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Magazine - Year 1969 - Version 2

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युग-निर्माण-योजना गायत्री तपोभूमि मथुरा - विवाह योग्य वर कन्याओं के विवरण-पत्र

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बिना दहेज बिना जेवर बिना धूमधाम बारात और प्रदर्शन रहित अति सादगी के साथ सम्पन्न होने वाले आदर्श विवाहों के लिये जो सहमत हों वे ही प्रतिज्ञा-पत्र भरें फोटो भी साथ भेजे। अधिक फार्मों की आवश्यकता हो तो हाथ से लिखकर या टाइप कराकर बना लें अथवा मथुरा से मँगा लें। उत्तर के लिये 20 पैसे का टिकट हर बार भेजना चाहिये। यदि कहीं विवाह पक्का हो जावे तो उसकी सूचना तुरन्त भेज दें। यदि किसी कालम में पूरी बात न लिखी जा सके तो अलग कागज पर कालम नम्बर डालकर विवरण दें।

(1) नाम वर/कन्या ………………………………

(2) जन्म तिथि ………………………………

(3) शिक्षा …………………………….

(4)स्वभाव …………………………………..(5)विशेष योग्यता या दोष-व्यसन …………

(6)जाति ………………. (6) उपजाति ……………….

(8)रंग …………………….…(9)ऊँचाई …………...(10)वजन ………………

(11)लड़का/लड़की तथा अभिभावक की आजीविका का विस्तृत वर्णन ……………………….

(12)परिवार के सभी सदस्यों का पूरा परिचय शिक्षा आयु व्यवसाय आदि सहित ………………

(13) शारीरिक स्थितिः-पिछले दिनों कोई बड़ा रोग हुआ हो अथवा इस समय कोई शारीरिक या मानसिक कठिनाई हो तो उसका स्पष्ट उल्लेख ……………….

(14) किन उपजातियों में विवाह स्वीकार है …………………………………….............

(15)साथी वर या वधू किन विशेषताओं से युक्त हो ……………………………………...

(16) यदि विधुर विधवा या परित्यक्ता है तो पूर्व दाम्पत्य जीवन का वर्णन वियोग का कारण तथा सन्तानों का परिचय ……………………………………...

(17) कोई विशेष बात कहनी या बतानी हो तो वह भी लिखें ……………………………….

(18) वह पूरा पता जिस पर पत्र व्यवहार किया जाय ……………………………………...

हस्ताक्षर विवाहार्थी हस्ताक्षर अभिभावक

मुहूर्त माने गये हैं। 1 दैव उठनी एकादशी 2 गीता जयन्ती 3 बसन्त-पंचमी 4 शिवरात्रि 5 रामनवमी 6 अक्षय तृतीया 7 गायत्री जयन्ती 8 गुरुपूर्णिमा 9 विजय-दशमी 10 शरद पूर्णिमा। यह दस पर्व बिना मुहूर्त बनाये सदा सबके लिए शुभ होते हैं। इन पर्वों पर हर विवाह किया जा सकता है।फिर गायत्री माता के अचल में तो सारे मुहूर्त स्वयमेव शुभ हो जाते हैं। किसी अशुभ को उनके सामने ठहरने की कोई गुँजाइश नहीं रहती।

सिख सम्प्रदाय के एक वर्ग में एक ही दिन समस्त विवाह प्रधान गुरुद्वारे में सम्पन्न होते हैं। अपने लिए वैसा तो कठिन पड़ेगा पर इतना तो आसानी से हो सकता है कि जिन्हें अपने स्थानों पर असुविधा हो वे यहाँ आकर विवाह करा लिया करे। ऐसा भी हो सकता है कि कुछ आदर्शवादी विवाह सामूहिक रूप से एक साल एक बड़े आयोजन के रूप में सम्पन्न हुआ करें। जिससे दर्शकों में वैसा करने के लिए उस प्रदर्शन में अनुकरण का उत्साह उत्पन्न हो। माथुर वैश्य सभा द्वारा पिछले वर्षों में ऐसे आयोजन बहुत बड़ी संख्या में अपनी जाति वालों के सामूहिक विवाहों के साथ सम्पन्न करायें हैं। अपनी ड़ड़ड़ड़ शाखा का वार्षिकोत्सव हर साल एक विशाल गायत्री यज्ञ के साथ सम्पन्न होता है और उसमें सामूहिक रूप से कई आदर्श विवाह भी संपन्न होते हैं। जहाँ सुविधा हो ऐसे सामूहिक विवाह आयोजनों की भी व्यवस्था बनाई जा सकती है।

अपने परिवार में ऐसे आदर्श विवाहों का प्रचलन हो गया तो यह आग आँधी-तूफान की तरह सारे समाज में फैलेगी और उसका इतना व्यापक प्रभाव पड़ेगा कि आज की खर्चीली विवाह प्रथा होलिका दहन की तरह भस्मसात् होती हुई हम सब अपनी आँखों से देख सकेंगे। नेतृत्व की जरूरत है अनुकरण के लिए सारा समाज तैयार बैठा है। हमारा तनिक सा साहस सारे समाज का पथ प्रदर्शन कर सके और एक अति त्रासदायक विवाहोन्माद असुर का ध्वंस किया जा सके तो उससे सर्वत्र संतोष की साँस ले सकने वाला वातावरण बनेगा। अग्रणी बनने वाले लोगों के गुणगान चिरकाल तक सुने जाया करेंगे।

औसतन हर् विवाह में पाँच हजार का खर्च मान लिया जाय और हर परिवार की चार विवाह भी करने पड़ते हों तो बीस हजार की बचत हुई। अपने बीस हजार परिवारों में यह प्रथा चल पड़े तो 40 करोड़ रुपये का लाभ अपने छोटे से संगठन के लोगों को ही पहुँचा सकते है। और यह प्रथा व्यापक बन गई तो हम कुछ ही दिनों में अपने समाज की हजारों अरब रुपये की बर्बादी बचा सकते हैं। और उस बचत का यदि सदुपयोग हो सके तो अपने देशवासियों का जीवन स्तर हर दिशा में इतना विकसित हो सकता है कि हम अपने ही साधनों से रूस अमेरिका से बढ़कर अपनी गरिमा प्राप्त कर सकें।

विचार-क्राँति का अति महत्त्वपूर्ण मोर्चा विवाहोन्माद के असुर से लड़ने का है। वह कंस हिरण्यकश्यप जरासन्ध वृत्तासुर भस्मासुर रावण कुम्भकरण महिषासुर आदि से किसी प्रकार कम नहीं। इसे पछाड़ लिया तो समझना चाहिये कि भारतीय संस्कृति के सामने खड़े समुद्र जैसे अवरोध को पार कर लिया गया। सादगी से बिना खर्च विवाह सम्पन्न होने की प्रथा प्रचलित होने के साथ ही उभरी हुई विचार-शीलता अन्य अनेक मोर्चों को जीतेगी। आज की अन्य सामाजिक कुरीतियाँ उस दावानल में सहज ही जलजल कर भस्म होंगी। पुत्र और कन्या की-नर और नारी की असमानता का अन्त भी इस कुप्रथा के साि ही होना है। दोनों ही वर्ग जब प्रबुद्ध नागरिकों की तरह ईश्वर प्रदत्त समता का आनन्द लेते हुए कन्धे से कन्धा मिलाकर एक दूसरों को आगे बढ़ाते और ऊँचा उठाते हुए हर्ष उल्लास के साथ कार्य क्षेत्र में उतरेंगे तो उस समय की परिस्थितियाँ देखने ही योग्य होंगी। ऐसे ही सपनों के साथ नवयुग के अवतरण की आशा संजोये बैठे रहे हैं और अब उसे साकार करने के लिए गतिशील हो रहे हैं।

युग परिवर्तन की इस पुण्य बेला में हमें अपने कर्तव्य पालन के लिए अधिक उत्साह ओर अधिक साहस के साथ अग्रसर होना चाहिये। ज्ञान-यज्ञ का प्रथम चरण प्रचार और दूसरा परिवर्तन है। अपने यह अभियान ओर आन्दोलन एक दूसरे के प्रेरक हैं। प्रेरक विचारों की सार्थकता परिवर्तनकारी कार्यों के साथ जुड़ने पर ही सम्भव होती है। इस सन्दर्भ में हममें से प्रत्येक को उत्तरदायित्व और कर्तव्य को पूरा करना चाहिये।

*समाप्त*

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