
माँ की लोरी (Kavita)
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नहीं छोड़ना पंथ सत्य का, कितना ही व्याघात हो,
करना ऐसा श्रम, अवनी पर, जिससे पुण्य-प्रभात हो!
:: 1 ::
धुल भरे हीरे उपवन के सुरभित सुमन ललामि तुम!
राम-कृष्ण-ईसा-पैगम्बर के शुचि गौ धाम तुम!!
ध्रुव अभिमन्यु-हकीकत-रु-रात भरत और बलराम तुम!
बाल ब्रह्मचारी शाँतनु-सुत पक्ष-पूत अभिराम तुम!!
जगहित गरल पान करते तुम, अशिव भयंकर गात हो!
आदि काल से ज्ञान-प्रेम के अक्षय अमर प्रपात हो!!
:: 2 ::
काश्मीर-कैलाश-हिमालय की गोदी के लाल तुम!
मानसरोवर पुण्य-झील के मृदुल प्रशाँत मराल तुम!!
तुम माँ के सुहाग की बिन्दी, शिव-ताण्डव की ताल तुम!
जिओ धरणि से क्षमाशील वन, लेकर हृदय विशाल तुम!!
तुम स्वतंत्रता के नव-प्रहरी, निभय शिशु नवजात हो!
कर्णधार भारत नौका के तुम माँ की सौगात हो!!
:: 3 ::
देश-भक्ति की बलिवेदों पर रखना पहले भाल तुम!
तिमिर ग्रस्त जो, उन्हें उठाना, बन किरणों का जाल तुम!!
ओ मेरी भावी आशाओं, बनो देश की ढाल तुम!
अगर शत्रु आए, बन जाना महाभयंकर काल तुम!!
विश्व-सरोवर में विकसित तुम, सुभग शाँति जलजात हो!
प्रखर भानु भी तुम्हीं, गगन में खिले इन्दु अवदात हो!!
-रामस्वरूप खरे
*समाप्त*