• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • तुम दीपक से जलते जाओ (कविता)
    • मानव जीवन और ईश्वर-विश्वास
    • Quotation
    • एक प्रसिद्ध संन्यासी
    • प्रेम ही परमेश्वर है
    • देवों और असुरों में घोर युद्ध
    • हम जीवन विद्या भी सीखें
    • Quotation
    • तप और त्याग की आवश्यकता
    • सशर्त सहायता
    • नम्रता ही सभ्यता का चिन्ह
    • अवतार कब होगा?
    • अविवेक और असंयम भी
    • श्रम से ही जीवन निखरता है।
    • स्वामी दयानन्दजी
    • हम किसी से भी न डरें।
    • कुएं ने शिकायत करते हुए समुद्र से कहा
    • दाम्पत्य जीवन की सफलता के लिए
    • महात्मा ईसा
    • दीर्घ जीवन का रहस्य
    • सर्व सम्पन्न श्रावस्ती नगर में भयंकर अकाल पड़ा
    • नारी को समुन्नत किया जाए
    • भाग्यवाद और पुरुषार्थवाद
    • स्वामी विवेकानन्द
    • विचार और व्यवहार
    • एक प्रसिद्ध सन्त
    • बालकों के निर्माण का आधार
    • भारतमाता की स्वाधीनता और प्रतिष्ठा के लिए
    • आगामी साढ़े आठ वर्ष
    • Quotation
    • आन्तरिक शत्रुओं से भी लड़ा जाए
    • हम कर्तव्य पालन में चूक न करें
    • Quotation
    • ईश्वर पर विश्वास
    • Quotation
    • कृतज्ञता
    • शुद्धि का साधन
    • अपने लिये कम
    • विजय या मौत (कविता)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • तुम दीपक से जलते जाओ (कविता)
    • मानव जीवन और ईश्वर-विश्वास
    • Quotation
    • एक प्रसिद्ध संन्यासी
    • प्रेम ही परमेश्वर है
    • देवों और असुरों में घोर युद्ध
    • हम जीवन विद्या भी सीखें
    • Quotation
    • तप और त्याग की आवश्यकता
    • सशर्त सहायता
    • नम्रता ही सभ्यता का चिन्ह
    • अवतार कब होगा?
    • अविवेक और असंयम भी
    • श्रम से ही जीवन निखरता है।
    • स्वामी दयानन्दजी
    • हम किसी से भी न डरें।
    • कुएं ने शिकायत करते हुए समुद्र से कहा
    • दाम्पत्य जीवन की सफलता के लिए
    • महात्मा ईसा
    • दीर्घ जीवन का रहस्य
    • सर्व सम्पन्न श्रावस्ती नगर में भयंकर अकाल पड़ा
    • नारी को समुन्नत किया जाए
    • भाग्यवाद और पुरुषार्थवाद
    • स्वामी विवेकानन्द
    • विचार और व्यवहार
    • एक प्रसिद्ध सन्त
    • बालकों के निर्माण का आधार
    • भारतमाता की स्वाधीनता और प्रतिष्ठा के लिए
    • आगामी साढ़े आठ वर्ष
    • Quotation
    • आन्तरिक शत्रुओं से भी लड़ा जाए
    • हम कर्तव्य पालन में चूक न करें
    • Quotation
    • ईश्वर पर विश्वास
    • Quotation
    • कृतज्ञता
    • शुद्धि का साधन
    • अपने लिये कम
    • विजय या मौत (कविता)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1963 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


बालकों के निर्माण का आधार

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 27 29 Last
बच्चों का सबसे पहला और प्रमुख विद्यालय होता है घर। घर के वातावरण में मिली हुई शिक्षा ही बालक के सम्पूर्ण जीवन में विशेषतया काम आती है। माता बच्चे का पहला आचार्य बताई गई है, फिर दूसरा नम्बर पिता का और इसके उपरान्त शिक्षक, आचार्य, गुरु का स्थान है। मानव जीवन की दो तिहाई शिक्षा माँ बाप की छत्रछाया में घर के वातावरण की उपयुक्तता, श्रेष्ठता पर ही बच्चों के जीवन की उत्कृष्टता निर्भर करती है। और जीवन की उत्कृष्टता शाब्दिक-अक्षरीय ज्ञान पर नहीं वरन् जीवन जीने के अच्छे तरीके पर है।

अच्छा स्वभाव, अच्छी आदतें, सद्गुण, सदाचार ही उत्कृष्ट जीवन के आधार हैं जो पुस्तकों के पृष्ठों से, स्कूल कालेजों बोडिंग हाऊस की दीवारों से नहीं मिलते वरन् घर के वातावरण में ही सीखने को मिलते हैं। इन्हीं गुणों पर जीवन की सरसता, सफलता, विकास निर्भर होता है। जो माँ बाप इस उत्तरदायित्त्व को निभाते हुए घर का उपयुक्त वातावरण बनाते हैं वे अपने बच्चों को ऐसी चारित्रिक सम्पत्ति देकर जाते हैं जो सम्पत्तियों से बड़ी है, जिसके ऊपर सम्पूर्ण जीवन स्थिति निर्भर करती है।

परिस्थितियों का प्रभाव

घर में विपरीत वातावरण होने पर स्कूल कालेजों में चाहे कितनी अच्छी शिक्षा दी जाय वह प्रभावशाली सिद्ध नहीं होती। हालाँकि स्कूल के पाठ्य-क्रम में चरित्र, सदाचार, साधुता, सद्गुणों की बहुत-सी बातें होती हैं, पर वे केवल शाब्दिक और मौखिक ज्ञान का आधार रहती हैं अथवा परीक्षा के प्रश्नपत्रों में लिखने की बातें मात्र होती हैं। विद्यार्थी के जीवन में क्रियात्मक रूप से उनका कोई महत्व नहीं होता। इसका प्रमुख कारण घर के विपरीत वातावरण का होना ही होता है। बच्चों के नैतिक स्तर की जानकारी के लिए एक स्कूल में परीक्षा के उपरान्त बच्चों को ही अपनी कापियाँ जाँचने को कह दिया गया। बाद में जाँच करने पता चला कि बहुत से लड़कों ने अपने गलत सवालों में भी नम्बर दे दिए, कइयों ने फिर से नकल करके सही उत्तर लिख लिए। जिन्होंने अपने लिए अच्छे नम्बर दे दिए उनमें खाते-पीते, धनवान, अच्छे स्तर के कहे जाने वाले घरानों के बच्चे ही अधिक थे। गरीब अथवा साधारण स्थिति के घरों के बच्चे कम थे। ऐसा क्यों? अच्छे धनवान, सम्पत्तिशाली घरानों के बच्चे तो अच्छे होने चाहिएं? किन्तु यह भूल है। ऐसे घरों में प्रायः बड़प्पन, सफेदपोशी, चातुर्य की आड़ में सदाचार, नैतिकता, सद्गुणों पर केवल ऊपरी, मौलिक निष्ठा होती है। बाह्य सफलता प्राप्त करना ही इनका लक्ष्य होता है। उसके समक्ष जरूरत पड़ने पर वे सरलता से जीवन के नैतिक तत्वों का बलिदान कर देते हैं। धन, पद, प्रतिष्ठा, साधन सामग्री आदि जैसे उपलब्ध हो सके वैसा ही वे लोग आचरण करते हैं। इस तरह के अभिभावकों की छत्र छाया में पलने वाले बच्चे भी उनका अनुकरण करके अपनी सफलता के लिए अनैतिक तत्वों का आचरण करने में नहीं झिझकते।

अनुकरण की आदत-

जिन घरों में तनातनी, लड़ाई, झगड़े, कलह अशान्ति रहती है वहाँ बच्चों पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता हैं। जो माँ बाप बच्चों के श्रद्धा स्नेह के केन्द्र होते है, उन्हें बच्चे जब परस्पर लड़ते-झगड़ते, तू-तू मैं-मैं करते, एक दूसरे को बुरा कहते देखते हैं तो बच्चों के कोमल हृदय पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। उन बच्चों में माँ-बाप के प्रति तुच्छता, अनादर, संकीर्णता के भाव पैदा हो जाते हैं जो आगे चलकर उनके स्वभाव और व्यक्तित्व के अंग बन जाते हैं। अतः कभी भूल कर भी बच्चों के सामने माता पिता को अपनी तकरार, लड़ाई-झगड़े की बात प्रकट नहीं होने देनी चाहिए। बच्चे सर्वत्र अपने माँ, बाप, भाई, रिश्तेदार, पड़ोसी सभी से प्यार और दुलार पाने की भावना रखते हैं। इसके विपरीत लड़ाई, झगड़े, क्लेश, अशान्ति से बच्चों के कोमल मानस पर आघात पहुँचता है।

अनुचित लाड़ प्यार-

कई माँ बाप अपने बच्चों की गलत आदतें तोड़ फोड़, सामान को बिखेरने, नुकसान करने आदि पर लाड़ प्यार वश कोई ध्यान नहीं देते, वरन् स्वयं उन्हें फिर से जुटा देते है। कोई चीज नष्ट हो जाने पर फिर उसे खरीद कर ला देते हैं। इस अनावश्यक उदारता और स्नेह, ममता का दूषित प्रभाव बच्चों में कई बुराइयां पैदा कर देता है। बच्चे इन गलत आदतों के अभ्यस्त हो जाते हैं, जो जीवन भर उनसे गलतियाँ और असावधानियाँ कराती हैं। सामान देना, अथवा कोई काम खुद कर लेना इतना महत्वपूर्ण नहीं जितना अपने बच्चों में सजगता, चातुर्य, सदाचार अच्छी आदतें पैदा करना वस्तुतः माँ बाप के लिए यही कसौटी का आधार है। जो चीज बच्चे ने तोड़ी है उसका अभाव कुछ दिन बना रहने देना चाहिए ताकि वह अपनी भूल से उत्पन्न कठिनाई पर विचार कर सके।

बच्चों को किसी बात से रोकने अथवा उन्हें डराने धमकाने या कौतूहल पैदा करने के लिये भूत, चुड़ैल, हौवा आदि का डर दिखाना उनकी क्षमता, साहस, शक्ति , को कुँठित करना है। साथ ही भय की प्रबल भावना पैदा करना है जो जीवन भर उनका साथ नहीं छोड़ती। और यही भय की भावना उन्हें जीवन के किसी भी महत्वपूर्ण काम में हाथ नहीं डालने देती । ऐसे बच्चे बड़े होकर भी छोटे-छोटे बातों से भयभीत हो उठते हैं। इसका कारण बाह्य वातावरण नहीं अपितु बच्चों में घर की पैदा हुई भय की भावना ही होती है। घर में भूत, चुड़ैल आदि के भय की मान्यता रखना, इनमें विश्वास रख कर तरह-तरह के उपचार करना भी बच्चों में तत्सम्बन्धी भय की नींव लगा देता है। घर में किसी भी तरह के भय करा वातावरण होना बुरा है।

व्यक्तित्व की प्रतिच्छाया-

उदारता, प्रेम, आत्मीयता, बन्धुत्व आदि की अनुकूल-प्रतिकूल भावनाओं का अंकुर बच्चों के प्रारम्भिक जीवन में ही लग जाता है। जिन बच्चों को माँ बाप का पर्याप्त प्यार दुलार, मिलता हैं, जिन पर अभिभावकों की छत्रछाया बनी रहती है, जो माँ बाप बच्चों के जीवन में दिलचस्पी प्रकट करते है, उनके बच्चे मानसिक विकास प्राप्त करते हैं। उनका जीवन भी उन्हीं गुणों से ओत-प्रोत हो जाता है जिनमें वे पलते हैं। माता-पिता के व्यवहार आचरण से ही बच्चों का जीवन बनता है। साहस निर्भीकता, आत्म गौरव की भावना बचपन में घर के वातावरण से ही पनपती है।

माँ बापों के व्यसन, आदतों का अनुकरण बच्चे सबसे पहले करते हैं। माँ बाप का सिनेमा देखना, ताश खेलना, बीड़ी, सिगरेट, फैशन, बनाव, शृंगार का अनुकरण कर बच्चे भी वैसा ही करने लगते हैं। इसी तरह जो माँ बाप सदाचारी, संयमी, विचारशील, सद्गुणी होते हैं वैसा ही प्रभाव उनके बच्चों पर पड़ता है।

परिवार के वातावरण में बच्चों के संस्कार, भाव, विचार, आदर्श, गुण, आदतों का निर्माण होता है जो उनके समस्त जीवन को प्रभावित करते हैं। उपदेश, पुस्तकों से जीवन की महत्वपूर्ण शिक्षा नहीं मिलती, यह तो घरों के वातावरण को स्वर्गीय, सुन्दर, उत्कृष्ट बनाने पर ही निर्भर करती हैं।

First 27 29 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • तुम दीपक से जलते जाओ (कविता)
  • मानव जीवन और ईश्वर-विश्वास
  • Quotation
  • एक प्रसिद्ध संन्यासी
  • प्रेम ही परमेश्वर है
  • देवों और असुरों में घोर युद्ध
  • हम जीवन विद्या भी सीखें
  • Quotation
  • तप और त्याग की आवश्यकता
  • सशर्त सहायता
  • नम्रता ही सभ्यता का चिन्ह
  • अवतार कब होगा?
  • अविवेक और असंयम भी
  • श्रम से ही जीवन निखरता है।
  • स्वामी दयानन्दजी
  • हम किसी से भी न डरें।
  • कुएं ने शिकायत करते हुए समुद्र से कहा
  • दाम्पत्य जीवन की सफलता के लिए
  • महात्मा ईसा
  • दीर्घ जीवन का रहस्य
  • सर्व सम्पन्न श्रावस्ती नगर में भयंकर अकाल पड़ा
  • नारी को समुन्नत किया जाए
  • भाग्यवाद और पुरुषार्थवाद
  • स्वामी विवेकानन्द
  • विचार और व्यवहार
  • एक प्रसिद्ध सन्त
  • बालकों के निर्माण का आधार
  • भारतमाता की स्वाधीनता और प्रतिष्ठा के लिए
  • आगामी साढ़े आठ वर्ष
  • Quotation
  • आन्तरिक शत्रुओं से भी लड़ा जाए
  • हम कर्तव्य पालन में चूक न करें
  • Quotation
  • ईश्वर पर विश्वास
  • Quotation
  • कृतज्ञता
  • शुद्धि का साधन
  • अपने लिये कम
  • विजय या मौत (कविता)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj