Magazine - Year 1971 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
आत्मा-भव की शक्ति
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
इत्वला और वातावी की ताँत्रिक शक्ति के आगे सारी मणिमती नगरी भयभीत थर्राती थी। असुर दैत्य बड़े उत्पाती और मायावी थे मणिमती नरेश तक उन दोनों भाइयों का कुछ बिगाड़ नहीं सके थे सामान्य मनुष्य की तो बात ही क्या थी।
वातापी छोटा था और उसने विवाह भी नहीं किया था किन्तु इल्वला गृहस्थ था किन्तु विवाह हुए दर्शियों वर्ष बीत गये उसे कोई सन्तान नहीं हुई थी। स्नेह और आत्मीयता जहाँ हर व्यक्ति की आन्तरिक चाह होती है वहाँ जब तक अधिकार पूर्ण स्नेह और प्रेम का दान न दिया जाये तब तक अन्तःकरण शान्ति नहीं पाता। तात्पर्य यह कि ममता और आत्मीयता का विनिमय ही सच्चा सुख है जिसने भी यह व्यापार किया जिन्दगी का सच्चा सुख केवल मात्र उसी ने पाया।
इसी अभाव के कारण दुखी इल्वला एक दिन तपस्वी ब्राह्मणों के पास गया और बोला- आप लोगों की कृपा हो जाये और मुझे एक सन्तान का वरदान मिल जाय तो आप जो भी कहेंगे से करने के लिए तत्पर हो जाऊँगा। दीन-भाव से कभी कोई शरण आये तो कितना ही बुरा क्यों न हो विज्ञजन उसे आत्मीयता प्रदान करते हैं अच्छा व्यवहार करते हैं और यह मानकर चलते हैं कि आत्मा बुरी नहीं सांसारिक परिस्थितियाँ और आकर्षण बुरे है सो यदि किसी आत्मा को सही रास्ते लगा दिया जाये तो वह उसे सबसे अच्छा पाठ और दंड होता है। दुत्कारना तो एक प्रकार से आत्मा का अपमान है और वह भी तब जब कि कोई भावना पूर्वक शरणागत हुआ हो।
ब्राह्मणों ने इसे फटकार दिया और कहा- दुष्ट तूने सैकड़ों का रक्त पिया है उसी का दण्ड़ दिया है भगवान् ने तुझे जा तेरा भला नहीं होगा। इल्वला पहले ही अपराधी था इस प्रताड़ना ने ता उसे और भी क्रूर बना दिया। उसने तपस्वियों के विनाश का षड़यन्त्र रचा। वातापी शरीर को अणु-अणु पदार्थ में विभक्त कर बिखर जाने और इच्छा मात्र से फिर अणु अणु संलपन से अपने यथार्थ रूप में आ जाने की विधा जानता था सो इल्वला ने वातापी की मदद ली। उसने समस्त ब्राह्मण का भोज दिया कपट रूप भेड़ बनाकर वातापी का माँस टुकड़े-टुकड़े कर रँधवाया गया और अन्य भोज्य पदार्थों के साथ उसे भी परोस दिया गया। स्वादेन्द्रिय में आसक्त ब्राह्मणगण षडयंत्र को जान नहीं पाये वे वातापी को माँस बड़े प्रेम पूर्वक खा गये। ब्राह्मण भोजन कर जैसे ही उठे इल्वला ने वातापी की जोर से आवाज दी और आवाज पाते ही वातापी के शरीर-कोश ब्राह्मणों के शरीरों को फाड़-फाड़कर निकल आये। वातापी ज्यों का त्यों असली रूप में आ गया पर समस्त ब्राह्मण वही ढेर हो गये।
समस्त राज्य में हाहाकार मच गया। इसी समय अपनी धर्म-पत्नी लोपा मुद्रा के लिये आभूषणों के लिये महर्षि अगस्त घूमते हुए इल्वला के पास पहुँचे। इल्वला ने अगस्त ऋषि के सम्मुख अपनी माँग प्रस्तुत की। महर्षि ने कहा - तात ! तुम्हें पुत्र मिल तो सकता है किन्तु यदि वह तुम्हें दुःख दे तो ऐसे पुत्र से क्या लाभ ? क्यों नहीं तुम आत्मा-कल्याण की इच्छा करते। यों पाप बढ़ाने से क्या लाभ ? हाँ यदि तुम आत्म संशोधन करना स्वीकार कर लो तो हम तुम्हारी मदद अवश्य कर सकते हैं। महर्षि की आत्मीयता ने असुर का हृदय बदल दिया और आत्म-कल्याण में जुट गया उससे उसे ऐसी शान्ति मिली कि फिर उसने पुत्र की भी कामना का परित्याग कर दिया।