Magazine - Year 1975 - Version 2
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Language: HINDI
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अपनों से अपनी बात - प्रगतिशील रामायण शिक्षा के लिए आमन्त्रण
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15 मई से रामायण−प्रवचन का जो विशेष प्रशिक्षण क्रम शान्ति−कुँज में आरम्भ हुआ है उसे मात्र कथा वाचकों एवं प्रवचन कर्त्ताओं के उपयोग की बात नहीं वरन् सर्वसाधारण को पारिवारिक नव−निर्माण की आवश्यकता मानकर चलना चाहिए और उसका लाभ हर किसी को उठाना चाहिए।
घर, परिवार में नैतिक शिक्षा का समावेश आवश्यक है। इसके लिए नियमित प्रशिक्षण क्रम चलते रहना चाहिए। यह कार्य सूखे उपदेश आये दिन झाड़ते रहने से बात नहीं बनती। वे कभी−कभी ही अच्छे लगते हैं, पर नैतिक प्रशिक्षण तो नित्य कर्म में सम्मिलित रहने की आवश्यकता है। यह रुचिकर तभी हो सकता है जब उसका स्वरूप धार्मिकता से जुड़ा हो और रुचिकर रहे। यह दोनों ही आवश्यकताएं रामायण कथा से पूरी होती है। सूर्यास्त के बाद एक घण्टा रोज रामायण कथा होती रहे तो उसमें घर के सब लोग रुचिपूर्वक सम्मिलित रह सकते हैं, साथ ही पड़ौस के लोग भी उसे सुनने आ सकते हैं। कहना न होगा कि रामायण में वे सभी तत्व मौजूद हैं जो जनमानस को परिष्कृत करने की− व्यक्ति, परिवार और समाज के अभिनव निर्माण की− बौद्धिक नैतिक एवं सामाजिक क्रान्ति की− आवश्यकता पूरी कर सके। अब तक रामायण को नाम जप एवं भक्ति विडम्बना का आधार बना कर रखा जाता है और उसके सहारे परावलम्बन ही− दीनता, दासता की प्रतिगामी शिक्षा दी जाती रहती है। कथन श्रवण का पुण्य फल गाया जाता रहा है, पर अब उस महासागर में से प्रगतिशील मणिमुक्तक ढूँढ़ निकाले गये हैं और वे आधार प्रस्तुत कर दिये गये हैं जिनके सहारे जन−मानस के नव−निर्माण का प्रयोजन भली प्रकार पूरा किया जा सकता है।
रामायण सम्बन्धी प्रस्तुत शोधकार्य को अपने ढंग का अनोखा एवं अभूतपूर्व ही ही कहा जा सकता है। इस संदर्भ में कुछ पुस्तकें छाप दी गई है और कुछ लिखने, छापने का क्रम चल रहा है। आशा की जानी चाहिए कि वे प्रगतिशील प्रतिपादन कुछ ही दिन में सर्वसाधारण के लिए सुलभ हो जायेंगे और उनका समुचित उपयोग करके नव−निर्माण के लिए एक और नया आधार उपलब्ध कर लिया जायगा।
हममें से प्रत्येक को अपने घरों में− मुहल्ले, गाँव में रामायण कथा प्रसंग’ करने चाहिए। जहाँ सम्भव हो वहाँ विशिष्ठ समारोहों, आयोजनों के माध्यम से भी इस आधार पर लोक−शिक्षण के नये प्रयास आरम्भ करने चाहिये।
यह शिक्षा किस प्रकार की जाय? रामायण का अध्ययन कथा वाचन एवं प्रवचन क्रम किस प्रकार चले इसी विधिवत् शिक्षा करने के लिए पिछले वानप्रस्थ−सत्रों को अब नये रामायण शिक्षण क्रम के रूप में बदल दिया गया। समय डेढ़−डेढ़ महीन का रख दिया गया है। इस अवधि में जो शिक्षण दिया जायगा उसके आधार पर शिक्षार्थी रामायण का कुशल प्रवक्ता बन जायगा ऐसी आशा की जा सकती है। वह अपने घर, परिवार, मुहल्ले, गाँव में कथा प्रसंग आरम्भ कर सकेगा और आवश्यकतानुसार बड़े आयोजनों में भी अपनी भाषण शैली एवं प्रतिपादन प्रक्रिया से सुनने वालों में नवजीवन संचार कर सकेगा। अपने स्वयं के ज्ञान संवर्धन एवं अनेकानेक जिज्ञासाओं के समाधान की दृष्टि से तो यह नितान्त उपयोगी होगा ही।
इन सत्रों की एक विशेषता यह भी है कि चौपाई, दोहे एवं कीर्तन को वाद्य यन्त्रों के सहारे भी कह सकने का शिक्षण जोड़ दिया गया है। यों डेढ़ महीना संगीत शिक्षा की दृष्टि से बहुत ही कम समय है फिर भी यह प्रयत्न किया जायगा कि जिनका गला ठीक है और जिनमें संगीत सम्बन्धी थोड़ी बहुत भी पकड़ है वे हारमोनियम, तबला, ढोलक, ढपली, मजीरा, घुंघरू, चिमटा, इकतारा आदि वाद्य यन्त्रों के सहारे कथा वाचन को और भी अधिक आकर्षक बना सकने में सफल हो सकें।
रामायण कथाओं के अन्त में गायत्री यज्ञ भी होते हैं अस्तु उसकी शास्त्रीय विधि व्यवस्था सिखा देना भी इसी सत्र शिक्षा का एक अंग है।
राम चरित्र और कृष्ण चरित्र के माध्यम से धर्म और नीति के दोनों पहल जन−मानस में अत्यन्त सरलता और कुशलतापूर्वक प्रतिष्ठापित किये जा सकते हैं। जीवन दर्शन के यह दोनों ही पक्ष अपने आप में अति महत्वपूर्ण हैं। दोनोँ एक दूसरे के पूरक हैं। एक पक्षीय चिन्तन अपूर्ण और असन्तुलित रहता है। तत्वदर्शी महामनीषियों ने भगवान राम और भगवान कृष्ण के चरित्र को इन्हीं दोनों तत्वों के व्यावहारिक रूप में प्रस्तुत किया है। यों उन दिव्य चरित्रों में क्षेपकों का भी दुखद सम्मिश्रण भी कम नहीं हुआ और उनकी प्रखरता धूमिल भी कम नहीं हुई है। तो भी उनके उज्ज्वल पक्ष इतने तेजस्वी हैं कि इतने से भी भारत की धर्म रुचि वाली विकसित जनता को बहुत कुछ सिखाया जा सकता है। संस्कृति के आकाश में चमकने वाले इन सूर्य चन्द्र के धवल चरित्र पर लगाये गये ग्रहण को हटाये जाने और यथार्थता सम्मुख रखकर डगमगाती लोकश्रद्धा को यथा स्थान रखना भी आवश्यक हो गया था।
रामायण पर अभी काम हो रहा है उसका विद्यालय क्रम चल पड़ा। अब कुछ ही समय पश्चात भागवत को भी हाथ में लिया जा रहा है और कृष्ण चरित्र को भी उसी प्रकार आज की युग समस्याओं को सुलझाने में प्रकाश स्तम्भ के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। अपने शिक्षा क्रम में कुछ दिन बाद उसका भी समावेश हो जायेगा। राम चरित्र को, तुलसीकृत रामायण, बाल्मीक रामायण, अध्यात्म रामायण, विनय पत्रिका आदि के सहारे संकलित किया गया है। कृष्ण चरित्र यो भागवत प्रधान होगा पर उसमें महाभारत, गर्ग संहिता एवं विभिन्न पुराणों में बिखरी हुई सामग्री का भी समन्वय किया जायगा। अन्धश्रद्धावश लकीर पीटना नहीं वरन् समुद्र मंथन करके बहुमूल्य रत्नों को ढूँढ़ निकालना अपने प्रयत्नों का लक्ष्य रहा है। उसी आधार पर रामायण और भागवत को− राम चरित्र और कृष्ण चरित्र को लोक−निर्माण की उपयुक्त प्रेरणाएं दे सकने योग्य स्थिति में रखा जाना है। इसे उसी प्राचीन दृष्टिकोण का पुनरावर्तन कहना चाहिए जिसके आधार पर पूर्ववर्ती महामनीषियों ने इन चरित्रों की संरचना की थी।
लोक−शिक्षण की दृष्टि से यह दोनों ही कथाएं एक दूसरे की पूरक रहकर अपने युग को दिशा दे सकने वाली सिद्ध होगी। अभी रामायण को ही हाथ में लिया गया है और आशा की गई है कि अखण्ड−ज्योति परिवार के सभी प्रबुद्ध सदस्य, आत्म−निर्माण, परिवार निर्माण और समाज निर्माण के इस आधार में पूरी रुचि लेंगे और छह सप्ताह का समय किसी प्रकार निकाल कर इस प्रशिक्षण में सम्मिलित होने की तैयारी करेंगे। यों रामायणी कथा वाचक अच्छी खासी आजीविका भी कमा रहे हैं, पर अपना प्रयोजन इस प्रकार के व्यवसायी उत्पन्न करना वरन् इस महान तत्व दर्शन को− समझने समझाने में समर्थ युग उद्बोधक, लोकनायक उत्पन्न करना है। इसके लिए उपयुक्त क्षमता अपने में उत्पन्न करने के लिए इन शिक्षणों में सम्मिलित होना अतीव उपयोगी सिद्ध होगा। आवश्यक नहीं कि इस प्रकार के कथावाचक के लिए कहीं दूर जाना ही पड़े। घर, परिवार को− गाँव, मुहल्ले को अपना प्रचार क्षेत्र बनाकर व्यस्त से व्यस्त व्यक्ति भी लोक−शिक्षण की दिशा में बहुत कुछ योगदान दे सकता है। रामायण सत्र की शिक्षा प्राप्त कर लेने वाले ही अगली बार भागवत शिक्षा सत्रों में प्रवेश पा सकेंगे।
इस संदर्भ में जिन नर−नारियों की रुचि हो और उनकी शिक्षा इस कार्य के लिए समुचित हो, वे उपरोक्त प्रशिक्षण के लिए अपने नाम, पता, आयु, शिक्षा एवं शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य ठीक होने की जानकारी देते हुए आवेदन पत्र भेज सकते हैं। सत्र लगातार चलेंगे अभी फिलहाल में (1) 15 मई से 30 जून तक (2) 1 जुलाई 15 अगस्त तक और 16 अगस्त से 30 सितम्बर तक के तीन सत्रों की घोषणा की गई है। आवेदन इन्हीं सत्रों के लिए आने चाहिए, वैसे प्रयत्न यह है कि यह शिक्षण व्यवस्था स्थायी कर दी जाय।
महिला जागरण अभियान के लिए
अधिक सक्रियता का आह्वान-
महिला जागरण अभियान की उपयोगिता और आवश्यकता अखण्ड−ज्योति परिजनों ने गम्भीरतापूर्वक समझी है और उस दिशा में उत्साहवर्धक प्रयास आरम्भ किये हैं, यह प्रसन्नता की बात है। आशा की जानी चाहिए कि अपना छोटा परिवार इस पुण्य प्रक्रिया को अपने छोटे क्षेत्र में इतना शक्तिशाली बना देगा जिसका प्रभाव अनायास ही व्यापक होता चला जाय।
महिला समस्या भारत में तो अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में है ही− तथाकथित प्रगतिशील देशों में भी उसका विकृति स्वरूप और भी अधिक भयावह है। यह एक अन्तर्राष्ट्रीय विश्व−व्यापी समस्या है जिसका समाधान किये बिना मनुष्य जाति का एक आधा अंग−अपंग बना पड़ा रहेगा और दूसरे अंग के लिए समुन्नत स्थिति में रह सकना सम्भव न रहने देगा। इस समस्या की उपेक्षा करना मानवी भविष्य को सदा सर्वदा के लिए अन्धकारमय बनाये रखने का समर्थन करना ही होगा। हममें से प्रत्येक को अपने युग की इस महती समस्या के समाधान में पूरी तत्परता के साथ योग देना चाहिए।
महिला जागरण अभियान को अगले दिनों जिस विश्व−व्यापी भूमिका का सम्पादन करना है, उसे देखते हुए परिजनों को कुछ अधिक सोचना और कुछ अधिक करना होगा। उपेक्षापूर्वक ज्यों−ज्यों करके चिन्ह पूजा जैसे हलके फुलके कदम बढ़ाने से इतनी बड़ी आवश्यकता की पूर्ति नहीं हो सकती। इसके लिए अधिक जीवट और अधिक हिम्मत जुटानी पड़ेगी। अधिक समय देना और अधिक श्रम करना पड़ेगा। अधिक त्याग करने और अधिक उदात्त बनने की आवश्यकता होगी। इसके लिए अपना प्रगतिशील परिवार भी तैयार न हो सकेगा तो फिर और किससे क्या आशा की जाय सकेगी और युग की विकृतियों से जूझने और समय की पुकार पूरा कर सकने वाले सृजनात्मक कदम बढ़ाने के लिए समय−समय पर अखण्ड−ज्योति परिवार के सदस्यों को ही पुकारा जाता रहा है और उन्हें ही अग्रिम मोर्चे पर खड़ा होने के लिए धकेला जाता रहा है। इस दिशा में− उत्साह वर्धक कूच जिस गति से होता रहा है, उस पर चाहें तो हम लोग संतोष ही नहीं गर्व भी कर सकते हैं। अब कुछ ही कदम उठाने बाकी थे सो उठा लिये गये हैं इन प्रयासों की सफलता को उस मंजिल तक पहुँचाया जाना चाहिए, जहाँ से इन प्रवृत्तियों को स्वसंचालित स्थिति द्वारा अपने ही बलबूते विश्व−व्यापी बनने का अवसर मिल जाय।
महिला जागरण अभियान का प्रथम लक्ष्य संगठन का ढाँचा खड़ा करना है। इसके बाद उन संगठनों को अपने−अपने यहाँ साप्ताहिक सत्संगों का क्रम नियमित रूप से चालू कर देना होगा। यहाँ इतनी सी बात बन पड़े, समझ लेना चाहिए वहाँ आशाजनक शुभारम्भ हो गया।
इस दिशा में अभी थोड़े ही परिजनों ने उत्साह दिखाया है। उतने से प्रसन्नता तो है, पर सन्तोष नहीं। सन्तोष तब होगा जब कुछ अपवाद ही असमर्थता व्यक्त करने वाले दिखाई दें। शेष सभी समर्थ परिजन इस प्रयास में अपना उत्साहवर्धक योगदान देते हुए दिखाई पड़े।
जहाँ जितनी अखण्ड−ज्योति पहुँचती है उसके सदस्यों में यह हलचल तत्काल आरम्भ होनी चाहिए कि सबसे पहले उन्हें ही अपने−अपने घरों की उत्साही महिलाओं को संगठन की सदस्या बनाकर संगठन का ढाँचा खड़ा करना है। शाखा कार्यालय का स्थान, कार्यवाहक का चुना, अपने−अपने पक्ष के कराने की खींच−तान करके अधिक सुविधा एवं अधिक पात्रता को ध्यान में रखकर करना चाहिए। आगे साप्ताहिक सत्संगों का क्रम चलना है। वे आरम्भ में एक नियत स्थान पर ही हों पीछे अदलते बदलते भी विभिन्न घर, परिवारों में किये जा सकते हैं। आरम्भ में सत्संग की परिस्थिति उत्पन्न करने का प्रशिक्षण करना होगा। इसके लिए कुछ दिनों ‘रिहर्सल’ कराये जायं। जो महिला अग्रणी हों उन्हें इकट्ठा करके आवश्यक प्रशिक्षण एवं मार्ग−दर्शन तब तक करते रहना पड़ेगा जब तक वे अपने पाँवों खड़ी होकर सत्संग का क्रम स्वयं ही चला सकने योग्य न बन जायं।
अखण्ड−ज्योति परिवार के सभी सदस्य अभियान के ‘सहायक सभ्य’ बने और अपने घरों की महिलाएं ‘सदस्य’। इसलिए दोनों ही प्रकार के प्रतिज्ञा पत्रों तथा प्रमाण पत्रों वाली 25-25 पृष्ठों की सदस्य पुस्तकें छाप दी गई हैं। इन्हें आवश्यकतानुसार मँगा लेना चाहिए और उन पर हस्ताक्षर कराते हुए प्रमाण पत्र देते हुए पुरुषों और स्त्रियों की सदस्यता नियमित बना लेनी चाहिए। पीछे शाखा स्थान और कार्यवाहक की नियुक्ति होनी है। इस कार्य के लिए कुछ उत्साही परिजन स्थापना की जिम्मेदारी आगे बढ़कर स्वयं संभालें। टोली बनाकर निकलें− परिवार के सभी सदस्यों का दरवाजा खटखटाएं और उन्हें इसमें सहयोग देने के लिए उनसे पूरा आग्रह करें। जहाँ इतना बन पड़ेगा वहाँ शाखा स्थापना का प्रथम चरण निश्चित रूप से पूरा होकर रहेगा।
महिलाओं पर सब कुछ छोड़ दिया जाय और पुरुष पृथक रहें और निश्चिन्त रहें तो गाड़ी तनिक भी आगे न बढ़ सकेगी। आज स्त्रियाँ इस स्थिति में नहीं हैं कि वह इस प्रकार के सार्वजनिक प्रचलन बिना पुरुषों की सहायता के अपने बलबूते चला सकें। ऐसी प्रगतिशील नारियाँ होंगी तो सही, पर उन्हें अपवाद ही कहना चाहिए। पर्दे की पीछे रहकर सूत्र संचालन पुरुष न करेंगे तो कहीं भी कुछ काम न बन सकेगा। अब तक युग−निर्माण शाखाओं तथा अन्य यज्ञ, सम्मेलन आदि कार्यक्रमों की जिस उत्साह से व्यवस्था जुटाई जाती रही है, उसी तत्परता से महिला जागरण संगठन का ढाँचा खड़ा करना होगा। अखण्ड−ज्योति परिवार का एक भी सदस्य ऐसा न बचे जिस पर लाँछन लगाया जाय कि अमुक ने अपने घर को− उत्साही नारियों को आगे बढ़ाने में उपेक्षा बरती− उत्साह नहीं दिखाया। संगठन का उदय अपने घरों से ही होना चाहिए। इसके बाद ही यह हो सकेगा कि पास−पड़ौस या प्रभाव क्षेत्र से भी खिंचकर महिलाएं उसमें सम्मिलित होती चली जायं। शाखा संगठन जब तक अपने आप साप्ताहिक सत्संगों की व्यवस्था भली प्रकार न चलाने लगें तब तब उसका सूत्र संचालन पैनी दृष्टि रखते हुए करते रहना चाहिए। उसके लिए आवश्यक परिस्थितियाँ बनाने और अभीष्ट साधन जुटाने का उत्तरदायित्व अपने ही कन्धों पर रखना चाहिए।
महिला जागरण अभियान के उद्देश्य, स्वरूप एवं कार्यक्रम को समझाने वाली 20 प्रचार पुस्तिकाओं का एक सैट छापा गया है। इस प्रचार सैट का मूल्य 2) है। प्रयत्न यह होना चाहिए कि प्रत्येक ‘सभ्य’ और ‘सदस्य’ इसका एक एक सैट खरीद लें और जहाँ भी अपनी पहुँच हो वहाँ उसे पढ़ाने, सुनाने का उत्साहपूर्वक प्रयत्न करें। यह सैट पुरुषों के पढ़ने योग्य भी है और स्त्रियों के भी। अस्तु अपने प्रभाव क्षेत्र के पुरुषों और स्त्रियों में इसे अधिकाधिक प्रचारित किया जाना चाहिए। अभियान क्यों है− क्या है− इसे किस लक्ष्य तक पहुँचाना है इसकी जानकारी इस प्रचार सैट को अधिकाधिक व्यापक बनाने से ही सम्भव है। प्रभाव क्षेत्र, कार्यक्षेत्र बढ़ाने के लिए यह सैट हम सबके पास रहें और उसका पढ़ाना− सुनाना पूरे उत्साह के साथ जारी रहे। कुछ समय के लिए अपना झोला पुस्तकालय प्रधानतया इसी धुरी पर घूमना चाहिए और चेष्टा करनी चाहिए। उसे कम से कम बीस नर−नारियों को तो पढ़ा सुनाकर ही दम लिया जाय।
संगठन की आरम्भिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कुछ वस्तुओं की अनिवार्य रूप से आवश्यकता होगी। इसके लिए पैसे की भी जरूरत पड़ेगी। इसमें 100) की राशि तो सहज ही लग सकती है। यह चन्दा भी अपने लोगों को ही आपस में मिल−जुलकर कर लेना चाहिए। साप्ताहिक हवन के उपकरण तथा आरम्भ करने की आवश्यकता पूर्ति का साहित्य आदि खरीदने ही चाहिए। (1) सभ्यों और सदस्यों की सदस्य पुस्तकें (2) चन्दा वसूल करने की रसीद बही (3) साइन बोर्ड (4) सीने पर लगाने के अभियान के बिल्ले (5) प्रचार सैट सदस्यों की संख्या के बराबर (6) साप्ताहिक सत्संग में काम आने वाली नई संक्षिप्त हवन विधि, सहगान, कीर्तन, रामायण, परायण, संस्कार−पद्धति, सत्यनारायण कथा जैसी छोटी−छोटी पुस्तकें अभी−अभी ही छपी हैं। इनकी भी सत्संगों के लिए आवश्यकता पड़ेगी।
यह सभी वस्तुएं बहुत सस्ती हैं साथ ही भारी भी। इन्हें डाक से मँगाने से बहुत अधिक खर्चा बैठता है, अस्तु किसी हरिद्वार आते−जाते के हाथों ही इन्हें मंगाना चाहिए। टीन का साइन बोर्ड और बिल्ले तो डाक से जा ही नहीं सकते। शाखा के कोष में कुछ पैसा होगा तो ही इन वस्तुओं काँ मँगाया जा सकना− साप्ताहिक सत्संग के उपकरण तथा निकट भविष्य में प्रौढ़ पाठशाला चलाने का उपक्रम बन सकेगा। अस्तु स्थापना के साथ−साथ ही अर्थ संग्रह भी पूरा करते चलना चाहिए।
संगठन का स्थानीय क्रिया−कलाप ठीक तरह चल सके इसका नेतृत्व कर सकने वाली एक कुशल महिला शान्ति−कुँज में प्रशिक्षण के लिए भेजनी चाहिए। इसके लिए तीन महीने का पिछला कार्यक्रम कम था। अब उसे छः महीने कर दिया है। कन्याओं का शिक्षण एक वर्ष रखा गया था, पर अब उसे भी घटा कर छः महीने कर दिया गया है। महिलाओं और कन्याओं का प्रशिक्षण अब छः−छः महीने का ही रहा करेगा। कन्याएं भी बहुत छोटी या बहुत पढ़ी नहीं ली जायेंगी। उन्हें कुछ अधिक समझदार होना चाहिए ताकि संगठन के संचालन में योगदान दे सकें। न्यूनतम शिक्षा आठवीं कक्षा की होनी चाहिए। कम पढ़ी लड़कियों तथा महिलाओं के पल्ले प्रस्तुत शिक्षण में से कुछ पड़ता नहीं है। व्यर्थ ही उनका और हमारा समय नष्ट होता है। इसलिए जिन्हें अभीष्ट प्रयोजन के उपयुक्त समझा जाय उन्हीं चैतन्य प्रकृति की कन्याओं एवं महिलाओं को हरिद्वार भेजा जाय।
मार्च के अंक में हरिद्वार की कन्या और महिला प्रशिक्षण योजना का विस्तृत विवरण छपा है। उनमें इतना संशोधन कर लिया जाय कि अब महिलाओं और कन्याओं का प्रशिक्षण काल छह-छह महीने ही रहेगा और दोनों का पाठ्यक्रम एक ही रहेगा। जहाँ भी शाखा संगठन स्थापित हों वहाँ कुछ प्रशिक्षण मार्गदर्शिका रह सकें इसके लिए हमें अपने घरों की लड़कियों तथा महिलाओं को भेजने की बात सोचनी चाहिये।
आरम्भिक सूत्र संचालन में पुरुषों की अधिक प्रखर भूमिका की आवश्यकता है, पर पीछे तो महिलाएं स्वयं ही अपने प्रयास की बागडोर संभालेंगी। इसलिये सार्वजनिक क्षेत्र में अधिक उत्साह में प्रवेश करने के लिये उन महिलाओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जिनके ऊपर बच्चों का उत्तरदायित्व नहीं है या हलका है। अधिक बच्चों वाली गृहस्थी के बोझ से अधिक लदी हुई महिलाएं अधिक समय नहीं दे सकती। अधिक आवश्यकता उनकी है जिन पर उत्तरदायित्व नहीं अथवा कम है। ऐसी महिलाओं के समय का, क्षमता का, उत्साह का, लाभ पिछड़े हुए महिला समाज को ऊँचा उठाने में लगना चाहिए। नजर दौड़ाने पर अपने ही क्षेत्र में ऐसी कई अविवाहित, विधवा, परित्यक्त अथवा उत्तरदायित्वों से निवृत्त महिलाएं मिल सकती हैं। उनमें उत्साह पैदा किया जाय और दिशा दी जाय तो उनकी क्षमताओं का उपयोग नारी उत्कर्ष की युग पुकार पूरी करने में हो सकता है। जिस प्रकार पिछले दिनों लोक−मंगल के विविध प्रयासों में पुरुष बढ़−चढ़कर त्याग, बलिदान प्रस्तुत करते रहें अब उसी स्तर के सत्साहस दिखाने की महिलाओं को भी प्रेरणा मिलनी चाहिए और उन्हें भी अनुकरणीय आदर्श उपस्थिति करने चाहिए।
महिला जागरण मासिक पत्रिका 1 जुलाई से अपने ही युगान्तर चेतना प्रेस में शांतिकुंज से प्रकाशित होने जा रही है। उसके द्वारा अभियान का विश्व−व्यापी सूत्र संचालन होना है। उसे मँगाना शाखाओं के लिए तो अनिवार्य है ही− साथ ही जिन्हें भी इस अभियान में दिलचस्पी हो− जो उसे समझने और उसे सहयोग देने के इच्छुक हों उन्हें अपने लिये इस पत्रिका को मँगाना आवश्यक है जिन्हें सदस्य बनना हो वे अपने नाम इसी महीने भेज दें ताकि उतनी ही संख्या में पत्रिका छपाई जाय। वार्षिक चन्दा छह रुपया है। मार्च के अंक में बारह रुपया वार्षिक चन्दे की घोषणा की गयी थी, किन्तु परिजनों पर अधिक आर्थिक दबाव न पड़े इसलिए अब उसे घटाकर छह रुपया ही कर दिया गया है।
महिला जागरण अभियान अब तक के अपने प्रयास में सबसे बड़ा प्रयास है− अब तक उठाये गये कदमों में सबसे बड़ा कदम है− इसलिए उसमें अखण्ड−ज्योति परिवार के प्रत्येक सदस्य से अब तक के सहयोग की तुलना में सबसे अधिक सहयोग देने की अपेक्षा की गई है। इसी के आह्वान आमन्त्रण इन पंक्ति यों के साथ आग्रहपूर्वक भेजा जा रहा है।