• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • आदर्शों की रक्षा
    • कथा :- सच्चा-सहचर
    • एक तुम्हीं जीवन-आधार
    • प्रेम के टाँके
    • धर्म और विज्ञान परस्पर विपरीत-किन्तु परिपूरक
    • दार्शनिक की विजय
    • ईश्वर विश्वास और आत्म-विकास की परम्परा
    • अग्नि परीक्षा
    • मस्तिष्क और मानवीय शक्ति का रहस्योद्घाटन
    • कथा :- पूर्णता की प्राप्ति
    • भाग्य और भविष्य के महालेख और जीन डिक्सन
    • चेतन सत्ता की अनन्त सामर्थ्यवान् शक्ति-विचार
    • भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता
    • कथा - अपरिग्रह का अर्थ
    • सृष्टि कैसे चले
    • मनुष्य वृक्ष-वनस्पतियों से ही कुछ सीखे
    • पत्थर नतमस्तक हो गया
    • तब, जब ज्वालामुखी फटते हैं
    • बुद्धि का तो काम ही है पत्थर फेंकना
    • सर्वश्रेष्ठ दान (Kahani)
    • अमैथुनी सृष्टि भी उत्पन्न होती है, हो सकती है
    • पंच-रत्न
    • जैविक औषधियाँ और जन-स्वास्थ्य से खिलवाड़
    • कथा - अथातो ब्रह्म जिज्ञासा
    • गहरे में उतरता हूँ
    • मानवेत्तर प्राणियों का संसार भी मनुष्यों जैसा
    • संवेदनशीलता
    • कर्तव्य परायणता-मानव-जीवन की आधार शिला
    • बेईमानी का नहीं ईमानदारी का मार्ग अपनाये
    • अपव्यय एक पाई का भी न करें
    • पशुबलि भारतीय धर्म पर एक कलंक
    • कुंडलिनी महाशक्ति और प्राण प्रवाह
    • अपनों से अपनी बात
    • युग-निर्माण-योजना गायत्री तपोभूमि मथुरा - विवाह योग्य वर कन्याओं के विवरण-पत्र
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • आदर्शों की रक्षा
    • कथा :- सच्चा-सहचर
    • एक तुम्हीं जीवन-आधार
    • प्रेम के टाँके
    • धर्म और विज्ञान परस्पर विपरीत-किन्तु परिपूरक
    • दार्शनिक की विजय
    • ईश्वर विश्वास और आत्म-विकास की परम्परा
    • अग्नि परीक्षा
    • मस्तिष्क और मानवीय शक्ति का रहस्योद्घाटन
    • कथा :- पूर्णता की प्राप्ति
    • भाग्य और भविष्य के महालेख और जीन डिक्सन
    • चेतन सत्ता की अनन्त सामर्थ्यवान् शक्ति-विचार
    • भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता
    • कथा - अपरिग्रह का अर्थ
    • सृष्टि कैसे चले
    • मनुष्य वृक्ष-वनस्पतियों से ही कुछ सीखे
    • पत्थर नतमस्तक हो गया
    • तब, जब ज्वालामुखी फटते हैं
    • बुद्धि का तो काम ही है पत्थर फेंकना
    • सर्वश्रेष्ठ दान (Kahani)
    • अमैथुनी सृष्टि भी उत्पन्न होती है, हो सकती है
    • पंच-रत्न
    • जैविक औषधियाँ और जन-स्वास्थ्य से खिलवाड़
    • कथा - अथातो ब्रह्म जिज्ञासा
    • गहरे में उतरता हूँ
    • मानवेत्तर प्राणियों का संसार भी मनुष्यों जैसा
    • संवेदनशीलता
    • कर्तव्य परायणता-मानव-जीवन की आधार शिला
    • बेईमानी का नहीं ईमानदारी का मार्ग अपनाये
    • अपव्यय एक पाई का भी न करें
    • पशुबलि भारतीय धर्म पर एक कलंक
    • कुंडलिनी महाशक्ति और प्राण प्रवाह
    • अपनों से अपनी बात
    • युग-निर्माण-योजना गायत्री तपोभूमि मथुरा - विवाह योग्य वर कन्याओं के विवरण-पत्र
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1969 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


कुंडलिनी महाशक्ति और प्राण प्रवाह

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 31 33 Last
आकाश पीला दीखता भर है पर वस्तुतः उसमें बहुत कुछ भरा रहता है। पोल में भरी हुई हवा को आसानी से अनुभव किया जा सकता है पर इसके भीतर ‘ईथर’ नामक तत्त्व रहता है। उसी के माध्यम से रेडियो का शब्द प्रवाह देश देशांतर तक पहुँचता है अन्तरिक्ष की यात्रा करने वाले राकेटों और उपग्रहों का पृथ्वी से नियन्त्रण एवं मार्ग दर्शन करना ईथर तत्त्व के कारण ही सम्भव होता है। ईथर की मात्रा अन्तरिक्ष में लबालब भरी न हो तो हमारी आवाज पड़ोस में बैठा व्यक्ति भी न सुन सके। और पृथ्वी पर तथा अन्तरिक्ष में काम करने वाले प्रक्षेपणास्त्रों। राकेटों की सम्भावना ही न रहे। तब आकाश में सैर करने की बड़ी बड़ी योजनाएँ बनाने का भी कोई आधार न रहे। रेडियो, ट्रांजिस्टर, टेलीविजन की बात तो दूर एक आदमी की बात दूसरे सुन सकें, यह साधारण बात भी असम्भव हो जाएगी। न दिखाई देने वाला, न अनुभव में आने वाला ‘ईथर’ तत्त्व कितने गज़ब की सामर्थ्य अपने भीतर भरे बैठा है, इसके महत्व पर जब ध्यान देते है, तब आश्चर्यचकित हो जाते है।

ईथर की तरह ही आकाश में एक ओर भी तत्त्व है, जिसका नाम हे ‘ऊर्जा’ ऊर्जा उष्णता से भिन्न है। एक ऐसा शक्ति प्रवाह परमाणुओं में बहता रहता हे, जिसमें अनन्त सामर्थ्य भरी पड़ी है। बिजली का समुद्र आकाश के उदर में लहलहा रहा है। बिजली घर की मशीनें तो उस आकाश में बहने वाले शक्ति प्रवाह को पकड़ने, रोकने और काम में लाने भर का प्रयोजन पूरा करती है। अन्तरिक्ष में ऊर्जा का शक्ति प्रवाह भरा न होता तो इस संसार में एक भी प्रकार की हलचल दिखाई न पड़ती। चन्द्रमा जैसी निस्तब्ध नीरवता का यहाँ साम्राज्य रहता। सुनसान और चुपचाप ही सब कुछ दीखता। विश्व व्यापी ऊर्जा ही है जो व्यक्ति के शरीर में रक्त संचालन हृदय की धड़कन, पाचन क्रिया, ज्ञान तन्तुओं में की हलचल मस्तिष्क की उथल पुथल यह सब कुछ ऊर्जा का ही खेल है। हमारा जीवन उसी पर निर्भर हे। बाह्य जगत् में हवा का चलना, नदी का बहना, पौधों का उगना, ऋतुओं का बदलना आदि समस्त क्रिया कलापों के मूल में विश्व व्यापी प्रचण्ड शक्ति से परिपूर्ण यह ऊर्जा ही अपने चमत्कार दिखा रही है और संसार में विविध विधि हलचलें हो रही है।

जड़ जगत् में जिस प्रकार अदृश्य ‘ईथर’ भरा पड़ा है और मोटी समझ में न आने वाली शक्तिशाली ऊर्जा का अस्तित्व मौजूद है। उसी प्रकार सूक्ष्म जगत् में भी ऐसी ही चमत्कारी शक्तियाँ मौजूद है। पंच तत्त्वों से बने जड़ जगत् की तरह एक दूसरा अदृश्य अति सूक्ष्म, चेतन जगत् भी है, जिसमें सत, रज, तम तीन ही तत्त्व है और उसमें कुछ ऐसी शक्तियाँ भरी पड़ी है, जो दृश्य जगत् में जो पाया गया है, उससे भी अधिक क्षमता सम्पन्न एवं चमत्कारी है। जड़ जगत् में जैसे ‘ईथर’ है, वैसा ही चेतन जगत् में ‘महत्तत्व’ है। जड़ परमाणु के पदार्थ बनाते है। उनके द्वारा विविध वस्तुएँ विनिर्मित होती है और चेतनता के परमाणु जीवन का सृजन करते है। गिनी जा सकने वाली 84 लाख योनियाँ और न गिनी जाने वाली कीटाणुओं की कोटि कोटि श्रेणियाँ इस चेतना प्रवाह का उत्पादन है। इसी को जीवन कहते है। इसके अंतर्गत एक जड़ जगत् में काम करने वाला ऊर्जा की तरह का एक प्रचण्ड शक्ति प्रवाह भरा पड़ा है, जिसे ‘प्राण’ कहते है। जीवन में सक्रियता इसी के बलबूते पर दिखाई देती है। शरीर के मर जाने पर भी उसमें जीवन रहता है, वह तुरन्त सड़ता है कृमि पैदा हो जाते है। स्यार, कुत्ते, कौए उसे रुचि पूर्वक खाते है। यदि मृत शरीर में से जीवन समाप्त हो गया होता तो वह पत्थर, लोहे या मिट्टी की तरह स्थिर पड़ा रहता। सड़न न होती, कीड़े न उत्पन्न होते और कोई जीव उसे खाना पसन्द न करता, स्पष्ट है कि मृत शरीर में भी जीवन तो है पर जिस कारण उसकी गतिविधियाँ बन्द हो गई, वह था प्राण निकल जाना। प्राण निकल जाना अर्थात् चेतन जगत में काम करने वाली ऊर्जा का जीवन से पृथक् हो जाना। प्राण के समन्वय से ही जीवन प्रगतिशील रह सकता है। दोनों अलग हुए कि मृत्यु घोषित कर दी गई। ‘प्राणी’ शब्द ही इस तथ्य का द्योतक है कि उसकी गतिविधियाँ प्राण तत्त्व पर अवलम्बित है। जिस क्षण प्राण विलग हो जाएगा प्राणी की सत्ता भी उसी क्षण अस्त हो जाएगी।

जड़ जगत् के वैज्ञानिक ईथर और ऊर्जा के मूल सिद्धान्तों के बारे में निरन्तर शोध करते हुए बहुत कुछ जान चुके है। जो जाना जा चुका, उससे असंख्य गुना जानने को बाकी और शेष है। सो अन्वेषण कर्ता अथक उत्साह के साथ प्रकृति के सूक्ष्म रहस्यों को जानने और उनसे लाभ उठाने की धुन में पुरी तन्मयता के साथ जुटें हुए है। इस कार्य में उन्हें सरकारी और गैर सरकारी अभीष्ट सहयोग भी मिलता है। पर खेद इस बात का है कि चेतन जगत् की महत्ता अत्यधिक होते हुए भी उसकी शोध, प्रयोग और उपलब्धियों के लिए अन्वेषण कार्य नहीं के बराबर ही हो रहा है और उस दिशा में अक्षम्य उपेक्षा बरती जा रही है। यदि इतनी शोध, जितनी कि जड़ जगत् की हो रही है-उतनी ही चेतन जगत् की की गई होती तो अब तक न जाने क्या क्या मिल गया होता और हम न जाने कहाँ से कहाँ जा पहुँचे होते।

प्राण-तत्त्व का योग और तन्त्र के उभय पक्षीय साधना ग्रन्थों में बहुत कुछ वर्णन है। चेतना जगत् में संव्याप्त ‘महत्तत्व’ की तुलना ईथर से की जा सकती है और प्राण की ऊर्जा से। प्राण किसी भी प्राणी की स्थिति, पुष्टि और प्रगति का प्रधान आधार है। जिसमें प्राण की जितनी मात्रा अधिक होगी, वह उतना ही मनस्वी और तेजस्वी होगा। यह मात्रा जितनी ही न्यून होगी, उसी अनुपात से प्राणी आलसी, दीर्घ सूत्री, मन्द, अज्ञ और अविकसित बना रहेगा। रक्त माँस से शरीर का कलेवर बढ़ता है और हड्डियाँ उसे मजबूती से खड़ा रहने भर का अवसर देती है। चमड़ी का रंग और बनावट से रूप, कुरूप का अन्तन आता है। आहार विहार के द्वारा उपलब्ध कलेवर केवल आँखों से दीखने वाली स्थूलता, कृशता एवं दिखावट भर की आवश्यकता पूरी करता है। इतने भर से कोई व्यक्ति समुन्नत स्तर को प्राप्त नहीं कर सकता। प्राण की दुर्बलता रहने पर शरीर भरापूरा लगने पर भी उसमें अदक्षता और अक्षमता ही बनी रहेगी।

प्राण की किसमें कितनी मात्रा इसका अनुमान उसकी प्रतिभा को देखकर लगाया जा सकता है। प्रतिभा प्राण की ही परिणित है। यह चमक प्रतिभावान मनुष्यों के अंग प्रत्यंग में चमकती ह। शरीर कृश है या कुरूप इससे कुछ बनता बिगड़ता नहीं, जिसमें प्राण प्रवाह समुचित मात्रा में भरा होगा, वह सहज ही तेजस्वी दृष्टिगोचर होगा। कई व्यक्तियों के चेहरे पर उदासी, खिन्नता, निराशा, अवसाद ग्रस्तता, अकर्मण्यता की काली छाया स्पष्ट दीखती है। वे जीवित होते हुए भी मृत जैसे लगते है। उन्हें न किसी कार्य में उत्साह होता है ओर न स्फूर्ति दिखाई देती हे। मरे मरे से जिन्दगी का भार ढोते हुए किसी तरह सामने पड़े कामकाज रो धोकर निपटा भर लेते हे। काम में रस नहीं आता और न उमंग ही उठती है कि इस कार्य को इस उत्तमता के साथ करके इस प्रकार की सफलता पाई जाय।

मरा हुआ मन महत्त्वाकाँक्षाएँ नहीं करता। कभी स्वप्न जैसी कल्पनाएँ तो उठती है पर अशक्ति का ध्यान आते ही वे दूसरे ही क्षण विलीन हो जाती है। शरीर देखने में पराश्ट होते हुए भी उस शक्ति से रहित होता है, जिसके द्वारा श्रम किया जाता है। महत्त्वपूर्ण काम करने में रक्त माँस में रहने वाली गर्मी काफी नहीं होती वरन एक और अन्तरंग क्षमता की आवश्यकता पड़ती है, जिसके आधार पर व्यक्ति बिना थके, देर तक, उत्साह के साथ काम करता रहता है- इस क्षमता का नाम ‘प्राण’ है। शरीर से रुग्ण और अशक्त होते हुए भी लोग इतना काम करते रहते है, जितना किसी बलवान पहलवान के लिए भी कठिन पड़ता है। काम के साथ गुँथ जाने और प्रस्तुत प्रयोजन की पूर्ति में तन्मय होकर जुट जाने की सामर्थ्य शरीर के भीतर रहने वाले प्राण की मात्रा पर निर्भर है।

अध्यात्म क्षेत्र के वैज्ञानिकों ने तपस्वी ऋषियों ने प्राण तत्त्व की अति महत्त्वपूर्ण शोध किसी समय की थी और उससे लाभ उठाने की सांगोपांग क्रिया पद्धति सर्वसाधारण के सामने प्रस्तुत की थी। प्राणायाम एक सुविस्तृत विज्ञान है। इसे छोटे से छोटे और बड़े से बड़े प्रयोजनों में प्रयुक्त किया जा सकता है। फेफड़ों को मजबूत बनाने और वायु विकारों के समाधान करने के लिए गहरी साँस लेना डी ब्रीदिगं प्राणायाम की हलकी किस्म है। इसे स्वास्थ्य संरक्षण के लिए काम में लाया जाता है। संध्या वन्दन में इसी किस्म के प्राणायाम का प्रयोग किया जाता है ताकि वायु संचारक अंगों का हल्का-सा व्यायाम होता रहे और उन अंगों से सम्बन्धित रोगों से ग्रस्त होने का अवसर न आवे।

विदेशों में इस स्तर पर और भी अधिक प्रयोग हुए हैं। जापान के डाक्टर शेराबुज 15 से 35 वर्श तक की आयु में फेफड़ों के क्षय से ग्रसित रहे। जापान के हर बड़े अस्पताल में उन्होंने प्रवेश लिया ओर फेफड़ों में हवा भराव रहने से लेकर कई पसलियाँ निकलवा देने तक-दवाओं से लेकर परिचर्या प्रतिबन्धों तक उन्होंने पूरी सावधानी बरती पर लाभ कुछ नहीं हुआ और उनका दाहिना फेफड़ा बिलकुल निकाल देने की नौबत आ गई। इसी समय किसी प्रकार उन्हें गहरी साँस लेने वाली प्राणायाम की प्रथम प्रक्रिया की जानकारी मिली और वे उसका प्रयोग करने लगे।परिणाम बहुत चमत्कारी हुआ। स्वास्थ्य तेजी से सुधरने लगा और एक वर्श के भीतर वे पूर्णतया क्षय मुक्त हो गये। इस पद्धति से वे बहुत प्रभावित हुए और अस्पताल से निकालते ही उन्होंने प्राणायाम प्रशिक्षण के सैकड़ों केन्द्र जापान के कोने-कोने में स्थापित किये और अपने जैसे ही हजारों-लाखों रोगियों के प्राण बचाये।

हलके एवं प्रारम्भिक प्राणायाम भी शरीर में प्राण शक्ति का अभिवर्धन कर सकते हैं। उस बढ़ी हुई शक्ति के द्वारा रोगों से लड़ना और उन्हें परास्त करना सरल है। जीवनी शक्ति सब कुछ कर सकती है। वह काम करने की क्षमता उत्साह स्फूर्ति आशा उमंग जैसी अभिनव क्षमता ही प्रदान करती हो सो बात नहीं रोगों से लड़ा और उन्हें मार भागने की भी सामर्थ्य उसमें भरी पड़ी है। इस जीवनी-शक्ति की -प्राण प्रवाह को किसी प्रकार बढ़ाया कमाया जा सके तो निश्चय ही रुग्णता पर विजय प्राप्त करके स्वास्थ्य और परिपुष्टता का लाभ उठाया जा सकता है।

प्राण शक्ति का छोटा चमत्कार आरोग्य संवर्धन है। पर वह इतने तक ही सीमित नहीं। जीवन के हर क्षेत्र में उसकी सामर्थ्य का सत्परिणाम देखा और पाया जा सकता है। चेहरे पर ओज और आँखों में तेज प्राण शक्ति का ही चमत्कार है। किसी के सामने जाते ही हम इतने प्रभावित हो जाते हैं कि विरोध और असहमति की बात जो सोचकर गये थे वे हवा में उड़ जाती हैं और उसके सामने सहमति प्रकट करने एवं हाँ में हाँ मिलाने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं रह जाता। मैस्मरेजम हिप्नोटिज्म की साधना में त्राटक गोलकों में विकसित इस प्राण प्रवाह के द्वारा केवल नेत्रों का तेज बढ़ाया जाता है और चक्षु गोलकों में विकसित इस प्राण प्रवाह के द्वारा सम्मोहन के कितने ही खेल चमत्कार दिखाये जाते हैं। इस प्रकार का प्राण प्रवाह अन्य इन्द्रियों में भी होता है। उस विकसित और व्यवस्थित किया जा सके तो शरीरगत प्राण प्रवाह हमारे व्यक्तित्व को प्रखर तेजस्वी एवं प्रभावशाली बना सकता है।

कुण्डलिनी शक्ति की चर्चा में गत वर्श दिसम्बर में हमने एक लेख-माला आरम्भ की थी। इसके बाद देश भर के दौरे का क्रम बन जाने से वह महत्त्वपूर्ण प्रतिपादन रुका पड़ा रहा अब उसे पुनः आरम्भ करने जा रहे है। उस लेख में हमने कुण्डलिनी के दक्षिणी ध्रुव-मूसलाधार चक्र की चर्चा की थी और कहा था कि जननेन्द्रिय केवल मूत्र विसर्जन अथवा काम-क्रीड़ा के लिए ही नहीं वरन उसमें प्राण शक्ति का क ध्रुव केन्द्र अवस्थित है। नये मनुष्य उत्पन्न कर सकने की क्षमता से सुसम्पन्न यह केन्द्र है। प्रजनन के द्वारा मनुष्य प्रजापति की एक छोटी भूमिका प्रस्तुत करता है। इस केन्द्र का वैज्ञानिक स्तर पर उत्खनन उदीप्तीकरण एवं प्रस्फुरण किया जा सके तो मनुष्य विश्वव्यापी प्राण तत्त्व के साथ अपना सम्बन्ध जोड़कर अति मानव बन सकता है शट चक्रों में सन्निहित अष्ट सिद्धि एवं नवानद्धि उसे करतल गत हो सकती हैं।

मूलाधार चक्र में मानव शरीर के प्राण प्रवाह का एक सिरा जुड़ा है। दूसरा सिरा सहस्रार कमल मस्तिष्क का मध्य बिन्दु है, जिसे ब्रह्मरंध्र भी कहने हैं। इन दोनों सिरों की शक्ति का एक दूसरे में आवर्तन प्रत्यावर्तन होता रहता है। मस्तिष्क और जननेन्द्रिय का परस्पर अविच्छिन्न सम्बन्ध है। काम वृत्ति को मनसिज अर्थात् मन से उत्पन्न कहते हैं। मन में कामुकता के विचार आयेंगे तो जननेन्द्रिय में हलचल होगी। जननेन्द्रिय स्वप्नावस्था में वीर्यपात कर रही होगी तो अनायास ही स्वप्न में विषयभोग के दृश्य दीखेंगे। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए हम विद्यार्थी को ब्रह्मचारी कहते हैं। जो ब्रह्मचर्य द्वारा शक्ति का संचय करेगा, वह विद्या प्राप्त कर लेगा। जिसने एक सिरे में छेड़छाड़ शुरू की उसका दूसरा सिरा उत्तेजित होगा। कामुकता ही हलचलें करने वाले को सफल विद्याभ्यासी होने ही आशा छोड़नी पड़ती है। मोटी आँखों से शिवलिंग की पूजा अश्लील प्रतीत होती है। नारी और नर की जननेन्द्रिय का सम्मिश्रित स्वरूप ‘शिवलिंग और जलहली’ बनाकर हम पूजते और उस पर जल चढ़ाते है, इसका आध्यात्मिक रहस्य ब्रह्मचर्य का प्रतिपादन और इन इन्द्रियों को ब्रह्म रूप मानकर उनका अति उच्च उद्देश्य, उद्देश्यों के लिए ही प्रयोग करने का तत्त्वज्ञान है। जल चढ़ाकर इन शक्ति संस्थानों को उत्तेजित न करके शीतल रखने की आस्था को ही सुदृढ़ करते हैं।

प्रकट रहस्य है कि शरीर के अन्य अंगों का स्पर्श हो जाने पर नर-नारी के बीच कोई खास विकृति नहीं आती। यदि जननेन्द्रियों का तनिक सा सम्पर्क एक दूसरे को न छूटने वाले दाम्पत्य जीवन में बाँध देता है। कारणवश न भी बँधे तो लगभग वैसी ही स्थिति उत्पन्न कर देता है। इसलिये इस सन्दर्भ में बहुत सतर्कता बरतने और बहुत सोच समक्ष कर ही इस दिशा में कदम बढ़ाने की अपनी परम्परा बनी है। जबकि दूसरे देशों में लुक छिपाकर काम सेवन को कोई महत्व नहीं दिया जाता है। कारण यही है कि यौन सम्पर्क से उत्पन्न आकर्षण इतना प्रबल होता है कि वह अवांछनीय जोड़ो को भी परस्पर जोड़कर भविष्य के लिए अवांछनीय परिणाम उत्पन्न करता है। ब्रह्मचर्य की महिमा इसीलिये है कि प्राण शक्ति के शरीरगत दक्षिणी ध्रुव का अवांछनीय दुरुपयोग न होने पाये। वैज्ञानिक कहने रहते हैं कि पृथ्वी के ध्रुवों से परमाणु परीक्षण आदि की बड़ी हलचलें दूर रखी जायें अन्यथा धरती अपनी धुरी से हटकर किसी दूसरी कक्षा में बहक सकती है और संसार का सारा क्रम एवं स्वरूप ही बिगड़ सकता है। ब्रह्मचर्य की छेड़छाड़ ऐसी ही संवेदनशील है, उसका भले से भला और बुरे से बुरा परिणाम हो सकता है।

गुदा और जननेन्द्रिय के बीच में जो थोड़ा सा खाली स्थान है, वही मूलाधार चक्र का स्थान है। सुमेरु भी यही है। कूर्म अवतार भी यहीं विराजमान् है। कुण्डलिनी शक्ति का एक सिरा इसी स्थान पर है। यहाँ प्राण शक्ति का आधा भाग विद्यमान् है। साधक इस संचित महाकोष से जितनी मात्रा में चाहे शक्ति का अनुदान प्राप्त कर सकते है और तेजस्वी, मनस्वी, यशस्वी बन सकते है। और दुरुपयोग करके जवानी में वृद्धावस्था वरण करके अकाल के काल कवलित भी हुआ जा सकता है।

समुद्र मन्थन की अलंकारिक पौराणिक कथा के कई रहस्य है। उनमें से एक यह ड़ड़ड़ड़-जीवन रूपी समुद्र को यदि कर्म रूपी मंदराचल पर्वत के माध्यम से मथा जाय तो उसमें से अनेक प्रकार की श्री, समृद्धि, सम्पत्ति और सफलताओं के चौदह रत्न निकल सकते है। एक यह भी है कि मूलाधार पर्वत है, उसके नीचे का कूर्म, कच्छप भगवान है। यह कायर समुद्र है। शेषनाग जिससे यह समुद्र मथा गया था, साड़े तीन चक्रों में लपेटी हुई कुण्डलिनी महासर्प है। तन्त्र शास्त्रों में समुद्र मन्थन को रतिक्रिया का प्रतीक बताया गया है और उससे सम्भव है सकने वाली शारीरिक एवं मानसिक उपलब्धियों की तुलना चौदह रत्नों से की गई है। इस मन्थन को कुण्डलिनी जागरण की प्रक्रिया, ऋद्धि-सिद्धियों के चौदह रत्नों से साधक को परिपूर्ण कर सकती है। समुद्र में पहले से ही बहुत कुछ भरा और छिपा था, मन्थन द्वारा उसे निकाला भर गया। हमारे तीन कलेवरों में- स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीरों में असम्भव लगने वाली सम्भावनाओं के भाण्डागार भरे पड़े है, उन्हें यदि ठीक से ढूँढ़ा, सँभाला, सजाया और सँजोया जा सके तो हम देवोपम परिस्थितियाँ और सर्वोत्तम सम्पत्तियाँ अपने भीतर ही प्राप्त कर सकते है। उसके लिये अन्यत्र भटकने की आवश्यकता नहीं।

First 31 33 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • आदर्शों की रक्षा
  • कथा :- सच्चा-सहचर
  • एक तुम्हीं जीवन-आधार
  • प्रेम के टाँके
  • धर्म और विज्ञान परस्पर विपरीत-किन्तु परिपूरक
  • दार्शनिक की विजय
  • ईश्वर विश्वास और आत्म-विकास की परम्परा
  • अग्नि परीक्षा
  • मस्तिष्क और मानवीय शक्ति का रहस्योद्घाटन
  • कथा :- पूर्णता की प्राप्ति
  • भाग्य और भविष्य के महालेख और जीन डिक्सन
  • चेतन सत्ता की अनन्त सामर्थ्यवान् शक्ति-विचार
  • भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता
  • कथा - अपरिग्रह का अर्थ
  • सृष्टि कैसे चले
  • मनुष्य वृक्ष-वनस्पतियों से ही कुछ सीखे
  • पत्थर नतमस्तक हो गया
  • तब, जब ज्वालामुखी फटते हैं
  • बुद्धि का तो काम ही है पत्थर फेंकना
  • सर्वश्रेष्ठ दान (Kahani)
  • अमैथुनी सृष्टि भी उत्पन्न होती है, हो सकती है
  • पंच-रत्न
  • जैविक औषधियाँ और जन-स्वास्थ्य से खिलवाड़
  • कथा - अथातो ब्रह्म जिज्ञासा
  • गहरे में उतरता हूँ
  • मानवेत्तर प्राणियों का संसार भी मनुष्यों जैसा
  • संवेदनशीलता
  • कर्तव्य परायणता-मानव-जीवन की आधार शिला
  • बेईमानी का नहीं ईमानदारी का मार्ग अपनाये
  • अपव्यय एक पाई का भी न करें
  • पशुबलि भारतीय धर्म पर एक कलंक
  • कुंडलिनी महाशक्ति और प्राण प्रवाह
  • अपनों से अपनी बात
  • युग-निर्माण-योजना गायत्री तपोभूमि मथुरा - विवाह योग्य वर कन्याओं के विवरण-पत्र
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj