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Magazine - Year 1973 - Version 2

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व्रतशील जीवन की गरिमा

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उथली और सुदृढ़ तट से रहित नदियाँ तनिक सी वर्षा होने पर सब ओर बिखर पड़ती हैं और बाढ़ का रूप धारणकर निकटवर्ती खेतों को नष्ट-भ्रष्ट कर देती हैं। इसके विपरीत दूसरी वे नदियाँ भी है, जिनमें प्रचण्ड वेग युक्त जल-धार बहती हैं, किन्तु उफनने की दुर्घटना उत्पन्न नहीं करतीं। कारण कि वे गहरी होती हैं और किनारे मजबूत मिट्टी से बने होते हैं।

तनिक से आकर्षण और भय का अवसर आते ही मनुष्य अपने चरित्र और ईमान को खो बैठता है। तनिक सी प्रतिकूलता उसे सहन नहीं होती और आवेशग्रस्त स्थिति उत्पन्न कर देती है। इसका कारण व्यक्ति का आन्तरिक उथलापन है। श्रद्धा का अभाव और आदर्शों की कमी है। ऐसे लोग तभी तक अच्छे लग सकते हैं, जब तक कि परीक्षा का अवसर नहीं आता। जैसे ही परख की घड़ी आती है, वैसे ही वे मर्यादाओं का उल्लंघन करके उथले नालों की तरह बिखरते हैं और बाढ़ का संकट उत्पन्न करते हैं।

मजबूत किनारों का तात्पर्य है– व्रतशील जीवन। आदर्शों और मर्यादाओं के प्रति आस्था। ऐसा संकल्प जो जीवन-क्रम में ऊर्ध्वगामी प्रेरणाएँ भरता रह सके। जिनने अपने किनारे मजबूत बनाये हैं और निश्चय किया है कि किसी भी मूल्य पर आदर्शों की अवहेलना नहीं करेंगे - केवल उन्हीं के लिए यह सम्भव है कि वे महामानवों के लिए शोभनीय मार्ग पर अनवरत रूप से बढ़ सकें। व्रतशील जीवन का अर्थ है- जीवन लक्ष्य की पूर्ति के लिये अभीष्ट साधन और साहस का सुसंचय। 

– भगवान महावीर

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