• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • पू. गुरुदेव के जल-उपवास का कारण और हमारा कर्त्तव्य
    • प्रगति के आधार-उत्कृष्ट विचार
    • चेतना का पदार्थ जगत पर नियंत्रण
    • मंसूर वेदान्ती थे (kahani)
    • आत्मा में परमात्मा का अवतरण
    • भगवान बुद्ध से शिकायत की (kahani)
    • सूक्ष्म-दृष्टि, मानव जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि
    • नशे में धुत्त (kahani)
    • मनःस्थिति बदले तो परिस्थितियाँ सुधरें
    • साधना समर बनाम जीवन संग्राम
    • मनुष्य ने पृथ्वी से शिकायत की (kahani)
    • विकास प्राणी की इच्छित दिशा में ही होता है।
    • गीता का प्रतिपाद्य-अनासक्त कर्मयोग
    • वरदान और अभिशाप की पृष्ठभूमि
    • हम अहंकारी नहीं, स्वाभिमानी बनें।
    • दो मुर्गे आपस में गुत्थमगुत्था (kahani)
    • एकाग्रता का दर्शन, महत्व और चमत्कार
    • समय भविष्य की ओर ही नहीं चलता, भूतकाल की ओर भी लौटता है।
    • नरक के निर्देशकों की आपात-बैठक (kahani)
    • अपने आपके साथ सद्व्यवहार
    • कोई काम न तो सरल है और न कठिन
    • स्वप्न स्थूल और सूक्ष्म जगत के मध्य शृंखला
    • अधिक खाना स्वास्थ्य को गँवाना ही है।
    • भोजन की तरह उपवास भी आवश्यक है।
    • माताएँ शिशुओं को स्तन-पान कराने में संकोच न करें।
    • हम कितने समृद्धिशाली?
    • काशी की एक सुनसान गली (kahani)
    • अविज्ञात भूत और अकल्पित भविष्य जानना भी सम्भव है।
    • महर्षि वैनतेय (kahani)
    • साधना विज्ञान की सामयिक शोध और अभिनव प्रतिष्ठापना
    • धर्म और विज्ञान का मिलन
    • धर्म और विज्ञान का मिलन (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • पू. गुरुदेव के जल-उपवास का कारण और हमारा कर्त्तव्य
    • प्रगति के आधार-उत्कृष्ट विचार
    • चेतना का पदार्थ जगत पर नियंत्रण
    • मंसूर वेदान्ती थे (kahani)
    • आत्मा में परमात्मा का अवतरण
    • भगवान बुद्ध से शिकायत की (kahani)
    • सूक्ष्म-दृष्टि, मानव जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि
    • नशे में धुत्त (kahani)
    • मनःस्थिति बदले तो परिस्थितियाँ सुधरें
    • साधना समर बनाम जीवन संग्राम
    • मनुष्य ने पृथ्वी से शिकायत की (kahani)
    • विकास प्राणी की इच्छित दिशा में ही होता है।
    • गीता का प्रतिपाद्य-अनासक्त कर्मयोग
    • वरदान और अभिशाप की पृष्ठभूमि
    • हम अहंकारी नहीं, स्वाभिमानी बनें।
    • दो मुर्गे आपस में गुत्थमगुत्था (kahani)
    • एकाग्रता का दर्शन, महत्व और चमत्कार
    • समय भविष्य की ओर ही नहीं चलता, भूतकाल की ओर भी लौटता है।
    • नरक के निर्देशकों की आपात-बैठक (kahani)
    • अपने आपके साथ सद्व्यवहार
    • कोई काम न तो सरल है और न कठिन
    • स्वप्न स्थूल और सूक्ष्म जगत के मध्य शृंखला
    • अधिक खाना स्वास्थ्य को गँवाना ही है।
    • भोजन की तरह उपवास भी आवश्यक है।
    • माताएँ शिशुओं को स्तन-पान कराने में संकोच न करें।
    • हम कितने समृद्धिशाली?
    • काशी की एक सुनसान गली (kahani)
    • अविज्ञात भूत और अकल्पित भविष्य जानना भी सम्भव है।
    • महर्षि वैनतेय (kahani)
    • साधना विज्ञान की सामयिक शोध और अभिनव प्रतिष्ठापना
    • धर्म और विज्ञान का मिलन
    • धर्म और विज्ञान का मिलन (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1976 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


