• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • आदर्शों की रक्षा
    • कथा :- सच्चा-सहचर
    • एक तुम्हीं जीवन-आधार
    • प्रेम के टाँके
    • धर्म और विज्ञान परस्पर विपरीत-किन्तु परिपूरक
    • दार्शनिक की विजय
    • ईश्वर विश्वास और आत्म-विकास की परम्परा
    • अग्नि परीक्षा
    • मस्तिष्क और मानवीय शक्ति का रहस्योद्घाटन
    • कथा :- पूर्णता की प्राप्ति
    • भाग्य और भविष्य के महालेख और जीन डिक्सन
    • चेतन सत्ता की अनन्त सामर्थ्यवान् शक्ति-विचार
    • भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता
    • कथा - अपरिग्रह का अर्थ
    • सृष्टि कैसे चले
    • मनुष्य वृक्ष-वनस्पतियों से ही कुछ सीखे
    • पत्थर नतमस्तक हो गया
    • तब, जब ज्वालामुखी फटते हैं
    • बुद्धि का तो काम ही है पत्थर फेंकना
    • सर्वश्रेष्ठ दान (Kahani)
    • अमैथुनी सृष्टि भी उत्पन्न होती है, हो सकती है
    • पंच-रत्न
    • जैविक औषधियाँ और जन-स्वास्थ्य से खिलवाड़
    • कथा - अथातो ब्रह्म जिज्ञासा
    • गहरे में उतरता हूँ
    • मानवेत्तर प्राणियों का संसार भी मनुष्यों जैसा
    • संवेदनशीलता
    • कर्तव्य परायणता-मानव-जीवन की आधार शिला
    • बेईमानी का नहीं ईमानदारी का मार्ग अपनाये
    • अपव्यय एक पाई का भी न करें
    • पशुबलि भारतीय धर्म पर एक कलंक
    • कुंडलिनी महाशक्ति और प्राण प्रवाह
    • अपनों से अपनी बात
    • युग-निर्माण-योजना गायत्री तपोभूमि मथुरा - विवाह योग्य वर कन्याओं के विवरण-पत्र
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • आदर्शों की रक्षा
    • कथा :- सच्चा-सहचर
    • एक तुम्हीं जीवन-आधार
    • प्रेम के टाँके
    • धर्म और विज्ञान परस्पर विपरीत-किन्तु परिपूरक
    • दार्शनिक की विजय
    • ईश्वर विश्वास और आत्म-विकास की परम्परा
    • अग्नि परीक्षा
    • मस्तिष्क और मानवीय शक्ति का रहस्योद्घाटन
    • कथा :- पूर्णता की प्राप्ति
    • भाग्य और भविष्य के महालेख और जीन डिक्सन
    • चेतन सत्ता की अनन्त सामर्थ्यवान् शक्ति-विचार
    • भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता
    • कथा - अपरिग्रह का अर्थ
    • सृष्टि कैसे चले
    • मनुष्य वृक्ष-वनस्पतियों से ही कुछ सीखे
    • पत्थर नतमस्तक हो गया
    • तब, जब ज्वालामुखी फटते हैं
    • बुद्धि का तो काम ही है पत्थर फेंकना
    • सर्वश्रेष्ठ दान (Kahani)
    • अमैथुनी सृष्टि भी उत्पन्न होती है, हो सकती है
    • पंच-रत्न
    • जैविक औषधियाँ और जन-स्वास्थ्य से खिलवाड़
    • कथा - अथातो ब्रह्म जिज्ञासा
    • गहरे में उतरता हूँ
    • मानवेत्तर प्राणियों का संसार भी मनुष्यों जैसा
    • संवेदनशीलता
    • कर्तव्य परायणता-मानव-जीवन की आधार शिला
    • बेईमानी का नहीं ईमानदारी का मार्ग अपनाये
    • अपव्यय एक पाई का भी न करें
    • पशुबलि भारतीय धर्म पर एक कलंक
    • कुंडलिनी महाशक्ति और प्राण प्रवाह
    • अपनों से अपनी बात
    • युग-निर्माण-योजना गायत्री तपोभूमि मथुरा - विवाह योग्य वर कन्याओं के विवरण-पत्र
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1969 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


