
चाय के बदले आप यह पी सकते हैं।
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(श्री ना. वि. आठवके)
सर्वोत्तम पौष्टिक पेय गाय का धारोष्णा दूध ही हो सकता है। किन्तु आज-कल उसका मिल सकना सर्वसाधारण के लिए सुलभ नहीं है, अतएव उसके बदले यदि भैंस का दूध भी काम में लाया जाये तो चल सकता है। दूध को अच्छी तरह गर्म कर शकर मिलाने के बाद कुछ ठंडा कर लिया जाये, जिन्हें खालिस दूध पचता न हो, वे उसमें चुटकी भर सोंठ का चूर्ण मिलाकर चाय की तरह घूँट-घूँट पी सकते हैं, जिससे कि वह लार के साथ मिलकर भली भाँति पच सके।
जिन्हें दूध बिलकुल ही नहीं पचता हो, वे कप भर गर्म पानी में आधा कागजी नींबू का रस निचोड़ कर उसमें छोटे दो चम्मच भर शहद मिला कर सवेरे 6 बजे या शाम को 6 बजे प्रतिदिन नियम से पी सकते हैं। केवल नींबू कभी न चूसा जाय। ग्रीष्म ऋतु में ठण्डा और शीतकाल में गर्म पानी लेना चाहिये। इस पेय से पेट के रोग, जन्तु नष्ट हो जाते हैं और दस्त साफ होता है।
(1) नाचणी (नागली) एक प्रकार का जंगली अनाज होता है उसका सत् निकाल कर प्रतिदिन सवेरे आधे पाव पानी में एक चम्मच भर सत्व मिलाकर पकाया जाय इसके बाद उसी आधा पाव दूध और शक्कर मिलाकर लपसी तैयार कर ली जाय यह पेय भी दूध के समान पौष्टिक एवं छोटे से लेकर बड़े तक सबके लिए उपयोगी है। इसमें चाय, कॉफी, कोको, ओव्हलटीन आदि की अपेक्षा बहुत ही कम खर्च पड़ता है। मैं प्रतिदिन अपने बच्चों के साथ सवेरे यही पेय सेवन करता हूँ।
(2) चणक रस- अंजली भर, अच्छे चने आधे सेर पानी में रात को भिगो दिये जाएं और सवेरे उसी पानी के साथ उन्हें पकाया जाय। इसके बाद जब पाव भर पानी रह जाय तब उसमें जीरा, पिसी हुई कालीमिर्च, नमक, हल्दी डाल कर फिर थोड़ी देर उबाल कर घी से छोंक दें। इसके बाद छान कर उस पानी को पियो। यह चणकरस गर्म या ठण्डा जैसी इच्छा हो, पिया जा सकता है। एक दम न पीकर थोड़ा-थोड़ा पीना चाहिये। बीमार आदमी आधी कटोरी तथा अन्य व्यक्ति जितना भी पचा सकें उतने परिमाण में पी सकते हैं। यह रस पौष्टिक, स्वादिष्ट, पाचक और कब्जियत दूर करता है। शक्ति बढ़ा कर स्नायुओं को बलवान बनाता है। इसमें खर्च भी बहुत कम होता है इसलिए गरीब तो अवश्य ही इसका उपयोग करें।
(3) यवरस-गर्मी के दिनों में जौ (यव) का रस बहुत उत्तम होता है। रात को अंजली भर अच्छे साफ किये हुए जौ तीन पाव पानी में भिगो कर ऊपर से ढक दिया जाये। सवेरे उसी पानी में उन्हें उबाला जाये। जब डेढ़ पाव पानी रह जाय, तो वह उत्तम गुलाबी रंग का पेय छान कर ठण्डा करके पिया जाय। उसमें स्वाद के लिए थोड़ी सी शक्कर या नमक मिलाकर चणकरस की तरह थोड़ा-थोड़ा पीना चाहिए। यह रस भी सबके लिए उपयोग किया जा सकता है। कम खर्च भी है।
(4) छाछ या मट्ठा- गैस उत्पन्न करने वाले जन्तुओं पर छाछ या दही बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है। ताजी छाछ केवल बीस मिनट में पच जाती है। इतनी शीघ्रता से पचने वाला दूसरा पदार्थ नहीं हो सकता। दूध के पचने में बहुत देर लगती है। छाछ से रुधिराभिसरण (खून का दौरान) अच्छा होने लगता है। छाछ में सादे नमक के बदले सेंधा नमक मिलना चाहिए। छाछ ताजी और मीठी होनी चाहिए। यह कब्जियत पर बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुई हैं। भैंस की छाछ कुछ भारी होती है। इसलिए उसमें सोंठ, कालीमिर्च, पीपल का चूर्ण तथा सेंधा नमक मिलाना चाहिए। केवल दही को बिलोकर नहीं पीना चाहिये, वरन् उसमें पर्याप्त पानी मिलाना चाहिये और प्याले भर छाछ में चुटकी भर जीरे का चूर्ण तथा थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाना चाहिए। यह शक्ति-वर्धक पेय है। छाछ पीने के बाद पानी से कुल्ला करना चाहिये जिससे दाँतों को हानि न पहुँच सके। व्यायाम करने वाले लड़कों को दूध के बदले छाछ पिलाते हैं। भोजन के अन्त में भी कटोरी भर छाछ अवश्य पीना चाहिए जिससे भली भाँति अन्न का पाचन हो सके।
(5) गन्ने का रस- गन्ने या ईख के ताजे रस में लौह, ताम्र, फास्फोरस रहने के कारण वह एक उत्तम पौष्टिक पेय है, इससे रक्त वृद्धि होती है और इसकी बिना दाने की राव (काकब) शक्कर से अधिक उपयोगी है। उसमें भी लोहा है।
(6) धान की खीलें- बीमार आदमी के लिए अदहन के (उबलते हुए) पानी में अंजली भर धान की बढ़िया खीलें (लाई या धानी) डालकर 15 मिनट के बाद उस पानी को छान लिया जाय। वही थोड़ा-थोड़ा करके बीमार आदमी को देना चाहिए। इसका उपयोग पाचक एवं हल्लक आधार के रूप में हो सकता है।
(7) प्रो. राममूर्ति की ठंडाई - 10 बादाम 2 छोटी इलायची, 5 कालीमिर्च, 3 माशे घनिया इन सब चीजों को रात को भिगो दिया जाय, सवेरे बादाम छीलकर सब चीजों को पत्थर पर पीस कर उसमें पाव भर पानी मिला कर कपड़े से उस ठंडाई को छान लिया जाय। उसमें 2 तोला मिश्री मिलाकर व्यायाम के घंटे भर बाद पीना चाहिए। गर्मी के मौसम में यह ठंडाई रोज पी सकते हैं।
बड़े सौंफ का पेय- बड़ी सौंफ, पाचक, अग्निदीपक, और कफ, वायु, ज्वर, शूल, दाह तृषा, उल्टी (वमन), अतिसार आदि का नाश करती है। इसलिए घी में भून कर थोड़ा सा कूट लेने के बाद वह सोंफ का कढ़ा दूध व शक्कर मिला कर पीने से भी कोई हानि नहीं होती। यह लाभप्रद एवं चाय की तलब को मिटाने वाला है।
महात्मा गाँधी का पेय- जो कि एक प्रकार की कॉफी ही कही जा सकती है। अर्थात् अच्छे गेहूँ तवे पर लाल सुर्ख होने तक घी में भूने जायें, इसके बाद उन्हें कूट कर डिब्बे में भर रख लिया जाय। इसकी कॉफी बना कर पीने से वह स्वादिष्ट होने के साथ ही पौष्टिक भी होगी।