स्वप्न स्थूल और सूक्ष्म जगत के मध्य शृंखला

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 21 23 Last
स्वप्न सार्थक भी होते हैं और निरर्थक भी। यह एक अनोखी दुनिया है, जिसमें विचरण करते हुए हम जाने क्या-क्या चित्र-विचित्र देखते हैं? जाग जाने पर तो वे बेसिर-पैर के लगते हैं, पर देखते समय लगता है मानो यह सब यथार्थ ही यथार्थ है। उन दृश्यों का प्रभाव भी मन पर पड़ता है। इनमें से बहुत से विस्मृति के गर्त में भी चले जाते हैं। जो याद रहते हैं उनमें कुछ तो बिना टिकट के घर बैठे देखे गये सिनेमा की तरह मनोरंजक, कौतुहल-वर्धक मात्र लग कर रह जाते हैं और कुछ देर तक मनः क्षेत्र को आन्दोलित किये रहते हैं। स्वप्न एक ऐसी सचाई है जो आये दिन सामने आती है, पर रहस्य की परतों में लिपटे हुए अचरज और कौतूहलमय ही बने रहते हैं। उनका न तो कारण समझ में आता है और न उद्देश्य।

नींद में पड़ने वाले विक्षेप भी तरह-तरह के प्रिय अप्रिय स्वप्न लाते हैं। सोते सोते यौन उत्तेजना होने पर मैथुन के दृश्य दिखते हैं और स्वप्नदोष तक हो जाते हैं जुएँ, चीलर, खटमल, मच्छर आदि शरीर को काटते हैं तो कष्टकारक अनुभूतियाँ देने वाले स्वप्नों की फौज सामने आ खड़ी होती है। पेट का अपच, शिर का भारीपन, मानसिक तनाव, चिन्ता रोष, उद्वेग जैसी शारीरिक, मानसिक कठिनाइयां भी अपने अपने स्तर के स्वप्न गढ़ लेती हैं। अतृप्त आकाँक्षाएँ भी अपना रंग महल आप ही बनाने, बिगाड़ने का खेल खेलती हैं और चित्र विचित्र स्वप्नों के रूप में सामने आती हैं। यह सामान्य स्तर के स्वप्न हुए जिन्हें मोटी दृष्टि से महत्वहीन कहा जा सकता है। यों विश्लेषण करने पर उनके सहारे मनःस्थिति का निदान निरूपण उसी प्रकार किया जा सकता है जिस प्रकार कि शारीरिक रोग निदान में मल, मूत्र, रक्त, एक्सरे आदि की जाँच करके बीमारी का स्वरूप और कारण जाना जाता है।

कैलीफोर्निया विश्व विद्यालय के स्वप्न परीक्षण विभाग ने यह जांचने का प्रयत्न किया कि देखें सामयिक परिस्थितियों का भी मनुष्य पर कुछ प्रभाव पड़ता है या नहीं। प्रयोग के लिए एक सोए हुए खिलाड़ी की बन्द आँखों के सामने जलती हुई मोमबत्ती रखी गई। खिलाड़ी ने सपना देखा कि गेंद बल्ला सामने रखा है और वह खेलने के लिए उन्हें उठा रहा है। क्लर्क ने देखा कि एक हाथ में लालटेन और एक हाथ में मोटा डंडा लिए कोई शत्रु उसे मारने आ रहा है। गेंद एवं लालटेन मोमबत्ती का जलता भाग था और उसका बिना जला हिस्सा एक के सामने बल्ला और दूसरे के सामने डण्डा बनकर स्वप्न रूप में परिलक्षित हो रहा था।

नींद और सपनों का परस्पर सम्बन्ध किस प्रकार जुड़ता है। शरीर का कौन-सा अवयव इसके लिए उत्तरदायी है, इसकी शोध में शिकागो विश्वविद्यालय के दो छात्र निरत थे। एक नेपोलियन क्लीटमा-दूसरा यूजोन एसेरिन्स्की। दोनों की खोज इस रहस्य का पता लगाने में अवरोधग्रस्त हो गई।

एक दिन उन्होंने दिवा स्वप्न की तरह एक बच्चे की पुतलियाँ बन्द पलकों के भीतर तेजी से गति करते और साथ ही उसके चेहरे पर कई तरह की भाव मुद्राएँ उभरती देखीं। इस दृश्य ने उन्हें नया आधार दिया कि पुतलियों की हलचलें, स्वप्न देखने की भूमिका बनाती हैं। शोध को उस आधार पर नई दिशा मिली और वे खोजें इसी मार्ग पर चलती हुई आज बहुत आगे बढ़ गई हैं।

स्वप्नों की साँकेतिक भाषा है। गुप्तचर अपने भेदों के समाचार जब मुख्य संचालक के पास किसी सन्देश के माध्यम से भेजते हैं तो साँकेतिक भाषा का प्रयोग करते हैं। रास्ते में भेद न खुलने पाये इस दृष्टि से ऐसी सुरक्षा आवश्यक होती है। ठीक ऐसा ही कुछ प्रबन्ध स्वप्न व्यवस्था के सम्बन्ध में भी है। वे अनबूझ पहेलियों की तरह दिखाई पड़ते हैं। उनमें साँकेतिक दृश्य एवं संवादों का समावेश रहता है। उन्हें समझना भारी माथा-पच्ची और सूक्ष्म दृष्टि के सहारे ही सम्भव हो सकता है।

यों मानसिक गुत्थियाँ और व्यावहारिक जीवन की अनुभूतियाँ, अभिव्यंजनाएं भी मस्तिष्क में लुक-छिपकर बैठी रहती हैं और बुद्धि का दबाव जब घट जाता है तब निद्रावस्था में अपना रास रचाने के लिए निकल पड़ती हैं। पिछले संस्मरणों का उलझा-सुलझा, ताना-बाना स्वप्न बनकर दिखाई देता है। वे अधिकतर इसी स्तर के होते हैं। जिनकी अन्तःचेतना अविकसित है उन्हें तो प्रायः ऐसे ही अनगढ़ सपने दिखते हैं जिनका कोई विशेष तात्पर्य नहीं होता, उन्हें बाल-क्रीड़ा के समतुल्य ही माना जा सकता है। कुछ दिव्य आभास दे सकने वाले स्वप्न उन्हें आते हैं जिनकी मनोभूमि अधिक सम्वेदनशील होती है। किन्हीं किन्हीं में ऐसी विशेषता पूर्व संचित संस्कारों के कारण पाई जाती है। कई अपनी मलीनता एवं भोथरेपन को साधनात्मक उपायों से घटाते हैं और आत्मिक तीक्ष्णता उत्पन्न करते हैं। ऐसे लोग रात्रि स्वप्न, दिवा स्वप्न, योग तन्द्रा जैसी स्थितियों में कई ऐसे संकेत प्राप्त करते हैं जिनके फलितार्थ बहुत ही उपयोगी सिद्ध हो सकें।

कई बार स्वप्न ऐसे प्रेरक होते हैं कि उनके प्रकाश में मनुष्यों का जीवन-क्रम ही बदल जाता है। भगवान् बुद्ध तब राजकुमार थे। नवयौवन में प्रवेश ही किया था। एक दिन उनने स्वप्न देखा कि श्वेत हाथ पकड़ कर श्मशान ले पहुँचा। उँगली का इशारा करते हुए उसने दिखाया-‘देख यह तेरी ही लाश है। इस तथ्य को समझ और जीवन का सदुपयोग कर।’ आँख खुलते ही बुद्ध विह्वल हो गये और उनने निश्चय कर ही डाला कि इस बहुमूल्य सौभाग्य का उन्हें किस प्रयोजन के लिए-किस प्रकार-उपयोग करना है। वे राज-पाट छोड़कर श्रेय की खोज में चल पड़े और अन्ततः उन्होंने उसे प्राप्त कर भी लिया।

