
प्राण परिवर्तन की अद्भुत घटना
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एक ही तारीख, एक ही दिन धरती के ठीक विपरीत भागों में एक ही नाम के दो व्यक्ति बीमार पड़े - अचेतावस्था में एक का प्राण दूसरे के शरीर में, दूसरे का प्राण पहले के शरीर में परिवर्तित हो जायें तो ? उसे मात्र संयोग नहीं वरन् आत्मा का अद्भुत तत्त्व दर्शन और किसी सर्वोपरि बुद्धिमान सत्ता की अनोखी लीला ही कहेंगे । 22 सितम्बर सन् 1874 की बात है, रूस के यूराल पर्वत स्थित नगर औरन वर्ग का एक धनकुबेर यहूदी बीमार पड़ा, डाक्टरों ने उसे सन्निपात होना बताया । उसकी नाड़ी लगभग टूट गई, शरीर ठंडा पड़ गया, बत्तियाँ जला दी गईं। अन्तिम प्रार्थना की जाने लगी, तभी मरणासन्न यहूदी इब्राहिम चारकों के शरीर में फिर से चेतना लौटती दिखाई दी, श्वाँस गति धीरे-धीरे तीव्र हो उठी, आँखें खुल गईं, उसने अपने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई। लगा अब बिलकुल ठीक हो गया, कुछ गड़बड़ दीख रही थी - इतनी ही कि वह कुछ विस्मित, आश्चर्यचकित सा दीख रहा था मानो इस स्थान के लिये वह निरा अनजान हो । गीता के 23 वें अध्याय में मनुष्य शरीर को क्षेत्र और उसमें निवास करने वाली आत्म-चेतना को क्षेत्रज्ञ कहा है और बताया है- इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभि धीयते ।
एतद्यो वेत्तितं प्राहुः क्षेत्रज्ञ इति तद्विदः ॥ क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत ।
क्षे़त्र क्षेत्रज्ञयोज्ञानं यत्तज्ज्ञानं मतंमम ॥ - गीता 13/1-2 अर्थात्-हे अर्जुन जिस प्रकार से खेत में बोये हुये बीज समय पर फल देते हैं उसी प्रकार मनुष्य का शरीर क्षेत्र है और उसके द्वारा किये गये कर्म बीज। यह संस्कार रूप कर्मबीज समय पर फल देते हैं । इस प्रकार प्रकृति के गुणों से भी उन्हें जानने वाला पुरुष (चेतना) तत्व रूप से दो वस्तुयें है यह जानने वाला (क्षेत्रज्ञ) शरीर का संस्कार जन्म चेतना से भिन्न है जो ऐसा जानता है वह फिर जन्म नहीं लेता, देवत्व को प्राप्त करता है । इन पंक्तियों में आत्मा के जिस पृथक अस्तित्व की बात स्वीकार की गई है, प्रस्तुत घटना उसका जीता जागता उदाहरण है। यह घटना सर्वप्रथम सेन्टपीटर्सवर्ग की वीकली मेडिकल जर्नल में छपी। उसी के आधार पर उसे “थियोसाफिकल इन्क्वारीज” ने छापा और बाद में यह अक्टूबर सन् 1884 में आर्य-पत्रिका में भी छपा । होश में आने के बाद इब्राहीम चारको ने जो शब्द कहे उन्हें सुनकर घर वाले थोड़ा चौंके क्योंकि वह भाषा घर में कोई नहीं समझ पाया । घर वालों ने अपनी भाषा में बातचीत करनी चाही पर इब्राहीम चारको ने जो कुछ कहा उसे घर का एक भी सदस्य नहीं समझ पाया । लोगों ने समझा इब्राहीम पागल हो गया । वह इसी तरह दिन भर बड़बड़ाता, शीशे में चेहरा देखता और घर से भागने की चेष्टा करता । पागलों का इलाज करने वाले डाक्टर परेशान थे कि पागल होने पर मनुष्य चाहे जितना ऊल-जलूल बोले पर बोलता अपनी भाषा है और अस्त-व्यस्त बोलता है पर इब्राहीम जो कुछ बोलता है वह सब एक ही भाषा के शब्द है । उसने कागज पर कुछ लिखा उसे भाषा विशेषज्ञों से पढ़ाया गया तो पता चला कि उसने जो लिखा वह लैटिन भाषा के क्रमबद्ध शब्द और वाक्य थे जो निरर्थक नहीं थे । इब्राहीम चारको को लैटिन के एक अक्षर का भी ज्ञान नहीं था यही हैरानी थी कि वह आधे घण्टे के अन्तर से लैटिन किस तरह जान गया । अब उसे सेन्टीपीटर्सवर्ग की मेडिकल यूनिवर्सिटी में ले जाया गया । वहाँ लैटिन भाषा जानने वाले प्रोफेसर आरेलो ने उसका परीक्षण किया। पहली बार इब्राहीम ने खुलकर लैटिन में बात की। उसने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा-आज मैं खुश हूँ कि कम से कम आप मेरी बात तो सुन और समझ सकते हैं । आप यकीन नहीं करेंगे पर यह है सच भगवान् जाने कैसे हुआ पर मैं ब्रिटिश कोलम्बिया (उत्तरी अमेरिका) का रहने वाला हूँ, न्यूवेस्ट मिनिस्टर में मेरा घर है। मेरी पत्नी भी है और बच्चा भी। मेरा नाम इब्राहीम ही है पर इब्राहीम चारको नहीं, इब्राहीम उरहम है। प्रोफेसर आरलों ने उस समय तो यही कहा कि यह सब जासूसी षड़यंत्र सा लगता है। इससे अधिक वे कुछ जान न पाये। इसी बीच इब्राहीम वहाँ से चुपचाप भाग निकला। फिर बहुत दिनों तक उसका पता न चला। लोगों ने समझा वह किसी नदी-जोहड़ में डूबकर मर गया। कुछ दिन बाद ब्रिटिश कोलम्बिया के अखबारों में एक विचित्र घटना छपी। ठीक उसी दिन, जिस दिन रूस का इब्राहीम चारको बीमार पड़ा था, न्यूवेस्ट मिनिस्टर के एक साधारण परिवार में भी इब्राहीम उरहम नामक अँगरेज बीमार पड़ा। न्यूवेस्ट मिनिस्टर ग्लोब में ठीक ओरनवर्ग की सीध में पड़ता है। यदि कोई लम्बी कील ओरनवर्ग से घुसेड़ी जाये और वह पृथ्वी में आर-पार कर जाये तो न्यूवेस्ट मिनिस्टर में ही पहुँचेगी। बीमार थोड़ी देर अचेत रहा और जब होश में आया तब यहूदियों जैसी भाषा बोलने लगा। उसने अपने बच्चों तक को पहचानने से इनकार कर दिया। इसी बीच एक दूसरा इब्राहीम न्युवेस्ट मिनिस्टर आ पहुंचा उसकी शक्ल सूरत रूसियों की सी थी। लैटिन बोलता था और इब्राहीम उरहम की पत्नी को अपनी पत्नी बताता था । उसने बहुत सी ऐसी बातें बताईं जो वह और उसकी पत्नी ही जानते थे। पत्नी ने वह बातें स्वीकार तो की पर उसने कहा-सब बातें सच होने पर भी शक्ल में तो तुम मेरे पति से भिन्न शरीर के हो। यह समाचार अखबारों में छपा तव प्रो0 आरलो ब्रिटिश कोलम्बिया आये और यह देखकर हैरान रह गये कि यह वही व्यक्ति था जिसका उन्होंने पूर्व परिक्षण किया था। आत्म विज्ञान की जानकारी के अभाव में पाश्चात्य वैज्ञानिक भी इस घटना का कुछ अर्थ न निकाल सके। रहस्य रहस्य ही बना रह गया किंतु इस घटना की याद करने वाले अमरीकन आज भी आश्चर्यचकित होकर विचार करते हैं - सचमुच शरीर से पृथक कोई आत्म-चेतना है जो शरीर व्यापार में संलग्न होकर भी मुक्त जीवन तत्त्व हो ? इस रहस्य का विश्लेषण भारतीय धर्म विज्ञान और तत्त्व-दर्शन ही कर सकता है। विविध योग साधनाओं द्वारा इस का यथार्थ ज्ञान और अनुभूति कोई भी मनुष्य प्राप्त सकता है।