धर्म और विज्ञान परस्पर विपरीत-किन्तु परिपूरक

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 4 6 Last
प्रसिद्ध वैज्ञानिक ब्वायल ने एक सिद्धान्त (व्वायल्स) प्रतिपादित कर बताया कि यदि दबाव (प्रेशर) बढ़ाया जाये तो आयतन (बालूम) कम हो जायेगा। अर्थात् आयतन और दबाव दोनों एक दूसरे के विपरीत अनुपात (रेसीप्रोकल प्रपोर्शन) में है। हवा भर कर किसी गुब्बारे को एक निश्चित आयतन में फुला लें और फिर उसे दबाये तो जितना अधिक गुब्बारे को दबाते चलेंगे, उसका आकार उतना ही छोटा होता चला जायेगा।

धर्म और विज्ञान भी इसी प्रकार एक दूसरे के विपरीत अनुपात (रेसीप्रोकल प्रपोर्शन) में दिखाई देते है, जहाँ पर धर्म आ जाता है, वहाँ विज्ञान की आवश्यकता कम हो जाती है और जहाँ पर विज्ञान की मात्रा बढ़ जाती है, वहाँ धर्म को उतना स्थान छोड़ना पड़ता है। इस विपरीत अनुपाती सिद्धान्त के अनुसार ऐसा जान पड़ता है, धर्म और विज्ञान में परस्पर विरोध है।

लेकिन तार्किक दृष्टि से देखें तो दोनों अन्योऽन्याश्रित सम्बन्धित भी है। स्त्री की अपनी प्रकृति होती है, पुरुष को अपनी प्रकृति, दोनों की इच्छाएँ और जरूरतें अपनी-अपनी तरह की है, किन्तु अपने आप में दोनों अपूर्ण है और जीवन का आनन्द तभी आता है, तब दोनों एक बिन्दु पर एक समझौते पर सम्बन्धित हो जाते है। दोनों एक दूसरे के हित की रक्षा करने लगते हैं तो परस्पर विपरीतता भी अभिन्न एकता में बदल जाती है, सृष्टि एवं जीवन का आनन्द निर्झर हिलोरें लेने लगता है।

दोनों में से कोई अकेला नहीं रह सकता। दबाव बढ़ाते जाने की भी एक सीमा है, उस सीमा के आगे गुब्बारा फट जाने की तरह उस वस्तु का अस्तित्व ही समाप्त हो सकता है, उसी प्रकार आयतन बढ़ाते चलो तो एक अवस्था ऐसी आयेगी, जब भीतरी फैलाव ही उस वस्तु के अस्तित्व को फोड़कर नष्ट कर देगा।

धर्म को इतना बढ़ाते चला जाये कि विज्ञान से कोई वास्ता हो न रहे तो धर्म, धर्म न रहकर अन्ध-विश्वास हो जायेगा। भारतवर्ष महान् धार्मिक देश रहा है। यहाँ श्रद्धा भक्ति का, विश्वास और आस्तिकता का अति-सीमा तक विकास हुआ। वह इतना सूक्ष्म और जटिल होता गया कि सर्वसाधारण उसे समझ नहीं पाया यदि उसे छोटे-छोटे वैज्ञानिक उदाहरणों द्वारा समझाया गया होता तो कम बुद्धि के लोग भी उन गहराइयों में उतरते चले जाते और धर्म अन्ध-विश्वास अन्ध-श्रद्धा में परिणत होने से बच जाता। धार्मिक विडम्बनाएँ इसीलिये उठ खड़ी हुई कि अल्प-बुद्धि के लोगों ने उसके तत्त्व-दर्शन को समझा तो था नहीं उल्टे उन पर जबरन विश्वास करने का दबाव डाला और उन्होंने प्रबुद्ध वर्ग में धर्म के प्रति घृणा उत्पन्न कर दी।

धर्म का आधार काल्पनिक नहीं। श्रद्धा और विश्वास की शक्ति निर्जीव नहीं। यदि कोई परम तत्त्व (एब्सोल्यूटएलिमेन्ट) नहीं था तो यह विविधता वाला संसार कहाँ से आया। इस पर हमें विश्वास करना ही चाहिये था। जो शक्ति आप प्रस्फुटित होकर विराट, विश्व का सृजन, निर्माण और विकास कर सकती है, उसके सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान् होने में कोई आश्चर्य नहीं करना चाहिए था, किन्तु जब सामान्य मस्तिष्क उस दौड़ को पूरा न कर पायें और उन्होंने कर्म और कर्म व्यवस्था को न समझा तो ईश्वरीय सर्वशक्तिमत्ता को मन-मनोरथ पूरा करते रहने का माध्यम मान लिया। फल यह हुआ कि धर्म जैसी शाश्वत सत्ता से पढ़ा-लिखा विचारशील वर्ग विदक गया और इस तरह धर्म अपने आप ही नष्ट होता गया। सिद्धांतत यह स्थान विज्ञान लेता चला गया क्योंकि बुद्धिमान आदमी को भी तो आखिर अपने लक्ष्य, इष्ट और सत्य की खोज की आवश्यकता थी ही। उसके लिए स्वाभाविक ही था कि यह विज्ञान का आश्रय लेता और अन्ततः यही हुआ भी।

धर्म जीवन की महान् और अन्यतम आवश्यकता है पर अन्ध-विश्वास के लिए मनुष्य जीवन में क्या स्थान हो सकता है? बाइबिल कहती थी, पृथ्वी चपटी है, लोग उस बात का अन्धानुकरण किये चले आये। गैलीलियो वैज्ञानिक था, विचारशील व्यक्ति था उसने और ग्रह-नक्षत्रों से तुलना की, अपने दृष्टिकोण को बड़ा किया तो समझ में आया पृथ्वी चपटी नहीं गोल हैं। उसने लोगों को बताया पृथ्वी गोल हैं। धर्म वाल को यह चाहिये था कि वे इस बात पर विचार करते, किन्तु यह अन्ध-विश्वास का ही पाप था कि पादरियों ने गैलीलियो को मरवा दिया। एक वैज्ञानिक सत्य को छुपाना सफल न हो सका, अन्ततः सत्य, सत्य ही रहा और बाइबिल को अपने आपमें उतना अंश निकालकर फेंकना ही पड़ा। जबकि धर्म की सत्य की शोध-प्रक्रिया है तो उसे पूर्णग्रही या अन्ध-विश्वासी क्यों होना चाहिए?

इस दृष्टि से ही विज्ञान अनिवार्यता सामने आई। धर्म एक विश्वास के आधार पर दार्शनिक गहराई लेकर चला था, विज्ञान प्रकृति के तथ्यों (फैक्ट्स) को लेकर प्रारम्भ धातुओं से किया गया था, धीरे-धीरे मिट्टी, पानी, धातुएँ, गैसें, अग्नि, चुम्बकत्व, प्रकाश, विद्युत और इन सबसे बनने वाले तरह-तरह के यन्त्र (मैकेनिज्म) बनने प्रारम्भ हुये। विज्ञान हमें बताता है कि प्रकृति के तथ्य क्या है, उनमें परस्पर किस प्रकार और किन परिस्थितियों में संबन्ध बैठाया जा सकता है, इसी आधार पर उसने महान् खोजें की, जो हमें इस आधुनिक संसार में चमत्कार की तरह दिखाई देती है। इन्होंने माना हमारी सूख-सुविधायें भी बढ़ाई, किन्तु इन सब का अन्तिम उद्देश्य क्या हो, यह बताना विज्ञान भूल गया। वह चला तो था, सत्य की खोज के लिये पर मार्ग में मिलने वाले फलों के स्वाद फूलों की सुगन्ध, वृक्षों की छाया में आराम करने के पीछे व जिस रास्ते पर चला था, उसे भूलकर एक घने जंगल में भटक गया, जहाँ केवल फल-फूल ही नहीं जंगली जानवर भी थे। काँटे, नदियाँ, टीले और पहाड़ भी थे। आज वान ने मनुष्य जीवन को कुछ इस तरह उलझा दिया है कि मनुष्य अपनी मूलभूत आवश्यकताओं (एब्सौल्यूट नेसेसिटीज) को समझ ही नहीं पा रहा।

लक्ष्य प्रयोग के द्वारा नहीं आ सकता, किन्तु सामाजिक जीवन में उसकी गहराई कहीं भी देखी जा सकती है। (1) मरने की इच्छा कोई नहीं करता (2) प्रेम की प्यास हर किसी को है, (3) छोटे से छोटा प्राणी भी प्रभुत्व की इच्छा करता है, (4) आनन्द के लिये सब बेचैन है, (5) मनुष्य अपने आप में संतुष्ट नहीं। इन शक्तिशाली आकांक्षाओं (पावरफुल ट्रेडीशन्स) के पीछे सत्य क्या है, यह जब तक समझ न पाये, तब तक विज्ञान के हजार हाथ और उसके द्वारा अर्जित सफलतायें क्या प्रसन्नता दे सकती है। आज अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्राँस, जापान ने विज्ञान के क्षेत्र में भारी सफलतायें पाई है, किन्तु मानवीय व्यवहार के इस अत्यावश्यक पहलू को वह भी हल नहीं कर सकें।

विज्ञान इतना छितर गया है कि वह स्वयं भी एक अन्ध-विश्वास बन गया हैं। हर नया प्रयोग व्यक्ति के वर्तमान दृष्टिकोण और मान्यता का बदल देता हैं। पदार्थ के सम्बन्ध में डाल्टन के परमाणुवाद (डाल्टन एटामिक थ्योरी) से लेकर आइन्स्टीन के सापेक्षवाद (थ्योरी आफ रिलेटिविटी) तक अनेक मान्यतायें परिवर्तित होती गयी और उनने प्रत्येक बार एक नया चिन्तन देकर मनुष्य को और भी अशान्त किया, किसी अन्तिम निष्कर्ष पर पहुँचना संभव न हुआ।

विज्ञान किसी भी वस्तु (आब्जेक्टिव फील्ड) का वैज्ञानिक निर्णय और तार्किक चिन्तन (लॉजिकल थिंकिंग) सही दे सकता है, उदाहरण के लिये वह मौसम की जानकारी दे सकता है। बम विस्फोट से कितनी ऊर्जा (एनर्जी) पैदा होगी, यह बता सकता है, पृथ्वी से चन्द्रमा के बीच की दूरी को नाप सकता है, किन्तु मानवीय व्यवहार और न्याय का एक क्षेत्र है, उसे विज्ञान अपनी तार्किक चिन्तन (लॉजिकल थिंकिंग) से बताये तो उसका निर्णय गलत बैठेगा। वान एक शक्तिशाली साधन है, पदार्थ के अध्ययन का, पर अन्तिम उद्देश्य केवल धर्म द्वारा ही निर्धारित किये जा सकते है। वैज्ञानिकों शोधों का मूल्यांकन और उन्हें मानवीय जीवन में उतारना एक सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है, जिसे केवल धर्म ही पूरा कर सकता है।

विज्ञान इस सम्बन्ध में अन्ध विश्वास फैलाता है, माँसाहार प्राणियों का उत्पीड़न, जीवन में असंख्य प्रकार के वैभव के उपकरण मनुष्य की सुख की आकांक्षा को उत्तेजित करके बढ़ा तो देते हैं पर उनसे किसी भी व्यक्ति को संतुष्टि नहीं होती, फलस्वरूप परस्पर प्रेम, सहयोग, न्याय, नैतिकता, ईमानदारी के स्थान पर हिंसा, घृणा, बैर-भाव अन्याय, अनीति और बेईमानी बढ़ती है। यही हुआ भी। इस स्थान पर आकर विज्ञान भी फेल हुआ। और लोगों को फिर मानवीय जीवन के सम्बन्ध में एक नये सिरे से विचार करने की आवश्यकता अनुभव होने लगी।

बायोलॉजी का ज्ञान मनुष्य को जीव-कोष (सेल्स) और अनेकों प्रकार के सूक्ष्मतम जीवाणुओं (वैसिलाई) तक ले आया-इनका क्या हो मनुष्य समझ नहीं पाया। बाटनी और जूलाजी ने करोड़ों वृक्ष वनस्पतियों और जीव-जन्तुओं के आकार-प्रकार गुण-स्वभाव आदि का परिचय पाया पर इनका किया क्या जाये-कुछ पता नहीं। एनाटॉमी और फिजियोलॉजी ने हाथ, पाँव, पेट, मुख, आँख, कान, नाक, दाँत, आँत, गुर्दे, हृदय, आमाशय, कण्ठ, मस्तिष्क, माँसपेशियाँ, धमनियों किरणें, कोशिकाएँ की रचना और क्रियाशास्त्र का पता लगाकर ग्रन्थ के ग्रन्थ रचकर तैयार कर दिये पर उनका क्या उपयोग हो कुछ पता नहीं। चिकित्सा की दृष्टि से भी हमने जितने रोगों की जानकारी प्राप्त की, उससे कई गुना नये रोग पैदा हुए, दवाइयाँ तो इतनी बनीं कि उन्हें केवल अलमारियों और काँच की बोतलों में रखा जाये तो संसार भर की सारी औषधियों को रखने के लिये लंका जितने कम से कम दस द्वीपों की आवश्यकता पड़े लेकिन रोग और मृत्यु की दर अभी पहले जितनी ही बनी हुई है। चन्द्रमा से लेकर विशाल ब्रह्माण्ड (गैलेक्सी) के अरबों नक्षत्र गिन लिये पर उनका क्या उपयोग हो कुछ पता नहीं। धर्म जिस तरह जटिल होकर अन्ध-विश्वास बन गया था, उसी प्रकार विज्ञान भी जटिल होकर अन्ध-विश्वास बन गया हे और इस तरह अब इसकी भी अपूर्णता सिद्ध हो गई है। लोग चन्द्रमा पर पहुँचकर यह अनुभव कर रहे है कि मनुष्य जीवन के मूलभूत तथ्यों के सम्बन्ध में अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन लाये बिना काम न चलेगा।

“धर्म और विज्ञान” विषय गोष्ठी पर भाषण करते समय 16 मई 1939 को अल्बर्ट आइन्स्टीन ने प्रिन्सटन यूनिवर्सिटी में कहा था-संसार में ज्ञान और विश्वास दो वस्तुएँ है। ज्ञान को विज्ञान और विश्वास को धर्म कहेंगे। इस युग में लोगों की मान्यता है कि ज्ञान बड़ा है क्योंकि यह क्रमबद्ध है, स्कूलों में इसी का शिक्षण होता है, किन्तु यह मानव-जीवन के उद्देश्य को बहुत देर तक प्रयोग करके भी शायद ही बता सके। जबकि विश्वास में तार्किक चिन्तन और क्रमबद्ध ज्ञान (राशनल नॉलेज) दोनों ही आधार है, जो हमारा सम्बन्ध सीधे परम अवस्था या अपने मूलीत उद्देश्य से जोड़ देता है।

22 जुलाई 1969 को जिस दिन चन्द्र-यात्री नील आर्मस्ट्राँग और एडविन एल्ड्रिन ने अपनी चन्द्र-यात्रा के निर्धारित कार्यक्रम पूरे कर लिये और सकुशल पृथ्वी की ओर चल पड़े थे, उस दिन अन्तरिक्ष केन्द्र ह्यूस्टन, टैसास (अमेरिका) के अन्तरिक्ष उड़ान केन्द्र के निर्देशक श्री डा० वेरनेर बान बौन ने बड़े गम्भीर शब्दों में कहा था-मेरे विचार है कि अन्य लोकों में जीवन की सम्भावनायें निश्चित हो गई है और उससे मानव-जाति की अमरता निश्चित हो गई है।”

यह कथन उनका विज्ञान की ओर से धार्मिक सत्य की ही ओर झुकाव था, इसी दिन अहमदाबाद में परमाणु शक्ति आयोग के अध्यक्ष डा० विक्रम साराभाई ने कहा कि-मानव के अब तक के साहसिक कदमों में से यह सबसे बड़ा कदम है, इससे विश्व के बारे में हमारी धारणाओं में बुनियादी परिवर्तन हो सकता है।”

तात्पर्य यह कि विज्ञान के पीछे किसी सशक्त सत्ता का रहना आवश्यक है, अन्यथा उसकी उपयोगिता मारी जा सकती है। मानवता के लिये उसका उपयोग तभी सम्भव है। यह सत्ता केवल धर्म या विश्वास की ही हो सकती है। धार्मिक लक्ष्य की पूर्ति के लिये भी यदि हम समय रखें तो साधनों का अभाव हमारे लिये कोई अभाव नहीं है। इसी तरह हम धार्मिक आधार पर मनुष्य जीवन का अन्तिम लक्ष्य निर्धारित करें, किन्तु उसके पीछे वैज्ञानिक तर्कों का समावेश आवश्यक है।

ब्वायल के सिद्धान्त (ब्वायल्स ला) के अनुसार विपरीत जान पड़ने वाले धर्म और विज्ञान वस्तुतः ड़ड़ड़ड़ होकर ही एक स्थान पर रहकर ही मानव-जीवन का कल्याण कर सकते हैं। चार्ल्स का सिद्धान्त (चार्ल्स ला) के अनुसार जैसे-जैसे ताप (टेम्परेचर) बढ़ेगा उसी अनुपात में आयतन (वालयूम) भी बढ़ेगा। अर्थात् ताप और आयतन सीधे अनुपात (डाइरेक्टली प्रयोर्शन) में हैं। विज्ञान और धर्म का भी सम्बन्ध ऐसा ही है, जब धर्म बढ़ेगा उसकी रूढ़िवादिता और अन्ध-विश्वास को दूर करने के लिये विज्ञान का बढ़ना अनिवार्य हो जायेगा, उसी तरह अब जब कि विज्ञान अपनी चरम प्रगति पर बढ़ चुका है, उसके एकाधिकार और निरंकुशता को समाप्त करने एवं मनुष्य जीवन का निश्चित लक्ष्य निर्धारित करने के लिये धर्म का विकास आवश्यक ही नहीं अनिवार्य हो गया है। यह एक तरह का अटल सिद्धान्त है, अगले दिनों विश्व-विराट् हमारे लिये जितना स्पष्ट होता चलेगा हमें उतना ही धार्मिक होना पड़ेगा, यह प्रकृति और परमेश्वर दोनों का ही अटल विधान है।

First 4 6 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • आदर्शों की रक्षा
  • कथा :- सच्चा-सहचर
  • एक तुम्हीं जीवन-आधार
  • प्रेम के टाँके
  • धर्म और विज्ञान परस्पर विपरीत-किन्तु परिपूरक
  • दार्शनिक की विजय
  • ईश्वर विश्वास और आत्म-विकास की परम्परा
  • अग्नि परीक्षा
  • मस्तिष्क और मानवीय शक्ति का रहस्योद्घाटन
  • कथा :- पूर्णता की प्राप्ति
  • भाग्य और भविष्य के महालेख और जीन डिक्सन
  • चेतन सत्ता की अनन्त सामर्थ्यवान् शक्ति-विचार
  • भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता
  • कथा - अपरिग्रह का अर्थ
  • सृष्टि कैसे चले
  • मनुष्य वृक्ष-वनस्पतियों से ही कुछ सीखे
  • पत्थर नतमस्तक हो गया
  • तब, जब ज्वालामुखी फटते हैं
  • बुद्धि का तो काम ही है पत्थर फेंकना
  • सर्वश्रेष्ठ दान (Kahani)
  • अमैथुनी सृष्टि भी उत्पन्न होती है, हो सकती है
  • पंच-रत्न
  • जैविक औषधियाँ और जन-स्वास्थ्य से खिलवाड़
  • कथा - अथातो ब्रह्म जिज्ञासा
  • गहरे में उतरता हूँ
  • मानवेत्तर प्राणियों का संसार भी मनुष्यों जैसा
  • संवेदनशीलता
  • कर्तव्य परायणता-मानव-जीवन की आधार शिला
  • बेईमानी का नहीं ईमानदारी का मार्ग अपनाये
  • अपव्यय एक पाई का भी न करें
  • पशुबलि भारतीय धर्म पर एक कलंक
  • कुंडलिनी महाशक्ति और प्राण प्रवाह
  • अपनों से अपनी बात
  • युग-निर्माण-योजना गायत्री तपोभूमि मथुरा - विवाह योग्य वर कन्याओं के विवरण-पत्र
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj