
महात्मा अफलातून (kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
यूनान के महात्मा अफलातून ने मरते समय अपने बच्चों को बुलाया व कहा−”मैं तुम्हें चार−चार रत्न देकर मरना चाहता हूँ, आशा है तुम इन्हें सम्हाल कर रखोगे व इन रत्नों से अपने जीवन सुखी बनाये रहोगे।” बच्चों ने रत्न प्राप्ति के लिए हाथ फैलाए तो अफलातून ने एक−एक करके रत्न बच्चों को इस प्रकार दिये।
“पहला रत्न मैं क्षमा का देता हूँ−तुम्हारे प्रति कोई कुछ भी कहे तुम उसे विस्मृत करते रहो व कभी उसके प्रतिकार का विचार अपने मन में न लाओ।
निरहंकार का दूसरा रत्न देते हुए समझाया कि अपने द्वारा किये गये उपकार को भूल जाना चाहिए।
तीसरा रत्न है विश्वास−यह बात अपने हृदय पटल पर अंकित किये रखना कि मनुष्य के बूते कभी कुछ भला−बुरा नहीं होता जो कुछ होता है वह सृष्टि के नियन्ता के विधान से होता है।
चौथा रत्न है वैराग्य− “यह सदैव ध्यान में रखना कि एक दिन सबको मरना है”
सांसारिक सम्पत्ति पाकर तो पता नहीं उनका क्या बनता है, पर इन गुणों का अनुसरण कर ये बच्चे निहाल हो गये।
----***----