• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • पवित्रता, महानता और संयमशीलता
    • प्रगति के लिये कल्मषों का निवारण आवश्यक
    • Quotation
    • अभिवर्धन से पूर्व परिशोधन करना होगा।
    • Quotation
    • कर्मफल की सुनिश्चितता बनाम आस्तिकता
    • Quotation
    • कर्मफल की अस्त-व्यस्तता एवं अपवाद शृंखला
    • पाप कर्मों का परिमार्जन मात्र प्रायश्चित्त से
    • प्रारब्ध न तो अन्धविश्वास है और न अकारण।
    • तत्काल फल न मिले तो भ्रम में न पड़ें।
    • कुसंस्कारों का परिपाक कष्टों और संकटों के रूप में
    • Quotation
    • कर्मफल भोगे बिना छुटकारा नहीं
    • आकस्मिक विपत्तियों और दुर्घटनाओं की परोक्ष पृष्ठभूमि
    • अनेक संकटों के कारण मनुष्य के संचित पाप कर्म
    • व्यक्तित्व को प्रखर और भविष्य को उज्ज्वल बनाने की साधना
    • प्रौढ़ साधकों के उपयुक्त प्रखर साधना
    • Quotation
    • सर्वतोमुखी प्रखरता उत्पन्न करने वाली तप-साधना
    • Quotation
    • चांद्रायण तप की शास्त्रीय परम्परा
    • चांद्रायण तप और पंचकोशी योगाभ्यास
    • विश्व भ्रमण पर थे (kahani)
    • ब्रह्मवर्चस् साधना में ज्ञानयोग, कर्मयोग एवं भक्तियोग का समन्वय
    • Quotation
    • ब्रह्मवर्चस् की योगाभ्यास साधना
    • Quotation
    • ब्रह्मवर्चस् साधना के लिए आमन्त्रण
    • साधना का पारस!
    • साधना का पारस (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • पवित्रता, महानता और संयमशीलता
    • प्रगति के लिये कल्मषों का निवारण आवश्यक
    • Quotation
    • अभिवर्धन से पूर्व परिशोधन करना होगा।
    • Quotation
    • कर्मफल की सुनिश्चितता बनाम आस्तिकता
    • Quotation
    • कर्मफल की अस्त-व्यस्तता एवं अपवाद शृंखला
    • पाप कर्मों का परिमार्जन मात्र प्रायश्चित्त से
    • प्रारब्ध न तो अन्धविश्वास है और न अकारण।
    • तत्काल फल न मिले तो भ्रम में न पड़ें।
    • कुसंस्कारों का परिपाक कष्टों और संकटों के रूप में
    • Quotation
    • कर्मफल भोगे बिना छुटकारा नहीं
    • आकस्मिक विपत्तियों और दुर्घटनाओं की परोक्ष पृष्ठभूमि
    • अनेक संकटों के कारण मनुष्य के संचित पाप कर्म
    • व्यक्तित्व को प्रखर और भविष्य को उज्ज्वल बनाने की साधना
    • प्रौढ़ साधकों के उपयुक्त प्रखर साधना
    • Quotation
    • सर्वतोमुखी प्रखरता उत्पन्न करने वाली तप-साधना
    • Quotation
    • चांद्रायण तप की शास्त्रीय परम्परा
    • चांद्रायण तप और पंचकोशी योगाभ्यास
    • विश्व भ्रमण पर थे (kahani)
    • ब्रह्मवर्चस् साधना में ज्ञानयोग, कर्मयोग एवं भक्तियोग का समन्वय
    • Quotation
    • ब्रह्मवर्चस् की योगाभ्यास साधना
    • Quotation
    • ब्रह्मवर्चस् साधना के लिए आमन्त्रण
    • साधना का पारस!
    • साधना का पारस (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1978 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


सर्वतोमुखी प्रखरता उत्पन्न करने वाली तप-साधना

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 19 21 Last
धर्मशास्त्र में पाप निवृत्ति और पुण्य प्रवृत्ति के दोनों उद्देश्यों को पूरा करने के लिए उपयुक्त साधन चान्द्रायण तप बताया गया है। इस पुण्य प्रक्रिया के पाँच प्रमुख भाग ये हैं (1) एक महीने तथा आहार के घटने-बढ़ने वाला उपवास (2) गुप्त पापों का प्रकटीकरण (3) आन्तरिक परिवर्तन कर सकने वाले वातावरण में निवास और अनुशासन का प्रतिपालन (4) अन्तः करण को परिष्कृत करने वाला योगाभ्यास युक्त तप साधन। (5) दुष्कर्मों की क्षतिपूर्ति और पुण्य वर्धन की परमार्थ परायणता। इन्हें पूरा करने से चान्द्रायण तप सम्पन्न होता है। मात्र एक महीने का उपवास ही चान्द्रायण नहीं है।

एक महीने की निर्धारित ब्रह्मवर्चस् साधना कम में इन पाँचों का समन्वय है।

(1) पूर्णिमा से पूर्णिमा तक एक महीने का उपवास रहता है। पूर्णिमा को पूर्ण आहार करके उसका चौदहवां अंश कृष्ण पक्ष में हर दिन घटाया जाता है। शुक्ल पक्ष में उसी क्रम से बढ़ाते रहते हैं। अनभ्यास लोगों को ‘शिशु’ चान्द्रायण कराया जाता है और मनस्वी लोगों को यति चान्द्रायण। यह स्वास्थ्य सम्वर्धन के लिए शारीरिक काया-कल्प जैसा प्रयोग है। इससे रोगों की जड़े कटती है। परम सात्विक हविष्यान्न ही पेट में जाने से विचार परिष्कार और सद्भाव सम्वर्धन का उद्देश्य बड़ी अच्छी तरह पूरा होता है। पंचगव्य सेवन, गौ मूत्र से संस्कारित हविष्यान्न का आहार आदि के माध्यम से गौ सम्पर्क भी सधता रहता है। प्यास बुझाने के लिए मात्र गंगाजल पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

(2) गुप्त पापों का प्रकटीकरण मात्र ब्रह्मवर्चस् के कुलपति के सम्मुख करके चित्त की भीतरी परतों पर जमी हुई दुराव की जटिल ग्रन्थियों को खोला जाता है। मानसिक रोगों के निराकरण का यह बहुत ही उत्तम उपचार है। जो किया जा चुका उसके परिमार्जन के लिए क्या करना चाहिए यह परामर्श प्राप्त करना भी इसी प्रकटीकरण का अंग है।

शीर्ष संस्कार इसी प्रयोजन के लिए है। पूर्ण मुण्डन तो नहीं कराया जाता, पर बाल थोड़े छोटे अवश्य हो जाते हैं। जिसका तात्पर्य है संचित दुष्ट विचारों का परित्याग। बच्चों का मुण्डन संसार भी जन्म-जन्मान्तरों की पशु प्रवृत्तियों को मस्तिष्क में से हटाने के उद्देश्य से ही किया जाता है। बाल छाँटने के अतिरिक्त गोमूत्र, गोमय आदि मन्त्र विधान सहित शीर्ष संस्कार किया जाता है। साधक अनुभव करता है कि इस धर्म कृत्य के साथ-साथ उसके मनःसंस्थान में अति महत्वपूर्ण परिवर्तन हो रहा है

(3) वातावरण का मनुष्य पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। व्यक्तित्व के परिवर्तन प्रयास में वातावरण का परिवर्तन आवश्यक माना गया है। ब्रह्मवर्चस् आरण्यक में वैसी समुचित सुविधा उपलब्ध है। परिमार्जन, संरक्षण और अभिवर्धन के तीनों उद्देश्य पूरे करने वाली त्रिवेणी यहाँ विद्यमान है। दिनचर्या में स्वाध्याय, सत्संग, मनन, चिन्तन के चारों तत्व गुंथे हुए हैं। शारीरिक और मानसिक संयम अनुशासन की कठोर विधि व्यवस्था का पालन करना पड़ता है। प्रवचन और परामर्श का दैनिक लाभ मिलता है। दिनचर्या, इतनी अनुशासित और व्यवस्थित रहती है कि इस ढर्रे में ढल जाने वाला भविष्य में अपने आपको सर्वतोमुखी प्रगति में सहायक ढाँचे में ही ढाल लेता है। वातावरण का प्रभाव अभिनव परिवर्तन के रूप में निरन्तर अनुभव होता रहता है।

(4) अन्तःकरण में दैवी संस्कारों की जड़ जमाने वाले योगाभ्यास और तप साधन चान्द्रायण के साथ-साथ ही करने होते हैं। सवा लक्ष्य गायत्री पुरश्चरण अनिवार्य रूप से आवश्यक है। गायत्री यज्ञ में नित्य ही सम्मिलित होना होता है। इसके अतिरिक्त उच्चस्तरीय पंचकोशी साधना के लिए पाँच योगाभ्यास निश्चित है। जप और ध्यान के अतिरिक्त (1) त्राटक (2) सूर्यवेधन प्राणायाम (3) खेचरी मुद्रा (4) सोऽहम् साधना एवं शक्तिचालिनी प्रक्रिया के रूप में नित्य ही करनी पड़ती है। इन साधनाओं का चेतना क्षेत्र के पाँच प्राणों का और काया क्षेत्र के पाँच तत्वों का परिष्कार होने के साथ-साथ जीवन में अभिनव प्राण संचार होता है। शास्त्रों में इसे पंचीकरण योगाभ्यास एवं पंचाग्नि तपश्चर्या कहा है। सर्व साधारण के सध सकने जितना ही दबाव इस एक महीने के साधन क्रम में सम्मिलित किया गया है। गायत्री की पंचमुखी साधना में पंचकोशों के अनावरण को ग्रन्थि वेधन का रहस्यमय विधान इन्हीं पाँच साधनाओं के अन्तर्गत आ जाता है। अन्तःचेतना के यह पाँच उभार पाँच देवताओं के वरदान जैसे चमत्कारी प्रतीत होते है।

(5) पापों की क्षतिपूर्ति एवं पुण्य सम्पदा की अभिवृद्धि के लिए चान्द्रायण व्रत की पूर्णाहुति के रूप में कुछ अवांछनीयताओं का परित्याग और कुछ परमार्थों को अपनाने का संकल्प करना होता है। संग्रह का अंश दान तीर्थयात्रा के रूप में धर्म प्रचार का श्रमदान, पुण्य प्रयोजनों में सहकार, सत्सृजन में योगदान जैसे कुछ कदम ऐसे उठाने के लिए परामर्श दिया जाता है जिनके सहारे अन्तःकरण पर परिवर्तन को व्यवहार में उतारने की छाप प्रत्यक्ष परिलक्षित होने लगे। आन्तरिक काया-कल्प चान्द्रायण तपश्चर्या का उद्देश्य है। यह कल्पना क्षेत्र तक ही सीमित बनकर न रह जाय वरन् व्यवहार में भी परिलक्षित होने लगे। इसके लिए कुछ क्रियात्मक कदम उठाने के लिए वैसा परामर्श मिलता है जो प्रस्तुत परिस्थितियों में सरलतापूर्वक शक्य हो सके। उपलब्ध सुसंस्कार परिपक्वता के लिए दूसरों के सम्मुख परिवर्तन का प्रमाण प्रस्तुत करने के लिए कुछ साहसिक कदम उठाने पड़ते हैं। यही चान्द्रायण की पूर्णाहुति है।

बीज को वृक्ष रूप में परिणित करना एक चमत्कार है। व्यक्ति को तुच्छ से महान भी एक दैवी वरदान है। बीज अनायास ही वृक्ष नहीं बन जाता। उसे उगने से लेकर फूलने-फलने की परिपक्व स्थिति तक पहुँचने में समय और साधनों की आवश्यकता पड़ती है। (1) भूमि (2) खाद (3) पानी (4) सुरक्षा एवं (5) उत्पादक की श्रमशीलता का समन्वय आवश्यक होता है। ठीक इसी प्रकार ईश्वराधन का सफल बनाने के लिए भी पाँच परिपोषणों की आवश्यकता पड़ती है। इन्हीं पाँचों का समन्वय ब्रह्मवर्चस् साधना में है। इसका सुनियोजित तप साधना की सामूहिक व्यवस्था से उस युग शक्ति का उद्भव होगा जिसकी सामर्थ्य से नये युग के सृजन की अनेक आवश्यकताएँ पूर्ण हो सकेगी। व्यक्ति में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग के अवतरण के लिए जिन सृजन शक्तियों को युगान्तकारी भूमिका निभानी है, उनकी धार तेज करने के लिए यह एक महीने की चान्द्रायण तपश्चर्या अति महत्वपूर्ण सिद्ध होगी, यह सुनिश्चित है।

First 19 21 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • पवित्रता, महानता और संयमशीलता
  • प्रगति के लिये कल्मषों का निवारण आवश्यक
  • Quotation
  • अभिवर्धन से पूर्व परिशोधन करना होगा।
  • Quotation
  • कर्मफल की सुनिश्चितता बनाम आस्तिकता
  • Quotation
  • कर्मफल की अस्त-व्यस्तता एवं अपवाद शृंखला
  • पाप कर्मों का परिमार्जन मात्र प्रायश्चित्त से
  • प्रारब्ध न तो अन्धविश्वास है और न अकारण।
  • तत्काल फल न मिले तो भ्रम में न पड़ें।
  • कुसंस्कारों का परिपाक कष्टों और संकटों के रूप में
  • Quotation
  • कर्मफल भोगे बिना छुटकारा नहीं
  • आकस्मिक विपत्तियों और दुर्घटनाओं की परोक्ष पृष्ठभूमि
  • अनेक संकटों के कारण मनुष्य के संचित पाप कर्म
  • व्यक्तित्व को प्रखर और भविष्य को उज्ज्वल बनाने की साधना
  • प्रौढ़ साधकों के उपयुक्त प्रखर साधना
  • Quotation
  • सर्वतोमुखी प्रखरता उत्पन्न करने वाली तप-साधना
  • Quotation
  • चांद्रायण तप की शास्त्रीय परम्परा
  • चांद्रायण तप और पंचकोशी योगाभ्यास
  • विश्व भ्रमण पर थे (kahani)
  • ब्रह्मवर्चस् साधना में ज्ञानयोग, कर्मयोग एवं भक्तियोग का समन्वय
  • Quotation
  • ब्रह्मवर्चस् की योगाभ्यास साधना
  • Quotation
  • ब्रह्मवर्चस् साधना के लिए आमन्त्रण
  • साधना का पारस!
  • साधना का पारस (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj