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Magazine - Year 1964 - Version 2

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First 19 21 Last
हमारे जीवन में नित्य प्रति उठ खड़ी होने वाली शिकायतें समस्यायें परेशानियाँ बहुत कुछ हमारी अपनी ही बनाई हुई होती है। गलत चिन्तन और अस्वस्थ मनोस्थिति ही हमारे सामने सुरक्षा की तरह मुँह बायें खड़ी समस्याओं, शिकायतों का प्रमुख कारण होती हैं। कभी-कभी हम एक ही विषय पर बहुत अधिक सोच-विचार करने लगते हैं जिससे जीवन के अन्य अंग अविकसित ही रह जाते हैं।

कभी-कभी हम भविष्य की कल्पित समस्याओं में इतने उलझ जाते हैं कि वर्तमान का सदुपयोग ही नहीं कर पाते। कभी-कभी हम अतीत की स्मृतियों में खो जाते हैं और अपने भाग्य को कोसा करते हैं। कभी जीवन में प्राप्त असफलताओं पर ही पश्चाताप करते बैठे रहते हैं। जीवन की उत्कृष्ट उपलब्धियाँ अपना मूल्य चाहती हैं किन्तु हम भय या शंकावश आगे पग नहीं बढ़ाते, फलस्वरूप जहाँ के तहाँ खड़े अपने दुर्भाग्य का रोना रोते रहते हैं। संक्षेप में अपनी असफलता, परेशानियों, उलझनों, भय, शंका, डर आदि के कारण हम स्वयं ही हैं। स्वस्थ मानसिक स्थिति और सही दृष्टिकोण अपना कर हम जीवन के अमूल्य वरदानों का लाभ प्राप्त कर सकते हैं, इसमें तनिक भी संदेह नहीं।

अधिकाँश लोगों को भविष्य की चिन्ता सताती रहती है। यह उचित भी है, भावी जीवन के बारे में सोच विचार करना दूरदर्शिता है। किन्तु भविष्य के बारे में इतना चिन्तित हो जाना जिससे वर्तमान की उपेक्षा होने लगे ठीक नहीं। भविष्य की कल्पना चाहे कितनी ही सुन्दर हो, उसके चिन्तन में वर्तमान की उपेक्षा और उसके प्रति असंतोष पैदा कर लेना, सफलता और सुख-शाँति का द्वार बंद कर लेना है। स्मरण रखिए वर्तमान के प्रति जागरुक और सचेष्ट रहकर ही आप भविष्य की मनोहर कल्पना को साकार कर पायेंगे। वर्तमान की कद्र कीजिए, उसका उपयोग कीजिए, भविष्य के निर्माण में वर्तमान को आधार बनाइये, एक दिन आप सचमुच अपने भविष्य का साकार दर्शन कर सकेंगे।

बहुत से व्यक्तियों को अपनी आशा अभिलाषाओं के पूर्ण न होने, अरमानों के टूट-फूट जाने की शिकायत रहती है। अपने सुनहले स्वप्न साकार न होने पर, जो सोचा था, वह पूरा न होने पर एक तरह का विषादयुक्त दुःख उनके जीवन में छाया रहता है। हमारे विचार, कल्पनायें, आशा अभिलाषायें, अरमान कितने सही हैं, यथार्थ की धरती पर उनका कितना मूल्य है, वे कितने महत्वपूर्ण और ठोस हैं, यह सोचना भी आवश्यक है। इस तरह विचार करने पर बहुत सी आकाँक्षाएं अनावश्यक और अनुपयुक्त निकलेंगी। शेखचिल्ली की सी कल्पनायें, आशायें यदि पूरी न हो तो इसमें किसी का क्या दोष।

कई बार मनुष्य की आशा, अभिलाषायें, आकाँक्षायें अन्तःप्रेरित न होकर भावावेश, किसी की अन्धाधुँध नकल या किसी कल्पित सुख की प्राप्ति के लोभ से प्रेरित होती हैं और इसीलिए वे पूरी न हो तो इसमें किसका दोष? उच्च आशायें, आकाँक्षायें रखना बुरा नहीं है किन्तु इसके लिए अपने आपको भी तौलना आवश्यक है। कोई भी लक्ष्य पूरा-पूरा मूल्य चुकाये बिना प्राप्त नहीं होगा। क्या अपने अपनी आशा अभिलाषा तथा आकाँक्षाओं के लिए उत्साह, साहस, श्रम, लगन के रूप में मूल्य चुकाया है? यह भी सोचना चाहिए।

किसी भी उत्कृष्ट लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मनुष्य को अनेकों बार असफलताओं के दौर से गुजरना पड़ता है। तब कहीं अन्त में सफलता के दर्शन होते हैं। किन्तु बहुत से लोग बीच में ही अपना साहस छोड़ बैठते हैं। प्रारंभ में प्राप्त कुछ असफलताओं से ही लोगों का धैर्य टूट जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में एक बार सफलता के क्षण अवश्य आते हैं किन्तु वे तभी जब मनुष्य सफलता-असफलता का ध्यान न रखकर अपने कर्तव्य पर डटा रहता है। कई व्यक्तियों को जीवनभर असफलताएं मिली किन्तु वे हारे नहीं और एक दिन असंख्यों असफलताओं के बाद जाकर कहीं सफलता के दर्शन हुए। आप अपनी कुछ असफलताओं के आधार पर ही जीवन का नाप−जोख न करें। अध्यवसाय धैर्य और लगन पूर्ण प्रबल एवं पुरुषार्थ जारी रखें तो सफलता मिलेगी ही।

जीवन को सुख, वर्चस्य, आनन्द से दूर रखने वाली एक दीवार है- अतीत का चिन्तन दरअसल मनुष्य के चिन्तन। का सहज आधार होती हैं अपनी कठिनाइयाँ। अतीत की दुःख घटनाएं मनुष्य के सुखी जीवन में भी दुःख, परेशानियों का संचार कर देती हैं। इससे जीवन की उर्वरता नष्ट होती है। शक्तियाँ पंगु हो जाती है जिससे भावी संभावनाएं भी दफन हो जाती हैं। उन्हें जहाँ का तहाँ गड़ा रहने दें। भूलना, गलती करना, ठोकरें खाना मानव-जीवन का अंग हैं। अतीत की स्मृतियों को सदा के लिए भूल जाइये।

अक्सर लोगों की शारीरिक शिकायतें भी बहुत रहा करती हैं। रुग्णता, शारीरिक असमर्थताएं बहुत से लोगों को परेशान करती हैं। किन्तु शारीरिक स्थिति भी बहुत कुछ मानसिक स्थिति पर निर्भर करती है। मनोविकृति से कई शारीरिक विकृतियाँ जन्म ले लेती हैं। यदि अपने मनोबल को बढ़ाया जाय तो अनेकों शारीरिक शिकायतें स्वतः दूर हो जाती है। कई कठिन रोगों में चिकित्सा आदि का सहारा भी लिया जा सकता है। फिर भी यदि मन स्वस्थ है तो बीमारी में भी प्रसन्नता, मस्ती, आनन्द मुक्त रहा जा सकता है। इतना ही नहीं इससे रोगमुक्त होने की बड़ी सहायता मिलती है। वस्तुतः काल्पनिक मानसिक बीमारियाँ अधिक होती हैं। वास्तविक बीमारी बहुत कम लोगों को ही होती है जिनमें से बहुत कुछ चिकित्सा से ठीक हो जाते हैं। ऐसे अनेकों व्यक्ति इसी धरती पर ही हुए हैं जिन्होंने अनेकों शारीरिक असमर्थताओं के रहते हुए भी जीवन में महान सफलतायें अर्जित की। मानव जीवन विश्व प्रकृति का एक खेल है, आत्मा का एक स्फुरण है, आनन्द, प्रसन्नता, मस्ती जिसका स्वभाव है। परेशानी, क्लेश, असंतोष, शिकायतें हमारे अपने ही प्रयत्नों के फलस्वरूप हैं। जीवन की भयावनी विषादपूर्ण तस्वीर हम अपने ही विचार, दृष्टिकोण और आचरणों से बनाते हैं।

जीवन अनेकाँगी है। सभी दिशाओं में जीवन को उन्मुक्त होकर विकसित होने दीजिए। किसी एक ही बात पर सम्पूर्ण जीवन को उड़ेल न दें, अन्यथा अन्य क्षेत्रों में असफलता एवं निराशा का सामना करना पड़ेगा। मन पर नियंत्रण रखें। हर समय अनेक विषयों पर न सोचें। वरन् जिस समय जो कार्यक्रम सामने हो उसी के बारे में सोचें, उसे ही करें। व्यापार करते समय व्यापार की बातें सोचे। घर में पहुँच कर परिवार की। यदि आप राजनीति के समय व्यापार की, व्यापार के समय गृहस्थ की चिन्ताओं में ग्रस्त रहेंगे तो कोई भी कार्य अच्छी तरह न करेंगे। सोते समय अणु युद्ध और हानि लाभ की बातों पर सोचेंगे तो आपकी नींद ही हराम हो जायेगी।

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