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Magazine - Year 1965 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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कण-कण जोरे मन जुरै

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उपयोगी वस्तुओं का एक-एक टुकड़ा जोड़कर रखने से कुछ दिन में उसकी इतनी बड़ी मात्रा इकट्ठी हो जाती है, जिससे कोई बड़ी आय पैदा की जा सकती है या किसी कार-रोजगार के लिये सामग्री बनाई जा सकती है। छोटी-छोटी वस्तुयें बेकार समझ कर फेंक दी जाती हैं, पर यदि उन्हें हिफाजत से रखा जाय तो उन्हीं वस्तुओं से बड़ा लाभ निकल सकता है।

गृहस्थ जीवन में यह प्रयोग बड़े लाभ की वस्तु हैं। इससे बड़े आयोजनों में काम आने योग्य पूँजी इकट्ठी की जा सकती है या ऐसी वस्तुयें इकट्ठी की जा सकती हैं, जिनसे ‘फुरसत की आजीविका’ चलाई जा सकती है। कण-कण का जोड़ एक मन हो जाता है। एक-एक सींक जोड़कर बुहारी बन जाती है। जिन्हें यह विद्या आ जाय, वे धन के लिये परेशान नहीं हो सकते और उनकी हर टूटी-फूटी वस्तु का भी उपयोग हो जाता है।

घर में ऐसी सन्दूक रखिये, जिसके ऊपर दस नये पैसे का सिक्का डालने भर की जगह हो। उसमें मजबूत ताला लगा कर, चाहें तो उसे सील भी करके रख दें और प्रतिदिन अपनी आय से 10 नये पैसे का एक सिक्का निकाल कर उसमें डाल दिया करें। 10 नये पैसे का कोई बड़ा महत्व नहीं है, इससे आपके दैनिक खर्चे में कोई परेशानी नहीं आ सकती।

एक महीने में इस सन्दूक में 30 × 10 = 300 पैसे अर्थात् 3 हो जाते हैं, एक वर्ष में यह रकम 3 × 12 = 36 हो जाती है। मान लीजिये आपकी आयु अभी 15 वर्ष है। तीस वर्ष की आयु में आपके परिवार का भार आप पर आ जाता है, उस समय आपको किसी रोजगार के लिए पूँजी की जरूरत पड़ती है तो आपको औरों के आगे हाथ पसारने की जरूरत न पड़ेगी। 15 वर्ष की जमा बचत 36 × 15 = 540 होगी, जो एक साधारण व्यवसाय के लिये पर्याप्त रकम होगी। यदि इस बचत को हर महीने सरकारी बचत योजना के अनुसार जमा कराया जाता रहता तो यही रकम ड्योढ़ी दूनी हो जाती है।

बेटी की शादी या बच्चे की पढ़ाई, किसी बीमारी या कोई आवश्यक वस्तु खरीदने में भी इस रकम का सदुपयोग हो सकता है। अचानक इतनी रकम की आवश्यकता पड़ जाती और आपके पास बचत न होती तो आप औरों के कर्जदार हो गये होते। पर आपकी कण-कण जोड़ने की आदत ने आपका कितना हित साधा, कितना बड़ा काम निकाला।

धन जोड़ने के सम्बन्ध में ही यह बात लागू नहीं होती आप हर क्षेत्र में इससे लाभ उठा सकते हैं।

साबरमती आश्रम में बापू जी के निर्देशानुसार दातौन का ऊपर का कुचला हुआ भाग तो काट कर फेंक दिया जाता था और नीचे के भाग को धोकर रख लिया जाता था। एक महीने में यह लकड़ियाँ इतनी हो जाती थीं जितने से एक महीने तक आग जलाने का काम किया जाता था। आप चाहें तो एक-एक लकड़ी का टुकड़ा इकट्ठा कर अपनी धर्मपत्नी को चूल्हा जलाने की सुविधा बढ़ा सकते हैं।

आपके घर कोई पत्रिका आती है या कोई अखबार आता है। उसे पढ़कर यों ही न फेंक दिया करें। कृपया उसे किसी अलमारी में सुरक्षित रख दिया करें। एक महीने में जितने कागज इकट्ठे हो जायें उन्हें एक दिन बैठकर छोटे बड़े लिफाफे बनाकर अपने पंसारी को बेच दिया करें। इससे उन अखबारों की कीमत भी वसूल हो जाती है और इतने दिन के संचय का कुछ न कुछ लाभ भी मिल जाता है।

एक दरी खरीदने में दस रुपये लगते हैं। घर की आय इतनी नहीं होती कि सब के लिए दरी की व्यवस्था हो सके। आपकी धोतियाँ पुरानी होकर फट जाती हैं, इन्हें फेंकें नहीं। धोती को धुलाकर रखते चलें। दो-चार धोतियाँ इकट्ठी हो जायें तो उन सबको मिलाकर बच्चों के बिछाने लायक ‘दसौने’ तैयार किये जा सकते हैं और एक दरी की कीमत 10 रुपये बचाई जा सकती है।

घर में शीशे की बोतलें, बल्ब आदि टूटते रहते हैं, बहुत-सा लोहे का सामान रद्दी हो जाता है। उसे फेंककर दूसरों की मुसीबत बढ़ाने की बजाय आप किसी सुरक्षित स्थान पर रखते रहिये और जब उसकी मात्रा 4-5 सेर हो जाय तो किसी रद्दी सामान खरीदने वाले को बेच कर पैसे वसूल कर सकते हैं। गाँवों के किसान रस्सियों के टुकड़े इकट्ठे करते रहते हैं। कुछ दिन में फेरी वाले आकर उसे खरीद ले जाते हैं। यह बेकार रस्सियाँ कागज बनाने के काम आ जाती है बाजार में इनकी कीमत 20 रुपये-से लेकर 30 रुपये- मन तक की होती है। गाँव के चतुर व्यक्ति फुरसत के समय औरों की रस्सियाँ खरीद कर अच्छी कमाई कर लेते हैं।

दरवाजे के सामने लोग नीम के पेड़ रखते हैं। उनकी निबौलियाँ गिरकर यों ही बरबाद हो जाती हैं। इन्हें इकट्ठा कर घूरे में डालकर खाद बनाई जा सकती है या उन निबोलियों को इकट्ठा कर उनसे तेल निकाला जा सकता है। मच्छरों से बचने और त्वचा की बीमारियों में यह तेल बड़ा लाभदायक सिद्ध होता है। इससे दवा के पैसे बचते हैं।

आपके घर में आटे को छानकर रोटियाँ बनती हैं। चोकर निकाल कर बाहर फेंक दिया जाता है। अब इसे सुरक्षित रखा करिये और हर पंद्रहवें दिन उसे पानी में घोलकर छान लिया कीजिये। चोकर में जो आटा होगा वह पानी में घुल जायगा। इसमें गुड़ या चीनी मिलाकर आग पर चढ़ा दीजिये। आपके परिवार के लिये एक समय का स्वादिष्ट आहार निकल आयेगा। महीने में दो दिन भी इस तरह करें तो प्रति माह 5 या 10 रुपये के अन्न की बचत कर सकते हैं।

घर में पत्तेदार सब्जियाँ आती है, तो उनके पत्ते तोड़कर फेंक दिये जाते हैं। मूली, शलजम, फूलगोभी आदि के पत्तों में विटामिन की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है। सब्जी के साथ इन पत्तों को भी काटकर पका लिया करें, जिससे कम पैसे की सब्जी से काम चल जाता है और उससे शरीर को भी लाभ मिलता है।

घर के आस-पास कुछ न कुछ बेकार जगह प्रायः सब घरों में होती है। उसे गोड़कर छोटी-छोटी क्यारियाँ बना लेनी चाहिये। बरसात के दिनों में उन स्थानों में फूलों तथा सब्जियों के बीज डाल देने चाहिये। यह कार्य घर के बच्चे बड़ी रुचिपूर्वक करते हैं। पौधों की देख-रेख निकाई, गोड़ाई तथा पानी देने का काम उन्हें ही सौंप देना चाहिये। अच्छी तरह देखभाल की जाय तो इस तरह 4 महीने तक सब्जी प्राप्त की जा सकती है। फूल बारहमासी भी हो सकते हैं। उनसे पूजन का भी काम हो सकता है और घर के आस-पास का वातावरण भी सुन्दर और खुशबूदार होता है।

“तुलसी के अमृतोपम गुण” पुस्तक उठाइये। आप देखेंगे कि उसमें बहुत ही कम खर्च में बन जाने वाली उपयोगी औषधियाँ दी हुई हैं। इन औषधियों को बनाकर छोटी-छोटी शीशियों में रखकर उनमें नाम लिखकर रख लीजिये और कम पैसे में लोगों को दिया कीजिये। इससे लोगों की भलाई भी होगी और आपके समय का आर्थिक उपयोग भी हो जायेगा।

जगह हो तो तुलसी के पौधे अपने घर के आस-पास ही बड़ी मात्रा में उगाये जा सकते हैं। जगह न हो तो उन्हें गमलों में भी लगाया जा सकता है। तुलसी के पौधों की तरह नींबू, पपीते, आम, जामुन आदि के बाग भी लगाये जा सकते हैं।

बबूल की छाल या बादाम के छिलके जलाकर उससे अच्छा दन्त-मंजन बनाकर रखा जा सकता है।

कुछ पढ़े-लिखे लोग स्कूल या नौकरियों से लौटकर घर में साबुन बनाने, रेडियो असेम्बुल करने, घड़ी सुधारने आदि की कला भी सीख कर उसका लाभ उठा सकते हैं।

आपके यह छोटे-छोटे साधन परिवार के प्रत्येक व्यक्तियों की रुचि में सम्मिलित हो जायँ तो उससे आर्थिक जीवन की अनेक कठिनाइयाँ हल हो सकती हैं। ऐसा करना कुछ बुरा नहीं होता। उससे समय की बचत का उपयोग भी हो जाता है तो बेकारी की समस्या का हल भी निकल आता है।

छोटी-छोटी वस्तुओं का संग्रह और उनसे लाभ उठाना एक अच्छी आदत है। इससे मनुष्य की रचनात्मक वृद्धि का विकास होता है और धन की परेशानी दूर होती है। छोटी-छोटी बातें एक बड़ी व्यवस्था का निर्माण करती हैं। छोटी-छोटी आय से एक बड़ी आय बन जाती है और उससे बड़े-बड़े काम तक सध जाते हैं।

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