Magazine - Year 1971 - Version 2
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Language: HINDI
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युग परिवर्तनकारी सत्ता का प्राकव्य
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अक्टूबर 1970 में ही मासिक ‘राष्ट्र धर्म’ के नाम ‘संसार के भविष्य का एक पूर्व संकेत’ नामक लेख भेजा था। जिसमें अन्य महत्वपूर्ण भविष्य वाणियों के साथ एक भविष्य वाणी-पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश ) में खण्ड प्रलय की बात भी कही गई थी ( यह लेख राष्ट्र धर्म के जनवरी 1972 अंक में छपा था ) इसी लेख में विहार प्रदेश के व्यापक रूप से जलमग्न और क्षति ग्रस्त होने की भी भविष्य वाणी थी। उस समय तक ऐसा कोई लक्षण नहीं था जिससे तत्काल यह मान लिया जाता कि वस्तुतः ऐसा होगा किन्तु सचमुच दो माह बाद ही समुद्री तूफान आया और पूर्वी पाकिस्तान के 10 लाख लोगों को नष्ट करके रख गया। आज भी वहाँ की प्रलय विभीषिका समाप्त नहीं हुई और सुसंस्कृत नव्य समाज वाले देश के रूप में दिखाई देगा। बिहार के सम्बन्ध में की गई भविष्य वाणी की सत्यता भी स्पष्ट देखी जा सकती हैं। यह पंक्तियाँ जिस समय लिखी जा रही हैं अधिकाँश बिहार बाढ़ की चपेट में फँसा हुआ है जब कि उसकी भविष्य वाणी 10 से 11 महीने पहले कर दी गई थी। यह भविष्य वाणी शाहजहाँपुर के एक सुप्रसिद्ध योगी और सन्त महात्मा रामचन्द्र ने की योगाभ्यास द्वारा अन्तश्चेतना में पच्चीस-पचास वर्ष बाद भविष्य के गर्भ में पक रही घटनाओं को भी आज घटित-घटनाओं की तरह स्पष्ट देखा जा सकता है। मौसम-विज्ञान के विशेषज्ञ यह जानते हैं कि जो बादल आज बरस रहे हैं वे आकाश में 4-5 दिन पूर्व ही चक्कर काट रहे थे और वे जिस भाप से बने हैं वह महीनों पहले समुद्र में खौलाई जा रही थी उसे खौलने वाला बड़वानल उससे भी पहले से काम कर रहा होगा। तात्पर्य यह कि आज की घटना काफी समय पूर्व से प्रारम्भ हलचलों का परिणाम होती है चाहे वह घटना योजना और विचार मंथन के रूप में प्रारम्भ में मन तक ही सीमित क्यों न रही हो। यही बात भविष्य के सम्बन्ध में भी हैं। ईश्वरीय सत्ता को जो कुछ कल करना है उसकी योजनायें वह काफी पहले ही बना चुकी होती है फिर अपनी सहायक शक्तियों से परामर्श कर उन्हें परिवर्तन के कार्यों में नियोजित करती है महीनों वर्षों तक चलने वाली मंत्रणाएं और योजनायें कार्यान्वित होने और फलित होने से काफी समय पहले अस्तित्व में आ चुकी होती हैं पर जिस तरह युद्ध या किसी बड़ी झाटना की रूप-रेखायें कुछ जिम्मेदार लोगों की ही जानकारी में अति गोपनीय (टाय सीक्रेट) रखी जाता है ईश्वरीय विधान भी दिव्य निर्मल योगात्मायें ही जान सकती हैं। सिद्धान्त में यह बात बिलकुल सच है कि योगी के लिये भविष्य को वर्तमान की तरह देख सकना कोई बड़ी असम्भव बात नहीं हैं। ‘संसार में जब भी कोई देवदूत आया, अवतार हुआ तब तब प्रकृति ने उसके निमार्ण के पूर्व की अवस्था का ध्वंस करने में सहयोग अवश्य दिया है वह महा संघर्ष की भूमिका इसी शताब्दी के अन्त तक निश्चित रूप से घटित हो जानी चाहिए। परिवर्तन का समय आ गया है जो अब टल नहीं सकता। ईश्वरीय सत्ता मानवीय रूप में अपनी परम प्रिय ‘स्वर्गादपि गरीयसी’ धरती पर भारतवर्ष में जन्म ले चुकी है और अपना काम करने में लगी हुई है जब उसकी तमाम योजनायें और क्रिया-कलापों सामने आवेंगे तब लोगों को पता चलेगा और पश्चात्ताप भी होगा कि भगवान् राम, श्रीकृष्ण भगवान, बुद्ध और परशुराम की तरह का अवतार हमारे समय में आया और हम उन्हें पहचान भी न सके सहयोग देना तो दूर की बात रही।’ यह शब्द भी उन्हीं महात्मा रामचन्द्रजी के हैं जिनकी भविष्य वाणियों का इन पंक्तियों में उल्लेख किया जा रहा हैं। ये किसी प्रकार के यश लोकेषणा की कामना के बिना सच्चे योगी के समान आत्म-कल्याण और लोक-मंगल में रत रहते हैं यह भविष्य वाणी तो उनकी इस प्रेरणा का प्रतीक समझी जानी चाहिए कि जागृत आत्मायें यदि उनका विवेक साथ देता हो तो, विद्यमान देवदूत को पहचानें और उसके इस नव-निर्माण के महा संघर्ष में हनुमान नल, नील अंगद की तरह मुक्ति-वाहिनी का सेनापतित्व करने के लिये आगे आयें। कुछ शंकालु और आर्य समाज जैसे तर्क वाले व्यक्तियों ने महात्मा रामचन्द्र से प्रश्न किया परमात्मा तो सर्वव्यापी सत्ता है, तत्व रूप में है वह अवतार कैसे ले सकता है ? इस पर उन्होंने समझाया कर्म-कलाप के लिए मन भी मिला हैं अचेतन मन अतीन्द्रिय जगत का अधिष्ठाता है मन प्रत्यक्ष जगतकारः मन से ही योजनायें बनती और फिर क्रियान्वित होतीं हैं परमात्मा में ‘मनस’ शक्ति नहीं होती पर मनुष्य जाति के उद्बोधन और मार्ग-दर्शन के लिये तो यह शक्ति ही आवश्यक है इसीलिये अदृश्य चेतना के रूप में काम करने वाली सत्ता को मन से परिपूर्ण होने के लिए किसी शरीर में व्यक्त होना पड़ता है। शरीर में होने पर भी उसकी शरीर से कोई आसक्ति नहीं होती अर्थात् काम, क्रोध, लोभ, मोह, आदि मनोविकार उसका कुछ नहीं कर पाते। वह भूत भविष्य सब कुछ जानने वाला होने पर भी अन्य मनुष्यों की तरह ही काम करने वाला होता है किन्तु उसका अतीन्द्रिय ज्ञान और बल एवं मनोबल इतना प्रचण्ड और प्रखर होता है कि संसार का कोई भी दुस्तर से दुस्तर कार्य उसके लिये असम्भव अशक्य नहीं होता। ऐसी ही दिव्य सत्ता भारतवर्ष में अपना काम कर रही हैं बहुत शीघ्र उसे लोग पहचानेंगे। अपनी इस भविष्य वाणी में ही महात्मा रामचन्द्र ने जहाँ इस दिव्यं सत्ता की प्रचण्ड सामर्थ्य का दिग्दर्शन करा दिया वहाँ लोगों की पहचान के लिये मानो संकेत भी दे दिया हैं-उनकी भविष्य वाणी का यह अंश बार-बार पढ़ने और मनन करने योग्य है-सूर्य की गर्मी पिछले कुछ समय से कम हो रही है वैज्ञानिक हैरान है कि सूर्य के इस हाश्र का कारण क्या हो है वे इस कारण भी चिन्तित है कि सूर्य की ऊर्जा व गर्मी समाप्त हो जाने से सारे भौतिक साधन होने पर भी मनुष्य जाति का अस्तित्व संकट में पड़ सकता है और उससे बचने का कोई उपाय उनकी समझ में नहीं आ रहा। सूर्य की शक्ति के इस असाधारण हास पर प्रकाश डालते हुए योगाचार्य लिखते हैं कि यह हास मनुष्य के रूप में इस महान् ईश्वरीय सत्ता द्वारा उसका उपयोग है प्रकृति जो परिवर्तन करती है वह सूर्य के परिवर्तन से ही प्रारम्भ होता है क्योंकि दृश्य जगत का आत्मा सूर्य ही है तीव्र हास का तात्पर्य यह है कि जो कुछ परिवर्तन होना है वह जल्दी ही हो जाये इस शक्ति का उपयोग भगवान् द्वारा नियुक्त यह अवतार ही कर रहा है। जैसे ही कार्य पूरा हुआ प्रकृति ने अपनी नई व्यवस्था का क्रम जमा लिया सूर्य फिर से अपनी पूर्व-प्रखर पर आ जायेगा। (अखण्ड-ज्योति के पाठकों को यह स्मरण दिलाना समयोचित ही होगा कि गायत्री उपासना का सीधा सम्बन्ध सूर्य से है अखंड-ज्योति में कई बार छप चुका है कि गायत्री सिद्ध हुये आत्मदर्शी पुरुष और सूर्य में कोई अन्तर नहीं होता दोनों तदाकार हो जाते हैं अतएव यह निर्विवाद सिद्ध है कि यह नया अवतार महान् सावित्री शक्ति (गायत्री तत्व या सूर्य शक्ति) का सिद्ध होगा। यह स्पष्ट संकेत है नये निर्माता की पहचान का)। योगिराज की कई महत्वपूर्ण भविष्य वाणियाँ भी हैं जो आगे समय पर सत्य सिद्ध होने के लिये प्रतीक्षित हैं उनका कथन है-मैंने अपनी अतीन्द्रिय योग दृष्टि से देखा है कि लन्दन के बीच एक भयंकर ज्वालामुखी फूटेगा, इंग्लैंड का दक्षिणी भाग समुद्र में धंस जावेगा इंग्लैंड बहुत अधिक ठण्डा हो जायेगा। रूस अमेरिका और योरोप के वह देश जो आज अत्यन्त वैभव सम्पन्न दीख रहे हैं और विश्व नीति की शतरंज मनमाने ढंग से खेल रहे हैं उनका भविष्य अत्यन्त अन्धकार पूर्ण है। जो मार्क्सवाद आज रूस में विस्तार पूर्वक फैला है वह रूस में ही दफन हो जायेगा। अमेरिका की सारी सम्पन्नता ढेर हो जायेगी। गल्फ स्टीम अपने बहाव की दिशा बदल देगी और इस बीच भारतवर्ष अपनी आध्यात्मिक धार्मिक साँस्कृतिक, आर्थिक, औद्योगिक, राजनैतिक उन्नति करता हुआ शीर्ष स्थान की ओर बढ़ता जायेगा और फिर से सारी दुनिया का नेतृत्व करने की स्थिति में पहुँच जायेगा। फिर एक लम्बे समय तक विश्व का नेतृत्व भारतवर्ष के हाथ में रहेगा।’ प्रसिद्ध वक्ता श्री रामचन्द्र इस बात से पूर्णतया सहमत हैं कि आज का बुद्धिवाद और नास्तिकता धर्म और आध्यात्म के प्रति उत्कट आस्था में बदल जायेंगे। उसके लिये जो ईश्वरीय सत्ता उदित हुई और काम कर रही है वह अहंभाव से पूर्णतया मुक्त होगी-शरीर में होने पर भी वह नितान्त भावनाओं से बनी एक प्रकार की भाव प्रतिमा होगी-अर्थात् वह मानवीय मन न होकर ईश्वरीय मन होगी जो सैंकड़ों लोगों की सहायता करती हुई युग-प्रत्यावर्तन प्रक्रिया को पूरा कर रही है। उसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य होगा महा संघर्ष का संचालन जिसमें कि उसकी विचार शक्ति भी कार्य करेगी और अदृश्य आत्म शक्ति भी। एक ओर वह सारे विश्व में आन्तरिक विचार क्रान्ति करेगा तो दूसरी प्रकृति को आलोड़ित करके भयंकर स्थिति उत्पन्न कर देगा। महामारी, युद्ध, अति वृष्टि यह सब इसी मनुष्य के रूप में ईश्वरीय सत्ता की ही रुद्र प्रक्रिया होगी जो इस समय तो देखने में बहुत भयानक लगेगी पर वस्तुतः आज जो संसार में सड़ी गली विकृति फैली हुई है घाव साफ करने की तरह वह इस पीड़ाजनक परिस्थितियों में ही साफ होगी उसके बाद जो संसार बचेगा वह एक नया युग-स्वर्गीय सतयुग होगा। तब भारतीय अध्यात्म फिर से सारे विश्व में फैल जायेगा और संसार के सारे लोग वर्ण भेद, जाति भेद, भाषा और संस्कृति भेद, लिंग भेद से मुक्त होकर मानवता के आदर्श सिद्धान्तों का जीवन जीने लगेंगे। ईश्वरीय प्रक्रिया उसी कार्य में जुटी हुई है। यह भविष्य वाणी केवल कौतूहल के लिये नहीं है। अतीन्द्रिय दृष्टा की प्रेरणा को समझा जाना चाहिए और यदि मन किसी ईश्वरीय दिव्य सत्ता के अस्तित्व को स्वीकार करता हो तो उसकी सहायता का साहस भी प्रदर्शित किया ही जाना चाहिए।