Magazine - Year 1969 - Version 2
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Language: HINDI
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चेतन सत्ता की अनन्त सामर्थ्यवान् शक्ति-विचार
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विद्युत प्रकाश, ऊष्मा यह शक्तियाँ हैं। ध्वनि और चुम्बकत्व भी शक्तियों की श्रेणी में आते है। पदार्थ जगत में इन शक्तियों को चमत्कार के रूप में देखा जा रहा है। बड़े-बड़े कल-कारखाने जहाज, अन्तरिक्ष यान, रेल, मोटरें, ट्रामें आदि सब इन शक्तियों से ही संचालित होते है, यह थोड़े समय में उतना कार्य कर सकते है, जितना 1 लाख आदमी मिलकर भी एक घंटे में नहीं कर सकते। इनकी शक्ति करोड़ों मनुष्यों की शक्ति से भी बढ़कर-घोड़ों की शक्ति (हार्स पावर) में मापी जाती है।
विचार भी इन्हीं की तरह की एक प्रबल शक्ति है। विचारों की शक्ति का अनुमान करने में विज्ञान समर्थ नहीं हो पा रहा। क्योंकि वह अत्यन्त सूक्ष्म है और मशीनी शक्ति की पकड़ से परे है। किसी यन्त्र द्वारा उन्हें पकड़ा और प्रयोग में नहीं लाया जा सकता। क्योंकि इसका सम्बन्ध मानवीय चेतना से है, पदार्थ से नहीं।
प्राण-शक्ति (वाइटल फोर्स) की स्फुरणा (डिस्चार्ज) का नाम ही विचार है। हमारी प्राण-शक्ति जिससे कम या अधिक बलयुक्त गति (वेलासिटी आफ वाइटल फोर्स) से स्फुरित होती है, उसी अनुपात से विचारों की सत्ता कम या अधिक शक्तिशाली रूप में प्रकाश में आती है।
विचार की गति (वेलासिटी) प्रकाश की गति से भी तेज होती है। सेकेंड के करोड़वें हिस्से से भी कम समय में हम संसार के किसी भी बिन्दु पर विचार शक्ति द्वारा होकर लौ आते है। महान् वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने अपने सापेक्षवाद के सिद्धान्त (थ्योरी आफ रिलेटिविटी) में बताया कि यदि कोई वस्तु प्रकाश की गति से भी तेज चले तो समय पीछे रह जाता है और क्रिया आगे निकल जाती है, अर्थात् क्रिया ऋण-समय (निगेटिव टाइम) में पूरी हो जाती है। आइन्स्टीन का यह भी कहना है कि कोई भी वस्तु प्रकाश की गति से तीव्र नहीं चल सकती (प्रकाश) एक सेकेंड में एक लाख 86 हजार मील की गति से चलाता है। क्योंकि जैसे-जैसे वेग (वेलासिटी) बढ़ेगा, भार कम हो जाएगा। प्रकाश की गति से अधिक तेज चलने का अर्थ है कि उसका भार प्रकाश के भार से भी कम होना चाहिये। प्रकाश स्वयं शक्ति है, उसका कोई भार नहीं, इसलिए जो वस्तु प्रकाश की गति से भी तीव्र चलेगी उसका भी भार शून्य हो जायेगा। इस विश्लेषण से पता चलता है कि विचार एक सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान सत्ता है। वह चेतन शक्ति है, इसलिए उसका मूल्य और महत्व भौतिक शक्तियों की तुलना में करोड़ों गुणा अधिक है।
हम ऐसा अनुभव (रियलाइज) क्यों नहीं करते? ऐसी अदम्य शक्ति हमारे मस्तिष्क में अन्तर्निहित है, फिर हम उसका लाभ क्यों नहीं उठा पाते? यह प्रश्न हमारे सामने आ सकते है। वास्तविकता भी ऐसी ही है। आज संसार में कितने लोग, जो सामान्य जीवन से उठे है या असामान्य सफलतायें पाई है, इसकी खोज करें तो उनकी संख्या उँगलियों में गिनने जितनी ही मिलेगी। अधिक से अधिक राम, कृष्ण, गौतम, गाँधी, बिनोवा, ईसा, मूसा, वाशिंगटन, अब्राहम लिंकन, रूजवेल्ट, मार्टिन लूथर किंग,रौर्म्यारोला, सुकरात, अरस्तू, लाओब्जे, कन्फ्यूशियस, स्पिनोज, आइन्स्टीन, न्यूटन गैलीलियो जैसे थोड़े से नाम ही स्मरण किये जा सकते है और याददाश्त पर दबाव डालें तो अधिक से अधिक 5 पेज समा सकने योग्य वह नाम ढूँढ़े जा सकते है, जिन्होंने मनुष्य जीवन को सामान्य से असामान्य स्थिति का सौभाग्य सिद्ध किया होगा। 99.5 प्रतिशत से भी अधिक लोग तो कीड़े-मकोड़ों पशु-पक्षियों जैसा निकृष्ट जीवन जीकर ही मौत के घाट उतर जाते है।
एक ही दुर्भाग्य मनुष्य का है कि वह अपनी विचार-शक्ति का उपयोग नहीं करता। मस्तिष्क में यदाकदा विचार और भावनायें उठती भी है तो वह इतनी कमजोर और विश्रृंखलित कि साधारण-सी इच्छाओं की पूर्ति के अतिरिक्त वे कोई और बड़ा प्रभाव व्यक्त न कर सकें। साधारण लोगों का जीवन तुच्छ भोग-वासनाओं तक ही सीमित बना रहता है। उनके विचार जड़ पदार्थों में ही सुख ढूँढ़ने की भटक में भूल जाते है और एक महान् उपयोगिता और लक्ष्य प्राप्ति का जीवन निरर्थक चला जाता है।
भारतीय आचार्यों ने विचार शक्ति का गहराई तक अध्ययन करके ही ध्यान प्रणाली का आविर्भाव किया था। ध्यान से चित्त एकाग्र किया जाता है। एकाग्र चित्त से निक्षेपित विचारों में इतनी सामर्थ्य आ जाती है कि उनसे असाधारण शक्ति व्यय होकर किये जाने वाले कार्य क्षणभर में सम्पन्न किये जा सकते है। संतुलित विचार शक्ति से किसी भी दूरस्थ देश में रहने वाले व्यक्ति की सहायता कर सकते है, दुःख भी दे सकते है, आराम भी पहुँचा सकते हैं विचार एक शक्ति है, उसका अच्छे कार्यों में भी प्रयोग किया जा सकता है और मानवता को कलंकित करने वाले कार्यों में भी नष्ट किया जा सकता है।
भारतवर्ष में महामानवों की संख्या शेष विश्व के महापुरुषों की सम्मिलित संख्या से भी बहुत अधिक है, उसका एक ही कारण है कि यहाँ विचार-शक्ति का नियन्त्रित उपयोग किया गया। विश्व के इतिहास में ऐसा कोई भी देश नहीं है, जिसने विचार-बल की इतनी तत्परतापूर्वक शोध की हो और उसका उपयोग जन-कल्याण में किया हो। हमारे यहाँ इस महा महिमामय शक्ति का उपयोग व्यक्तिगत उत्थान, शिक्षा, सम्पत्ति, शोध कार्य आदि में भी किया गया और लोकोत्तर जीवन के रहस्य जानने के लिए भी उसे काम में लाया गया।
तीव्रता (इन्टेन्सिटी) के आधार पर इस शक्ति को तीन भागों में विभक्त करते है-(1) मन्द, (2) मध्यम, (3) गहन। जब कोई व्यक्ति कम विचार करता है या विचार टूटे-टूटे अनियमित होते है, तब उनका बल मन्द होता है। इस तरह के विचारों से किसी को प्रभावित भी नहीं किया जा सकता, मन्द बल से स्फुरित (डिचार्ज्ड) विचार को बहुत थोड़ी दूर तक ही प्रेषित किया जा सकता है।
जन-साधारण मध्यम बल के विचारों वाले होते है। इससे उनका दैनिक कार्यक्रम भली-भाँति चलता रहता है। ऐसे लोग शिक्षा और सम्पत्ति अर्जित करने में यथेष्ट सफलता पाते है। यही विचार और इच्छाएँ यदि मस्तिष्क में काफी समय तक बनी रहती है तो उनसे संवेग (मूमेन्टम) इकट्ठा होता रहता है और धीरे-धीरे वे शक्तिशाली होने लगते हैं गहनता से सोचने और उस इच्छित फल के लिए अपनी सम्पूर्ण ध्यान शक्ति समर्पित कर देने से विचार बलवान हो उठते है। उनसे अधिक प्राण-शक्ति स्फुरित होती है, उसमें मस्तिष्क और हृदय (माइन्उ एण्ड हर्ट) दोनों का बल काम करने लगता है। पूर्व विकसित इच्छा शक्ति को विचारों में जीन कर देते है तो वह विचार तीव्र और गहन हो जाते है। वह बहुत शक्तिशाली और तुरन्त फल देने वाले होते है। कोई भी ध्वंसात्मक अथवा रचनात्मक कार्य क्षण भर में सम्पन्न करने की शक्ति ऐसे ही विचारों में होती है। किन्हीं योगी व्यक्तियों में दूर-दर्शन दूर श्रवण और दूर-संवाद प्रेषण (टेले पैथी) के चमत्कार देखने को मिलते है, वह इस नियोजित विचार-शक्ति की ही सिद्धियाँ है और वह सिद्धान्त सत्य है, उनमें अविश्वास का कोई कारण नहीं है।
शक्तियाँ आपस में परिवर्तनीय (म्युचुअली कनवर्टेबल) होती है, प्रकाश को अग्नि, विद्युत में बदला जा सकता है, ध्वनि से उत्पन्न ताप और विद्युत शक्ति से अब बड़ी-बड़ी इस्पात चादरें काटने से लेकर सूक्ष्म से सूक्ष्म घड़ियों के पुर्जे ठीक करने का काम लिया जाने लगा। कैलीफोर्निया के प्रसिद्ध भूगर्भ शास्त्री हर्वर्ट अपर ने करोड़ों वर्ष प्राचीन खस्ता हड्डियों की सफाई के लिए ध्वनि शक्ति का आश्चर्यजनक उपयोग किया तब से इस शक्ति से बड़े उपयोगी काम लिये जाने लगे।
चुम्बक को ताप, ताप को विद्युत, विद्युत को प्रकाश और प्रकाश को ध्वनि तरंगों में बदला जा सकता है। अब चूँकि विचार भी एक शक्ति (इनर्जी) है, इसलिये कोई सन्देह नहीं कि उसे भी और शक्तियों में बदला जा सकता है। विचार-बल से अग्नि, विद्युत, प्रकाश ही नहीं, ध्वनि और आकर्षण भी उत्पन्न किया जा सकता है। तन्त्र साधनाओं में मारण, मोहन, उच्चाटन, अभिसार आदि अनेक विधानों का वर्णन मिलता है, वह सब विचार-शक्ति के नियन्त्रित प्रयोग से ही होता है।
यह प्रयोग असाधारण स्थिति के है, हमें यह देखना चाहिये कि क्या इस महान् शक्ति का उपयोग सुख, शांति व्यवस्था और आत्म-कल्याण में किया जा सकता है। उत्तर मिलेगा-किया ही नहीं जा सकता, किया जाना आवश्यक भी है। हमारे जीवन के सभी क्षेत्र विचारों से भी प्रभावित है पर भौतिक सुख और इच्छाओं की ओर अधिक ध्यान बना रहने के कारण हमारी मानसिक स्थिति साधारण अवस्था से ऊपर उठ ही नहीं पाती। ईश्वर, आत्मा जैसी कोई चेतन-शक्तियाँ भी हैं। हमारा जीवन इसी संसार तक सीमित नहीं वरन् मरणोत्तर अवस्था का भी अस्तित्व है? यह सारे प्रश्न विचार बल द्वारा ही अनुभव में ले हम आत्मकेन्द्रित होते है तो बाह्य सफलता के द्वार तो अनायास ही खुल जाते है, महत्व उन रहस्यों और अनुभूतियों का है, जो विचारों को विकेन्द्रित करने से संसार की वस्तुस्थिति की यथार्थता का ज्ञान होने पर प्रत्यक्ष होते है।
विचार की शक्ति या बल अपना वास्तविक प्रभाव तब दिखाता है, जब उसे आधार देने वाले आवेशों की तीव्रता बढ़ जाती हैं। सूर अधिक पढ़े-लिखे नहीं, तुलसी की शैक्षणिक योग्यता बहुत कम थी, मारा का साहित्यिक अध्ययन नगण्य जैसा था, कबीर तो बेचारे पढ़े भी नहीं थे पर भावनाओं की शक्ति ने उनके विचारों को प्रौढ़ और परिष्कृत होने का अवसर दिया उससे इनकी बौद्धिक क्षमताएँ कुछ से कुछ हो गई। आज उनकी आन्तरिक अनुभूतियों को अच्छी शैक्षणिक योग्यता के लोग ही कठिनाई से पकड़ पाते है।
इच्छा शक्ति के अभ्यास (एक्सर-साइज) के द्वारा हम अपने विचार-बल को बढ़ा सकते है, संतुलित विचार जो कि एकाग्रता और इच्छा-शक्ति लिए होते है, बहुत बड़ी शक्ति को प्रदर्शित करते है। चेतन तत्त्वों की खोज-खबर भी उन्हीं से सम्भव है। वे कभी असफल नहीं होते। इस प्रकार का बहुत-सा तेज, विचार-बल बिना किसी समय के गमन कर सकता है, इसीलिये उससे आध्यात्मिक रहस्यों का प्रतिपादन तेजी से किया जा सकता है। विचारों का भौतिक अस्तित्व न होने से उनका लाभ नहीं उठा पाते पर उनके आध्यात्मिक मूल्य को समझ लेने के बाद एक बहुत बड़ा जीवन लाभ प्राप्त किया जाना सम्भव हो जाता है।