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यौवन कोई अवधि नहीं वरन् एक मानसिक स्थिति है। उसकी परख रक्त के उभार के आधार पर नहीं इच्छा, कल्पना एवं भावना के आधार पर ही की जानी चाहिए। जीवन की प्रौढ़ता अन्त: स्रोतों की ताजगी के साथ जुड़ी हुई रहती है। एक अवधि बीत जाने पर चमड़ी पर झुर्रियां तो पड़ेंगी ही पर इससे क्या? बुढ़ापा तो जब आवेगा जब मन अपने को हारा, थका, निराश और निढाल अनुभव करेगा। आदमी तब तक जवान रहता है जब तक उसमें उत्साह, साहस और निष्ठा बनी रहती है। बुढ़ापा और कुछ नहीं आशा का परित्याग- उज्ज्वल भविष्य के प्रति संदेह और अपने आप पर अविश्वास का ही दूसरा नाम है। जब जीवन में अनन्त सुन्दरता, महानता, सामर्थ्य और प्रकाशपूर्ण सम्भावना की ओर से मन सकोड़ लिया जायेगा तो वृद्धता की काली छाया ग्रसित कर लेगी भले ही ऐसा व्यक्ति आयु की दृष्टि से नवयुवक ही क्यों न हो?
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