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Magazine - Year 1950 - Version 2

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भोजन तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी कुछ उपयोगी नियम

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(डॉ. लक्ष्मी नारायण टण्डन, ‘प्रेमी’ एम. डी.)

पाचन-शीलता में सहायक साधना निम्नलिखित बातों से सम्भव है :-

1- भोजन केवल दो बार करें। दिन में 9 से बारह तक तथा रात को 5 से 6 तक किसी समय। बंधे हुए समय पर ही भोजन करें। महात्मा गाँधी का यदि भोजन का समय टल जाता था तो वह उस समय उपवास कर डालते थे। पित्त के कारण भोजन खूब पचता है और पित्त का वेग रात के 2 बजे से 1 बजे दोपहर तक रहता है, इससे 12 बजे तक दिन में भोजन कर लें। रात को पित्त कम होता है अतः रात को हल्का भोजन करें। रात को रक्त का प्रवाह त्वचा की ओर होता है पेट की ओर नहीं।

2- स्वभाविक भूख लगने पर ही भोजन करें। नियमित समय पर खाने के अभ्यास से स्वाभाविक भूख लगेगी। बासी, बहुत ठण्डा, बहुत गरम भोजन न करें।

3- नाश्ता न करें। यदि करें ही तो दूध तथा फलों का रस आदि हल्की चीजों का ही।

4- भर पेट न खाएं। पेट से अधिक खाना तो रोगों का बुलाना है। आधा पेट खाएं, एक चौथाई पानी के लिए और एक चौथाई हवा के लिए रखें। पाचन-यन्त्र रबड़ के समान लचीले हैं। पेट से अधिक खाने से वे फैल जाते हैं इससे हानि होती है। एक बार अधिक खाने से अच्छा है कि थोड़ा-थोड़ा 3 बार खाएं। कम खाने से उतने लोग नहीं मरते जितने अधिक खाने से मरते हैं।

5-पेट में ठूँस-ठूँस कर भोजन भर लेने से ठीक से रसों को निगलने और मिलने में (भोजन में) असुविधा होती है। तथा आमाशय में जो एक प्रकार की हरकत स्वाभाविक रूप से होती रहती है इसमें भी बाधा पड़ती है। इसके अतिरिक्त भोजन पचाने में अत्यधिक प्राणशक्ति खर्च हो जाती है।

6- बहुत परिश्रम के बाद, थकावट की दशा में तथा चिन्ता, क्रोध, शोक, आदि की दशा में भोजन न करें। भोजन शान्त दशा में तथा स्वाभाविक अवस्था में करें। क्रोध-शोक के अवसरों पर हमने देखा है कि भूख मर जाती है।

7- रोगों के उभार में चोट आदि लगने, खाँसी सर्दी, बुखार, तबियत ढीली होने, जुकाम शुरू होने, डाक्टरों के मना करने पर भोजन न करें। स्त्री प्रसंग के बाद भी भोजन न करें।

8- तले व्यंजन, मिर्च-मसाले, पकवान आदि मिले पदार्थ, चाय, काफी आदि नशीली चीजें न खाएं।

9- खाते समय भावना करें कि इस भोजन से मेरे शरीर का पोषण हो रहा है। पोषक तत्व मेरे अन्दर जा रहे हैं। प्राण-तत्व जो भोजन में थे और जिन्हें मैंने चबा-चबाकर अलग कर दिये हैं मेरे स्वास्थ्य की वृद्धि कर रहे हैं। जल पीते समय भी ऐसी ही भावना करें तथा आत्म-संकेत करें। रूखा सूखा भोजन इस प्रकार बल और स्वास्थ्य देने वाला हो जाता है।

10- जब तक पहला भोजन भली भाँति पच न जाय, बीच में जल को छोड़ किसी प्रकार का भी हल्के से हल्का भोजन न करना चाहिये एक भोजन के 5-6 घण्टे तक दूसरा भोजन न करें। 3 घण्टे के पहले तो यदि पहले वाला भोजन हजम भी हो गया हो तब भी न खाएं।

11- जब तक भोजन पच न जाय तब तक कठिन शारीरिक परिश्रम या व्यायाम न करें।

12-भोजन करने के बाद आधे घण्टे तक तो कम से कम अवश्य ही विश्राम करें। भोजन करते ही कार्यारम्भ या पढ़ाई-लिखाई या शारीरिक श्रम से, पाचक प्रणाली और मस्तिष्क दोनों को बहुत हानि पहुँचेगी।

खाने के बाद पहले बाँई करवट, फिर दाहिनी करवट और फिर बाँई करवट लेट जाये। कहते हैं रात को भोजन के बाद विश्राम करके मील दो मील चलना बहुत लाभप्रद होता है।

13- दफ्तर, दुकान, स्कूल, कालेज तथा बाहर अधिक परिश्रम करने वाले, अच्छा हो, रात को ही मुख्य भोजन करें। दोपहर को पेट भर खाकर भोजन न करें।

14- सदा भोजन के साथ या बीच में फलाहार करें। थोड़ा-सा दूध भी यदि भोजन के साथ पियें तो लाभप्रद है। शाक का प्रयोग अधिक और साथ में करें। इससे पैखाना खुला सा होता और रक्त शुद्ध होता है।

15- रूखा-सूखा भोजन होने पर भी प्रसन्नतापूर्वक भोजन करे तो शरीर में लगता है। अतः शुद्ध खुले स्थान में धुले साफ कपड़े पहन कर या नंगे बदन शान्त होकर भोजन करें।

16- भोजन न बहुत गरम खाएं न बहुत ठण्डा। बासी, बदबूदार, खुला। जिस पर मक्खी बैठती हो तथा गर्द आदि पड़ती हो भोजन न करें।

17- भोजन करके तुरन्त न सोवें। भोजन करने के कम से कम 3 घण्टे पश्चात् सोवें। अन्यथा खाना ठीक से हजम न होगा।

18- भोजन करने के आधे घण्टे पूर्व पानी पी लेने से भोजन ठीक से हजम होता है। भोजन के साथ तथा बाद में जल न पिएं। भोजन के कम से कम एक घण्टा बाद जल पिएं। भोजन के साथ तो अधिक रसादार तरकारी भी न खाना चाहिये भोजन और जल के एक साथ पेट में मौजूद होने से भोजन में ठीक से रस नहीं मिलने पाता।

19- भोजन खूब महीन दाँतों से पीस लें। जीभ और मुँह का भी प्रयोग करें ताकि लार खूब मिल जाय।

20- सोने के पूर्व एक गिलास पानी पी लें। सोकर उठने पर भी ताँबे के बर्तन में रखा आधा सेर जल कुल्ला करके पियें फिर 2 मिनट बाँई, 3 मिनट दाहिनी करवट तथा 4 मिनट सीधे लेट कर तुरंत पैखाने जाएं चाहे लगा हो या न लगा हो। ऐसा करने वाले सदा स्वस्थ रहते हैं और उनका पेट ठीक रहता है।

21- हमारी पाचन क्रिया स्वस्थ रहे। इसका ध्यान रखें। व्यायाम, प्राणायाम, टहलने आदि से पाचन-यन्त्र सशक्त और स्वस्थ रहते हैं।

22- भोजन स्वादिष्ट हो। इससे लार पर्याप्त मात्रा में निकलती है। किन्तु उपयोगिता के ऊपर स्वाद को प्रधानता न दी जाय। स्वाद के साथ ही सादगी भी भोजन में रहे। स्वाद से अधिक स्वास्थ्य का ध्यान रहे। उदाहरणार्थ पहले रोटी चबाइये और जब बिलकुल पिस जाय तब तरकारी खाएं। अन्यथा तरकारी के साथ रोटी का स्वाद बढ़ने पर रोटी जल्द ही आदमी निगल लेता है।

23- भोजनोपरान्त तेज चलना, शारीरिक परिश्रम, आग तापना, नहाना, सोना, मैथुन, पढ़ना, बहुत हँसना, गाना आदि वर्जित है।

24- भोजनोपरान्त पेशाब करने से अपने विषैले पदार्थ मूत्र के साथ निकल जाते हैं।

25- भोजन परिमित करे सूक्ष्म मात्रा में भोजन लें। हमारे शरीर को थोड़े ही, ठीक से किए हुए भोजन से, अपनी आवश्यकता के तत्व सुगमतापूर्वक मिल जाते हैं। परन्तु बहुत कम खाना भी हानिकारक है। बहुत कम खाने से पाचन-यन्त्र शरीर की चटनी आदि लेने लगते हैं।

26- आधे सेर नहीं तो पाव भर दूध रोज अवश्य ही आदमी को पीना चाहिये। बच्चों को दूध तो अवश्य ही पीना चाहिये।

27- भोजन के साथ में कुछ कच्चे शाक, तरकारी तथा फल अवश्य खाएं। फल सदा पहले खाये, फिर कच्चा शाक, फिर पकी तरकारी, फिर अन्न (यह अन्न और पकी तरकारी साथ) और तब सूखी मेवा।

प्रत्येक भोजन में कच्ची शाक भाजी और फल अवश्य हों। भोजन के बाद तुरन्त धूप में न लेटें।

28- भोजन के अतिरिक्त कुछ अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों का पालन करना आवश्यक है। जैसे-व्यायाम, गहरी साँस, शुद्ध वायु, सूर्य की धूप, प्रकाश, संयम, ब्रह्मचर्य, नियमित जीवन, पंच तत्वों का आवश्यकतानुसार उचित प्रयोग।

यदि हम लोग भोजन का ध्यान रखेंगे तो भोजन हमारा ध्यान रखेगा। हम भोजनों का नहीं, जिह्वा का ध्यान रखते हैं अतः खाया-पीया भोजन भी हमारे शरीर में नहीं लगता। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन, स्वस्थ मस्तिष्क तथा स्वस्थ आत्मा का विकास होगा, यह हम सावधान होकर ध्यान रखें।

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