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Magazine - Year 1965 - Version 2

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First 13 15 Last
उत्सवे व्यसने चैव दुर्भिक्षे राष्ट्रेविप्लवे।

राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धवः॥

उत्सव में, व्यसन में, दुर्भिक्ष में, गदर के समय, कचहरी में और श्मशान में जो साथ है, वही बाँधव है।

रहस्य भेदो या याञ्चा च नष्ठुर्य चलचित्तता।

क्रोधो निःसत्यता द्यूतमेतन्मित्रस्य दूषणम्॥

मित्र में यह दोष न होने चाहिए, गुप्त बातों को प्रकट करना, मांगना, कठोरता, चित्त की चपलता, क्रोध, असत्य और जुआ खेलना।

First 13 15 Last


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