
रामकृष्ण परमहंस के उपदेश
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जैसे चलनी से बारीक अन्न नीचे गिर जाता है और मोटा अन्न ऊपर ही रह जाता है। उसी प्रकार दुर्जन मनुष्य भलाई को छोड़कर बुराई ग्रहण कर लेते हैं।
जैसे कि एक स्त्री एक राजा से प्रेम करती है, तो वह एक भिक्षुक से कदापि नहीं कर सकती है। उसी तरह जिस जीवात्मा ने दिव्यानन्द की चुसकी ले ली, तो उसे संसार के दूसरे सुख नहीं रुचते।
जो मनुष्य मूली खाता है, उसके मुँह से मूली की महक निकलती है। इसी तरह मनुष्य के हृदय में जो होता है वही उसके मुँह से निकलता है।
जैसे तालाब से काई को हाथ से हटाने में फिर उसी जगह आ जाती हैं और किसी खप्पच इत्यादि से हटाने में दे तो फिर उसी जगह नहीं आ जाती है। उसी तरह माया यदि किसी प्रकार दूर कर दी जाये, तो उसकी फिर से इच्छा होती है, परन्तु हृदय भक्ति और ज्ञान से भर लिया जाये, तो वह फिर नहीं आ सकती, निश्चय ही इस तरह करने से ईश्वर के दर्शन हो ही जाते हैं।
गाय का दूध उसके सब शरीर में व्याप्त होता है। परन्तु अगर चाहो कि उसके सींगों से निकाल लिया जाये तो ऐसा नहीं कर सकते, दूध स्तनों से ही निकलता है। उसी तरह ईश्वर सब जगह मौजूद है किन्तु मिलता है पवित्र मन्दिरों में ही।