
लू लगने का उपचार
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(प्रो. मोहनलाल वर्मा, एम.ए.)
स्वास्थ्य की दृष्टि से गर्मी का मौसम खराब है। पेट कुछ ऐसा हो जाता है कि किसी भी गरिष्ठ पदार्थ को सही रूप से पचा नहीं पाता। पाचन-विकार, कब्ज, हृदय दौर्बल्य, लीवर की खराबी, सिर एवं शरीर का भारी होना ये गर्मी के मौसम में अधिकतर पाये जाते हैं। गर्मी का शरीर के ऊपर प्रभाव अच्छा नहीं पड़ता है। सिर में चक्कर, थकावट, काम में अरुचि, आलस्य इनसे तो हम परेशान रहते ही हैं, पर कुछ ऐसे रोग हैं जिनसे सावधान न रहने से भारी नुकसान हो सकता है।
लू लगने के प्रधान कारण।
लू लगना एक ऐसा रोग है जिससे प्रत्येक व्यक्ति को सावधान रहना चाहिये। इसका प्रधान कारण अत्यधिक गर्मी में बाहर निकलना, सिर पर सूर्य की तीव्र किरणों को आने देना, तेज धूप अथवा गर्म हवा में बिना सिर ढके आना, तेज गर्मी के समय हवा का बन्द हो जाना है। कभी-कभी यह गर्मी के समय मद्यपान अथवा अत्यधिक शारीरिक परिश्रम करने से उत्पन्न होता है। प्रायः देखा गया है कि रेल के छोटे से डिब्बे में गर्मी के समय अनेक यात्रियों को वृहत् संख्या में बुरी तरह से ठुँस जाना होता है, डिब्बा गर्म हो जाता है, साँस नहीं आता और दम घुटने लगता है, उस समय रक्त में उष्णता की अभिवृद्धि होकर ज्वर हो जाता है, उसे “लू लगना” कहते हैं।
यह रोग गर्मियों में प्रायः दोपहर को अधिक होता है किन्तु वैद्य गोपीनाथ जी का विचार है कि गर्म देशों में रात्रि में भी लू लगने की सम्भावना है। राजपूताने के उन भागों में जहाँ रात में गर्म रेत उड़ता है, रात्रि में भी लू लगने की गुँजाइश है। जो व्यक्ति गर्मी के समय काले रंग के वस्त्र पहन कर धूप में निकलते हैं, या घूमते हैं, उन्हें लू लगने का अधिक भय रहता है क्योंकि काला रंग गर्मी को शीघ्रता से ग्रहण करता है।
इन लक्षणों को याद रखिये।
धूप में आने या गर्म वायु के झोंकों में आ जाने के कारण तुरन्त सिर दर्द होता है और सिर में चक्कर आने लगते हैं। नेत्र लाल वर्ण के हो जाते हैं और तत्पश्चात् जोर का ज्वर चढ़ता है। ज्वर काफी तीव्र होता है, साँस में अभिवृद्धि होती है, हृदय की धड़कन तीव्र होती है, बेचैनी और घबराहट अत्यधिक होती है, श्वांस में भी कठिनाई प्रतीत होती है, मूत्र पुनः आता है यदि तत्कालीन चिकित्सा न की जाय तो सम्भवतः रोगी को बेहोशी हो जाती है। यदि गर्मी का प्रभाव न्यून है, तो ज्वर नहीं होता, नेत्रों के सन्मुख अंधेरा आता है, जी मिचलाता है, वमन या उल्टी होती है, नेत्रों की पुतलियाँ फैल जाती हैं और रोगी निर्बलता से आक्रांत हो जाता है। किसी-किसी को खूब पसीना आता है तथा दम फूल जाता है। कभी-कभी इस दशा में भी बेहोशी होकर और दिल की धड़कन बन्द होकर मृत्यु हो जाती है। यह रोग बड़ी शीघ्रता से अपना प्रभाव प्रदर्शित करता है। इससे बड़ा सावधान रहना चाहिये। बच्चों की देखभाल करना अपेक्षित है।
लू लगे हुए रोगी का इलाज
अत्यधिक गर्मी से यह रोग होता है। अतः सर्व प्रथम उस कारण को दूर कीजिये। अर्थात् रोगी को तुरन्त किसी शीतल स्थान में आराम सहित लिटा दीजिये। साँत्वना भरे शब्दों से उसे उत्साहित कीजिये। उसे यह न बताइये कि वह भयंकर रोग के कुचक्र में फंस गया है। शीतल जल पिलाइये, यदि सम्भव हो तो उसे बर्फ चूसने के लिये दीजिये। सिर पर बर्फ की टोपी रखने से लाभ होगा। यदि यह टोपी उपलब्ध न हो, तो ठण्डे पानी की पट्टी का प्रयोग आप कर सकते हैं। ठण्डा पानी भी थोड़ी-थोड़ी मात्रा में डाला जा सकता है पर अधिक नहीं। यदि आप रोगी की दशा सुधरती हुई देखें तो ठीक है, अन्यथा किसी योग्य डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिये।
मान लीजिए, रोगी बेहोश हो चुका है। अब क्या करें? पुनः पुनः उसके मुख पर शीतल जल के छींटे दीजिये। ठण्डे जल की पट्टी से नेत्र धोएं। सिर पर पानी डालें। पंखे से हवा करें। यदि रोगी के गले के बटन कसे हों तो उन्हें खोल दें। लोगों को चारों ओर से हटा दें। यह सावधानी रखिये कि यदि रोगी को ठण्डे पसीने आते हों, या श्वाँस तेजी से चलने लगे, तो केवल मुख पर ही शीतल जल छिड़कें। अमोनिया अथवा अन्य इसी प्रकार के सुगन्धित पदार्थ सूँघने से लाभ होता है। जब बुखार तेज हो तो ऊपर वाला ठण्डा इलाज करें। जब तक कि ज्वर हल्का हो जाय और रोगी होश में आ जाय।
यदि ज्वर तेज हो, तो यह मानना चाहिये कि रोग घातक नहीं है। उस अवस्था में निम्न उपचारों से लाभ होना चाहिये। ये उपचार स्वर्गीय वैद्य गोपीनाथ जी द्वारा अनुभव पर लिखे गये हैं और मैंने स्वयं इनके द्वारा रोगियों को लाभ पहुँचाया है। प्रत्येक व्यक्ति इनमें से जो भी इलाज हो सके, वक्त पर वही कर सकता है।
कुछ परीक्षित नुस्खे।
एक दो तोला प्याज का रस पीने से लू का प्रभाव शीघ्रता से उतर जाता है। यदि यह न हो सके तो प्याज को जरा आग में भून लीजिये और एक कच्ची को लेकर सिल पर पीस लीजिये। इसमें जरा सा जीरा और एक तोला मिश्री पीस कर मिला लीजिये। इस चटनी से बहुत लाभ होता है। बर्फ से इसे ठण्डा कर लिया जाय तो और भी अच्छा है।
एक कच्चा बड़ा सा आम लेकर भूवल (गर्म राख) में दबा दें। जब वह नरम हो जाय तो छील कर गुद्दा निकाल दीजिये और ठण्डे पानी में मिला कर, मसल दीजिये। मिश्री या खाण्ड में मिलाकर रोगी को पिलाइये। यदि कब्ज हो तो इसमें दो तोले इमली का गुद्दा भी मल छान कर लीजिये और पिलाइये। यदि यह न हो सके तो गाय के ताजे दही में ठण्डा पानी मिला कर लस्सी बना कर पिलाइये।
शरबत चन्दन पिलाइये। इसे ठण्डे पानी में मिला कर या बर्फ से ठण्डा करके पीने से दिल की घबराहट और गर्मी दूर होती है, लू और गर्म हवा से हानि पहुँचने का भय नहीं रहता जिगर और आमाशय की गर्मी कम होती है।
शरबत अनार भी यथेष्ट लाभ पहुँचाता है। मीठे अनार के दानों को निचोड़ कर आधा सेर रस निकाल लें। इसे मन्द आग पर पका कर आधा रखें और फिर आधा सेर खाण्ड़ या मिश्री मिलाकर पका कर शरबत बना लें। गर्मी के दिनों में पानी मिला कर पीने से प्यास कम लगती है, गर्मी और लू का असर कम होता है। इसी प्रकार शरबत फालसा भी ठण्डा उपयोगी है। फालसे के शरबत से वमन, प्यास और उल्टी सभी को बहुत लाभ होता है।
पके फालसों को निचोड़ कर निकला हुआ पानी 4 तोले, गुलाब का अर्क 4 तोले और थोड़ा सा ठण्डा पानी मिला कर हो सके तो बर्फ से ठण्डा करके पिला दें। इससे लू के विकार नष्ट होते हैं।
गुलाब अर्क में सफेद चन्दन घिस कर उसमें रुमाल भिगोकर रोगी के सिर पर रखें और उसे सूखने न दें। इसी पानी को पंखे पर छिड़क कर उससे हवा करें। लू की बेहोशी दूर हो जायेगी। रोगी को केले के हरे पत्तों पर सुलाने से भी लाभ होता है। इसी प्रकार जरा सा धनिया पानी में ठण्डाई की तरह पीस कर मिसरी से मीठा करके पिलाने से लाभ होता है।
रोगी की नाभि पर चाँदी या ताँबे का गहरा कटोरा या थाली रखकर उसमें ऊपर से ठण्डे पानी की धार छोड़ते रहें।
आप लू से सुरक्षित रह सकते हैं।
यदि आप गर्मी के दिनों में नंगे सिर और धूप में न फिरें, या छतरी का प्रयोग करते रहें तो लू का प्रभाव न होगा। साफा बाँध कर निकलिये और उसका छोर कमर तक लटकते रहने दीजिये जिससे रीढ़ की हड्डी धूप के प्रभाव से बची रहे। काले रंग का कपड़ा पहिन कर मत निकलिये।
गर्मी के मौसम में माँस, मछली, अण्डा, गर्म मसाला, चाय और शराब आदि गर्म चीजों का प्रयोग त्याग दीजिये। कब्ज न रहने दीजिये। प्रतिदिन प्रातः सायं ठण्डे जल से स्नान किया कीजिये। प्रातः काल या दोपहर में ठण्डी छाछ, दही या लस्सी पिया कीजिये।
प्याज को अपनी जेब में रखिये। इसमें ऐसे रासायनिक गुण हैं कि यह शरीर की गर्मी सोख कर आप की रक्षा लू से करता है। यदि आपको एक बार लू लग चुकी है, तो और भी अधिक सावधान रहने की आवश्यकता है।
खमीर गाजवाँ सादा एक तोला, चाँदी के वरक में लपेट कर सुबह के वक्त खाया कीजिये। आँवले का मुरब्बा चाँदी के वरक में लपेट कर खाया करें। मुक्तावटी की गोलियाँ अपने पास रखिये। इनको बनाने का उपाय यह है- जहर मोहरा असली, पाथरवेर, दरयाई नारियल, बड़ी हर्र की बक्कल, पद्याख बंसलोचन और गुलाब के फूलों की केसर 6-6 मासे इलायची के दाने और अनबिधे मोती 3-3 मासे लेकर मोती और जहरमोहरे को गुलाब के अर्क में अच्छी तरह खरल करें। फिर अन्य चीजों का चूर्ण मिलाकर दुबारा गुलाब के अर्क में घोटकर मूँग के बराबर गोलियाँ बना लें। ये गोलियाँ गर्मी के दिनों में बहुत लाभ पहुँचाती हैं। बच्चों के लिये तो अतीव गुण कारी हैं।