• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • सूरदास
    • धर्म प्रसार का प्रमुख आधार
    • आर्य-अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
    • मनुष्य अपने दुर्गुणों से जर्जर होता है
    • जीवन और उसका सदुपयोग
    • पुण्य निःस्वार्थ भाव से किया जाय
    • विचार ही जीवन की आधारशिला है।
    • जीवन में शिष्टाचार की आवश्यकता
    • Quotation
    • हमीं अपने भाग्य का निर्माण करते हैं।
    • भाव उत्कृष्टता से पूर्णता की प्राप्ति
    • Quotation
    • आदर्श धर्मोपदेशक-एचिले-
    • Quotation
    • दो मित्र
    • संत-समागम
    • Quotation
    • जैसा अन्न वैसा मन
    • Quotation
    • सफलता के सूत्र
    • मानसिक स्वास्थ्य को भी सुधारें
    • Quotation
    • अकारण दुःखी रहने की आदत
    • हम भी क्रियाकुशल क्यों न बनें?
    • Quotation
    • विरोधियों की उपेक्षा कीजिए
    • विश्वास बड़ा है
    • नास्तिक नित्से
    • लकड़ी के बर्तन
    • कन्या की उपेक्षा न हो
    • पुत्र और कन्या की तुलना
    • स्वास्थ्य के लिये उपवास का प्रयोग
    • आधुनिक स्त्री-शिक्षा की कुछ त्रुटियाँ
    • धूम्रपान की सत्यानाशी आदत
    • महात्मा हंसराज
    • मधु संचय
    • मधु संचय (Kavita)
    • त्रिविध प्रशिक्षण की पृष्ठ-भूमि
    • चार वर्षों की समग्र सज्जीवन दीक्षा
    • एक-एक महीने का परिवार प्रशिक्षण
    • वानप्रस्थ की परम तेजस्वी साधना
    • जातीय संगठनों का उद्देश्य-मानवता की रक्षा
    • VigyapanSuchana
    • व्यस्त लोगों के लिए परामर्श शिविर
    • प्रत्येक सक्रिय कार्यकर्ता-शाखा संचालक यह करे
    • VigyapanSuchana
    • माँ की लोरी
    • माँ की लोरी (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • सूरदास
    • धर्म प्रसार का प्रमुख आधार
    • आर्य-अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
    • मनुष्य अपने दुर्गुणों से जर्जर होता है
    • जीवन और उसका सदुपयोग
    • पुण्य निःस्वार्थ भाव से किया जाय
    • विचार ही जीवन की आधारशिला है।
    • जीवन में शिष्टाचार की आवश्यकता
    • Quotation
    • हमीं अपने भाग्य का निर्माण करते हैं।
    • भाव उत्कृष्टता से पूर्णता की प्राप्ति
    • Quotation
    • आदर्श धर्मोपदेशक-एचिले-
    • Quotation
    • दो मित्र
    • संत-समागम
    • Quotation
    • जैसा अन्न वैसा मन
    • Quotation
    • सफलता के सूत्र
    • मानसिक स्वास्थ्य को भी सुधारें
    • Quotation
    • अकारण दुःखी रहने की आदत
    • हम भी क्रियाकुशल क्यों न बनें?
    • Quotation
    • विरोधियों की उपेक्षा कीजिए
    • विश्वास बड़ा है
    • नास्तिक नित्से
    • लकड़ी के बर्तन
    • कन्या की उपेक्षा न हो
    • पुत्र और कन्या की तुलना
    • स्वास्थ्य के लिये उपवास का प्रयोग
    • आधुनिक स्त्री-शिक्षा की कुछ त्रुटियाँ
    • धूम्रपान की सत्यानाशी आदत
    • महात्मा हंसराज
    • मधु संचय
    • मधु संचय (Kavita)
    • त्रिविध प्रशिक्षण की पृष्ठ-भूमि
    • चार वर्षों की समग्र सज्जीवन दीक्षा
    • एक-एक महीने का परिवार प्रशिक्षण
    • वानप्रस्थ की परम तेजस्वी साधना
    • जातीय संगठनों का उद्देश्य-मानवता की रक्षा
    • VigyapanSuchana
    • व्यस्त लोगों के लिए परामर्श शिविर
    • प्रत्येक सक्रिय कार्यकर्ता-शाखा संचालक यह करे
    • VigyapanSuchana
    • माँ की लोरी
    • माँ की लोरी (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1964 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


Quotation

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 12 14 Last
विद्या रुपं धनं शौर्य्य कुलीनत्वमरोगता।

राज्यं स्वर्गश्च मोक्षश्च सर्व धर्म्मादवाप्यते॥

विद्या, धन, रूप, शूरता, कुलीनता, आरोग्यता, राज्य, स्वर्ग, मोक्ष आदि सम्पदाएँ धर्म-पालन करने वाले को ही प्राप्त होती हैं और सद्गुण धर्मात्मा में ही पाये जाते हैं।

शक्तिमानष्य शक्तोऽप्तो धनवानपि निर्धनः।

श्रुतवानपि मूर्खश्च यो धर्म विमुखो नरः॥

धर्म से विमुख, रहित मनुष्य शक्तिमान होने पर भी निर्बल, धन, वैभव रहते भी निर्धन और वेद-शास्त्रों का ज्ञाता होने पर भी मूर्ख रहता है।

इस स्थिति को देखकर बालक ऐचिले को बड़ा दुःख हुआ। उसकी माता धर्मात्मा थी और वह इस बालक को भी पादरी बनाना चाहती थी। बेटा भी इससे सहमत था पर पादरियों की यह दुर्गति देखकर उसे क्लेश हुआ। उसकी माता ने समझाया बेटा! सच्चे धर्म प्रसारकों की सदा आवश्यकता थी और आगे रहेगी। जिनकी दुर्दशा हो रही है वे विलासी और नकली साधु हैं। यदि कोई सच्चा धर्मोपदेशक बन सके तो इसमें उसका भी कल्याण है और धर्म तथा जनता की भी सेवा है। माता ने यह भी बताया कि एक सच्चे धर्मोपदेशक में किन गुणों की आवश्यकता है। त्याग, सेवा, निर्लोभता, उपासना, सदाचार आदि विशेषताओं के साथ उसे विद्वान् भी होना चाहिए। समुचित ज्ञान के अभाव में मनुष्य को न तो आत्म-सन्तोष होता है और न वह दूसरों को ज्ञान-दान से सन्तुष्ट कर सकता है।

बालक एचिले को पादरियों के अपमान से बड़ा दुःख हुआ था। उसने सदा पादरी बनने की ठानी ताकि धर्मोपदेशकों के प्रति जनता के मन में उत्पन्न हुए क्षोभ को वह शान्त करके पुनः श्रद्धा की जड़ जमा सके।

इटली के एक छोटे से गाँव डेसियो में ऐचिले जन्मा। उसका बाप जुलाहे का काम करता था। दस बारह घण्टे के कठोर परिश्रम से वह अपने परिवार की गुजर के लायक कमा पाता था। ऐचिले उसका चौथा पुत्र था। वह थोड़ा बड़ा हुआ तो अपने चाचा के पास जो पादरी था अस्सो नामक गाँव में चला गया। पर्वतों और प्राकृतिक सौंदर्य से घिरे उस उपवन में उसने काम चलाऊ शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद वे कई धार्मिक पाठशालाओं में पढ़ते रहे। उन्होंने शिक्षा जारी रखी और तीन विषयों में उन्होंने ‘डॉक्टरेट’ प्राप्त की। इतने विद्वान पादरी उन दिनों इटली में नहीं के बराबर थे।

उन्होंने धर्मप्रचार तथा जनसेवा का कार्य आरम्भ किया साथ ही आजीविका के लिए नौकरी कर ली। वे दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर नियुक्त हुए। फिर वे विशाल अब्रोशियन पुस्तकालय के प्रधान संचालक नियुक्त हुए। वहाँ उन्होंने बहुत पढ़ा और बहुत ग्रन्थ लिखे।

उन्होंने जन-सेवा के लिए बहुत कार्य किया। अनाथ बच्चों को पढ़ाया और उनकी आर्थिक सहायता की। अनेकों शिक्षा संस्था चलाई, पीड़ितों की विविध प्रकार से सेवा की और कुमार्ग पर चलते हुओं को धर्मोपदेश देकर सन्मार्ग पर चलाया। मजदूरों, स्त्रियों और बच्चों के सुधार के लिए अनेकों महत्वपूर्ण कार्य किये।

इटली की आवश्यकता देखकर उनने राजनीति में भी प्रवेश किया। पोलेण्ड में उन्हें अपोस्टालिक विजिटेटर बना कर भेजा गया। तीन साल बाद वहाँ से लौटे तो उन्हें आर्क बिशय बनाया गया। अन्त में वे प्रधान पोप चुने गये। सरकार ने उन्हें ‘नाइट आफ काँस’ की उपाधि से सम्मानित किया।

सन् 1870 में जब इटली की सेना ने रोम पर से पोप का अंधकार समाप्त किया तब से पादरियों का कोई सम्मान देश में न रह गया था। पर ऐचिल की योग्यता और सेवा-भावना से जनता भली प्रकार परिचित थी, उसकी अश्रद्धा श्रद्धा मैं बदल गई। अब ऐचिले का नाम था पोप पायस। जब वे धर्म-मंच पर भाषण देने आये तो विशाल जन समूह उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए घुटने टेक कर बैठा था, सेना ने उन्हें अपने शस्त्र भेंट किये। ऐसा विशाल सम्मान पिछले पचास वर्षों में किसी पोप का न हुआ था।

पोप पायस केवल धर्म गुरु मात्र हो न रहे उन्होंने संसार में सद्-भावनाएं बढ़ाने के लिए भी भारी प्रयत्न किया। उन्होंने इटली और रोम का पुराना झगड़ा सुलझाया। फ्राँस में कपड़े के कारखानों में हड़ताल हुई तो उन्होंने मजदूरों का पक्ष लिया और बहुत-सी सुविधाएँ दिलाई। साम्यवादी नास्तिकता की निन्दा की किन्तु पूँजीवाद के साथ कोई रिआयत नहीं की। उनने कहा-यह और भी अधिक मूर्खतापूर्ण एवं निंदनीय है। मुसोलिनी ने जब तक धार्मिक युवक संस्था का दमन किया तब भी उनने आवाज उठाई। यहूदियों के प्रति घृणा फैलाने वालों को उन्होंने लताड़ा और कहा-यह बात ईसाई आदर्शों के विपरीत है। उन्होंने आधुनिक विचार धाराओं और वैज्ञानिक प्रगति का स्वागत किया। मृत्यु शैया पर पड़े-पड़े उनने क्रिसमस पर एक संदेश प्रसारित करते हुए कहा-विश्व-शान्ति के लिये मानव मात्र को प्रयत्न करना चाहिए। उन्होंने जीवन भर शान्ति के लिए घोर संघर्ष किया।

धर्म के प्रति और धर्मोपदेशकों के प्रति जनता में जो अश्रद्धा है उसका कारण धर्म व्यवसाइयों की अकर्मण्यता, विलासिता एवं जनता को ठगने की वृत्ति ही है। इसी कारण लोगों की निष्ठा उन पर से उठती आ रही है। यदि ऐचिले-पोप पायस से-जैसे आदर्शों को धर्म गुरु लोग अपनावें, अपना चरित्र ऊँचा रखें, और जन-सेवा में उत्साहपूर्वक संलग्न रहें तो उनको व्यक्तिगत सम्मान भी मिले और धर्म रुचि भी बढ़े। पोप पायस ने आगे बढ़कर संसार के समस्त धर्म जीवियों का प्रत्यक्ष मार्ग दर्शन किया है।

First 12 14 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • सूरदास
  • धर्म प्रसार का प्रमुख आधार
  • आर्य-अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
  • मनुष्य अपने दुर्गुणों से जर्जर होता है
  • जीवन और उसका सदुपयोग
  • पुण्य निःस्वार्थ भाव से किया जाय
  • विचार ही जीवन की आधारशिला है।
  • जीवन में शिष्टाचार की आवश्यकता
  • Quotation
  • हमीं अपने भाग्य का निर्माण करते हैं।
  • भाव उत्कृष्टता से पूर्णता की प्राप्ति
  • Quotation
  • आदर्श धर्मोपदेशक-एचिले-
  • Quotation
  • दो मित्र
  • संत-समागम
  • Quotation
  • जैसा अन्न वैसा मन
  • Quotation
  • सफलता के सूत्र
  • मानसिक स्वास्थ्य को भी सुधारें
  • Quotation
  • अकारण दुःखी रहने की आदत
  • हम भी क्रियाकुशल क्यों न बनें?
  • Quotation
  • विरोधियों की उपेक्षा कीजिए
  • विश्वास बड़ा है
  • नास्तिक नित्से
  • लकड़ी के बर्तन
  • कन्या की उपेक्षा न हो
  • पुत्र और कन्या की तुलना
  • स्वास्थ्य के लिये उपवास का प्रयोग
  • आधुनिक स्त्री-शिक्षा की कुछ त्रुटियाँ
  • धूम्रपान की सत्यानाशी आदत
  • महात्मा हंसराज
  • मधु संचय
  • मधु संचय (Kavita)
  • त्रिविध प्रशिक्षण की पृष्ठ-भूमि
  • चार वर्षों की समग्र सज्जीवन दीक्षा
  • एक-एक महीने का परिवार प्रशिक्षण
  • वानप्रस्थ की परम तेजस्वी साधना
  • जातीय संगठनों का उद्देश्य-मानवता की रक्षा
  • VigyapanSuchana
  • व्यस्त लोगों के लिए परामर्श शिविर
  • प्रत्येक सक्रिय कार्यकर्ता-शाखा संचालक यह करे
  • VigyapanSuchana
  • माँ की लोरी
  • माँ की लोरी (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj