
शहीदी दिवस (कहानी)
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17 जनवरी 1872 का शहीदी दिवस। मालेर कोटला में इस दिन कितने ही कूका वीरों ने अपना बलिदान कर दिया। एक कूका वीर आया, जिसकी आयु केवल 12 वर्ष थी। माता खैमकोर का यह इकलौता पुत्र था, नाम था बिशनसिंह।
अब तक कितने ही वीर सीना तानकर, तोप के सामने आ खड़े हुए थे और मौत के घाट उतारे जा चुके थे। अन्य वीरों की तरह बिशनसिंह भी आया और अंग्रेजों की तोप के सामने आ खड़ा हुआ। सतगुरु के चरणों का स्मरण किया। उसके भोले-भाले रूप को देखकर अंग्रेज अधिकारी की पत्नी काबन बहुत प्रभावित हुई। वह नहीं चाहती थी कि उसके पति द्वारा ऐसे मासूम बच्चों की हत्या की जाए। उसने अपना मुँह पति के कान के पास ले जाते हुए कहा— “क्या इस दुधमुँहे की रक्षा नहीं हो सकती ?”
हाँ हो सकती है, यदि वह स्वीकारकर ले कि सतगुरु रामसिंह का भक्त नहीं है। बिशनसिंह ने इतना सुना, तो वह आवेश को न रोक सका। उसने यह भी नहीं सोचा कि आस-पास कितने सैनिक खड़े हुए हैं मरना तो था ही, उसने उछलकर काबन की दाढ़ी पकड़ ली और उसको झटका देकर जमीन पर गिरा लिया। अब काबन नीचे और बिशनसिंह ऊपर था। उसने कहा— "बोल अब तू फिर कहेगा कि बिशनसिंह सतगुरु रामसिंह का भक्त नहीं है।"
वीर बिशनसिंह ने कार्बन की दाढ़ी तब तक न छोड़ी जब तक उसके शरीर के तलवार से टुकड़े-टुकड़े न कर दिए गए। बहुत पहले से भारत में बहादुरी की यह परंपरा रही है।