
निर्भयता- श्रेयस् की जननी
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
वाराणसी के जंगलों में एक खरगोश रहता था। जितना छोटा था उसका शरीर अन्य जीव जन्तुओं की तुलना में, उससे भी छोटी थी उसकी बुद्धि। एक दिन मध्याह्न समय वेल पादप की छाया में वह विश्राम कर रहा था। भोजन से पेट भरा था और इसलिए उसे नींद भी आ गयी और निद्रावस्था में उसने एक भयंकर स्वप्न देखा। स्वप्न में शायद वह किसी भवन के नीचे सोया था और वह देख रहा था कि भवन की छत फट पड़ी है और उसके मलबे तले वह दबता जा रहा है।
यह स्वप्न देख कर भयभीत हो जाग उठा। उसका मुँह आकाश की ओर तो था ही सीधी दृष्टि आकाश पर गयी और उसने सोचा कभी यह आकाश फट पड़े। तो स्वप्न की तन्द्रा में तो वह था ही और हृदय भी भय ग्रस्त, सो सचमुच ही लगने लगा कि आकाश फट पड़ा है तभी भयानक तेज हवा चली और बेल के वृक्ष से एक फल टूट कर जमीन पर गिरा। उसकी जो आवाज हुई उसने खरगोश की इस आशंका की पुष्टि कर दी कि आकाश फट पड़ा है। वस्तुस्थिति को जानने के लिए न तो उसने अपनी आजू बाजू देखा और न कुछ विचार ही किया। एकदम से भाग खड़ा हुआ। आत्मरक्षा के लिए वह किसी ऐसे स्थान पर जा छुपने की कोशिश में था कि जहाँ उसके प्राण बच जाँय और वह सुरक्षित भी रह जाय वह इस प्रकार डरकर भाग रहा था कि पीछे तो क्या अगल-बगल में अपन सुरक्षित स्थान देखने की भी हिम्मत नहीं जुट पा रही थी।
इस प्रकार बेतहाशा भागते हुए देख कर उसके कुछ साथियों को बड़ा आश्चर्य हुआ। कुछ ने रोक कर पूछना चाहा कि क्या बात है परन्तु खरगोश के पास रुकने का समय कहाँ था। भागते-भागते ही उसने कहा-’अरे मूर्खों! रुकने की बात कह रहे हो अभी पता चल जायगा कि क्या हुआ। पीछे आसमान फट पड़ा है अभी सब दब कर मर जाओगे मैं तो किसी सुरक्षित स्थान की तलाश कर रहा हूँ ताकि अपने प्राण बचा सकूँ।’
इतना सुनना था कि उसके साथियों ने भी बिना कोई सोच विचार किये उस खरगोश के पीछे भागना शुरू किया। थोड़ी दूर बाद मिला हरिणों का झुण्ड हरिणों ने पूछा- भाइयों आप सब लोग इस तरह घबराकर क्यों भाग रहे हो।
घबरा कर नहीं मित्रों, अपनी जाति और अपने प्राणों की रक्षा के लिए भाग रहे हैं - भागते हुए खरगोश में से एक ने कहा- पीछे आसमान फट पड़ा है और सारी पृथ्वी के प्राणियों पर विपत्ति आ पड़ी है।
हरिण भी भागने लगे नदी के किनारे पहुँचे तो हाथियों ने भी उसी प्रकार पूछा जिस प्रकार अन्य खरगोशों तथा हरिणों ने पूछा था और वे भी वस्तु स्थिति पर कोई विचार किये बिना ही भागने वालों के उस झुण्ड में जा मिले। इसी प्रकार धीरे-धीरे बारहसिंगा, लोमड़ी, गैंडे, नीलगायें, चीते और भेड़ियों भी इन भागने वालों के काफिले में शरीक हो गये।
भागते-भागते जब यह मण्डली एक पहाड़ की घाटी पहुँची तो उस घाटी की एक गुफा में विश्राम कर रहे वनराज सिंह की आँखें खुल गयीं। सिंह ने भागते हुए प्राणियों को रोका और पूछा तो कारण का पता चलने पर वनराज की हँसी छूट पड़ी। आकाश की ओर देखते हुए कहा- देखो आकाश तो अपनी जगह पर खड़ा हुआ है।
घटना के मूल कारण का पता चला तो सभी जीव को बड़ी आत्म ग्लानि हुई। यह कथा सुना कर भगवान बुद्ध ने अपने भिक्षुओं से कहा-भिक्षुओ अब तुम समझ गये होंगे कि भय से मनुष्य के सोचने विचारने की शक्ति भी समाप्त हो जाती है। इससे पूर्व कि जब भय के कारण उपस्थित हों तभी विचारपूर्वक उन्हें जान लिया जाय तो तनिक भी अनिष्ट ने होगा। लौकिक जगत में ही नहीं आत्मिक जगत में प्रवेश और सफलता के लिए भी निर्भयता एक द्वार है और जो उस द्वार से प्रवेश करते हैं वे ही श्रेयस् को प्राप्त कर सकते हैं।