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Magazine - Year 1963 - Version 2

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हम कर्तव्य पालन में चूक न करें

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राष्ट्र को सबल, सक्षम, एवं समृद्ध, प्रबुद्ध बनाने के जिए जो कार्य किये जाए वे चीनी आक्रमण को समाप्त करने की दृष्टिं से ही नहीं, सदा के लिए सुरक्षा की निश्चिन्तता होने की दृष्टि से आवश्यक हैं। इन कार्यों की ओर हमें अपने व्यक्ति गत कमाने खाने के कामों की तरह ही ध्यान देना चाहिये। निजी कामों में ही सारा समय, शक्ति और मनोयोग लगता रहे तो यह मानव जीवन के उच्च सिद्धान्तों के प्रतिकूल बात ही होगी। मनुष्य सामाजिक प्राणी है, वह समाज का ही एक अंग है। सुख सुविधाओं के सभी साधन उसे समाज से मिलते हैं। इन सब बातों का विस्मरण करके यदि हम निजी कामों में ही निरन्तर संलग्न रहते हैं निजी बातें ही सोचते हैं और समाज, राष्ट्र के हित की समस्याओं को उपेक्षा की दृष्टि से देखते हैं तो यह एक निकृष्ट जीवन का घृणित उदाहरण ही होगा।

स्वार्थ ही नहीं परमार्थ भी-

हमारे समय, साधन और मनोयोग का एक महत्वपूर्ण अंश लोकहित के कार्यों में लगे तो ही जीवन को आदर्श, कर्तव्यपरायण एवं आध्यात्मिक माना जा सकता है। सब लोग सेना में भर्ती नहीं हो सकते हैं, सब के पास सोना और विपुल मात्रा में धन भी नहीं है, पर समय, श्रम और मनोयोग सबके पास समान रूप से मौजूद है, इसे प्रचुर मात्रा में अमीर गरीब सभी दे सकते हैं। युद्ध का दूसरा मोर्चा-आन्तरिक सामर्थ्य को जागृत करने का है। इसी का नामकरण हम लोगों ने सुविधा की दृष्टि से युग-निर्माण योजना रख लिया है। अखण्ड ज्योति परिवार के प्रत्येक सदस्य को अपना समय इस कार्य के लिए भी उसी तरह निकालना चाहिये जैसी अपने निजी जरूरी कामों के लिए निकालते हैं।

राष्ट्र रक्षा का उत्तरदायित्व-

पिछले अंक में पृष्ठ 50 पर छपे “अग्नि परीक्षा के घड़ी में हमारा कर्तव्य” शीर्षक लेख में स्वजनों से राष्ट्र रक्षा के लिये शक्ति भर प्रयत्न करने की अपील की गई है। रक्षा कोष में धन, स्वर्ण, रक्त और सैनिक देने के लिये जो कुछ प्रयत्न सम्भव हो सो हम सबको करना चाहिए। उत्पादन बढ़ाने में कोई कमी न रहने देनी चाहिए। असामाजिक राष्ट्र विरोधी तत्वों की दाल न गलने पावे इसके लिये पूरी सतर्कता बरतनी चाहिए। फिजूलखर्ची एकदम बन्द करके बचत का एक-एक पैसा राष्ट्रहित में लगे ऐसी चेष्टा रहनी चाहिए। जनता का उत्साह और मनोबल गिरने न दिया जाय। यह भावना जन मानस में मजबूती से भर देनी चाहिए कि सत्य भारत के साथ है इसलिए अंततः विजय उसी की होगी। लम्बी लड़ाई के लिए तैयारी की जानी चाहिए। तात्कालिक गोलीबन्दी तैयारी की एक चाल मात्र है।

शत्रु का दाव बदला है मन नहीं। भारत की सीमा में युद्ध उस दिन समाप्त होगा जिस दिन वह भीतरी और बाहरी दृष्टि से पूर्ण सबल हो जायगा और इस कार्य में अभी 8॥ वर्ष तो लगने ही हैं। इसलिए इस अवधि में प्रत्येक देशभक्त प्रबुद्ध आत्मा को एक संकटकालीन स्थिति बनी रहने की सम्भावना को ध्यान में रखते हुए व्यक्तिगत योजनाओं और महत्वाकाँक्षाओं को उठाकर ताक में रख देना चाहिए। गुजारे की सामान्य व्यवस्था चलाते हुए अधिकाधिक समय देश को बलवान बनाने में लगा देना चाहिए। आज समय, युग और कर्तव्य की यही पुकार है उसे अनसुना न किया जाना चाहिए।

आध्यात्मिक प्रयत्न भी-

गत अंक में राष्ट्र रक्षा के लिए एक आध्यात्मिक प्रयोग की भी अपील की गई है। प्रतिदिन गायत्री महामन्त्र की एक माला इस धर्म युद्ध की सफलता के लिए नियत साधना से अतिरिक्त जपते रहना चाहिए। सामूहिक आयोजनों एवं सत्संगों में पाँच मिनट मौन रहकर राष्ट्र रक्षा के लिए ईश्वर प्रार्थना की जाया करे। सामूहिक यज्ञ अनुष्ठान भी हों पर उनमें मितव्ययिता का पूरा ध्यान रखा जाय। हर महीने को 20 तारीख को रक्षा दिवस मनाया जाया करे। उस दिन सामूहिक आयोजनों के द्वारा जनता की कर्तव्य भावनाएं जागृत की जाया करें और सामूहिक प्रार्थना का भी कार्यक्रम रहा करे। इस प्रक्रिया का जहाँ आरम्भ अभी न हो पाया हो वहाँ अब तुरन्त ही आरम्भ हो जाना चाहिए।

युग निर्माण योजना के अंतर्गत आत्म-निर्माण के लिए व्यक्ति गत प्रयत्नों की दृष्टि से 10 सूत्री कार्यक्रम सितम्बर अंक में पृष्ठ 46 पर छपा है। जब कभी बड़ी संख्या में परिजन संगठित हो जायें तो वहाँ सामूहिक योजनाएँ भी चल पड़नी चाहिएं। इसके लिए दिसम्बर अंक में पृष्ठ 47 पर बीस सूत्री कार्य-क्रम छपा है। यही सभी बातें ध्यान रखने योग्य हैं। इस विचारधारा का व्यापक विस्तार होना सबसे पहला कार्य है। क्योंकि अखण्ड ज्योति परिवार के सदस्य तो मुट्ठीभर हैं, कुछ हजार लोग इतने बड़े देश को, इतने बड़े संसार को नहीं बदल सकते। इसके लिए अधिक व्यापक जनजागृति एवं प्रयत्नशीलता की आवश्यकता है। इसलिए अपनी विचारधारा से अधिकाधिक लोगों को परिचित कराना युग निर्माण योजना की सफलता के लिए सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण कार्य-क्रम माना जा सकता है।

उपयुक्त भावनाओं का जागरण-

अखण्ड ज्योति जिस विचारधारा और प्रेरणा का सृजन कर रही है, वह राष्ट्र निर्माण की, युग निर्माण की दृष्टि से अत्यन्त आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है। इससे विशाल जन समूह को परिचित कराया जाना चाहिये। आगे चलकर इस पसार-कार्य के लिए दूसरे उपाय भी काम में लाए जावेंगे पर अभी तो फिलहाल एक ही उपाय हाथ में है और वह यह है कि अखण्ड ज्योति को अधिकाधिक लोग पढ़े। जिनके पास पत्रिका पहुँचती है उन्हें यह निश्चय कर लेना चाहिए कि अपने घर के पढ़े लिखे सदस्यों को उसे पढ़ने के लिए विवश करेंगे, और जो पढ़े नहीं हैं उन्हें पढ़कर सुनाया करेंगे। आजकल हम अपनी अन्तरात्मा की सारी भावनाएं समेटकर अखण्ड ज्योति के पृष्ठ लिखते हैं। यदि हममें कोई कसक और सचाई होगी तो उसका प्रभाव पढ़ने या सुनने वाले पर अवश्य पड़ेगा।

युग निर्माण कार्य पहले अपने से ही आरम्भ हो, फिर उसका विस्तार घर, परिवार में, फिर समाज में किया जाय। अपना कुछ समय आत्म-सुधार और लोक सेवा के लिए लगाने का निश्चय कर लेना व्यक्तिगत कार्य-क्रम की दृष्टि से आवश्यक है। परिवार निर्माण के लिए घर का हर सदस्य हर महीने अखण्ड ज्योति की विचार धारा को पढ़ या सुन लिया करे, इतना आरम्भ तो हो ही जाना चाहिए।

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