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Magazine - Year 1963 - Version 2

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उदेति सविता रक्तो रक्त एवस्त मेति च सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेक रुपता।

सूर्य उदय होते हुए भी लाल रहता है और अस्त होते हुए भी। महान पुरुष सम्पत्ति और विपत्ति में एक से रहते हैं।

समय दान में कंजूसी न करें-

हम जो समय युग निर्माण योजना में सहयोग देने के लिए दें उसमें से आधा तो अपने घर के लोगों को अखण्ड ज्योति की प्रेरणाओं को समझाने के लिए लगाया जाय और आधा अपने मित्र, पड़ोसी, स्वजन सम्बन्धी, परिचित, अपरिचित, धर्मप्रेमी लोगों से मिलने जुलने के लिए-धर्म फेरी के लिए-सुरक्षित रखा जाय। इसका आरम्भ भी अखण्ड ज्योति पढ़ने की प्रक्रिया के साथ हो सकता है। जिनके पास धर्म प्रेरणा देने के लिए जाया जाय उन्हें अपनी अखण्ड-ज्योति पढ़ने देने और फिर एक दो दिन बाद वापिस लेने जाने के निमित्त को लेकर महीने में दो बार मिलने जाया जा सकता है और योजना में सन्निहित विषयों पर चर्चा की जा सकती है। उस प्रकार अपना समयदान, परिवार का शिक्षण और सत्प्रवृत्तियों को व्यापक बनाने की प्रक्रिया में इस छोटे-से अत्यन्त सरल कार्यक्रम के अनुसार लग सकता है।

अगले वर्ष इतना तो करें ही?-

एक वर्ष हम इस कार्यक्रम को चलावें। सन् 63 अत्यन्त जागरुकता का, त्याग और बलिदान की तैयारी का वर्ष है। संकटकालीन स्थिति आ जाने पर हममें से प्रत्येक को अपने प्राणों की आहुति देने के लिए भी तैयार होना चाहिए। हमने स्वयं इसकी तैयारी पूरी कर ली है। पर यदि वैसा नहीं होता है, जैसा कि अप पक्ष में दैवी शक्तियों का समर्थन होने से सम्भावना कम ही है, तो भी अग्नि परीक्षा में होकर हमें विशेष रूप से अगले वर्ष और साधारणतया 8॥ वर्ष तक गुजरते रहना पड़ेगा। इसलिए अगले वर्ष युग निर्माण योजना के सक्रिय कार्यक्रम तो शायद ही कार्यान्वित हो सकें पर इस विचारधारा को अधिकाधिक व्यापक बनाने की प्रक्रिया आसानी से चलती रह सकती है। अखण्ड-ज्योति को पढ़ाने सुनाने की प्रक्रिया द्वारा हमारा कार्यक्षेत्र सहज ही अत्यन्त व्यापक बनाया जा सकता है।

इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सन् 62 के सितम्बर, अक्टूबर, नवम्बर, दिसम्बर के अंक बहुत ही आवश्यक पाठ्य-सामग्री से परिपूर्ण हैं। इन चारों अंकों का सैट एक रुपया मूल्य का है। प्रत्येक पाठक को इनके कुछ सैट मँगाकर अपने पास रख लेने चाहिएं और उन्हें अपने सभी परिचितों को एक वर्ष में पढ़ा देना चाहिए। इस वर्ष जो नये ग्राहक अखण्ड ज्योति के बन रहे हों उन्हें भी उपरोक्त चार अंक प्राप्त कर लेने चाहिएं। ताकि युग निर्माण योजना की आवश्यक जानकारी से वे वंचित न रहें। स्वजन संबंधियों को प्रेमोपहार में यह चार अंक भिजवाने की प्रक्रिया इस वर्ष भी जारी रहनी चाहिए। ज्ञान दान का यह एक बहुत ही आदर्श एवं उत्कृष्ट तरीका है।

लक्ष की ओर अग्रसर ही रहें

एक से दस के क्रम के साथ बढ़ने की प्रक्रिया एक आदर्श परिपाटी है। हममें से हर एक अपने समान ही दस प्रबुद्ध लोकसेवी बनाने का लक्ष्य सामने रखे तो निश्चय ही बहुत काम हो सकता है। दस व्यक्ति यों को प्रेरणा देते रहने की जिम्मेदारी उठाना हममें से किसी के लिए भी भार रूप नहीं हो सकता। न वह कठिन है न असुविधापूर्ण । न उसके लिए फुरसत चाहिए न कुछ खर्च ही करना पड़ता है। हममें से हर एक का दूसरों के साथ मिलना जुलना किसी न किसी प्रयोजन को लेकर बना ही रहता है। उसी समय उनसे युग निर्माण विचारधारा के संबंध में भी थोड़ी चर्चा कर दी जाया करे तो इतने मात्र से एक ठोस कार्य होता रह सकता है और अन्त में बूँद-बूँद से घट भरने की उक्ति के अनुसार हम सबके थोड़े-थोड़े प्रयत्नों से देश में एक महत्वपूर्ण, स्वस्थ, एवं प्रेरणाप्रद ऐसा वातावरण बन सकता है जो जन-मानस की दिशा ही बदल दे और हमारे स्वप्नों का संसार जल्दी ही प्रत्यक्ष एवं साकार दिखाई देने लगे।

भारत के इतिहास में हम सबके जीवन में यह वर्तमान समय एक अग्नि परीक्षा की घड़ी की तरह सामने आया है। इस अवसर पर हमें कायर कलंकी के रूप में नहीं, कर्मठ योद्धा के रूप में अपने आपको खरा सिद्ध करना है। राष्ट्र रक्षा और राष्ट्र निर्माण दोनों ही मोर्चों पर जूझने के लिये हमें भारत माता के सच्चे सपूत की तरह ही कटिबद्ध होना चाहिए।

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