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Magazine - Year 1971 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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जीव जन्तुओं से भी कुछ सीखें

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First 18 20 Last
बन्दर के जीवन में स्नेह और सहानुभूति का वर्णन करते हुए सुप्रसिद्ध जीव शास्त्री बेट्स एक घटना का उदाहरण देते हुए लिखते हैं- एक बार बन्दरों के एक उपनिवेश में एक शिशु बन्दर बीमार पड़ गया। दिन भ दूसरे बन्दर तो इधर उधर उछलते कूदते रहे किन्तु एक बन्दरिया अपने बच्चे को छोड़कर कहीं नहीं गई। सम्भवतः अन्य बन्दरों के साथ अपने दल में उसे न पाकर किसी बन्दर का ध्यान उधर गया होगा। वह खोजता हुआ बंदरिया के पास पहुँचा। हाथ पकड़ कर और सूँघकर उसने वास्तविकता का पता लगाया। अपने दल में लौटकर उसने न जाने कैसी विचित्र खीं-खीं की आवाज में सभी सदस्यों को बात बताई उनका राजा तुरन्त उठकर बन्दरिया के पास गया। कई बन्दर इधर उधर से फल तोड़कर लाए। सभी बन्दर उस बन्दरिया के किनारे उसे घेर कर बैठ गये। इसके बाद बच्चा जब तक स्वस्थ नहीं हो गया उसके पास कुछ न कुछ बन्दर बैठे ही रहे। परस्पर आत्मीयता का यह उत्कृष्ट उदाहरण था जो सृष्टि के अबुद्धिमान मानवेत्तर प्राणियों में तो पाया जाता है किन्तु एक है विचारशील मनुष्य जो अपने ही पिता-माता, भाई भावज, बहनों, चाचा-ताऊ और अन्य कुटुंबियों के साथ प्रेम पूर्वक नहीं रह सकता। पारिवारिक कलह तो अब गृहस्थों में सामान्य बात हो गई है स्थिति अब परस्पर मारपीट, हत्या और मुकदमे बाजी तक पहुँच गई है। मनुष्य जाति को इस कलंक से बचना चाहिये और इन छोटे छोटे प्राणियों से ही मानवता का आदर्श सीखना चाहिए।

कृतज्ञता मनुष्य जाति का एक ऐसा गुण है कि यदि लोग दूसरे लोगों के उपकार उनकी सेवाओं के प्रति थोड़ा सा भी श्रद्धा और सम्मान का भाव रखें तो संसार से कलह और झगड़ों की 90 प्रतिशत जड़ तुरन्त नष्ट हो जाये। कृतज्ञता आत्मा की प्यास और उसकी चिरंतन आवश्यकता है लगता है यह आदर्श भी मनुष्य को अन्य जन्तुओं से ही सीखना पड़ेगा। मासिक कल्याण के एक अंक में कृतज्ञता की एक बहुत ही मार्मिक घटना छपी थी। एक डाकिया प्रतिदिन डाक लेकर जंगल से गुजरता था और दूसरे गाँव डाक बाँटने जाया करता था। एक दिन उसने पेड़ की एक डाल में छोटे से छेद में निकलने के प्रयास में एक बन्दर फंस गया है। दूसरे बन्दर कें-कें तो कर रहे थे आपत्ति ग्रस्त बन्दर भी बुरी तरह चिल्ला तो रहा था किन्तु उस संकट से छूटना उसके लिए संभव नहीं हो पा रहा था। इसी बीच डाकिया उधर से निकला उसे बन्दर की यह दशा देखकर दया आ गयी। उसके पास कुल्हाड़ी थी। पहले तो वह कुछ भयभीत हुआ पर पीछे ‘हित-अनहित पशु पच्छिम जाना’ वाली उक्ति उसे याद आई उसने अनुभव किया जब मैं भलाई करना चाहता हूँ तो बन्दर बुराई क्यों करेंगे। जन्तु योनि में पड़ी हुई चेतना आखिर आत्मा ही तो है- आत्म भावना का स्मरण कर वह वृक्ष पर चढ़ गया और सावधानी से छेद बड़ा कर उसने फंसे हुए बन्दर को बाहर निकाल लिया। बन्दर बड़ी खुशी खुशी वहाँ से चले गये उन्होंने डाकिये को न डराया न काटा। डाकिया अपनी राह चला गया।

एक सप्ताह भी न बीता था कि एक दिन उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि ठीक उसके आने के समय वहाँ बीसियों बन्दर रास्ते इधर उधर बैठे हैं पहले तो पोस्टमैन डरा पर चूँकि कुल्हाड़ी हाथ में थी इसलिए वह निश्शंक चला ही गया। जैसे जैसे वह आगे बढ़ा बन्दर इकट्ठे होते गये और डाकिया डरता गया किन्तु पास पहुँच कर उसे आश्चर्य हुआ कि यह सभी बन्दर अपने अपने एक एक हाथ में जंगली प्रदेश में पाया जाने वाला एक एक लाल रंग का दुर्लभ फल लिये हुए है। डाकिये के पास आते ही उन सब ने उसे घेर लिया और अपने अपने फल उसके हाथ में देकर पल भर में इधर उधर तितर बितर हो गये। डाकिये की आँखों में आँसू आ गये उसने अनुभव किया कि आखिर यह जीव भी तो आत्मा ही है यदि मनुष्य जीव मात्र के प्रति दया का व्यवहार करें तो संसार स्वर्ग बन जाये और नहीं तो कृतज्ञ तो एक दूसरे के प्रति होना ही चाहिए।

श्री सुरेश सिंह लिखित पुस्तक ‘जीव-जगत’ में मगर के गुणों का वर्णन करते हुए लिखा है कि उदारता के गुणों से तो यह धोखेबाज और मक्कार जीव भी रिक्त नहीं। जलाशय में घूमते, शिकार आदि खाने के बाद कई बार जब वह बाहर निकलता है तो अपना मुँह खोलकर लेट जाता है। पास पड़ोस के पक्षी उसके दाँतों और मुँह में लगे चारे को देख कर दौड़ पड़ते हैं और मुँह में घुस कर दाँत कुरेद कुरेद का आहार ग्रहण करने लगते हैं मगर चाहे तो मुँह बन्द करके उन्हें एक बार में गड़प कर सकता है किन्तु ऐसा पाप उसे भी पसन्द नहीं। शरणागत पक्षियों की सेवा वह तब तक करता है जब तक कि पक्षी अपने आप न उड़ जाएं इस बीच मगर धोखे से भी मुँह बन्द नहीं करता।

बाघ बड़ा उत्पाती जीव है, भूख लगने पर प्राकृतिक प्रेरणा से उसे आक्रमण भी करना पड़ता है किन्तु उस जैसा एकनिष्ठ पतिव्रत और पत्नीव्रत देखते ही बनता है। अपना अधिकाँश जीवन जंगलों में व्यतीत करने वाले जंगली जानवरों की प्रवृत्तियों का समीप रह कर अध्ययन करने वाले डॉ. स्टेफर्ड ने एक बहुत ही रोचक घटना दी है। दक्षिण अफ्रीका के जंगल के एक बाघ ने अभी कुछ ही दिन पूर्व अपना जोड़ा चुना था। बाघिन-वधु बीमार पड़ गई और उसी अवस्था में एक दिन उसकी मृत्यु भी हो गई। उस जंगल में और भी अनेक बाघ-कुमारियाँ उसे मिल सकती थीं किन्तु उस बाघ ने फिर किसी को अपना साथी नहीं चुना। बहुत दिन पीछे उसे एक ऐसी मादा मिली जो स्वयं भी एकाकी जी रही थी उसके पति का संभवतः देहावसान हो गया था। दोनों विधुरों ने अपना युगल फिर से स्थापित कर लिया पर सामान्य स्थिति में वे सदैव एक निष्ठ ही रहते हैं कोई भी जोड़ा दूसरे को बुरी दृष्टि से नहीं देखता। होगा बाघ बुरा हिंसक दृष्टि से किन्तु अपनी सच्चरित्रता के कारण वह सशक्त और समर्थ भी इतना होता है कि जंगल के दूसरे जीव उसको दूर से ही नमस्कार करते हैं।

आज रिश्वत और हराम की कमाई खाने वाले कायरों की बाढ़ आ रही है तब शेर का उदाहरण यह बताता है कि जंगल का राजा-समाज का सच्चा नेता-मुफ्तखोर नहीं नीति और परिश्रम से उपार्जित धन खाने वाला ही हो सकता है शेर कभी भी दूसरे का मारा शिकार नहीं करता भले ही वह बूढ़ा क्यों न हो गया हो। मनुष्य को भी आजीविका नीति-उपार्जित खानी चाहिए और उसे इस प्रकार अपने को शेर जैसा खरा सिद्ध करना चाहिए।

स्वास्थ्य के लिये दुआ भर की औषधियाँ, टानिक और तरह तरह के सन्तुलित अहार खोजने वाले मनुष्य चाहें तो घोड़े को देख कर जान सकते हैं कि शक्ति अधिक संख्या के व्यंजनों में नहीं रूखे सूखे भोजन में है। घास खाने वाले एक जर्मनी के घोड़े को 10 वर्ष तक केवल सूखी हरी घास दी गई और उसे किसी भी प्रकार सहवास से अलग रखा गया। अरबी नस्ल के इस घोड़े को परीक्षण के तौर पर एक एक कर ऊपर तक पत्थर के कोयले से भरे पाँच वैगनों के साथ जोड़ दिया गया उसे घोड़े ने एक मील तक खींच कर अपनी अद्वितीय सामर्थ्य का परिचय दिया।

मनुष्य विश्वास घात करता है तो यह देखकर लज्जा आती है कि जीवन भर दूसरों का बोझा ढोने वाले बैल जिनमें बुद्धि और विवेक के नाम पर कुछ भी तो नहीं होता, वे परस्पर ऐसी प्रगाढ़ मैत्री का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं कि दाँतों तले उँगली दबानी पड़ती है। डॉ. मूर ने हैंबर्ग के एक जोड़ी बैलों का हृदय स्पर्शी वर्णन ‘दो बैलों की कहानी’ नाम सत्य घटना में दिया है और लिखा है कि एक किसान के यह दोनों बैल काम तो साथ करते ही थे। खाने पीने से लेकर यात्रा करने तक सदैव साथ रहते थे। कभी कभी उन्हें अलग होना पड़ता तो दोनों तब तक भोजन नहीं करते थे। जब तक कि दूसरा नहीं आ जाता। एक दिन अचानक एक बैल एक खंदक में गिर गया। निकल तो आया वह पर उसके चारों पैर टूट गये। उनकी मरहम पट्टी की गई बुखार हो आया उसे। चिकित्सा के इन दिनों में दूसरे ने एक भी तिनका मुँह में नहीं दिया। हजारों लोग यह दृश्य देखने आते और कहते न जाने क्या है आत्मा की गहराई में और चेतना के विज्ञान में जो मनुष्य समझ नहीं पाता लगता था दोनों दो सहोदर भाई रहे हों। बीमारी 10 दिन चली दस दिन पीछे लूला बैल संसार से चल बसा, इतने दिन तक कुछ न खाने पीने के कारण दूसरा भी बिलकुल दुर्बल हो गया था, आटा-चून, दलिया सब कुछ देकर आकर्षित करने का प्रयास किया किसान ने, किन्तु उस बैल ने खाना तो दूर जिस दिन पहला बैल मरा जल भी छोड़ दिया और तीन दिन पीछे उसने भी इस संसार से विदा लेली। बैल चला गया पर वह एक पाठ छोड़ गया कि मैत्री हो तो ऐसी हो।

लोगों को असीमित साधन जुटाते देख कर लगता है कि मनुष्य कृत्रिम साधनों की बदौलत ही जी रहा है कदाचित यह साधन न मिलें तो उसका जीवित रहना दूभर हो जाये, किन्तु जीव जन्तु अपवाद है और उनकी जीवन शैली यह बताती है कि यदि प्राकृतिक जीवन जिया जाये तो ऐसी क्षमताएं अपने आप अन्दर से उपज पड़ती हैं जो कठिन से कठिन विपरीत परिस्थिति में भी मनुष्य का कुछ नहीं बिगाड़ सकती। ऊँट एक अच्छा उदाहरण है वह एक बार में 70 लीटर तक पानी पी जाता है पर फिर कई कई दिनों तक पानी न भी मिले तो भी उसे कोई कष्ट नहीं होता उसकी घ्राणेन्द्रिय इतनी सूक्ष्म होती है कि वह केवल सूँघ कर ही पानी का पता लगा लेता है सिद्धियों की ओर संभवतः भारतीय यह अलौकिकताएं देखकर ही आकर्षित हुए और हठ योग तथा तितीक्षा द्वारा अपने शरीर के अन्दर की वह क्षमतायें जगा डाली जो सामान्य लगती है।

छोटे-छोटे अभावों का रोना रोने वाले आदमियों के लिये दीमक ही योग्य शिक्षक है जन्म से ही अंधे यह छोटे छोटे जीव जीवन भर अविराम काम करते हैं और ऐसे विलक्षण काम करते हैं कि देखकर आश्चर्य होता है। 10 से 13 फुट तक ऊँचे मकान उठाना इन्हीं का काम है उन पर वर्षा आँधी तूफान और ऊपर से वृक्ष कट कर गिर पड़ें तो भी इनका कुछ बिगड़ेगा नहीं। पुलों के निर्माण से लेकर सड़कें बनाने और सारे दीमक राज्य को अनुशासन एवं नियम व्यवस्था में रखने के उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य वे पूरा करके मनुष्य को बताती हैं कि अनुशासन, नियमबद्धता और तत्परता पूर्वक काम किया जाये तो संसार का छोटा से छोटा भी असाधारण कार्य सम्पादित कर सकता है।

कितना अच्छा होता मनुष्य इन छोटे भाइयों से कुछ सीखता और अपना समस्त जीवन सुखी बनाता।

First 18 20 Last


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Type: SCAN
Language: HINDI
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Type: TEXT
Language: HINDI
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