• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • शास्त्र मन्थन का नवनीत
    • ईश्वर विश्वास किसी का निष्फल न गया
    • कर्मों का फल ईश्वर के अर्पण कीजिए
    • सदा शुभ ही सोचिये, अशुभ नहीं!
    • मानवता-हमारी बहुमूल्य विरासत
    • प्रियदर्शी सम्राट अशोक
    • साधना से शक्ति का अवतरण
    • मनुष्य जीवन का सत्य-हास्य
    • निराश मत हूजिए अन्यथा सब कुछ खो बैठेंगे
    • सच्चे संत- श्री तुकाराम जी
    • Quotation
    • Quotation
    • स्वातन्त्र्य सिंहनी—श्रीमती सरोजनी नायडू
    • Quotation
    • दाम्पत्य जीवन की सफलता के रहस्य
    • जीवन इस तरह जिएं
    • कण-कण जोरे मन जुरै
    • दार्शनिकता को सार्थक बनाने वाले कन्फ्यूशियस
    • महापुरुषों के विचार-बिन्दु
    • युग-निर्माण आन्दोलन प्रगति
    • देश, धर्म, समाज और संस्कृति के लिए भी कुछ करें
    • हम यह करने को कटिबद्ध हों।
    • अपनों से अपनी किन्तु आवश्यक बातें
    • संस्कारों और पर्वों की प्रथक्-प्रथक् पुस्तकें
    • घर-घर में युग-निर्माण पुस्तकालय स्थापित हों!
    • गायत्री महाविद्या के अमूल्य ग्रन्थ रत्न
    • उद्बोधन-राष्ट्र के लिये
    • उद्बोधन-राष्ट्र के लिये (Kavita)
    • ईश्वर का महान उपहार व्यर्थ न चला जाय।
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • शास्त्र मन्थन का नवनीत
    • ईश्वर विश्वास किसी का निष्फल न गया
    • कर्मों का फल ईश्वर के अर्पण कीजिए
    • सदा शुभ ही सोचिये, अशुभ नहीं!
    • मानवता-हमारी बहुमूल्य विरासत
    • प्रियदर्शी सम्राट अशोक
    • साधना से शक्ति का अवतरण
    • मनुष्य जीवन का सत्य-हास्य
    • निराश मत हूजिए अन्यथा सब कुछ खो बैठेंगे
    • सच्चे संत- श्री तुकाराम जी
    • Quotation
    • Quotation
    • स्वातन्त्र्य सिंहनी—श्रीमती सरोजनी नायडू
    • Quotation
    • दाम्पत्य जीवन की सफलता के रहस्य
    • जीवन इस तरह जिएं
    • कण-कण जोरे मन जुरै
    • दार्शनिकता को सार्थक बनाने वाले कन्फ्यूशियस
    • महापुरुषों के विचार-बिन्दु
    • युग-निर्माण आन्दोलन प्रगति
    • देश, धर्म, समाज और संस्कृति के लिए भी कुछ करें
    • हम यह करने को कटिबद्ध हों।
    • अपनों से अपनी किन्तु आवश्यक बातें
    • संस्कारों और पर्वों की प्रथक्-प्रथक् पुस्तकें
    • घर-घर में युग-निर्माण पुस्तकालय स्थापित हों!
    • गायत्री महाविद्या के अमूल्य ग्रन्थ रत्न
    • उद्बोधन-राष्ट्र के लिये
    • उद्बोधन-राष्ट्र के लिये (Kavita)
    • ईश्वर का महान उपहार व्यर्थ न चला जाय।
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1965 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


स्वातन्त्र्य सिंहनी—श्रीमती सरोजनी नायडू

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 12 14 Last
“ओ मृत्यु ! जब तक मेरी पूर्ण परितृप्त नहीं होती, जब तक मेरे प्यार की पीड़ा शान्त नहीं होती, ठहर, में अभी मर नहीं सकती।”

“ओ मृत्यु ! जरा ठहर, अभी में नहीं मर सकती, जब कि जीवन का माधुर्य स्त्रोत मेरे भीतर उफना पड़ रहा है, मेरा यौवन भरपूर है और हरी-भरी डाल पर मेरा मन उछल-कूद मचा रहा है”:-

यह भारत-कोकिला- ‘श्रीमती सरोजनी नायडू’ की एक अंग्रेजी कविता का भावानुवाद है, जिससे उनके भरपूर कवि हृदय का पूर्ण परिचय मिलता है। उपर्युक्त पंक्तियों को पढ़ कर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि इनकी निर्मात्री ‘सरोजनी’ का हृदय कितना कोमल, भावनायें कितनी प्रेमपूर्ण और जीवन के प्रति कामनायें कितनी ममतामयी हैं। ऐसी कोमल भावना वाली सरोजनी के जब सम्पूर्ण जीवन पर दृष्टिपात किया जाता है, तब पता चलता है कि उनके कवि-जीवन की आयु सिपाही जीवन की अपेक्षा बहुत कम है।

श्रीमती सरोजनी नायडू का जीवन अपने दो सीमान्तों को छूता हुआ परस्पर विरोधी दिशाओं में बहता हुआ दीखता है। एक ओर कोमल भावनापूर्ण कवि और दूसरी ओर कठोर अनुशासन का समर्थक सेनानी। एक ओर कुसुम और दूसरी ओर काँटे।

अभी सरोजनी की आयु लगभग नौ वर्ष की ही थी, एक दिन एक प्रसंग पर अंग्रेजी न बोल पाने से बड़ी लज्जित हुईं। स्वाभिमान की धनी उस नौ वर्ष की अबोध बालिका पर इस ग्लानि की बड़ी सृजनात्मक प्रतिक्रिया हुई। उसके बाल हृदय ने शीघ्र ही अंग्रेजी सीखने का संकल्प कर लिया। क्या बालक और क्या वृद्ध, कोई क्यों न हो, यदि किसी कार्य को करने का संकल्प हृदय से कर लेता है, तो उसके बल पर असम्भव को भी सम्भव कर दिखाता है। संकल्प में एक अपनी शक्ति होती है, जो मनुष्य में आत्म-विश्वास के साथ उत्साह का स्फुरण कर उसको रचनात्मक दिशा में प्रेरित कर देती है।

बालिका सरोजनी ने पूरे तन-मन से अंग्रेजी सीखने का प्रयत्न प्रारम्भ कर दिया। परिश्रमपूर्ण प्रयत्न का एक ही परिणाम होता है और वह है- “सफलता!” निदान केवल दो वर्ष के तपोपूर्ण परिश्रम ने सरोजनी के संकल्प की अतिपूर्ति कर दी। वह न केवल अंग्रेजी बोलने और समझने लगी, बल्कि उसमें कविता भी लिखने लगी।

निःसन्देह यह एक विस्मयकारक चमत्कार ही मालूम होता है कि जो नौ वर्ष की बालिका अंग्रेजी का एक शब्द नहीं बोल पाती थी, वह ग्यारह वर्ष की आयु में पहुँचते-पहुँचते अंग्रेजी में कविता करने लगी। किन्तु इस घटना को वे ही चमत्कार मान सकते हैं और वे ही विस्मय कर सकते हैं, जो संकल्पपूर्ण पुरुषार्थ की शक्ति से अनभिज्ञ हैं। एकाग्रता, एक निष्ठा तथा एक ध्येयता में वह अतुलनीय शक्ति है, जिसके बल पर भाषा की उपलब्धि तो क्या आकाश के तारे भूमि पर लाये जा सकते थे। बालिका सरोजनी में इन गुणों की कमी न थी। यह उसकी पैतृक सम्पत्ति थी।

सरोजनी के पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय, न केवल लगनशील थे, बल्कि एक अध्यवसायी व्यक्ति भी थे। वे एक क्षण कभी बेकार न बैठते थे और न कभी निरर्थक अथवा निरुपयोगी श्रम करते थे। उनकी बेटी सरोजनी ने अपने पिता के इस गुण का अनुकरण कर चरितार्थ कर दिखाया कि वह वास्तव में एक महान् अध्यवसायी पिता की पुरुषार्थिनी पुत्री है।

एक बार फलीभूत पुरुषार्थ हजार सफलताओं को अपने पीछे लिये रहता है। एक बार का जगाया हुआ आत्म-विश्वास एक सच्चे साथी की तरह जीवन-भर साथ देता है।

प्राण-पण से लगकर अपने प्रथम संकल्प में कृतकृत्य होने से सरोजनी का उत्साह सौ-गुना बढ़ गया और बारह वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा पास करली। विद्याध्ययन के साथ ही उन्होंने अपनी कवि-कला को भी निरन्तर परिष्कृत एवं विकसित किया, जिसके फलस्वरूप वे तेरह वर्ष की अवस्था में पहुँचते-पहुँचते ‘लेडी ऑफ द लेक’ नामक एक खण्ड काव्य तथा लगभग दो हजार पंक्तियों के एक धारावाहिक नाटक की रचना कर सकीं।

सरोजनी की विद्या-विदग्धता को देखकर नवाब हैदराबाद ने उनके पिता से उन्हें विद्याध्ययन के लिए विदेश भेजने का अनुरोध किया और उसके लिए लगभग बयालीस हजार रुपये प्रति वर्ष छात्र-वृत्ति देने का भी वचन दिया।

निरन्तर अभ्यास एवं अध्यवसाय की शिला पर चमकाई हुई प्रतिभा की चमक होती ही कुछ इतनी आकर्षक है कि उसकी ओर बड़े से बड़े व्यक्ति का ध्यान आकर्षित होते देर नहीं लगती। भला निजाम-हैदराबाद अपनी भूमि के इस रत्न की प्रतिभा का प्रकाश विदेशों में बिखरवा कर लगे हाथ श्रेय लेने में क्यों चूक जाते? गुणों का सर्वत्र आदर होना सहज स्वाभाविक ही है। आत्म-विश्वास, आत्म-बल एवं अध्यवसाय के कृत्यों पर खिले सरोजनी के प्रतिभा-प्रसून संसार में सुगन्ध बिखेरते ही, फिर बुद्धिमान् नवाब ही अपने योगदान द्वारा उनकी उन्नति एवं विकास के इतिहास में अपना नाम क्यों न लिखा लेते? निजाम की आर्थिक सहायता से सरोजनी की प्रतिभा कृतार्थ ही न हुई, बल्कि छात्र-वृत्ति की धन-राशि भी सार्थक हो गई।

लन्दन में सरोजनी ने किंग्स कॉलेज और कैम्ब्रिज के गिर्टन कॉलेज को अपनी विलक्षण बुद्धि और विलक्षण प्रतिभा से चकाचौंध कर दिया। अपने प्रवास काल में सरोजनी इटली भी गई। जहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य ने उनके कवि-हृदय को इस सीमा तक प्रोत्साहित किया कि उन्होंने वहाँ पर अनेक काव्य संग्रहों की रचना की, जिसके प्रकाशन ने उन्हें शीघ्र ही ख्यातिनामा बना दिया।

विद्याध्ययन के पश्चात् भारत लौटने पर उन्होंने गृहस्थ-जीवन में प्रवेश किया। किन्तु कल्पना-लोक की उस विहंगिनी को घर की एक संकुचित सीमा में रहकर अपनी प्रखर प्रतिभा को निरुपयोगी बनाते अच्छा न लगा और वे पति की अनुमति से देश-सेवा के क्षेत्र में निकल पड़ीं।

श्रीमती सरोजनी नायडू की एक कवित्य-शक्ति ही इतनी पर्याप्त थी कि जिसके बल पर वे सहज ही विश्व-ख्याति प्राप्त कर सकती थीं। किन्तु उनके सत्य-परायण हृदय को यह स्वीकार न हो सका कि जहाँ एक ओर युग की पुकार- देश की प्रत्येक प्रतिभा एवं योग्यता को स्वतन्त्रता-संग्राम की ओर संकेत कर रही हो, वहाँ दूसरी ओर वे कल्पना-लोक में विचरण करती हुई काव्यानन्द में डूबी रहें। कर्तव्य की पुकार भावना से अधिक महत्वपूर्ण होती है।

निदान सन् 1915 के लगभग वे श्री गोपालकृष्ण गोखले के नेतृत्व में कार्य करती रहीं और कांग्रेस में सम्मिलित होकर देश-सेवा का सक्रिय कार्य करने लगीं। किसी भी कर्मठ एवं लगनशील व्यक्ति को किसी भी स्थान पर ऊपर उभरते देर नहीं लगती। शीघ्र ही वे काँग्रेस की एक प्रतिभाशालिनी नेता बन गई और सम्पूर्ण भारत का भ्रमण करती हुई अपने भाषणों, वक्तव्यों एवं प्रवचनों द्वारा युग-याचना को पूरा करने के लिये जन-जागरण का पुण्य प्रयास करने लगीं। अपने कर्तव्य की पूर्ति में निरत काव्यकुँज की उन कोकिला को अब यह भी पता न चलता कि कब दिन निकला, कब संध्या हुई और कब रात ढली! अब श्रीमती सरोजनी नायडू एक भावुक कवियित्री ही नहीं, बल्कि कर्मठ सेनानी भी थीं। उनके कंठ में मधु-मधुपों की गुँजार का स्थान बलिदानपूर्ण ललकार ने ले लिया।

अत्यधिक कार्य भार से उनका स्वास्थ्य गिर गया, जिसके सुधार के लिए वे लन्दन गई। सन् 1919 में जिस समय वे लन्दन में रोग-शय्या पर थीं, भारत में जलियावाला काण्ड हुआ, इसका समाचार पाकर उनका करुण हृदय बुरी तरह आहत हो उठा। अपनी पीड़ा भूल कर भारत के निर्दोष स्त्री बच्चों पर हुए अत्याचार के विरुद्ध विदेश में भी खड़ी हो गई। उन्होंने वहाँ भी एक ऐसा आन्दोलन मचाया कि लन्दन-सरकार तक भयभीत हो उठी। जिसके हृदय में पर-पीड़ा की अनुभूति है, जो अपना अणु-अणु अन्यों की सेवा में समर्पित कर चुका है, उसे अपनी पीड़ा देखने और अपनी परवाह करने का अवकाश ही कब रहता है। अन्यायपूर्ण अत्याचार से उन्हें इतनी पीड़ा हुई कि डाक्टरों ने उन्हें हृदय-रोगी घोषित कर दिया और परामर्श दिया कि कुछ समय तक निरन्तर निष्क्रिय रहकर आराम करें। डॉक्टर की बात सुन कर श्रीमती सरोजनी नायडू को हँसी आ गई। उन्होंने कहा “डॉक्टर! निष्क्रिय आराम का परामर्श देकर आप एक प्रकार से मुझे मृत्यु की राय दे रहे हैं। जिसके सम्मुख एक उत्तरदायित्वपूर्ण व्यापक कर्तव्य क्षेत्र पड़ी हो, भला वह बेकार बैठ कर आराम कैसे कर सकता है? मुझे सुख-शाँति तब तक नहीं मिल सकती, जब तक मैं भारत की करुण कहानी सुना कर सारे संसार का हृदय न हिला दूँ।”

श्रीमती नायडू के उदात्त गुणों, उसकी कर्तव्यनिष्ठा और कार्य तत्परता ने शीघ्र ही उन्हें काँग्रेस के चोटी के नेताओं में स्थान दिला दिया। सन् 1924 में वे काँग्रेस की प्रतिनिधि बना कर दक्षिण अफ्रीका भेजी गई। सन् 1926 में कानपुर कांग्रेस की अध्यक्ष बनाई गई और सन् 1928 में अमेरिका तथा कनाडा में भारतीय दृष्टिकोण की प्रचार प्रतिनिधि बनाई गई।

इस प्रकार आत्मानन्द में निमग्न रहने वाली श्रीमती नायडू ने युग की पुकार पर एक सुख-सुविधापूर्ण जीवन त्याग कर कर्तव्य का कंटकाकीर्ण-पथ अपनाया और यह सिद्ध कर दिखाया कि मनुष्य की प्रतिभा को किसी भी दिशा में क्यों न लगा दिया जाय वह अपना चमत्कार दिखाये बिना नहीं रहती।

सन् 1942 में जिस समय महात्मा गाँधी गिरफ्तार कर लिये गये तथा श्रीमती सरोजनी नायडू ने आन्दोलन की बागडोर संभाली और जनता को एक साहसपूर्ण सफल नेतृत्व प्रदान किया। मनुष्य की शक्ति अनन्त है, उसकी सामर्थ्य अपरिमित है। जो सच्चा कर्मयोगी है और जिसने कर्मों के दर्पण में ही कर्मों का सौंदर्य देख लिया है, उसके सामने कितना ही कठिन, कितना ही महान् और कितना ही अधिक काम क्यों न आ जाये, वह कभी विचलित नहीं होता। आत्म-विश्वास, उत्साह और आत्म-बल ऐसे सिद्ध मन्त्र हैं कि जो भी इनका आश्रय ग्रहण कर लेता है, वह एक कर्मठ कर्मयोगी बने बिना नहीं रहता।

सन् 1942 के बाद सन् 1947 में जब भारत स्वतन्त्र हुआ, श्रीमती सरोजनी नायडू को उत्तर-प्रदेश का शासन भार सौंपा गया, जिसको उन्होंने गवर्नर के रूप में दक्षतापूर्वक कर दिखाया। श्रीमती सरोजनी नायडू स्वतन्त्र भारत की सर्वश्रेष्ठ शासिका मानी जाती हैं। श्रीमती सरोजनी नायडू एक साथ ही कवि, कर्मयोगी, प्रशासिका, गृहणी और कूटनीतिज्ञ थीं। उन्हें अपने नारीत्व पर बड़ा गर्व था। वह कहा करती थीं- “मैं भारत की उस महान् नारी जाति की वंशज हूँ, जिसकी माताओं के समक्ष गीता की पवित्रता, सावित्री के साहस और दमयन्ती के आत्म-विश्वास का आदर्श है।”

First 12 14 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • शास्त्र मन्थन का नवनीत
  • ईश्वर विश्वास किसी का निष्फल न गया
  • कर्मों का फल ईश्वर के अर्पण कीजिए
  • सदा शुभ ही सोचिये, अशुभ नहीं!
  • मानवता-हमारी बहुमूल्य विरासत
  • प्रियदर्शी सम्राट अशोक
  • साधना से शक्ति का अवतरण
  • मनुष्य जीवन का सत्य-हास्य
  • निराश मत हूजिए अन्यथा सब कुछ खो बैठेंगे
  • सच्चे संत- श्री तुकाराम जी
  • Quotation
  • Quotation
  • स्वातन्त्र्य सिंहनी—श्रीमती सरोजनी नायडू
  • Quotation
  • दाम्पत्य जीवन की सफलता के रहस्य
  • जीवन इस तरह जिएं
  • कण-कण जोरे मन जुरै
  • दार्शनिकता को सार्थक बनाने वाले कन्फ्यूशियस
  • महापुरुषों के विचार-बिन्दु
  • युग-निर्माण आन्दोलन प्रगति
  • देश, धर्म, समाज और संस्कृति के लिए भी कुछ करें
  • हम यह करने को कटिबद्ध हों।
  • अपनों से अपनी किन्तु आवश्यक बातें
  • संस्कारों और पर्वों की प्रथक्-प्रथक् पुस्तकें
  • घर-घर में युग-निर्माण पुस्तकालय स्थापित हों!
  • गायत्री महाविद्या के अमूल्य ग्रन्थ रत्न
  • उद्बोधन-राष्ट्र के लिये
  • उद्बोधन-राष्ट्र के लिये (Kavita)
  • ईश्वर का महान उपहार व्यर्थ न चला जाय।
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj