरबेल योजना को छपाकर प्रचारित कर सकते हैं, पर आगे अन्य व्यक्तियों में व जनता में यह लिखकर ही प्रसारित होनी चाहिए।

सत्य के सन्देश जो अमरबेल में प्रचारित किये गये हैं, उनको कार्य-रूप में लाने के लिए इस प्रकार का कार्यक्रम अपनाना चाहिए।

सत्य की शोध करने के लिए- (1) नित्य कोई समय निकालकर आत्म चिन्तन (2) ईश्वर प्रार्थना (3) ‘मैं क्या हूँ’ पुस्तक में बताई हुई विधि से अखण्ड आत्मा, अखण्ड जीवन, अखण्ड जगत का ध्यान। मृत्यु से निर्भय रहते हुए तृष्णा वासनाओं को त्याग कर जीवनोद्देश्य को पूरा करने की दृष्टि से हर एक काम को करने की भावना जागृत करना।

प्रेम का प्रसार करने के लिये - (1) नित्य देने की आदत डालना (चाहे चींटियों को आटा, पक्षियों को पानी पिलाना जैसा छोटा काम ही क्यों न हो)। (2) दूसरों को अपने समान समझते हुए उनका दुख घटाने और सुख बढ़ाने के लिये प्रयत्न करना। अपना स्वार्थ छोड़कर दूसरों को लाभ पहुँचाना, इस दृष्टि से निस्वार्थ भाव से दूसरों के कोई काम अवश्य करना। (चाहे अमरबेल का प्रचार जैसा छोटा काम ही क्यों न हो)। (3) निरन्त शुभ संकल्पों का प्रसार करना, खुद अच्छे आचरण करना। जिससे भी बात करने का मौका मिले, उसी को कल्याणकारी शिक्षा, सलाह नम्र शब्दों में देना, दिन में कम से कम पाँच व्यक्तियों को सदुपदेश देने का नियम बना लेना, दीवारों पर शिक्षाप्रद वाक्य लिखना।

न्याय को स्वीकार करने के लिए-

(1) नित्य व्यायाम करना, कमर सीधी और निगाह ऊँची रखना, ‘स्वस्थ और सुन्दर बनने की विद्या’ पुस्तक के अनुसार निरोग बनना बनाना, हाथ में लाठी रखना। (2) दूसरों का आदर करना, किसी को तू कहकर न पुकारने की आदत डालना, गाली देना छोड़ना छुड़वाना, नीच, पापी और दुष्टों से घृणा न करके बीमार की तरह उनकी बुराई की चिकित्सा करना, किसी का हक कदापि न छीनना, न अपना छीनने देना। (3) दुष्टता और पाप के विरुद्ध धर्मयुद्ध करना। किसी व्यक्ति या समाज की अनुचित आज्ञाओं के सामने चाहे वह कितने ही बलवान द्वारा दी गई हों, सिर न झुकाना। उसका प्रतिकार करना कम से कम विरोध और असहयोग तो जारी ही रखना। सामाजिक कुरीतियों का मनसा, वाचा, कर्मणा, जैसे भी सम्भव हो, प्रतिरोध करना और उसके लिये जो कष्ट सहना पड़े, उसे तप रूप में सहर्ष स्वीकार करना, (चाहे वह शारीरिक विकारों को दूर करने के लिये उपवास जैसे छोटे काम से ही आरम्भ क्यों न किए जाएं)। सत् प्रेमी महानुभावों और सतयुग सभाओं को वह कार्य छोटा नहीं समझना चाहिए। देखने में यह कार्य मामूली प्रतीत होते हैं, लोगों की दृष्टि में यह तुच्छ प्रतीत होंगे, परन्तु तत्वतः ‘इनमें ऐसे-ऐसे रहस्य छिपे हुए जो बड़े-बड़े महान कार्यों के बीज हैं। इन छोटे से बीजों में से ‘बरगद के बड़े-बड़े शाखा प्रशाखाओं वाले वृक्ष उत्पन्न होकर अपनी छाया में अनेक प्राणियों को स्थान देंगे। इन कार्यों को छोटे न समझकर वर्तमान समय की सब से बड़ी आवश्यकताओं को पूरा करने वाला अनुभव करना चाहिए और इन कार्यों की पूर्ति में अविलम्ब जुट जाना चाहिए। इस छोटी से योजना के अंतर्गत परकल्याण का बहुत बहुत बड़ा मर्म है। पाठकों को उसे समझकर अविलम्ब इस ओर अग्रसर होना चाहिए।

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