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Magazine - Year 1950 - Version 2

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सफल नेतृत्व-एक साधना।

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(प्रोफेसर राम चरण महेन्द्र एम. ए.)

सफल नेतृत्व एक प्रकार की आध्यात्मिक प्रतिक्रिया का फल है जिसके कारण नेता की आध्यात्मिक शक्तियाँ विकेन्द्रित होकर विशाल जनसमूह को प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं। प्रत्येक नेता कहाने वाला व्यक्ति अपनी आध्यात्मिक शक्तियों के प्रभाव से जनता और समाज में उन्नति करता है। समाज तथा जनता में होने वाले परिवर्तन उसके मन की भावना एवं सूचना के अनुसार होते हैं।

सफल नेता की शिवत्व भावना, सबका भला “बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय” से प्रेरित होती है। प्रत्येक मनुष्य में शिवत्व है। इस शक्ति से भर कर जब कोई सज्जन संसार के कल्याण के लिए अग्रसर होता है तो अनेक प्रकार की गुप्त शक्तियाँ उसके व्यक्तित्व में स्वयं विकसित हो उठती हैं। संसार की प्रत्येक शक्ति का स्वभाव है कि वह दुष्ट के हाथ से अपना विघातक स्वरूप स्पष्ट करती है तथा सचित्र सज्जन व्यक्ति के हाथ में विधायक स्वरूप धारण करती है। शक्ति के परिणाम चाहे कितने ही हों पर स्वरूप एक ही होता है। चरित्र की उदात्तता के अनुसार, मन की भावना के सामर्थ्य से नेतृत्व की शक्तियों का उदय होता है। ज्यों ही सद्भावना के सामर्थ्य का प्रवाह योग्य दिशा में प्रवाहित होता है त्यों−ही शक्तियाँ विकसित होती हैं।

नेतृत्व की साधना का प्रारंभ

सफल नेता होने से पूर्व आप अपने से पूछिये कि क्या आप वास्तव में समाज की सेवा करना चाहते हैं? आप जनता को आश्चर्यचकित करने मात्र के लिए या अपने विज्ञापन के लिए ही तो आप नेतागिरी नहीं कर रहे हैं? जिस क्षेत्र में आप नेतृत्व करना चाहते हैं, उस संबन्ध में आपकी जानकारी पूर्ण है या नहीं? अन्य देशों में उस प्रकार का जागरण उत्पन्न करने वालों के सम्बन्ध में आपने पूरी तरह पढ़ लिया है या नहीं? अपनी शक्तियों एवं साधनों के प्रति आपको पूर्ण विश्वास है या नहीं? आपका शरीर पूर्ण स्वस्थ, इन्द्रियाँ कार्य में सतर्क, बुद्धि कुशाग्र और मन में समस्वरता है या नहीं?

उपरोक्त प्रश्नों द्वारा अपने व्यक्तित्व की जाँच के पश्चात् यदि आप अपने अन्दर गुप्त शक्ति का असाधारण प्रभाव पायें, तब इस क्षेत्र में आगे बढ़ सकते हैं। मान लीजिये आपने शारीरिक व्यायाम द्वारा शरीर को पुष्ट बना लिया है, आपके पास पुरे कद का स्वस्थ और निरोग शरीर है। मन में उत्साह और आशा है और आप सद्इच्छा से प्रेरित हैं। आगे क्या करें?

पहले अपना क्षेत्र तलाश कीजिये। आप किस क्षेत्र में जनता का मार्ग प्रदर्शन करना चाहते हैं - धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक या साहित्यिक क्षेत्र में। अपने आपको उच्चतम, महत्तम सबसे आगे समझते हैं। सावधान, अपनी साधनायें तोल लीजिये। जब तक आपने उपरोक्त क्षेत्रों में मन लगा कर दीर्घकालीन अभ्यास नहीं किया है, उच्चतम ज्ञान और बुद्धि की एकाग्रता से उस विषय को अपना नहीं बना लिया है, तब तक इस क्षेत्र में पदार्पण करना नितान्त मूर्खता है। जिसकी जिस क्षेत्र में जितनी अधिक साधनायें हैं, जिसने जितना अधिक अभ्यास किया है और जिसके पास जितना अधिक ज्ञान है वह उतना ही सफलता से नेतृत्व कर सकता है। क्षेत्र का चुनाव आपकी शिक्षा एवं रुचि का व्यक्तिगत प्रश्न है। इसे बड़ी सतर्कता से हल करना चाहिये।

प्रारंभ में नेपोलियन समझता था कि उसे साहित्य के क्षेत्र में नेतृत्व करना है। उसने 27 से 28 वर्ष की आयु के मध्य साहित्यिक प्रसिद्धि लाभ करने का पुनः पुनः यत्न किया। उसे लेखन कला में कीर्ति लाभ करने का मार्ग निश्चित और शायद सबसे छोटा जान पड़ता था। ग्रंथकार बनने का पहला प्रयत्न उसने 1786 में किया था। कई छोटी-छोटी पुस्तकें लिख चुकने के पश्चात् उसने “प्रेम” पर एक निबन्ध लिखा, उसके बाद आनन्द पर। ल्थोन्स की विद्वत् परिषद ने “आनन्द” पर निबन्ध के लिए 1500 लिबरे का एक पारितोषिक रक्खा था। नेपोलियन ने भी अपना लेख प्रतियोगिता में भेज दिया। वह इतना निकम्मा था कि उससे घटिया केवल एक निबन्ध और था। निबन्ध परीक्षकों में से एक ने उस पर इस प्रकार की टिप्पणी लिखी थी - “यह इतना अव्यवस्थित है, इतना ऊबड़-खाबड़ है, इतना असंबद्ध है और इतनी बुरी तरह लिखा हुआ है कि इस पर कुछ भी ध्यान देना ठीक नहीं।” इस पर नेपोलियन ने अपने भाई जोसेफ को लिखा - “अब मुझे ग्रन्थकार बनने की आकाँक्षा नहीं रही।” उसने दूसरा क्षेत्र पकड़ा। सैनिक क्षेत्र में आकर उसे विदित हुआ कि यही परमेश्वर ने उसके लिए बनाया है। इसी में उसने - अक्षय कीर्ति लाभ की। ठीक क्षेत्र का चुनाव आधी सफलता है।

जो व्यक्ति कभी कुछ कभी कुछ करते हैं, वे अन्ततः कहीं भी नहीं पहुँच पाते। बहुत सोच समझ कर अपनी रुचि के अनुकूल क्षेत्र का चुनाव करना चाहिए। वह नेता धन्य है जिसने अपने सही क्षेत्र की पहचान कर ली है, शक्तियों को तोल लिया है।

नेता में किन आध्यात्मिक सम्पदाओं की आवश्यकता है? सर्वप्रथम आत्म विश्वास है यह नेता का प्रथम देवी गुण है जिससे वह जीवन में प्रतिकूल और अप्रिय अवस्थाओं पर, विजय प्राप्त करता चलता है। विपरीत प्रतिकूलताएं नेता के आत्म विश्वास का जीता जागता शक्तिपिंड होता है। उसे अपनी भुजाओं, अपने शरीर, अपनी कार्य प्रणाली, सम्पादिका शक्तियों, तर्क और बुद्धि में अक्षय विश्वास होता है। उसके अन्तस्थल में निश्चयात्मक तत्व प्रचुर मात्रा में विद्यमान होते हैं। उसके नेत्र, मुखमंडल एवं कर्मों से तनिक भी सन्देह या भय के भाव नहीं प्रकट होते।

उसे विश्वास होता है कि मैं जिस कार्य को कर रहा हूँ, मैंने जो योजनाएं जनता के लाभ और सेवा के लिए बनाई है, वे गलत नहीं हो सकती। संसार उनकी आलोचनाएं करता है, किन्तु वे आलोचनाएं उनके अक्षय आत्म विश्वास को ठेस नहीं पहुँचा सकतीं।

संसार में जो जो नेता हुए हैं, उन्हें घोर प्रतिकूलता तथा तीखी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। जितना भी अद्भुत प्रतिभा का प्रकाशन हुआ, वह सब प्रतिकूलता में ही हुआ। बड़े-बड़े धार्मिक नेता, राजनैतिक और समाजिक नेता, बड़े-बड़े आविष्कार, कला कौशल, उन्नति, वैभव, सब प्रतिकूलता के प्रदेश से ही प्रकट हुए। श्रेष्ठ नेता का अखंड विश्वास जनता के विचार प्रवाह को अपने पक्ष में मोड़ लेता है।

सच्चे नेता आध्यात्मिक सिद्धियों द्वारा आत्मविश्वास फैलाते हैं। वही फैलकर अपना प्रभाव मुहल्ला, ग्राम, शहर, प्रान्त और देशभर में व्याप्त हो जाता है। उसके आत्म तेज की परिधि में जितने भी व्यक्ति आते हैं, वे उस तेज से प्रभावित हो जाते हैं। आरंभ में नेताओं के विचारों से प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या अल्प होती है। धीरे-धीरे इन विचारों का गुप्त प्रवाह दूर-दूर तक फैल जाता है।

महात्मा गाँधी जी, गुरु नानक, गौतम बुद्ध, प्रभृति लोक मान्य नेताओं को मानने वाले व्यक्तियों की संख्या प्रारम्भ में न्यून थी। जनता उनकी हंसी उड़ाती थी। धीरे-धीरे लोगों को इनकी योग्यताओं की सत्यता विदित हुई और जनता की आलोचनाएं, इनकी आध्यात्मिक शक्तियों के सन्मुख न ठहर सकीं। अधिक से अधिक संख्या में जनता ने इनका साथ दिया। प्रायः नेताओं के जन्म साधारण परिवारों में हुए हैं किन्तु अपने (1) ज्ञान और मानसिक शक्तियों (2) आत्म विश्वास और लगन (3) सततोद्योग के कारण ऊपर चढ़े हैं। उन्हें धीरे-धीरे सफलता प्राप्त हुई है। एक विजय के पश्चात् दूसरी विजय मिली। संसार विजयी पर विश्वास करता है। लोग उस व्यक्ति पर विश्वास करने लगते हैं। जिसके मुख मंडल पर विजय के भाव झलकते हैं। मनुष्य का मनोविज्ञान है कि हम उन लोगों पर स्वभावतः विश्वास करने लगते हैं, जो अपनी शक्ति का प्रभाव डालते हैं। बिना आत्मविश्वास के वे ऐसा नहीं कर सकते। वे उस अवस्था में हम सब पर प्रभाव नहीं डाल सकते, जब कि उनका मन भय और शंकाओं से परिपूर्ण हो।

कुछ मनुष्यों में थोड़ी सी ऐसी अलौकिक शक्ति होती है, जिसके दर्शन मात्र से हमारा हृदय उनके प्रति श्रद्धा और आदर से भर जाता है मन स्वयं झुक कर उनसे कुछ सीखना चाहता है, उनके द्वारा निर्दिष्ट मार्ग पर स्वयं चलना चाहता है। यह उनकी परिपक्व एवं प्रदीप्त आध्यात्मिक शक्तियों (ज्ञान, सत्कर्म, निस्वार्थता, दिव्यता, आत्मतेज, वासनाओं से मुक्ति) का अद्भुत प्रभाव है। हमें उनमें एक अजीब दिव्यता प्रतीत होती है। जो हमारे विश्वास को अपनी ओर खींचती है।

सफल नेता के अन्य दो अध्यात्मिक तत्व हैं सच्ची निष्ठा एवं लगन। प्रथम गुण द्वारा वह एक स्थान पर, एक विचार, योजना मन्त्रण पर ठहरता है, मन को अपनी सम्पूर्ण मानसिक शक्तियों द्वारा केन्द्रित करता है। सच्चे नेता जिन योजनाओं का निर्माण करते हैं उनमें पर्याप्त विचार, तर्क और दूरदर्शिता का समन्वय होता है। इन योजनाओं को कार्यान्वित करने के लिये वह इन्हीं पर निष्ठ होकर ठहरता है, परिवर्तन नहीं करता।

जो व्यक्ति अपने मन्तव्यों के प्रति सच्चा है, जिसे अपने आदर्शों के प्रति सच्ची लगन है, जो बलिदान के लिए सदैव प्रस्तुत है, वह अवश्य जनता को सच्चे मार्ग पर चलायेगा।

सफल नेतृत्व के लिए मिलनसारी, सहानुभूति और कृतज्ञता जैसे दिव्य गुणों की अतीव आवश्यकता है। उसे तो मानव मात्र का हितैषी, सेवक बनना है, सबके कष्टों की सुन कर दूर करने का उद्योग करना है, सुख तथा शांति के मार्ग पर चलाना है। जो नेता इस नियम को भंग करता है। वह घृणा तथा स्वार्थ का शिकार बनता है। जनता का सहयोग छल, कपट, धोखे या जादू से संभव नहीं है जनता बड़ी कटु आलोचक है। वह नीर−क्षीर विवेक करना जानती है। अतः अन्य जिस किसी के संपर्क में आयें उसी को अपने मृदु, सहानुभूतिपूर्ण शब्दों से अपना बनाइये। इन दैवी तत्वों का चुम्बक स्त्रोत दूसरों के मन में भी सर्वत्र समान रूप से प्रवाहित हो उठेगा। दीर्घ आशा और विश्वास जागृत होगा विपरीत आलोचनायें घुल जायेंगी।

विश्व कार्य में नेतृत्व ग्रहण करना, जीवन कर्तव्यों का सम्यक् सम्पादन करना, प्रतिकूल परिस्थिति के विषम प्रभाव के परे उठना, भय का निर्वासन करना यह सब आपकी मिलनसारी, सहानुभूति, कृतज्ञता एवं प्रेम पर निर्भर हैं। आपका प्रेम फलता-फूलता है। प्रकट किया हुआ प्रेम दुगुना चौगुना होकर लौटता है।

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