
अविवेक और असंयम भी
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
अभद्रता, आलस्य और अनुदारता की भाँति ही आज अविवेक और असंयम भी जिस प्रकार बढ़ रहे है उनके कारण मानव जीवन दिन-दिन कठिन बनता चला जा रहा है। असुरता के यही पाँच लक्षण हैं। जिन व्यक्तियों में यह दुर्गुण होंगे वे असुर कहे जाएंगे और उनका समाज असुर-समाज कहलावेगा। असुरता का परिणाम आपत्ति, असन्तोष एवं अशान्ति ही हो सकती है। इतिहास साक्षी है कि संसार में जब जब असुरता बढ़ी है, तब -तब दुःख दारिद्र के पहाड़ टूटे हैं और मानव को देवत्व की स्थापना और असुरता के निवारण का सामूहिक प्रयत्न करना पड़ा है। इसी को अवतार भी कहते हैं। अवतार का उद्देश्य युग-निर्माण एवं युग-परिवर्तन ही होता है। स्मरण रखने की बात यही है कि यह अवतार धारण करने का आश्वासन मिलता रहा है।
एक बार देवता जब असुरता के त्रास से बहुत संत्रस्त हो गये तो सहायता के लिए ब्रह्माजी ने उन सब में से थोड़ी-थोड़ी शक्ति निकाली और उसे इकट्ठा करके एक नई देवी बना कर खड़ी कर दी, इसका नाम रखा और दुर्गा। इस दुर्गा ने अपना विकराल रूप धारण करके बात की बात में असुरों का सफाया कर दिया। दुर्गा-अर्थात् संघ-शक्ति । पृथक-पृथक रूप से देवताओं के समान सुयोग्य व्यक्ति भी दुर्बल ही रहते हैं, और उन्हें पराजय का मुँह देखना पड़ता है। पर संगठित होकर वे एक सजीव एवं प्रचंड शक्ति का दुर्गा रूप धारण कर लेते हैं। अवतार का यही रहस्य है। युग परिवर्तन के लिए भगवान की प्रतिज्ञा है कि जब धर्म घटेगा और अधर्म बढ़ेगा तो उसके प्रतिकार के लिए वे अवतार धारण करेंगे। भगवान का अवतार जल्दी ही हो, बढ़ा हुआ अधर्म नष्ट हो और घटा धर्म बढ़े, यह चाहना भी की जाती है। फिर भी अवतार नहीं होता। अवतार कितना जल्दी हो, कितना सशक्त हो, यह इस बात पर निर्भर है कि जनता के मन में अधर्म के प्रति विक्षोभ की प्रतिक्रिया कितनी तीव्र हुई, वह उस परिवर्तन के लिए कितनी अधीर और कितनी कटिबद्ध है। त्रेता में समुद्र बाँधने के समय गिलहरियों तक ने राम को सहयोग दिया था। वे अपने बालों में धूलि भर लाती और समुद्र में झाड़ जाती थी ताकि समुद्र जल्दी पट जाए। यह प्रवृत्ति जब हर योग्य, अयोग्य, समर्थ, असमर्थ में पैदा हो जाती है तो अवतार को तत्क्षण अवतरित होना पड़ता है और अधर्म के नाश एवं धर्म स्थापना की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करना पड़ता है।
स्मरण रखना चाहिए कि एक समय में अनेक अवतार एक साथ होते हैं। विशेष श्रेय भले ही एक को मिले पर उस कार्य की सफलता अनेकों द्वारा सम्पन्न होती है। राम के काल में लक्ष्मण, परशुराम, हनुमान आदि अनेकों अवतारों की आत्माएं काम कर रही थीं। कृष्ण के समय बलराम, अर्जुन, भीम, युधिष्ठिर आदि कितने ही अवतारी मौजूद थे। अब अनीति के विरुद्ध विद्रोह और नीति के प्रति बढ़ती हुई जन भावना जब पूर्ण रूप से प्रबल हो उठेगी, वह प्रबलता इतनी हो उठेगी कि उस कार्य में गिलहरी की तरह सहयोग दिये बिना किसी से रहा ही न जाए, तब तत्काल अवतार का अवतरण होगा और वर्तमान परिस्थितियाँ बदलते और धर्म राज्य आते देर न लगेगी।