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Magazine - Year 1965 - Version 2

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(1) अगले दिनों लोक-नेतृत्व की जिम्मेदारी धार्मिक एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं के कन्धों पर आने वाली है। इसलिए ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्तित्वों की आवश्यकता पड़ेगी, जो अपनी भाषण शैली एवं संगठनात्मक क्षमता से राष्ट्र को नव-जीवन प्रदान कर सकें। ऐसे व्यक्तियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था गायत्री तपोभूमि में की गई है। संगीत द्वारा भजनोपदेश, भाषणों द्वारा कथा, प्रवचन तथा विभिन्न छोटे-बड़े धार्मिक समारोहों का आयोजन करने सम्बन्धी तथा सिखाने की व्यवस्था हो रही है। उस शिक्षण से तत्काल नौकरी तो नहीं मिलेगी, पर व्यक्तित्व का इतना निखार अवश्य होगा कि उस शिक्षण को ठीक तरह प्राप्त कर सकने वाला प्रकाशवान् नक्षत्र की तरह चमक सके।

इन दिनों हम सुरक्षा कार्यों में बहुत अधिक व्यस्त हैं, पर कुछ ही दिनों में उधर से थोड़ा अवकाश मिल जायगा, तब हमारा प्रमुख कार्य इस प्रकार का प्रशिक्षण ही होगा। इस शिक्षा के लिये केवल प्रतिभावान् व्यक्ति ही चाहिये। जिनके व्यक्तित्व इसके लिये उपयुक्त नहीं, उन्हें व्यर्थ कष्ट नहीं उठाना चाहिये। जो अपने को इस शिक्षा के लिये उपयुक्त समझते हैं, जिनके पास छः महीने का अवकाश हो, वे हमसे पत्र व्यवहार कर लें। इस पत्र व्यवहार से जिन्हें उपयुक्त समझा जाएगा, केवल उन्हीं को आने के लिये कहा जायगा। यह शिक्षा संगठन बसन्त पंचमी से आरम्भ होगा, पर इसके लिये नाम नोट पहले से ही हो जाने चाहिये। जो अपने को उपयुक्त समझे वे पत्र व्यवहार कर लें।

(2) सुरक्षा कार्यों के लिये शाखाएं अलग से प्रयत्न करें इस तरह जो प्रयत्न जहाँ चल रहे हों, उन्हीं में सम्मिलित होकर धन, रक्त आदि देने का योगदान दें। अलग अलग प्रयत्न करने से सामूहिक प्रयत्न बिखरते और कमजोर होते हैं। इसलिये सभी लोग, सभी संस्थाएं मिल कर इस दिशा में हर जगह काम करें। अपने कार्यों की सूचना एवं जानकारी शाखाएं हमारे पास भेजती रहें, जिससे यह पता चलता रहे कि जितना योगदान हमारे परिवार को करना था, उसमें क्या न्यूनाधिकता है।

(3) जिन परिजनों ने एक घण्टा समय और एक आना नित्य नव-निर्माण के लिए लगाने का संकल्प किया है, उन्हें स्थानीय लोगों से जन-संपर्क में अपना समय लगाते रहना चाहिये और एक आना से वे ट्रैक्ट अपने यहाँ मँगा लेने चाहिये, जो विचार क्रान्ति का प्रयोजन पूरा करने के लिये लगातार छप रहे हैं। एक आना नित्य का पैसा केवल अपने इन अत्यन्त उपयोगी और प्रेरणाप्रद ट्रैक्टों द्वारा विनिर्मित घरेलू पुस्तकालय के लिये ही होना चाहिये। उसे अन्य किसी कार्य में खर्च नहीं करना चाहिये। अब तक जो ट्रैक्ट छप चुके हैं, उनकी सूची इसी अंक में है। उन्हें पेशगी पैसा भेजकर बुक-पोस्ट से मँगा लेना चाहिये। रजिस्ट्री या वी0पी0 में एक रुपया अधिक लग जाता है।

(4) अखण्ड ज्योति का चन्दा अधिकाँश सदस्यों का इस अंक के साथ समाप्त हो जाता है। उन्हें मनीआर्डर द्वारा इसी महीने भेज देना चाहिये। जिनका चन्दा बीच के किसी महीने में समाप्त होता हो, उन्हें भी शेष महीनों का चन्दा भेजकर अपना हिसाब जनवरी से दिसम्बर तक का कर लेना चाहिए। जिन्हें ग्राहक न रहना हो, वे कृपा कर एक कार्ड इन्कारी का अवश्य डाल दें। न चन्दा भेजने और न कुछ सूचना देने से उलझन एवं अपव्ययता बढ़ती है। इसलिये पाठकों से पुनः पुनः अनुरोध है कि वे ग्राहक रहें, तो आलस्य में समय न गँवा कर तुरन्त चन्दा भेज दें, अन्यथा इन्कारी पत्र भेज दें।

(5) युग-निर्माण आन्दोलन को गतिशील रखने और उस संदर्भ में आवश्यक प्रेरणा, प्रकाश, मार्ग दर्शन एवं उत्साह पैदा करने का कार्य पाक्षिक ‘युग-निर्माण योजना’ द्वारा हो रहा है। जिन्हें अपने परिवार द्वारा संचालित इस अभिनव आन्दोलन से तनिक भी रुचि या सहानुभूति है, उन्हें इसे अवश्य मँगा कर पढ़ना चाहिए। जिनका चन्दा समाप्त हो चुका है, वे अवश्य भेज दें। जिनके पास पाक्षिक पत्रिका अभी नहीं पहुँची, वे अपना चन्दा भेजकर आरम्भ करालें। वार्षिक चन्दा 6-रु. मात्र है।

(6) इन दिनों सुरक्षात्मक कार्यों में देश-व्यापी प्रेरणा भरने के लिये हमारे कन्धों पर नये उत्तरदायित्व आ गये हैं। देश को मजबूत बनाने के अन्य विशिष्ट कार्यों में भी हमें लगना पड़ रहा है। इसलिये शीत ऋतु में शाखाओं के दौरे स्थगित कर दिये हैं। इन दिनों हमें बुलाने के लिये आग्रह न किया जाय। जब थोड़ा-सा भी अवकाश मिलेगा, दौरे का प्रोग्राम हम स्वतः बनावेंगे और जिनके आमन्त्रण थे तथा स्वीकृतियाँ दे चुके थे, उनका पहले ध्यान रखेंगे।

(7) साधारण स्थिति होने पर, माघ सुदी प्रतिपदा से पूर्णिमा तक पन्द्रह दिन का शिक्षण एवं साधना शिविर होने वाला था, वह आपत्तिकालीन परिस्थितियों के कारण न होगा। आगामी शिविर परिस्थितियाँ अनुकूल होने पर जेष्ठ में ही होगा।

(8) रामायण के माध्यम से युग-निर्माण की विचारधारा के अनुकूल प्रवचनों की सामग्री जुटानी और छापनी है। अखण्ड ज्योति परिवार के जिन सदस्यों का रामायण के सम्बन्ध में इच्छा एवं गम्भीर अध्ययन, मनन, चिन्तन हो वे हमें अपनी जानकारी की सूचना दे दें, ताकि उनके परामर्श एवं सहयोग से उपरोक्त प्रकार के भाषण तैयार करने का कार्य आरम्भ किया जा सके।

(9) कुछ दिन पूर्व अखण्ड-ज्योति प्रेस में यज्ञोपवीत से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति पुस्तक छपी थी, उसकी एक प्रति भी हमारे पास नहीं है। यदि पाठकों में से किसी के पास हो तो भेज दें। उसके बदले में उसी विषय की बड़ी पुस्तक हम भेज देंगे।

(10) व्यक्तिगत पत्र व्यवहार से उत्तर के लिए जवाबी पत्र भेजने की कृपा अवश्य करनी चाहिये। व्यक्तिगत पत्रों का पोस्टेज अब इतना अधिक होने लगा है कि उस भार को वहन करना हमारे लिये कठिन पड़ता है। हर पत्र में अपना पूरा पता लिखना आवश्यक है। पूरा पता न होने पर कितने ही पत्र नित्य ही बिना उत्तर दिये रह जाते हैं।

पुराने सदस्यों से अखण्ड-ज्योति एवं युग-निर्माण पत्रिकाओं का चन्दा वसूल करने एवं दोनों के नये सदस्य बनाने का ठीक यही समय है। सक्रिय सदस्य थोड़ा समय निकालकर दो-दो, चार-चार की टोलियाँ बना लें और इस कार्य में जुट जायें। धीरे-धीरे देर में चन्दा भेजने से पुराने अंक समाप्त हो जाते हैं और बीच के महीनों से ग्राहक बनना पड़ता है। ग्राहकों का वार्षिक शुल्क वसूल करने की रसीद बहियाँ छपा ली गई हैं। सक्रिय सदस्य उन्हें मँगा लें और अपने यहाँ का चन्दा वसूल कर भिजवादें।

(6) पुस्तकें मँगाने के नियमों में गतवर्ष से जो परिवर्तन हुआ है, उसे ध्यान में रखना चाहिए। अब डाकखर्च माफ होने का नियम बिलकुल समाप्त कर दिया गया है। वह हर हालत में मँगाने वाले को देना होगा।

नई व्यवस्था के अनुसार मँगाने वालों को कमीशन देने की नई सुविधा आरम्भ कर दी गई है जो इस प्रकार है। (1) 10- से कम की पुस्तकें लेने पर कुछ भी कमीशन नहीं। (2) 10- से 99- तक की पुस्तकें लेने पर 15 प्रतिशत। (3) 100- से अधिक की पुस्तकें लेने पर 25 प्रतिशत। (4) 5- से कम की वी0पी0 नहीं भेजी जाती है। बहुत छोटे ऑर्डर वालों को पुस्तकों के मूल्य के अतिरिक्त 1.5- पोस्टेज भी मनीऑर्डर से भेजना चाहिये। (5) अखण्ड-ज्योति या युग-निर्माण पत्रिकाओं के चन्दे पर किसी को कोई कमीशन या रिआयत नहीं मिलती।

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