• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • पहिले इस पृष्ठ को पढ़ लीजिए।
    • प्रेम का प्रश्रय
    • प्रेम का प्रश्रय
    • स्थिरता और स्वस्थता के सन्देश।
    • आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग
    • कर्मयोगी की मानसिक स्थिति
    • शान्त विचारों की ठोस शक्ति
    • Quotation
    • आप के निमार्ण-कार्य
    • साहित्य, संगीत और कला
    • उलझन भरी पहेली
    • Quotation
    • श्री रामकृष्ण परमहंस के उपदेश
    • अपने बाल-बच्चे मत बेचिए!
    • वर्तमान समय के षडरिपु
    • भोजन तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी कुछ उपयोगी नियम
    • Quotation
    • गायत्री साधना का अधिकार
    • चाय के बदले आप यह पी सकते हैं।
    • महात्मा शेख सादी की सूक्तियाँ
    • मानव में जीवन के दो क्षण!!
    • मानव में जीवन के दो क्षण (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • पहिले इस पृष्ठ को पढ़ लीजिए।
    • प्रेम का प्रश्रय
    • प्रेम का प्रश्रय
    • स्थिरता और स्वस्थता के सन्देश।
    • आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग
    • कर्मयोगी की मानसिक स्थिति
    • शान्त विचारों की ठोस शक्ति
    • Quotation
    • आप के निमार्ण-कार्य
    • साहित्य, संगीत और कला
    • उलझन भरी पहेली
    • Quotation
    • श्री रामकृष्ण परमहंस के उपदेश
    • अपने बाल-बच्चे मत बेचिए!
    • वर्तमान समय के षडरिपु
    • भोजन तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी कुछ उपयोगी नियम
    • Quotation
    • गायत्री साधना का अधिकार
    • चाय के बदले आप यह पी सकते हैं।
    • महात्मा शेख सादी की सूक्तियाँ
    • मानव में जीवन के दो क्षण!!
    • मानव में जीवन के दो क्षण (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1950 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


अपने बाल-बच्चे मत बेचिए!

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 13 15 Last
(श्री जनार्दमजी पाठक)

ऐसी दुर्घटनाएं सदा ही समाचार-पत्रों में इन को मिलती हैं, कि अमुक स्थान में अमुक कन्या ने, जो अत्यन्त होनहार और विवाह के समस्त गुणों से पूर्ण थी, अपने विवाह के पहले आत्महत्या करके अपने प्राण दे दिये। भावुक पाठक का हृदय इसको पढ़कर अवश्य ही व्यग्र और विह्वल हो जाता है, तथा वे इस दुर्घटना के मूल कारणों पर तरह-तरह के अनुमान करने लगते हैं। मेरी समझ में इसके वस्तुतः दो ही कारण होते हैं। एक तो उस कन्या के माँ-बाप या उसके कोई निकट सम्बन्धी उसे किसी अयोग्य पुरुष के साथ रुपये आदि लेकर विवाह करना चाहते हैं, और नहीं तो किसी लड़के का दुष्ट अभिभावक इतना अधिक द्रव्य उस लड़की के पिता भाई या उसके परिवार के और लोगों से चाहता है, जिससे कि उस कन्या के वे सम्बन्धी अत्यन्त विह्वल और व्यग्र हो जाते हैं। ऐसी अवस्था में उस बेचारी कन्या को जीवन अवश्य ही बोझ मालूम पड़ता है।

क्यों न हो-“सबसे अधिक जाति अपमाना।” नारी-जाति का यह असह्य अपमान जब उसे बर्दाश्त नहीं होता तो वह अपने प्राणों को त्याग देती है। सती ने जिस तरह अपने अपमान और क्रोध की दहन-ज्वाला से अपने पिता के यहाँ प्राण दे दिये थे, ठीक उसी तरह दो एक नहीं, अनेकों देवियाँ हमारे समाज के भयंकर अग्निकुण्ड में वर-विक्रय और कन्या-विक्रय की कुप्रथा के कारण अपने को होम कर देती हैं। कितनी ही कन्याएं आजीवन कुमारी ही रह जाती हैं। उनके अभिभावकों के पास तिलक-दहेज के लिये इतने रुपये नहीं कि जिनसे उनका विवाह कर सकें।

मेरा यह दृढ़विश्वास है कि बहुत सी कन्याएं, जिन्हें अपने भविष्य की कुछ भी चिन्ता है, इस वर-विक्रय और कन्या विक्रय की घातक कुप्रथा के कारण चिंतासागर में डूबी रहती हैं, जंगल के मृग-शावकों की तरह सदैव भयातुर बनी रहती हैं ठीक ही है, जहाँ तिलक-दहेज और कन्या-विक्रय के इतने जबर्दस्त जाल बिछे हुए हैं, वहाँ अभागी कन्या-मृग शावकों को अयोग्य वर-बधिक के जाल में फंस जाना न पड़े यही आश्चर्य है!

जिस परिवार में तिलक-दहेज की विशेष चाहत हैं, वहाँ कन्याओं का समुचित सत्कार नहीं हो सकता, बल्कि वे आरम्भ से ही उपेक्षा की दृष्टि से देखी जाती हैं। उन्हें सुयोग्य बनाने का भी प्रयत्न प्रायः नहीं किया जाता। ऊँची शिक्षा देने-दिलाने की बात तो दूर रही, सूत कातने, कपड़ा बुनने, भात-रोटी आदि भोजन की सामग्री प्रस्तुत करने, तथा सीना-पिरोना आदि उपयोगी कार्यों के ज्ञान से भी वे वंचित रहती हैं, जिससे उन्हें पति-गृह में और भी अधिक कष्ट भोगने पड़ते हैं। कन्याओं के प्रति सभी का यह भाव रहता है कि कन्या ऐसी महाजन है जो हम लोगों से अपना ऋण अदा कराने आयी है, अतएव उसका आदर ही क्या? लोग उनकी उपेक्षा करते हैं। बेचारी कन्याओं के बीमार पड़ने पर प्रायः लोग उनकी चिकित्सा आदि की व्यवस्था भी उस समय नहीं करते, जैसे लड़के के लिये करते हैं। जनसाधारण में ऐसी कहावत प्रसिद्ध है कि ‘बिन ब्याहे बेटी मरे, खड़ी उख बिकाय। बिन मारे बैरी मरे, दोनों कुल तर जाय।”

एक ही घर में लड़कों को सुन्दर चीजें खिलायी-पिलायी जाती हैं और कन्याओं को उन चीजों से यत्नपूर्वक वंचित रखा जाता है। तिलक-देहज के कारण जब कन्याओं के लिए वर-घर उपयुक्त नहीं मिलते, तो लोग उन्हें अभागिनी और बुरे लक्षणों वाली कह कर अपमानित किया करते हैं विशेष तिलक-देहज के भय से कुछ लोग अपनी कन्या का विवाह बूढ़े, रोगी एवं भारी अयोग्य पुरुष के साथ करने में भी संकोच नहीं करते, क्योंकि ऐसा करने में उन्हें कम खर्च करना पड़ता है। कहीं-कहीं तिलक-देहज की परेशानी के कारण कन्या के उपयुक्त घर और वर नहीं मिलते, तो उनके अभिभावक व्यर्थ के मोह में पड़ कर मरते हुए भी देखे जाते हैं। कन्या खरीद कर जो विवाह करने वाले हैं, उनमें अधिकाँश से लोग ऐसे होते हैं, जिनका विवाह करना निर्धनता आदि कई कारणों से उनके परिवार वाले पसंद नहीं करते। जिस दिन से नव-वधू पति गृह में जाती है, उस दिन से वहाँ अनेकों लड़ाई-झगड़े खड़े हो जाते हैं। वह परिवार नरक से भी भयानक हो जाता है। उस विवाहिता रमणी को तरह-तरह के दुखों का सामना करना पड़ता है और उसकी संतानें भी दुखों से बची नहीं रहतीं।

तिलक-दहेज देकर जो कन्याओं का विवाह करते हैं, उनके यहाँ यदि कोई दूसरी लड़की है, तो उसी अनुपात से उन्हें उसके विवाह में रुपये आदि भी खर्च करने पड़ते हैं, यदि उनके भाई या परिवार के और किसी आदमी के कोई लड़की है और उसके तिलक-दहेज में बुरा कुछ भी कम हुआ, तो उसका फल बहुत बुरा होता है। उनके घर में शीघ्र ही वैमनस्य फैल जाता है। तरह-तरह के लड़ाई-झगड़े खड़े होकर उस परिवार का नाश करके ही छोड़ते हैं। कितने ही लोगों को तो कन्या-विक्रय और वर-विक्रय की कुप्रथा के कारण इतना अधिक खर्च करना पड़ता है कि वे बहुत जल्द राह के भिखारी बन जाते हैं।

तिलक-दहेज में विशेष रुपये-पैसे खर्च करके आज के दिन धनी-मानी कहलाने वाले लोगों की जो दुर्दशा होती है, वह वे बिचारी जानती हैं या भगवान् ही जानता है। यदि वे कन्याएं किसी कन्यार्थी एवं सीधे-सादे श्रमजीवी के घर भी ब्याही गयी होतीं, तो भी, मेरी समझ से, उन्हें उतना कष्ट नहीं होता। तिकल-दहेज ही एक ऐसा प्रतिबन्ध है, जिससे किसी पूँजीपति, जमींदार और धनी कहलाने वाले मनुष्य की कन्या किसी किसान या मजदूर के घर नहीं ब्याही जाती और ऐसा होने से समाज में जो समानता और भ्रातृत्व उत्पन्न होता, वह आज नहीं हो पाता सामाजिक अभिन्नता और मैत्री के ख्याल से भी इस कुप्रथा को समाज से निर्वासित करने की निताँत आवश्यकता है।

लड़का बेचने वालों को अपनी व्यर्थ को मान-प्रतिष्ठ आदि खोजने के लिये नीच-तमाशे आदि में बहुत से रुपये लगाने पड़ते हैं नशीली चीजों का भी व्यवहार करना पड़ता है। इस तरह जिस कुप्रथा के कारण कुकर्म में पानी की तरह रुपये बहाने पड़ते हैं, उसके कायम रहते वर-वधू की सुख और शाँति ही कब नसीब हो सकती है। कितनी ही जगहों में बहुत से लोग तिलक-दहेज के लिए इस तरह गुटबंदी किये रहते हैं कि किसी लड़की वाले के सम्मुख एक दूसरे का गुण गान करते और उसको बहुत ही धनी तथा प्रतिष्ठित बना देते हैं, जिससे कन्या वालों को पूर्ण विश्वास हो जाता है और उस लड़के वाले को तिलक-दहेज में मुँह माँगे रुपये आदि देकर अपनी कन्या का विवाह उस लड़के के साथ कर देते हैं। उस तरह अनेक स्थानों में तिलक-दहेज के नाम पर प्रायः धोखा और विश्वासघात हो रहा है। कितने ही लोग लड़के वाले से इस तरह मिले रहते हैं कि विवाह होने पर दान-दहेज में कमीशन पाते हैं।

इस प्रकार कन्या-विक्रय में दलाली और अनेक धोखेबाजियाँ हुआ करती हैं। वर-विक्रय और कन्या-विक्रय की इस कुप्रथा के कारण बहुत-सी अव्यक्त-वेदना एवं निर्णाक-कुण्ठिता नव-वधुओं के ऊपर जितने अत्याचार हो रहे हैं, उन्हें सुनकर पाषाण हृदय भी कम्पित हो जाता है। जिसका पिता दहेज में अधिक रुपये न दे सके, उस वधू विचारी को तरह-तरह से कोसा जाता है। कहते हैं कि कितने ही घरों में तो बहुएं इसलिए भी जलाकर मार डाली जाती हैं कि नये विवाह में तिलक-दहेज में और भी अधिक रुपये आदि मिलेंगे। वधू कैसे ही गुणवती हो, गृह-कार्य में कैसी ही प्रवीण हो, पर उसकी नितान्त उपेक्षा की जाती है। रुपये पैसे के लिए उसके रूप-लावण्य आदि के गुणों पर पानी फेर दिया जाता है। परिवार के स्त्री-पुरुष सभी उससे घृणा करते हैं। कितनी ही कन्याएं पिता के घर इसलिए छोड़ दी जाती हैं और पति के घर उन्हें नहीं ले जाया जाता, क्योंकि उनके पिता किसी निष्ठुर एवं लोभी लड़के वाले को दहेज में विशेष द्रव्यादि नहीं दे सके। जबकि समाज में कन्याओं का पुनर्विवाह निषिद्ध है तो यह कैसा अन्याय है और हमारे समाज का यह कैसा बड़ा अत्याचार है?

First 13 15 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • पहिले इस पृष्ठ को पढ़ लीजिए।
  • प्रेम का प्रश्रय
  • प्रेम का प्रश्रय
  • स्थिरता और स्वस्थता के सन्देश।
  • आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग
  • कर्मयोगी की मानसिक स्थिति
  • शान्त विचारों की ठोस शक्ति
  • Quotation
  • आप के निमार्ण-कार्य
  • साहित्य, संगीत और कला
  • उलझन भरी पहेली
  • Quotation
  • श्री रामकृष्ण परमहंस के उपदेश
  • अपने बाल-बच्चे मत बेचिए!
  • वर्तमान समय के षडरिपु
  • भोजन तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी कुछ उपयोगी नियम
  • Quotation
  • गायत्री साधना का अधिकार
  • चाय के बदले आप यह पी सकते हैं।
  • महात्मा शेख सादी की सूक्तियाँ
  • मानव में जीवन के दो क्षण!!
  • मानव में जीवन के दो क्षण (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj