• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • विश्व-रूप भगवान
    • विश्व-रूप भगवान (Kavita)
    • हिंसा का प्रतिकार अहिंसा से ही होगा।
    • वेदान्त और मनुष्य मात्र की समता का सन्देश
    • हमारे युवकों को कैसी शिक्षा दी जाय?
    • संसार का सबसे प्राचीन ज्ञान-स्रोत—ऋग्वेद
    • दान का उद्देश्य सामाजिक कल्याण होना चाहिए।
    • ‘योग‘ का वास्तविक स्वरूप
    • सुखी वृद्धावस्था
    • त्याग द्वारा ही शक्ति प्राप्त हो सकती है।
    • गायत्री की अमोघ शक्ति
    • सच्चे और दिखावटी धर्मात्मा
    • गायत्री के प्रथम मन्त्र-दृष्टा-महर्षि विश्वामित्र
    • मन्त्र-शक्ति द्वारा मेघ वृष्टि
    • अमेरिका भी आध्यात्मिकता को खोज रहा है।
    • भारतीय संस्कृति का आधार- आत्म-संयम
    • धार्मिक क्षेत्र में धूर्तता और ठगी की करतूतें
    • हमारी भूल
    • प्राणिमात्र से प्रेम करना ही वास्तविक भक्ति है।
    • विश्राम कैसे करना चाहिये।
    • गायत्री परिवार समाचार
    • दधीचि का अस्थि-दान
    • दधीचि का अस्थि-दान (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • विश्व-रूप भगवान
    • विश्व-रूप भगवान (Kavita)
    • हिंसा का प्रतिकार अहिंसा से ही होगा।
    • वेदान्त और मनुष्य मात्र की समता का सन्देश
    • हमारे युवकों को कैसी शिक्षा दी जाय?
    • संसार का सबसे प्राचीन ज्ञान-स्रोत—ऋग्वेद
    • दान का उद्देश्य सामाजिक कल्याण होना चाहिए।
    • ‘योग‘ का वास्तविक स्वरूप
    • सुखी वृद्धावस्था
    • त्याग द्वारा ही शक्ति प्राप्त हो सकती है।
    • गायत्री की अमोघ शक्ति
    • सच्चे और दिखावटी धर्मात्मा
    • गायत्री के प्रथम मन्त्र-दृष्टा-महर्षि विश्वामित्र
    • मन्त्र-शक्ति द्वारा मेघ वृष्टि
    • अमेरिका भी आध्यात्मिकता को खोज रहा है।
    • भारतीय संस्कृति का आधार- आत्म-संयम
    • धार्मिक क्षेत्र में धूर्तता और ठगी की करतूतें
    • हमारी भूल
    • प्राणिमात्र से प्रेम करना ही वास्तविक भक्ति है।
    • विश्राम कैसे करना चाहिये।
    • गायत्री परिवार समाचार
    • दधीचि का अस्थि-दान
    • दधीचि का अस्थि-दान (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1958 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


सुखी वृद्धावस्था

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 8 10 Last
(श्री रामखेलावन चौधरी, लखनऊ)

भारतीय परिवारों में प्रायः ऐसा देखा जाता है कि वृद्धजनों को अनेकानेक कठिनाईयाँ उठानी पड़ती हैं और उनका अन्तिम जीवन बड़े कष्ट से बीतता है। बहुत ही कम ऐसे परिवार हैं जिनमें वृद्धजनों का शासन चलता है अथवा उनका सम्मान होता है। कुछ तो अक्षम और रुग्ण रहकर अपमान और अवज्ञा की कड़ुई घूंट पीते हुए जीवनयापन करते हैं और अंत में बड़ी ही करुणा अवस्था में अपनी इहलीला समाप्त करते हैं और कुछ अपनी सन्तानों के होते हुए असहाय बनकर दर-दर की ठोकरें खाते हैं। सौभाग्य से ही कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो अपने यौवन काल में पर्याप्त धन राशि जुटा लेने के कारण अपनी सन्तानों के प्रीति भोजन बने रहते हैं और उनका जीवन संकटापन्न नहीं होता। उनका यह सुख भी असली सुख नहीं है; वास्तव में उनके उत्तराधिकारी लोभवश ही उनका आदर-सम्मान करते हैं परन्तु मन ही मन उनके परलोक सिधारने की कामना करते हैं। ऐसी स्थिति में इनकी वृद्धावस्था को भी सुखी कहना उचित नहीं जान पड़ता।

आमतौर से विचारकों की यह धारणा है कि एक वृद्ध का जीवन केवल इसलिए दुखी होता है कि उनके हाथ में धन नहीं रहता और वह अपनी जीवन सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य जनों पर निर्भर हो जाने के कारण परोपजीवी बन जाता है। इसी से उसकी उपस्थिति सबको खलती है। यदि वह आत्मनिर्भर हो जाय तो उसकी विपत्ति दूर हो सकती है। इस दृष्टि को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार अत्यन्त वृद्धजनों को पेंशन देने की योजना बनाने जा रही है और सरकारी नौकरों को अवकाश प्राप्त करने के बाद पेंशन देती भी रही है। क्या ऐसी योजनाओं से वृद्धों की समस्त-समस्याओं का हल हो सकेगा? तनिक भी विचार करने के पश्चात स्पष्ट हो जायगा कि इस प्रकार की सरकारी आर्थिक सहायता से केवल आँशिक लाभ ही वृद्धजनों को होगा। उनकी बहुत सी कठिनाइयाँ मनोवैज्ञानिक और स्वास्थ्य संबन्धी हैं, जिनके सही ढंग से हल होने पर ही वृद्धावस्था का सुख निर्भर है। इन्हें हल करने के लिए परिवार और समाज का सहयोग अपेक्षित तो है ही साथ ही वृद्धजनों को स्वयं ही विचार करना होगा और अपने दृष्टिकोण में आवश्यकतानुसार परिवर्तन करना होगा।

वृद्धावस्था का प्रारम्भ 55 से 60 की आयु के बाद माना जाना चाहिए। इस आयु में दो महत्वपूर्ण घटनाएँ घटित होती हैं। एक तो आमतौर से पुरुष सन्तानोत्पत्ति के कार्य में अक्षम सिद्ध होने लगता है। (स्त्रियाँ कुछ पहले से प्रजनन कार्य के लिए असमर्थ हो जाती हैं) दूसरे उसे अपने व्यवसाय से अवकाश ग्रहण करना होता है। जो लोग नौकरी करते हैं, उन्हें मजबूरन अवकाश लेना पड़ता है और जो व्यापार आदि करते हैं, वे भी अपने को अशक्त अनुभव करने लगते हैं। उनका काम केवल दुकान पर बैठने का होता है और परिवार के नवयुवक कहने लगते हैं कि अब आप विश्राम करें, घर बैठें आदि। इन बातों के मनोवैज्ञानिक परिणाम बड़े ही महत्वपूर्ण होते हैं। अतः इस समय को संक्राति-काल कहना उचित होगा।

प्रारंभ में वृद्धावस्था में पदार्पण करते ही मनुष्य के मन में बड़ा भीषण संघर्ष उत्पन्न होता है। अभी तक परिवार में उनकी सत्ता अवधि थी; हर मामले में उसका एकाधिकार था; दस आदमी उसका कहना मानते थे परन्तु अब स्थिति उल्टी हो जाती है। अब उसे दूसरों का संरक्षण चाहिए, उसकी शारीरिक शक्तियाँ निर्बल हो जाती हैं और वह यह समझने लगता है कि बेकार की वस्तु हूँ। एक ओर असमर्थता की भावना दूसरी ओर शक्ति बनाए रखने का मोह- इन दोनों प्रवृत्तियों के संघर्ष पर यदि वृद्ध मनुष्य अपने विवेक द्वारा विजय नहीं प्राप्त कर लेता, तो वह स्वयं ही दुःख का बीज बोता है। परिवारों में पिता या पितामह चाहते हैं कि हमारा कहना चले। यह भावना ही उनके दुख का मूल है। परिवार में नयी शक्तियों के उत्पन्न होने पर जर्जर शक्तियों का चाहे वे पहले कितनी ही उपयोगी रही हों, टिकना संभव नहीं है। यदि वृद्धजनों को सुखी होना है, तो उन्हें उस सत्य को ग्रहण कर लेना चाहिए और शक्ति और सत्ता बनाये रखने की मृगमरीचिका के भुलावे में नहीं पड़ना चाहिए।

यह बात निःसंकोच स्वीकार करनी पड़ती है कि हम भारतीय जनों के पूर्वज आर्य बड़े ही दूरदर्शी थे। उन्होंने इस सत्य को ध्यान में रखते हुए ही मानव जीवन को चार भागों में विभाजित करके चार आश्रमों की परिकल्पना की थी। उन्होंने यौवनकाल और प्रौढ़ावस्था के बाद आसक्ति से दूर रहकर विराग का जीवन अपनाने का जो संदेश किया था, उससे उनकी मनोवैज्ञानिक सूझ का परिचय मिलता था। वृद्धावस्था के प्रारंभ होते ही घर को छोड़ देना और परिवार जनों से आसक्ति का सम्बन्ध विच्छिन्न करके वैराग्य धारण करना उस भयानक मानसिक संघर्ष का अन्त करना था जिससे हमारे अनेक वृद्धजन पीड़ित रहते हैं। यदि जीवन को सुखी बनाना है, तो उसी पुरानी व्यवस्था को कुछ हेर फेर करके अपना लेने से संकोच करना उचित नहीं है। हम भारतीय अपनी प्राचीन संस्कृति की प्रशंसा तो खूब करते हैं परन्तु उसके उपयोगी तत्वों को ग्रहण नहीं करते। यदि जीवन के अंतिम दिनों में तटस्थ होकर वैराग्यपूर्ण जीवन बिताने के लिए मनुष्य कटिबद्ध हो जाय तो उसकी वृद्धावस्था निश्चय ही सुखी होगी।

वृद्धजनों के दुखी और असन्तुष्ट होने का एक कारण और है और वह है उनकी अनुदारता। वे जिस जमाने में पैदा होते हैं, उसी जमाने की परम्पराओं का पालन करते जाते हैं, समय के परिवर्तन और युग धर्म की उपेक्षा करते हुए वे संकुचित मनोवृत्ति अपनाये रहते हैं। बात यह है कि हमारे यहाँ अशिक्षा के कारण वृद्धजन नई विचारधाराओं को ग्रहण नहीं कर पाते। हर्ष का विषय है कि हमारी राष्ट्रीय सरकार प्रौढ़ शिक्षा और सामाजिक शिक्षा की समुचित व्यवस्था कर रही है। वृद्धजन इस व्यवस्था से लाभ उठाकर अपने विचारों की संकीर्णता दूर कर सकते हैं। यदि वृद्धजन पठन-पाठन की आदत डाल लें, तो उनकी यह कमी दूर हो सकती है।

प्राचीनकाल में वृद्धजनों के लिए धर्माचार और संन्यास आदि का विधान किया गया था। इस भौतिक युग के वातावरण में पला हुआ व्यक्ति अपनी मनोवृत्तियों को वृद्धावस्था में बदलने में असमर्थ होता है। बहुत कम लोग पूजा पाठ और ध्यान की ओर प्रवृत्त हो पाते हैं। ऐसे लोगों के लिए आज सैंकड़ों दूसरे द्वार खुले हुए हैं। प्रजातन्त्र का युग है, चारों ओर राष्ट्र की सेवा और समाज सेवा की चर्चा चल रही है। वृद्धजन अपने समय का सदुपयोग इन रचनात्मक कार्यों में कर सकते हैं। ऐसे अनेक सद्व्यसन हो सकते हैं, जिनके द्वारा वृद्धजनों का मनोरंजन हो सकता है और साथ ही उनके द्वारा समाज को बड़ा लाभ पहुँचा सकते हैं। घरों की सफाई, मरम्मत, बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा, साधारण रोगों के उपचार, अतिथियों का स्वागत-सत्कार, घर की देख-रेख और सुरक्षा आदि अनेक ऐसे कार्य हैं, जिनको रुचिपूर्वक करते हुए वृद्धजन अपने को उपयोगी सिद्ध कर सकते हैं। ऐसे बहुत से कार्य हैं, जिनमें शारीरिक शक्ति की उतनी आवश्यकता नहीं होती, जितनी बुद्धिबल की। अनुभवी वृद्धजन इन्हें करके अपनी प्रतिष्ठा बनाये रख सकते हैं और आत्म-सन्तोष भी प्राप्त कर सकते हैं।

First 8 10 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • विश्व-रूप भगवान
  • विश्व-रूप भगवान (Kavita)
  • हिंसा का प्रतिकार अहिंसा से ही होगा।
  • वेदान्त और मनुष्य मात्र की समता का सन्देश
  • हमारे युवकों को कैसी शिक्षा दी जाय?
  • संसार का सबसे प्राचीन ज्ञान-स्रोत—ऋग्वेद
  • दान का उद्देश्य सामाजिक कल्याण होना चाहिए।
  • ‘योग‘ का वास्तविक स्वरूप
  • सुखी वृद्धावस्था
  • त्याग द्वारा ही शक्ति प्राप्त हो सकती है।
  • गायत्री की अमोघ शक्ति
  • सच्चे और दिखावटी धर्मात्मा
  • गायत्री के प्रथम मन्त्र-दृष्टा-महर्षि विश्वामित्र
  • मन्त्र-शक्ति द्वारा मेघ वृष्टि
  • अमेरिका भी आध्यात्मिकता को खोज रहा है।
  • भारतीय संस्कृति का आधार- आत्म-संयम
  • धार्मिक क्षेत्र में धूर्तता और ठगी की करतूतें
  • हमारी भूल
  • प्राणिमात्र से प्रेम करना ही वास्तविक भक्ति है।
  • विश्राम कैसे करना चाहिये।
  • गायत्री परिवार समाचार
  • दधीचि का अस्थि-दान
  • दधीचि का अस्थि-दान (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj