
संत-समागम
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केवल उचित को ही स्वीकार करें-
पुराने जमाने के बड़े-से-बड़े गणितज्ञों से आज का विद्यार्थी ज्यादा जानता है, क्योंकि गणित की जो नयी-नयी खोजें हुई हैं पुराने लोगों को वह मालूम नहीं थीं।
आज का विद्यार्थी न्यूटन से भी ज्यादा गणित जानता है। पुराने जमाने में जब युधिष्ठिर जुए में हारे और द्रौपदी को दासी बनने की नौबत आयी, तब भरी सभा में द्रौपदी ने पूछा कि क्या मेरे पति हार गये, इसलिए मुझे दासी बनना पड़ेगा? उस समय भीष्म, द्रोण, विदुर आदि इस सवाल को पेचीदा समझते थे। आज के जमाने में इस केस को क्या कोई सुप्रीम-कोर्ट में भेजना चाहेगा? युधिष्ठिर महाराज धर्मशील थे। उन्होंने धर्म-नियम माना था कि कोई जुआ खेलने के लिए बुलाये तो वो नहीं करना चाहिए। क्या आज कोई इसको धर्म मानेगा? मनु ने स्मृति में लिखा है कि बार-बार चोरी करने वाले का हाथ काट डालना चाहिए। क्या आज इस सजा को कोई कबूल करेगा?
हमारे पूर्वजों ने अच्छी-अच्छी चीजें तो दी हैं, उसके साथ कुछ गलत चीजें भी दी हैं।
बात यह है कि हर चीज में श्रेयस और प्रेयस होता है। अच्छी चीजें हैं वे लेनी चाहिए और बुरी चीजों को छोड़ना चाहिए और अच्छा-बुरा पहचानने का विवेक हमको हासिल करना चाहिए।
-बिनोवा
दो में से एक का चुनाव-
कई बार दो परस्पर विरोधी बातें सामने आ जाती हैं और उनमें से एक को चुनना होता है। दोनों ही बातें प्रिय और उचित लगती हैं पर यह निर्णय नहीं हो पाता कि इन दोनों में से किस रास्ते पर चलना ठीक है। ऐसी दशा में आदर्शवाद जिस बात के पक्ष में अधिक हो उसे ही चुनना चाहिए।
आपका लड़का विवाह योग्य है। उसका एक सम्बन्ध किसी अमीर घर से आता है किन्तु दूसरा सम्बन्ध गरीब घर का है। लड़की शिक्षा में दोनों समान हैं। ऐसी दशा में लोभ की दलील यह हो सकती है कि अमीर घर में विवाह करने पर आर्थिक लाभ रहेगा। पर दूसरी और गरीब पिता को कठिनाई में सहायता करने एवं निर्धन कन्या को सुखी घर में पहुँचने का लाभ देना एक उद्धार पक्ष है। एक और लाभ है दूसरी और उदारता। ऐसे अवसरों पर आदर्शवाद को ही पहला स्थान देना चाहिए। अमीर आदमी अपनी कन्या को पैसे के बल पर दूसरी अच्छी जगह-शायद आप से भी अच्छी जगह पहुँचा सकता है, पर ऐसा कर सकना एक गरीब के लिए कठिन है। इसलिए आपका निर्णय दोनों समान श्रेणी की कन्याओं में से गरीब घर की कन्या के पक्ष में ही होना चाहिए।
इसी प्रकार देश-भक्ति और परिवार प्रेम के बीच में से एक का चुनाव करना पड़ सकता है। शत्रु का आक्रमण होने पर देश-रक्षा के लिए सेना में भर्ती हुआ जाय या बच्चों के प्यार प्रेम को निबाहा जाय? दोनों ही पक्ष आकर्षक हैं। इनमें से एक को चुनना हो तो आपका मन आदर्शवाद की ओर ही झुकना चाहिए। परिवार प्रेम उचित है पर देश-रक्षा उससे भी पहला कर्त्तव्य है। इसी प्रकार लोभ और कर्तव्य के बीच में संघर्ष हो सकता है। धन लोभ की आशा भी आकर्षक है उसके लिए कर्त्तव्यच्युत होने के लिए मन ललचा सकता है पर इस मानसिक द्वन्द्व के समय आप कर्त्तव्य के पक्ष में ही अपनी बुद्धि और विचार-शक्ति का उपयोग करें।
-स्वामी शिवानन्द
हम आगे ही बढ़ें-
जो व्यक्ति या जाति आगे चलने से इन्कार करती है उसको दैव या प्रकृति के नियम चाबुक मारते हैं। यह नियम अटल है। इसके व्यवहार में कभी रिआयत नहीं हो सकती। परमेश्वर को किसी जाति या सम्प्रदाय का पक्ष नहीं है। जो कोई उसके नियम के अनुसार चलता है वह उसका प्यारा है, वह बचता है, किन्तु जो उसके नियम को तोड़ता है- वह उसका शत्रु है, वह मरता और नष्ट होता है। जरा देखो तो, यदि तुम साँसारिक शासन के नियमों के विरुद्ध चलो तो तत्काल दण्ड पा जाते हो किसी तरह बच नहीं सकते। जब साँसारिक शासन के विरुद्ध चलने का यह हाल है, तब भला परमेश्वर के नियमों के विरुद्ध चलना और बचने की आशा करना बिलकुल मूर्खता है या नहीं? धर्मशास्त्र के अनुसार भी आगे बढ़ने से इन्कार करने का नाम ही पाप है। इसको तमोगुण कहते हैं।
-स्वामी रामतीर्थ
ईश्वर का चिन्तन मनन-
जिस तरह से दाल के दाने चक्की में पीसे जाते हैं उसी तरह समस्त जीव काल द्वारा प्रेरित जन्म मृत्यु-रूपी दो पाटों के बीच पिस रहे हैं। किन्तु जिस तरह दाल के कुछ दाने चक्की के मध्य वाले डण्डे में चिपकने से बचे रहते हैं उसी प्रकार ईश्वर रूपी केन्द्र से जिसके सहारे संसार का सब कार्य कलाप चल रहा है, कालचक्र घूम रहा है कोई-कोई जीव चिपक जाते हैं तो वे मुक्त हो जाते हैं। ईश्वर के चिन्तन मनन भक्ति द्वारा मनुष्य प्रकृति के नियमों का उल्लंघन कर मुक्त हो सकते हैं।
-रामकृष्ण परमहंस
उत्तम पुरुष की परिभाषा-
वह कि, जो अपनी असफलता के लिए किसी दूसरे को दोषी नहीं ठहराता, न यह अपने काम में असफल होने वालों की हँसी ही उड़ाता है।
वह कि, जो दृढ़ निश्चयी होता है, पर अपने विरोधियों से झगड़ा नहीं करता। सबसे बड़े प्रेम से मिलता है, पर उनके साथ किसी गुटबन्दी में नहीं पड़ता।
वह कि, जो गुणों का संचय करता है, जो प्रसन्न रहता है, घमण्ड को अपने से बहुत दूर रखता है और जो सत्य को समझने की कोशिश करता है।
वह कि, जिसकी सहायता सहज ही प्राप्त की जा सकती है। पर उसे प्रसन्न करना कठिन होता है क्योंकि खुश उसे सचाई ही कर सकती है, खुशामद नहीं। निम्न पुरुष किसी की सहायता बड़ी कठिनाई से करता है, पर उसे खुश करके उसका कृपापात्र बनना आसान है। निम्न व्यक्ति की दुर्बल इच्छाओं की पूर्ति सत्य-असत्य किसी तरह करते जाइये वह उन्हें स्वीकार करेगा और प्रसन्न रहेगा।
वह कि, जो अपने दोष देखता है, सबसे मित्रता का व्यवहार करता है पर वह किसी के मोहपाश में नहीं फंसता। जो अपनी योग्यता को अपना धन समझता है, जो हमेशा शान्त और गम्भीर रहता है।
-सन्त कन्फ्यूशियस
आनन्दमय संसार-
आनन्द, इस संसार में सर्वत्र आनन्द ही आनन्द भरा पड़ा है। देखने वालों के दृष्टि दोष से दिखाई नहीं पड़ता, प्रातःकाल उठते ही चिड़ियों का मधुर कलरव, शीतल मन्द पवन और उषा की लालिमा क्या यह कुछ कम आनन्द की अनुभूति है? दिन भर दिखाई देने वाली चहल-पहल, संध्या को अस्त होता सूर्य और आकाश में रंग-बिरंगे बादल कैसे सुन्दर लगते हैं कि उन्हें देखने के आनन्द का ठिकाना नहीं रहता। काली रात की चादर पर झिलमिल करते हुए सितारे। बादलों से मोतियों की तरह बरसने वाली वर्षा क्या हमें आनन्द देने के लिए कुछ कम है? शीत काल से अँगीठी के आगे बैठकर तापना और रात की गहरी नींद में निमग्न होकर सो जाना कितना सुखकर लगता है। यहाँ आनन्द की कमी नहीं, देखने वाली आँखें स्वच्छ हों तो सब और प्रसन्नता, आशा और उल्लास का वातावरण ही दिखाई पड़ेगा।
इस संसार का सबसे बड़ा आनन्द है अन्तःकरण में रहने वाली सज्जनता, सरलता और सन्तोष की भावना। इन सुखों के रहते हुए भी लोग दुःखी रहते हैं, यह क्या आश्चर्य की बात नहीं है।
-मेटर लिंक