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Magazine - Year 1964 - Version 2

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व्यस्त लोगों के लिए परामर्श शिविर

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जेष्ठ मास में गायत्री जयन्ती गंगा दशहरा का पुण्यपर्व होने से वह महीना जितना पवित्र है उतना ही अवकाश का भी है। शिक्षा विभाग, कचहरी आदि कई सरकारी विभागों की इन दिनों गर्मी की छुट्टियां रहती हैं। खेती का काम पूरा हो जाने से कृषक तथा उनसे संबंधित अन्य लोग भी फुरसत में रहते है। इसलिए गत कितने ही वर्षों से यह महीना हमने स्वजनों से प्रेम-मिलन के लिए सुरक्षित रखा है। हर वर्ष इन दिनों गायत्री तपोभूमि में कोई न कोई शिविर रहता है। अब विचार यह किया गया है कि यह महीना परामर्श शिविरों के लिए सुरक्षित रखा जाय। जो लोग किसी न किसी कारण को लेकर परामर्श के लिए, छुटपुट साधन के लिए, अथवा तीर्थ यात्रा के लिए मथुरा आना चाहते हैं वे यदि इन निश्चित दिनों में आया करें तो परिजनों का परस्पर मिलना-जुलना भी हो सके और जीवन की सभी समस्याओं पर नये सिरे से विचार करने का अवसर भी मिल जाया करे।

जीवन निर्माण की साधना तथा गायत्री उपासना में लगे हुए लोग यदि वर्ष में एकबार अपनी प्रगति का परिचय दे जाया करें, प्रस्तुत कठिनाइयों का हल पूछ जाया करें, तथा अगले वर्ष का क्रम क्या रहे इस संबंध में विचार विनिमय कर लिया करें तो यह हम सभी के लिए उत्तम रहेगा। नौकरी पर दूर देशों में रहने वाले लोगों को वर्ष में एक बार तो अपने कुटुम्ब से मिलने घर जाने की छुट्टी मिलती है। अखण्ड-ज्योति परिवार के सदस्यों का एक घर वह है जहाँ वे रहते हैं पर दूसरा उनकी भाव प्रेरणा का केन्द्र मथुरा भी है, इसलिए यह भी उनका घर है। माता-पिता के घर की भाँति ही ‘गुरु गृह’ भी अपना ही होता है, वहाँ भी वर्ष में एक बार जाया जाय तो यह ठीक ही है।

एक सुझाव यह था कि दो-चार दिन का एक सम्मेलन वर्ष में एक बार किया जाया करे पर यह इसलिए न रुचा क्योंकि एक साथ अधिक व्यक्ति आ जाने से सभा सम्मेलन की शोभा तो अच्छी हो सकती है पर एक साथ अधिक व्यक्तियों से परामर्श संभव न हो सकने से विचार विनिमय का उद्देश्य पूर्ण नहीं हो सकता। सभा में जो बात भाषण द्वारा कहनी है वह सब तो अखण्ड-ज्योति द्वारा कह ही देते हैं, कभी केवल व्यक्तिगत परिस्थितियों और कठिनाइयों को समझने तथा उसके हल करने को सुझाव परामर्श देने का काम रह जाता है। यह तभी तो हो सकता है जब समय अधिक और व्यक्ति कम हों। वस्तु यह निश्चय किया गया है कि जेष्ठ में दस-दस दिन के तीन परामर्श शिविर किये जाया करें। जिनमें भाषण क्रम और परस्पर विचार विनिमय एवं परामर्श का कार्यक्रम अधिक किया जाया करे। दस-दस दिन के तीन शिविर रहने से एक महीना पूरा हो जाता है। इस वर्ष पहला शिविर 26 मई से 4 जून तक, दूसरा 5 जून से 14 जून तक, तीसरा 15 से 24 जून तक का रखा गया है। इस प्रकार जेष्ठ का महीना पूरा हो जायेगा।

इस वर्ष में हमें भी स्वजनों से अनेक महत्वपूर्ण समस्याओं का परामर्श करना है। जातीय संगठनों का व्यापक ढाँचा खड़ा करना है और आदर्श विवाहों की भूमिका आधार कर सामाजिक क्रान्ति का सूत्रपात किया जाना है। यह हमारे जातीय नीलम की जीवन-शरण अवस्था है। जिस जीवन्त आध्यात्म को हम लोग अपने रोम-रोम में उतार रहे हैं वह पूजा की कोठरी तक सीमित नहीं रह सकता। अब हवन करने मात्र से उसकी इतिश्री नहीं हो सकती वरन् देश, धर्म, समाज और संस्कृति के प्रत्येक क्षेत्र तक वह व्यापक प्रकाश उत्पन्न करेगा। हर पाप के विरुद्ध, हर अनात्म तत्व के विरुद्ध हमें संघर्ष करना है। विवाहों के अवसर पर फूँकी जाने वाली गाढ़ी कमाई के पैसों की होली निश्चित रूप से अध्यात्म तत्व है। इसे आसुरी दंभ एवं अनाचारपूर्ण अविवेक ही कहा जा सकता है। अब समय आ गया है कि इस कुप्रथा के विरुद्ध विद्रोह का झंडा खड़ा किया जाय। इस वर्ष की तैयारी के लिए जो रूपरेखा बनी है उस मोर्चे बंदी के हर पहलू से परिवार के प्रबुद्ध लोगों को परिचित करना चाहिए। यों यह सब अखण्ड-ज्योति के पृष्ठों पर भी समझाया जा रहा है और आन्दोलन को बल देने के लिए ही सज-धज और शान का ‘युग-निर्माण योजना’ पाक्षिक में भी 1 जुलाई से आरंभ किया जा रहा है फिर भी इतने महत्वपूर्ण कार्य को प्रारंभ करते हुए परस्पर विचार विनिमय भी आवश्यक है। इसलिए जिनमें राष्ट्र निर्माण के अपने कार्यक्रमों में विशेष रुचि है उनसे इन शिविरों में आने की विशेष रूप से अपेक्षा की गई है।

वर्णाश्रम धर्म के पुनर्जीवन के लिए, भारतीय सुसंस्कृति लिया प्राण उत्पन्न करने के लिए, जो प्रशिक्षण योजना पाई गई है, उसकी चर्चा पिछले पृष्ठों पर मौजूद है। हर वर्ष का ब्रह्मचारी शिक्षण, एक मास का गृहस्थ शिक्षण और एक वर्ष का वानप्रस्थ शिक्षण क्रम अगले दिनों आरंभ किया जाना है। हम चाहते हैं कि अपने परिवार के सभी प्रमुख व्यक्तियों को इन प्रशिक्षण घटनाओं में सम्मिलित होने का लाभान्वित होने का अवसर मिले। यथा समय इन सत्रों में शिक्षार्थियों को समान मिलेगा ही। पर जो लोग अभी किसी में भी आने की स्थिति में नहीं हैं, वे इन दस-दस दिन के शिविरों में सम्मिलित होकर जो कुछ उन सत्रों में सिखाया जाने वाला उसका साराँश मोटे तौर से इन शिविरों में आकर ही लिया करें। इस प्रकार व्यस्त व्यक्तियों को थोड़े समय में भी उस लाभ से वंचित न रहना पड़ेगा जिसे उपरोक्त त्रिविधि शिक्षण में भाग लेने वाले अधिक विस्तारपूर्वक प्राप्त करते। ऐसे लोगों के लिए यह परामर्श शिविर विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।

युग-निर्माण योजना के शत-सूत्री कार्यक्रमों को मूर्त देने के लिए अखण्ड-ज्योति परिवार के सदस्यों को संगठित रूप में कुछ न कुछ प्रयत्न हर जगह करते ही जाना पड़ेगा। कहाँ, कौन किस प्रकार, क्या कितना कर सकता है, इसकी चर्चा यदि हम लोग परस्पर मिल जुल कर लें तो इससे कार्य की प्रगति में सहायता हो सकेगी। हममें से प्रत्येक को अपना व्यक्तिगत जीवन अधिक उत्कृष्ट बनाने के लिए, परिवार को सुसंस्कृत एवं विकसित करने के लिए, तथा अपने देश, धर्म समाज एवं संस्कृति को सजीव, तेजस्वी तथा सशक्त बनाने के लिए बहुत कुछ काम करना है। विभिन्न परिस्थिति के लोग विभिन्न प्रकार से इन तीनों कार्यों को कर सकते हैं। किस के लिए किस प्रकार, क्या करना ठीक होगा यह सब भी परस्पर विचार विनिमय का विषय है। जेष्ठ के शिविरों में आने वाले इन सभी तथ्यों पर आवश्यक प्रकाश प्राप्त कर सकते है और यहाँ से नई प्रेरणा नया उत्साह लेकर जा सकते हैं।

प्रसन्नता की बात है कि स्वजनों ने इन परामर्श शिविरों का महत्व समझा है और जेष्ठ में मथुरा आने का इच्छा व्यक्त की है। प्रार्थियों की संख्या बहुत अधिक है। पर स्थान एक बार में अधिक से अधिक सौ व्यक्तियों को मिल सकता है। इसलिए जिनके आने की अभी अधिक उपयोगिता समझी गई है केवल उन्हें ही स्वीकृति दी गई है। जिनको स्वीकृति न दी जा सकी उनसे विवशता के लिए क्षमा माँगनी पड़ रही है। उनके नाम नोट कर लिये गये हैं और इसी वर्ष आश्विन या चैत्र की नवरात्रियों में जैसे ही फिर किसी शिविर को आयोजना बनेगी तब उन्हें स्वीकृति की दृष्टि से प्राथमिकता देंगे।

जिन्हें स्वीकृति मिल चुकी है केवल उन्हें ही आना चाहिए बिना स्वीकृति कोई सज्जन न आवे। ऐसे स्त्री बच्चों को इन शिविरों में नहीं लाना चाहिए जो केवल दर्शन झाँकी के उद्देश्य से आते हैं। स्थान कम रहने से ऐसे लोगों की वजह से उन लोगों को वंचित रहना पड़ता है जिन्हें परामर्श करना नितान्त आवश्यक था। स्त्री बच्चों, समेत ही जिन्हें आना हो वे तपोभूमि में न ठहर कर मथुरा शहर की किसी धर्मशाला में अपनी व्यवस्था कर लें तभी कुछ बात बनेगी। सम्मिलित भोजन व्यवस्था का प्रबंध किया गया है पर जाने वालों को यह मानकर चलना चाहिए कि उन्हें अपने भोजन व्यय का भार स्वयं ही उठाना है। जो दस दिन में लगभग सात रुपया 7) पड़ेगा। आगन्तुकों को शिविर आरंभ होने से एक दिन पूर्व शाम तक मथुरा पहुँच जाना चाहिए। ताकि प्रत्येक शिविर में 24-24 हजार का जो अनुष्ठान करना है प्रातः काल उसके प्रारंभ संकल्प में भाग लेना भी संभव हो सके।

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