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Magazine - Year 1958 - Version 2

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गायत्री परिवार समाचार

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गायत्री परिवार कार्यक्रम सारे भारतवर्ष में बड़े ही उत्साहपूर्वक चल रहा है। अब उसके सारे समाचार, विज्ञप्तियाँ, परिपत्र अनुभव तथा आवश्यक सूचनायें गायत्री परिवार पत्रिका में छपते हैं कुछ आवश्यक बातें ‘अखण्ड ज्योति’ में भी ‘गायत्री-परिवार समाचार’ स्तम्भ के नीचे छपती रहा करेंगी।

1- महायज्ञ की पूर्णाहुति का कार्यक्रम सफल बनाने के लिए तपोभूमि के कार्यकर्त्ता संलग्न हैं। विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों की जिम्मेदारियाँ लोगों को बाँटी जा रही हैं। जिनके जिम्मे जो काम सौंपा गया है वे अपने-अपने कार्यों को पूरा करने के लिए जुट गए हैं। समय थोड़ा और काम बहुत ज्यादा होने से सम्बद्ध कार्यकर्त्ताओं को कड़ा परिश्रम और भारी दौड़-धूप में लगा रहना पड़ रहा है।

2- देश भर में गायत्री महायज्ञ के लिए समुचित उत्साह है। होता और यजमान अपने जप तथा उपवासों की संख्या पूरी करने में श्रद्धापूर्वक लगे हुए हैं। जिन्होंने अभी-अभी नये फार्म भरे हैं वे भी महायज्ञ तक सवा लक्ष जप आसानी से पूरा कर लेंगे ऐसी आशा है। जिनका जप उपवास पूरा न हो सकेगा उन्हें इतनी साधना उधार देदी जायगी जो अगले वर्ष वे पूरा कर सकेंगे। इस प्रकार साधना की जो कठिन शर्त थी वह सरल हो जाने से जिनको इतनी अधिक साधना इतने कम समय में न कर सकने का भय था वह दूर हो रहा है।

3- प्रायः सभी शाखाओं में गायत्री जयंती बड़े उत्साहपूर्वक मनाई गई। गायत्री जयन्ती गायत्री परिवार का त्यौहार है। उस दिन उपासकों ने अपने घर पर दिवाली जैसे दीपक जलाये तथा सामूहिक जप, हवन, प्रवचन, कीर्तन, जुलूस आदि के आयोजन किए। गायत्री-जयन्ती और गंगा दशहरा दोनों मिल जाने से गंगा-यमुना संगम की भाँति एक आध्यात्मिक तीर्थ बन जाता है। यह पर्व आगे भी हर वर्ष पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाया जाता रहना चाहिए।

4- गायत्री परिवार के शाखा-संगठनों तथा सदस्यों का समुचित पथ-प्रदर्शन करने की दृष्टि से गायत्री-परिवार पत्रिका का प्रकाशन बड़ा उपयोगी सिद्ध हुआ है। अप्रैल, मई, जून के अंक ता. 20 को गत महीनों में नियमित रूप से प्रकाशित होते रहे हैं और शाखाओं को भेजे गए हैं। प्रत्येक शाखा में पत्रिका का पहुँचाना तथा सभी सदस्यों को उसे पढ़ाया या सुनाया जाना आवश्यक है। इन तीन अंकों में से कोई अंक किसी शाखा को न मिला हो तो उसे डाक की गड़बड़ी समझकर दुबारा भेजने के लिए मथुरा सूचना देनी चाहिए।

5- गायत्री परिवार पत्रिका का सालाना चंदा 2) जिन शाखाओं ने अभी नहीं भेजा है, उन्हें वह शीघ्र ही भेज देना चाहिए।

6- जो शाखाएं मासिक रिपोर्ट नियमित रूप से नहीं भेजतीं, जिनके मन्त्री और सदस्य अपने कर्तव्य पर ध्यान नहीं देते, जिनके यहाँ कोई कार्यालय नहीं चलते, जहाँ से महायज्ञ की पूर्णाहुति में भी कोई नहीं आना चाहते, जो न अखण्ड ज्योति मँगाते हैं, न गायत्री परिवार पत्रिका, ऐसी शाखाओं को तोड़ा जा रहा है। उन शाखाओं से एक परिपत्र द्वारा स्पष्टीकरण माँगा गया है। कर्तव्य की उपेक्षा करने वाली शाखाएं अगले महीने तोड़ दी जायेंगी।

7- सभी होता और यजमानों को उनके 15 आवश्यक कर्तव्यों का स्मरण दिलाने के लिए एक परिपत्र निकाला गया है, जो उनके शाखा-मन्त्रियों के नाम भेज दिया गया है। जिन शाखाओं को होता यजमानों के दिए जाने के लिए 15 आवश्यक कर्तव्यों वाले परिपत्र न पहुँचे हों वे तुरन्त ही मँगा लें।

8- महायज्ञ में आने वाले सज्जन अपने-अपने क्षेत्रों से अधिकाधिक लोगों से गायत्री मन्त्र लेखन की कापियों को चन्दा संग्रह करने की तरह साथ लाने का प्रयत्न करें। आशा है कि यज्ञ में आने वाले प्रत्येक सज्जन अपने धर्म प्रचार के प्रमाण स्वरूप अपने क्षेत्र के कुछ लोगों से मन्त्र लेखन कराके साथ लाने का प्रयत्न करेंगे।

9- गायत्री तपोभूमि में अश्विन सुदी 1 तदनुसार ता. 13 अक्टूबर से महायज्ञ की पूर्णाहुति (26 नवम्बर) तक सेवा शिविर लगेगा प्रारम्भिक 15 दिनों में आये हुए शिक्षार्थी नवरात्रि में साधना करेंगे तथा अपने-अपने क्षेत्रों में अगले वर्ष धर्म प्रचार का कर्म करने की, यज्ञानुष्ठान आयोजनों की तथा समाज सेवा की शिक्षा दी जाएगी। महायज्ञ की पूर्णाहुति के लिए यही शिक्षार्थी स्वयं-सेवकों का कार्य करेंगे। गायत्री-परिवार की प्रत्येक शाखा को अपने यहाँ से कुछ शिक्षार्थी स्वयं-सेवक भेजने का प्रयत्न करना चाहिए।

10- जिनके ऊपर छोटे बच्चों की जिम्मेदारी नहीं है, ऐसी प्रतिभावान घूँघट न करने वाली शिक्षित महिलाओं की भी इन सेवा-कार्यों की आवश्यकता होगी। वे यदि 1॥ मास पूर्व न आ सकें तो एक मास पूर्व आ सकती हैं।

आगन्तुकों में से प्रत्येक नर-नारी को पूरा सेवाभावी, परिश्रमी, कष्ट सहिष्णु, उदार, मधुर भाषी, निर्व्यसनी, सफाई पसन्द तथा निरोग होना आवश्यक है। आलसी, अहंकारी, झगड़ालू, आराम पसंद, कटुभाषी, व्यसनी, बीमार तथा गन्दी प्रकृति के लोग सेवा तथा शिक्षा के अनुपयुक्त माने जायेंगे, वे न आवें।

11- गायत्री तपोभूमि के कुंए में मोटर का पम्प बिठाने की आवश्यकता अनुभव हो रही है। महायज्ञ के समय अधिक पानी की जरूरत पड़ेगी। वैसे भी तपोभूमि में सदा ही स्नान, सफाई, धुलाई, छिड़काव, पौधों में पानी लगाने की आवश्यकता है। प्राकृतिक कल्प चिकित्सालय महायज्ञ के बाद आरम्भ होगा उसमें पानी की जरूरत रहा करेगी। पम्प लग जाने से तपोभूमि के बाहर सड़क पर दो नल लगा देने से मथुरा से वृन्दावन जाने वाले तथा ब्रज की परिक्रमा करने वाले लाखों प्यासे यात्रियों को पानी पीने की चौबीस घण्टे सुविधा देने वाली प्याऊ लग जावेगी। यह सभी कार्य बड़े पुण्य हैं। इस मोटर पम्प के बिठाने में कुल खर्च दो हजार के लगभग होगा कोई साधन सम्पन्न इस पुण्य कार्य का श्रेय स्वयं लेना चाहें तो यह उनके लिए एक असाधारण सौभाग्य की बात होगी।

12- किसी होता और यजमानों को प्रचार साहित्य वितरण तथा ज्ञान मन्दिर स्थापना के लिए सर्वथा विमुख रहना उचित नहीं। जो लोग आर्थिक संकोच अनुभव करते हैं, उन्हें थोड़ा बहुत तो खर्च करना ही चाहिए। कई होता-यजमान मिलकर वितरण साहित्य या ज्ञान मन्दिर सैट मँगा सकते हैं। पर बिलकुल ही चुप्पी साध लेना फार्म में लिखित प्रतिज्ञा का भंग माना जायगा।

13- स्वयं साधना करने तक ही सीमित न रह कर जो परिजन धर्म प्रचार का भी महत्व स्वीकार करते हैं और उसके लिए सक्रिय सहयोग एवं समय भी देते हैं, ऐसे ही धर्मनिष्ठ, कर्त्तव्य परायण लोक सेवी सज्जनों को गायत्री परिवार का आधार स्तम्भ माना जायगा। इन्हीं के कन्धों पर राष्ट्र में धर्म बुद्धि पैदा करने की जिम्मेदारी रहेगी। ऐसे लोगों को लेकर ही देश भर में गायत्री परिवार के मंडल बनाये जाएंगे और उन्हीं के द्वारा अ.भा. गायत्री परिवार का केन्द्रीय मन्त्रि-मण्डल बनेगा।

ऐसे लोगों की छाँट के लिए उपाध्याय वाला कार्यक्रम रखा गया है। अपने घर में ज्ञान मन्दिर स्थापित करके कम से कम 10 पड़ौसियों को वह पूरा साहित्य पढ़ा देने की भाग-दौड़ श्रद्धा परखने की एक कसौटी रखी गई है। किस शाखा में कितने उपाध्याय निकलते हैं इस प्रश्न पर यह बहुत ही उत्सुकता पूर्वक ध्यान किया जा रहा है। उन्हीं की संस्था को ध्यान में रखकर संस्था अपने भावी कार्यक्रम बनावेगी। साधारण होता यजमानों के दूध में से मलाई रूप उपाध्याय निकालने के लिए संस्था का पूरा ध्यान है।

14- इस वर्ष दो श्रावण हैं। यों प्रत्येक अधिक मास अधिक फलदायक माना जाता है पर श्रावण मास का पुण्यफल सबसे अधिक है। इस बार यह सुयोग आया है। गायत्री-परिवार के सदस्यों को अधिक श्रावण मास में अपनी साधना अधिक बढ़ा देनी चाहिए। अगली आश्विन की नवरात्रि में परिवार के कार्यकर्त्ताओं पर महायज्ञ का बहुत भार आ जायगा। प्रतिदिन फुरसत मिलनी कठिन होगी। इसलिए नौ दिन का अनुष्ठान तथा जहाँ सम्भव है वहाँ छोटे-छोटे सामूहिक यज्ञ आयोजनों का कार्यक्रम भी इस अधिक श्रावण मास में ही बना देना चाहिए। ज्ञान मन्दिरों की स्थापना तथा दस व्यक्तियों को गायत्री साहित्य पढ़ा देने का ‘उपाध्याय’ कार्य इस अधिक श्रावण मास में पूरा कर लेना चाहिए।

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