फ्राँसीसी राज-क्रान्ति की सफल संचालित ‘जान आफ आर्क’ एक मामूली से किसान के घर में जन्मी थी। उन्होंने वहीं एक रात सपना देखा कि आसमान से उतरता कोई फरिश्ता उन्हें कह रहा है कि-‘अपने को पहचान, समय की पुकार सुन, स्वतन्त्रता की मशाल जली।’ ये तीनों ही बातें उनने गाँठ बाँध ली और उसी समय से वे फ्राँस को स्वतन्त्र कराने के लिए नये आवेश के साथ उस संग्राम में कूद पड़ी।

सिग्मंड फ्रायड स्वप्नों को दमन की गई मनोभावनाओं की प्रतिक्रिया कहते थे और दमन की गई भावनाओं से सबसे अधिक वे यौन आकाँक्षा को मानते थे। उनकी दृष्टि से यौन अतृप्ति ही सारी गड़बड़ी की जड़ है। इन्हीं गड़बड़ी में स्वप्न जंजाल भी सम्मिलित है।

फ्रायड के विचारों का खण्डन प्रख्यात मनःशास्त्री कार्ल गुस्ताव जुँग ने किया है। वे कहते हैं दैनिक घटनाओं और सम्वेदनाओं का प्रभाव स्वप्नों में रहता तो है, पर वे इतने तक ही सीमित नहीं है। ब्रह्माण्ड में प्रवाहित होती रहने वाली पराचेतना में स्थितिवश अनेक विश्व प्रतिबिंब तैरते रहते हैं। मनुष्य की अनुभूतियाँ उनसे प्रभावित होती हैं और वह प्रभाव व्यक्ति की निज की स्थिति के साथ सम्मिलित होकर स्वप्न जैसी विचित्र प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है। उनका अभिप्राय यह है कि व्यक्ति की सीमित चेतना व्यापक पराचेतना के साथ मिलकर जिस स्तर का अनुभव करती है उसका सीधा तो नहीं, पर आड़ा टेढ़ा परिचय स्वप्न संकेतों में मिल जाता है।

यहाँ यह स्मरण रखे जाने योग्य तथ्य है कि स्वप्न मनुष्य के निज के स्तर की परिधि में ही आवेंगे। जो जानकारियाँ उसे नहीं हैं अथवा जिस ओर उसकी दिलचस्पी बिलकुल नहीं है, वैसे स्वप्न प्रायः नहीं ही आते। लुहार के लिए यह कठिन है कि वह कलाकार होने के स्वप्न देखे। पर दैवी रहस्यों के बारे में ऐसी बात नहीं है वह किसी भी स्तर का व्यवसाय करने पर कोई रुकावट अनुभव नहीं करते और किसी को भी स्वप्नों के आधार पर लाभान्वित कर सकते हैं।

मनःशास्त्र के विश्व विख्यात आचार्य कार्लजुँग ने उपचेतन मन का विश्लेषण करते हुए अपने ग्रन्थ, मेमोरीज ड्रीम्स रिफ्लैक्शन में लिखा है कि ज्ञान प्राप्ति के जितने साधन चेतन मस्तिष्क को प्राप्त हैं उससे कहीं अधिक विस्तृत और कहीं अधिक ठोस साधन उपचेतन की सत्ता को उपलब्ध हैं। चेतन मस्तिष्क दृश्य, श्रव्य तथा अन्य इन्द्रिय अनुभूतियों के आधार पर ज्ञान संग्रह करता है, पर उपचेतन के पास तो असीम साधन हैं। वह ब्रह्माण्ड व्यापी शाश्वत चेतना के साथ सम्बद्ध होने के कारण अन्तरिक्ष में प्रवाहित होते रहने वाले ऐसे संकेत कम्पनों को पकड़ सकता है जिनमें विभिन्न स्तर की असीम जानकारियाँ भरी पड़ी हैं।

मनोविज्ञानी हैफनर-मआस्स-राबर्ट जैसे विद्वानों का कथन है कि स्वप्न मनुष्य के भौतिक जीवन की प्रतिच्छाया और प्रतिक्रिया मात्र होते हैं, पर अन्य विद्वान वैसा नहीं मानते। फिख्ते का प्रतिपादन है कि सपने मानवी मन की भीतरी परतों को साँकेतिक भाषा में उभार कर ऊपर लाते हैं। उनके आधार पर यह जाना जा सकता है कि स्वप्नदर्शी को शारीरिक और मानसिक चेतना की किस स्थिति में निर्वाह करना पड़ रहा है। स्ट्रम्पैल का कथन हैं कि सपने जागृत जीवन से आगे की प्रसुप्त भूमिका का रहस्योद्घाटन करते हैं। बर्डेक कहते है कि सपनों को दैनिक जीवन की छाया मात्र कहकर उपहासास्पद नहीं समझ लिया जाना चाहिए उनमें बहुत सी उपयोगी सूचनाएँ सन्निहित रहती हैं।

स्वप्नों में भीतर ही भीतर पक रही खिचड़ी के ऊपर तैरने वाले झाग या छिलके तैरते देखे जा सकते हैं और उनके सहारे यह जाना जा सकता है कि क्या अन्तः चेतना की सीपी में कोई बहुमूल्य मोती विनिर्मित और परिपक्व होने जा रहा है।

स्वप्न में सक्रिय मस्तिष्क शिथिल हो जाता है दबाव या बन्धनों के भार से, हलकापन आने पर अन्तः चेतना अपने खेलकूद का मौका ढूँढ़ लेती है और उन हलचलों के पीछे किसी महत्वपूर्ण उपलब्धि के संकेत ढूँढ़े जा सकते हैं। इसी स्थिति में बहुतों को ऐसे आधार हाथ लगे हैं जो तार्किक मस्तिष्क द्वारा बहुत माथा पच्ची करने पर भी हस्तगत नहीं हो सकते थे।

फ्लोरन्स (इटली) निवासी मनः शास्त्री गेस्टन उगदियानी ने अपने एक स्वप्न का विश्लेषण स्वयं ही किया है। सात वर्ष की आयु में उनने सपना देखा कि वे किसी मन्दिर में पुजारी का काम करते हैं। सपना इतना अधिक स्पष्ट था कि मन्दिर की इमारत का नक्शा पूरी तरह उनके मस्तिष्क पर जमा रहा और उस स्वप्न दर्शन की गहरी छाप उनके मस्तिष्क पर सदा ही जमी रही। अन्ततः वे जिज्ञासा का समाधान करने के लिए मन्दिरों के देश भारत में आये और खोजते-खोजते दक्षिण भारत के महाबलीपुरम् नगर के एक मन्दिर को देखकर वे सन्न रह गये, वह बिलकुल वैसा ही बना हुआ था जैसा कि उनने सपने में देखा था। इस स्वप्न का विश्लेषण उन्होंने पूर्व जन्म की स्मृति की संज्ञा देते हुए किया है।

दूर दर्शन, अविज्ञात का ज्ञान, भविष्य आभाएं जैसी चमत्कारी विशेषताएँ भी कभी-कभी स्वप्नों के साथ जुड़ी होती हैं। उनकी यथार्थता पर विचार करने से निष्कर्ष निकलता है कि सूक्ष्म जगत की हलचलों के साथ मनुष्य अपनी चेतना का सम्पर्क बनाने में स्वप्नों का सहारा ले सकता है। बुद्धि चेतना के दबाव में अन्तर्मन की भली-बुरी, गहरी उथली परतें ऐसी ही दबी डरी जहाँ तहाँ छिपी रहती हैं। उस दबाव से निद्रा की स्थिति में आंशिक छुटकारा मिलता है तब स्वप्न के माध्यम से अन्तर्मन को सूक्ष्म जगत से सम्बन्ध जोड़ने और रहस्यमय अविज्ञात को जानने का अवसर मिलता है। समाधि, ध्यान, धारणा एवं योगनिद्रा की स्थिति में भी बुद्धि का दबाव घट जाता है। फलतः सूक्ष्म अन्तःकरण के सक्रिय होने और दिव्य जगत से सम्पर्क बनाने का लाभ मिल जाता है। पूर्ण समाधि और अर्ध समाधि की स्थिति में साधकों को जो दिव्य अनुभूतियाँ होती हैं उन्हें जागृत एवं अधिक यथार्थ स्वप्न कहा जाय तो उसमें कोई अत्युक्ति न होगी।

सिडनी के टामफीचर ने अपनी अन्तः क्षमता को इस दिशा में विशेष रूप से प्रशिक्षित किया था कि वे अनायास आये स्वप्नों का संकेत समझ सकें। इतना ही नहीं वे प्रस्तुत समस्याओं के समाधान सूक्ष्म जगत से प्राप्त कर सकें, गुत्थियों के हल ढूँढ़ सके और अविज्ञात को जानने के सूत्र खोज सकें। इस साधना में उनने भारी पुलिस की सहायता की थी। बालक इस समय कहाँ है, उसका सही पता, ठिकाना एवं चुराने वालों के नाम आदि सही रूप में बता देने के कारण पुलिस ने तत्काल वहाँ धावा बोला और अपने प्रयास में सफलता पाई। इस सहयोग के उपलक्ष में टामफीचर को दो हजार डालर का सरकारी पुरस्कार दिया गया था।

मन जब आत्मा की ‘फ्रीक्वेंसी’ पर पहुँच जाता है तो वह व्यापक क्षेत्र से अनुभूतियाँ प्राप्त करता है। स्वप्नों का सत्य इसका प्रमाण है। पर ओलिवरलाज ने अपनी पुस्तक ‘सरवाइवल आफ मैन’ नामक पुस्तक के पृष्ठ 112 में यह स्वीकार किया है कि कोई माध्यम है जो हमें अलौकिक ज्ञान कराता है साथ ही पृष्ठ 106-107 पर तत्संबंधी एक घटना भी यों दी है-

“पादरी इ0 के0 इलिमद अटलाँटिक समुद्र में यात्रा कर रहे थे। 14 जनवरी 1887 की रात उन्हें स्वप्न में चाचा का पत्र मिला, जिसमें छोटे भाई की मृत्यु की सूचना थी। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा है कि स्विट्जरलैंड छोड़ते समय भाई को सामान्य बुखार था। उसकी मृत्यु की तो कल्पना तक नहीं थी, पर इंग्लैण्ड पहुँचने पर बात सच निकली। यह परोक्ष-दर्शन (क्लेयर वायेंस) के अतिरिक्त और क्या हो सकता है?”

जब रोम के महान् सम्राट सीजर को उनकी पत्नी द्वारा एक अमुक दिन सीनेट-भवन न जाने का आग्रह किया गया तो सीजर अपनी पत्नी के स्वप्न में खुले बाल लिए पति की रक्त रंजित लाश गोद में देखने की बात न मानते हुए चला ही गया और सचमुच ही भवन में पहुँचते ही उसके मित्र ब्रूटस द्वारा एक तंग स्थान पर उसकी हत्या कर दी गई।

एक सात्विक विचारों वाला व्यक्ति चार्ल्स फिलकोर अमेरिका का एक सामान्य गृहस्थ था। उसे प्रायः सात्विक स्वप्न ही आते थे।

एक रात उन्होंने स्वप्न में देखा कि एक अपरिचित व्यक्ति उनसे पीछे-पीछे चलने को कह रहा है। वे पीछे-पीछे चल पड़े और एक नगर कंसास में पहुँचे जो उनका देखा हुआ था। पर फिर वह व्यक्ति उन्हें ऐसे स्थान पर ले गया जो अपरिचित था। वहाँ उसने उनके हाथ में एक समाचार पत्र दिया। वे उसका पहिला अक्षर ‘यू’ पढ़ पाये थे कि एक के बाद एक समाचार पत्र उनके हाथ में आते गये और अनायास नींद खुल गई।

वे ध्यान, साधना आदि का अभ्यास लोगों को कराते थे। बड़े-बड़े लोग उनसे प्रभावित थे पर प्रचार-प्रसार की बात दिमाग में थी ही नहीं। पर एक दिन कुछ लोगों ने उनके पास आकर इस पुनीत कार्य के प्रचार प्रसार को देखकर एक संस्था का प्रस्ताव रखा और ‘सोसायटी आफ सायलेंट यूनिटी’ नामक संस्था का निर्माण भी हो गया। कार्यालय के लिए अनायास ही कंसास शहर को लोगों ने प्रस्तावित किया और वही स्थान जिसे फिलकोर ने स्वप्न में देखा था और एक अखबार भी ‘यूनिटी’ नाम से निकला गया जिसका पहला अक्षर ‘यू’ ही था। बाद में और भी पत्र पत्रिकाएँ वहाँ से छपीं और स्वप्न का तथ्य सत्य हो गया।

प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता रोमान नोवारो ने एक घटना बताई कि वह जिस होटल में ठहरा था उसका स्वामी मर चुका था और सम्पत्ति की कोई वसीयत न होने के कारण बड़ा लड़का सब हड़प जाना चाहता था। अतः वह छोटे को तंग भी करता रहा। छोटे लड़के ने नोवारो से अपना दुःख दर्द बताया, पर वह कुछ भी मदद करने में असमर्थ था। रात को स्वप्न में उसने देखा कि एक आदमी होटल के उसी कमरे के एक आले की ओर इशारा कर लकड़ी से उस स्थान पर ठक्क ठक्क कर रहा है। नोवारो की नींद टूटने पर उसने समझा चूहे गड़बड़ कर रहे होंगे। पर पुनः सोने पर वही दृश्य दिखाई दिया। नींद खुलने पर उसने आले के कागज हटा कर देखे तो एक कपड़े में लिपटी वसीयत रखी थी। प्रसन्नतापूर्वक उसने वह वसीयत छोटे लड़के को दे दी और तद्नुसार छोटा लड़का भी आधी जायदाद का स्वामी बन गया। बड़े लड़के के मनसूबे विफल हो गए।

संसार की स्वर्ण खदानों में दूसरे नम्बर की खदान वैटिल पहाड़ पर है उसके मालिक विनफील्ड स्काट स्ट्राटन ने इस खदान को प्राप्त करने सम्बन्धी आत्म विवरण में लिखा है कि वह दुर्भाग्यग्रस्त होकर व्यापार में अपना सब कुछ गँवा बैठा था। दुःखी और उद्विग्न मन को शान्ति देने के लिए इधर-उधर भटकता रहता था। 4 जुलाई 1891 को वह ही कोलेरेडो क्षेत्र के एक खुले मैदान में रात्रि बिता रहा था। सपने में उसने देखा कि एक फरिश्ता आया है और उसे वैटिल पहाड़ पर जाने का रास्ता बता रहा है और एक जगह पर निशान लगाकर बता रहा है कि यहाँ सोने की खदान है तुम इसे पाकर मालदार बन सकते हो।

स्ट्राटन हड़बड़ा कर उठ बैठा। अपने पास वह जमीन खरीदने और खुदाई करने के लिए पैसा था नहीं से उसने अपने सम्पन्न मित्रों से सपने की चर्चा की और वहीं खोदने का प्रस्ताव रखा। सभी ने उसका उपहास उड़ाया। भू-गर्भ विज्ञानी 18 वर्ष पूर्व उस सारे पथरीले क्षेत्र की भली-भाँति खोज कर चुके थे और घोषणा कर चुके थे कि यहां किसी कीमती खनिज के मिलने की सम्भावना नहीं है। अस्तु कोई भी उसका साथ देने के लिए तैयार न हुआ।

स्ट्राटन निराश नहीं हुआ वह अकेला ही वहाँ पहुँचा। हाथ से खोदने पर ही उसे सोने का डेला मिल गया। इसके बाद उसने किसी प्रकार धन जुटाया वह क्षेत्र खरीदा और अरबपति बन गया।

स्वप्नों के संकेत समझना सम्भव हो सके तो यह हमारे जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि हो सकती है। जिस स्थूल जगह में हम निवास, निर्वाह करते हैं उसकी जड़ें सूक्ष्म जगत में रहती हैं। पेड़ दिखता है, पर जड़ें दिखाई नहीं पड़तीं। वस्तुतः पेड़ की विशालता, मजबूती और हरियाली इस बात पर निर्भर रहती है कि उसकी जड़ें कितनी गहरी और सक्षम हैं। इसी प्रकार स्थूल जगत अथवा स्थूल जीवन प्रस्तुत उपलब्धियाँ सूक्ष्म जगत से ग्रहण करता है। सूक्ष्म को समझ सकने पर ही उसके साथ तालमेल बिठा सकना सम्भव हो सकता है। यह तालमेल पूरी तरह तो योग साधना द्वारा आन्तरिक निर्मलता प्राप्त करने से ही बिठाया जा सकता है, पर उसका आधा-अधूरा काम स्वप्नों के माध्यम से भी चल सकता है। स्वप्नों को स्थूल और सूक्ष्म के बीच की एक महत्वपूर्ण कड़ी कहा जा सकता है।

----***----

First 21 23 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • पू. गुरुदेव के जल-उपवास का कारण और हमारा कर्त्तव्य
  • प्रगति के आधार-उत्कृष्ट विचार
  • चेतना का पदार्थ जगत पर नियंत्रण
  • मंसूर वेदान्ती थे (kahani)
  • आत्मा में परमात्मा का अवतरण
  • भगवान बुद्ध से शिकायत की (kahani)
  • सूक्ष्म-दृष्टि, मानव जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि
  • नशे में धुत्त (kahani)
  • मनःस्थिति बदले तो परिस्थितियाँ सुधरें
  • साधना समर बनाम जीवन संग्राम
  • मनुष्य ने पृथ्वी से शिकायत की (kahani)
  • विकास प्राणी की इच्छित दिशा में ही होता है।
  • गीता का प्रतिपाद्य-अनासक्त कर्मयोग
  • वरदान और अभिशाप की पृष्ठभूमि
  • हम अहंकारी नहीं, स्वाभिमानी बनें।
  • दो मुर्गे आपस में गुत्थमगुत्था (kahani)
  • एकाग्रता का दर्शन, महत्व और चमत्कार
  • समय भविष्य की ओर ही नहीं चलता, भूतकाल की ओर भी लौटता है।
  • नरक के निर्देशकों की आपात-बैठक (kahani)
  • अपने आपके साथ सद्व्यवहार
  • कोई काम न तो सरल है और न कठिन
  • स्वप्न स्थूल और सूक्ष्म जगत के मध्य शृंखला
  • अधिक खाना स्वास्थ्य को गँवाना ही है।
  • भोजन की तरह उपवास भी आवश्यक है।
  • माताएँ शिशुओं को स्तन-पान कराने में संकोच न करें।
  • हम कितने समृद्धिशाली?
  • काशी की एक सुनसान गली (kahani)
  • अविज्ञात भूत और अकल्पित भविष्य जानना भी सम्भव है।
  • महर्षि वैनतेय (kahani)
  • साधना विज्ञान की सामयिक शोध और अभिनव प्रतिष्ठापना
  • धर्म और विज्ञान का मिलन
  • धर्म और विज्ञान का मिलन (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj