
अपने लक्ष्य में तन्मय हो जाइए
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(श्री सीता राम जी ठेकेदार, भिण्ड)
किसी भी मनुष्य के जीवन में- आदर्श केवल एक ही होता है लेकिन विशेषताएं अनेक हो सकती हैं। जीवन में जितनी अधिक विशेषताएं होगी उतना ही अधिक जीवन प्रभावशाली बनेगा और उतनी ही अधिक सुगमता के साथ वह अपने आदर्शों तक पहुँच सकेगा। महात्मा गाँधी के जीवन में सत्य, अहिंसा आदर्श थे लेकिन विभिन्न मतों का एकमत करना उनके सामने आने पर शत्रु का मित्र बन जाना आदि ये उनकी विशेषताएं थी। आदर्श तो मनुष्य द्वारा विचारा हुआ उसका एक लक्ष्य है और विशेषतायें प्रकृति द्वारा दी हुई तथा अभ्यास एवं पुरुषार्थ विनिर्मित शक्तियाँ। जिस प्रकार से पांचों उंगली बराबर नहीं उसी प्रकार से प्रत्येक मनुष्य में एक सी विशेषतायें नहीं होती। किसी में कोई विशेषता है तो किसी में कुछ और।
आदर्श एवं विशेषता के अन्तर को न समझने के कारण दूसरों की विशेषताओं पर मुग्ध होकर अपने आदर्श से गिर जाना हमारी कमजोरी का चिन्ह है। कोई विशेषता जीवन में न लाने के कारण हम दूसरों की इस विशेषता के सामने अपनी बुद्धि को झुका कर घुटने टेक देते हैं और उसके सामने अपने को कमजोर पाते हैं। हम उसकी श्रेष्ठता पर मुग्ध होकर अपने निश्चित आदर्श को भूल जाते हैं और उस विशेषता को ही जीवन की सफलता की कुँजी जान लेते हैं। मैं क्या-2 बनूँ? जैसा मैं दूसरों को देखता हूँ वैसा ही बनने की चेष्टा करता हूँ। लेकिन बन कुछ भी न पाता। अतएव जीवन में असंतोष है कि दूसरे सब कुछ हैं कोई तैराक है तो कोई गायक, कोई धनी है तो कोई बड़ा अफसर है, कोई खिलाड़ी है तो कोई बड़ा नेता है, लेकिन मैं कुछ नहीं। बस यही विचार कि मैं कुछ नहीं हमारी शक्तियों को मुरझा देता है सफलता मिले तो कैसे? मैं कुछ भी नहीं वे सब कुछ हैं। अतएव जीवन में दूसरों के प्रति यह व्यर्थ की चिन्तायें उत्पन्न हो जाती हैं, इन्हीं चिन्ताओं से शारीरिक स्वास्थ्य पर आघात पड़ता है और तरह तरह की अशुभ कल्पनाएं मानसिक व्यथाएं सताने लगती हैं। कार्य करने की शक्ति का धीमा हो जाना, एकान्त की प्रियता, स्वभाव का चिड़चिड़ापन, सामाजिक जीवन में लोगों से मिलते समय एक प्रकार की कायरता व झेंप का अनुभव, आपस में बातचीत में हीनता के भव, निर्भयता का अभाव, आदि-2 त्रुटियों हमारे जीवन में प्रवेश करती हैं।
इसलिए यदि आप वास्तव में अपने जीवन को सुखी शान्त एवं सफल बनाना चाहते हो तो सर्वप्रथम अपना केवल एक ही आदर्श विचारपूर्वक निश्चित करिये कि मैं यह चाहता हूँ और यह बनूँगा। केवल अपनी ओर देखते रहिये अपनी दृष्टि अर्जुन की भाँति अपने लक्ष पर ही केन्द्रित कीजिए। दूसरों की विशेषता या अवगुणों पर ध्यान मत दीजिये दूसरों की कोई विशेषता देखकर ही वैसा बनने की मत सोचिये। यदि किसी में अच्छे गाने की विशेषता है तो एक अच्छा गायक बनने की मत सोचिए यदि वास्तव में संगीत तुम्हें प्रिय है तो अपने आदर्श की सीमा के भीतर गाने कि विशेषता अपने में लाने का प्रयास कर सकते हो।
अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए सच्चाई, ईमानदारी एवं निरंतर परिश्रम से काम करिए सोचिए कम करिये अधिक। प्रत्येक काम को बिना घबराये निश्चित भाव से कीजिए सन्तोष से काम लीजिये मन को निर्द्वन्द्व एवं प्रसन्न रख कर आत्म बल को जागृत कीजिए। अपनी दृष्टि लक्ष्य की ओर गढ़ा कर सारी शक्तियाँ उस पर केन्द्रित कर दीजिए।
मनुष्य के हाथ में कर्म करना है। जो व्यक्ति पूरी ईमानदारी और पूरी श्रमशीलता के साथ अपने आदर्श की प्राप्ति में जुटा हुआ है वह असंख्यों विशेषताओं वाले आकर्षक मनुष्य की अपेक्षा किसी भी प्रकार कम महत्वपूर्ण नहीं है। फल देने वाला परमेश्वर है। सफलता असफलताओं का होना, शक्तियों एवं योग्यताओं का न्यूनाधिक होना अनेक आधारों पर अवलम्बित है यह हो सकता है कि कोई आदर्शवादी व्यक्ति असफल रहे और कोई धूर्त सफलता के शिखर पर जा चढ़े। जिनका विवेक कुँठित है दृष्टि स्थूल है वे आदर्श की अपेक्षा सफलता और विशेषता की ओर आकर्षित होते हैं परन्तु अन्ततः आदर्शवान् ही यशस्वी होता है। ईसामसीह, सुकरात, देवजनों, बन्दा बैरागी, भगत सिंह आदि कितने ही आदर्शवादी अपने जीवन में पराजित हुए, सफलता का सेहरा उनके सिर पर न बंध सका। फिर भी आज वे पराजित वीर हैं बड़े से बड़े दिग्विजयी सिकन्दर और आदर्शवादी राजा हरिश्चन्द्र में कौन बुद्धिमान था इसका निर्णय करना कुछ अधिक कठिन नहीं है।
आप अपना लक्ष्य स्थिर कीजिए। किस आदर्श के लिए अपना जीवन लगाना चाहते हैं यह निश्चित कीजिए, तत्पश्चात उसी की पूर्ति में मन, कर्म, वचन से लग जाइए। “लक्ष के प्रति तन्मय रहना” यह मनुष्य की इतनी बड़ी विशेषता, प्रतिष्ठा, सफलता, महानता है कि उसकी तुलना में अनेकों प्रकार के आकर्षक गुणों को तुच्छ ही कहा जायेगा।