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Magazine - Year 1979 - June 1979

Media: TEXT
Language: HINDI
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शक्ति के दुरुपयोग की विभीषिका

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शक्ति की महत्ता से इनकार नहीं किया जा सकता, उसी के बल पर मनुष्य समर्थ और समृद्ध बनता है। तथ्य को समझते हुए अपने काम की सामर्थ्य उपार्जित करने के लिए यथा संभव प्रयत्न करता है। यह उचित भी है और आवश्यक भी। पर ध्यान यह भी रखा जाना चाहिए कि जिस सामर्थ्य का उपार्जन किया जा रहा है उसका उपयोग सत्प्रयोजनों के लिए सम्भव भी है या नहीं, यदि नहीं तो, तब तक सीमित शक्ति से ही सन्तोष करना उचित है जब तक कि विशिष्ट शक्ति के सदुपयोग का मार्ग न मिल जाय।

वर्तमान शताब्दी में भौतिक सामर्थ्य के क्षेत्र की सबसे बड़ी उपलब्धि अणुशक्ति है। उसने मानवी समर्थता में एक नया अध्याय सम्मिलित किया है। अणु भट्टियों में एक नया अध्याय सम्मिलित किया है। अणु भट्टियों द्वारा विपुल मात्रा में विद्युत उत्पादन करने और आधार पर आर्थिक प्रगति को चरम सीमा तक पहुँचा देने की योजना बनती और क्रियान्वित होती रहती हैं। इस प्रकार शत्रु देश को तहस-नहस करके रख देने के लिए अणु-आयुधों का उत्पादन द्रुत-गति से हो रहा है। समर्थता को विपुल मात्रा में अर्जित करने और अपना वर्चस्व स्थापित करने की लिप्सा से अणु शक्ति के उत्पादन में सर्वत्र घुड़दौड़ सी लगी दिखाई पड़ती है। प्रगति भी कम नहीं हुई है। पिछले तीस वर्षों में इस संदर्भ में इतना काम हुआ है कि उसे देखते हुए आश्चर्यचकित रह जाना पड़ता है। प्रयासों की सराहना करते हुए भी यह असमंजस बढ़ता ही जा रहा है कि उस उत्पादन के संरक्षण और सदुपयोग का सुनिश्चित मार्ग न मिल सका तो इन उपलब्धियों से महाविनाश की विभीषिका ही उत्पन्न होकर रहेगी।

वह समय बहुत पीछे रह गया जब अकेले अमेरिका के हाथ में ही अणु शक्ति का एकाधिकार था और उसने जापान के दो नगरों पर अणु-बम गिरा कर उस देश के लाखों निर्दोष नागरिकों के लिए महा प्रलय उपस्थित कर दी थी।

आज कम से कम 7 ऐसे देश है जो न्यूक्लियर क्लब की सदस्यता के अधिकारी हैं। आज कच्चे कच्चे प्रकार के ऐटमी विस्फोटक के बजाय एक भारी भरकम महाविनाशकारी बम बनाना कहीं अधिक आसान है। बम की साज-सज्जा के लिये कुछ विशेष तकनीकी ज्ञान चाहिये, पर उसका अधिकाँश एटामिक एनर्जी कमीशन से कोई भी खरीद सकता है। ‘एटम फार पीस’ कार्य क्रम के अंतर्गत 1955 के आस-पास अधिकाँश जानकारी अमरीकी राष्ट्रीय गुप्त सूची से अलग कर दी गई थी। आज कोई भी इन आंकड़ों को अमेरिका में सुगमता से प्राप्त कर सकता है। इतनी जानकारी तो उनके पास भी नहीं थी, जिन्होंने पहला एटम बम बनाया था।

अमेरिकी अनुशासन-उदासीनता ने एक अलभ्य खतरनाक वस्तु को भी अब सुलभ बना दिया है। यह है प्लूटोनियम 239 या संबंधित यूरेनियम (यूरेनियम-233) इनमें से प्लूटोनियम का चुराया जाना सबसे आसान है। यह तत्व आज कल अमेरिका के रिएक्टरों में स्वयमेव बन जाता है एवं आधुनिक रिएक्टर यह ईधन इस्तेमाल करते नहीं जो एटम बम के निर्माण में काम आता ह। 1980 तक अमेरिका में लगभग 150 ऐसे ऐटमी कारखाने हो जायेंगे जो प्लूटोनियम का ही उपयोग करेंगे और ढेरों प्लूटोनियम जब आयेगा, जिसकी प्रति किलोग्राम कीमत दस हजार डालर के आस-पास होती है, वह चोरों के लिये आकर्षक सौदे की वस्तु होगी। बम बनाने के लिए इस तत्व की छोटी मात्रा भी काफी होती है।

आज सामान्य लोगों में तो है ही वैज्ञानिकों में भी यह मिथ्या विश्वास है कि ऐटमबम बनाना अत्यन्त असाध्य है; जबकि वस्तुस्थिति यह है कि भीमकाय तो नहीं-2-4 हजार प्राणों की क्षमता वाला एक बम आप आसानी से बना सकते हैं। एक छोटे यंत्र में 100 टी.एन.टी. की विस्फोटक शक्ति भर कर उसे बम का रूप दे देना मुश्किल कार्य नहीं है।

अमेरिका में जब पत्रकारों ने यह रहस्योद्घाटन किया कि अनेक ऐटमी संस्थानों में लेखा जोखा लेने पर कहीं भी पूरा माल बरामद नहीं हुआ तो जनता में भय समाप्त हो गया। यह चोरी गया माल तस्करी द्वारा विभिन्न देशों में भी जा रहा है व विध्वंसक मनोवृत्ति वाले लोगों या संस्थाओं तक पहुँचकर पूरे समाज में आतंक पहुँचा रहा है।

अणु शक्ति का यह विस्तार उत्पादन के उपयोगी कार्या के लिए हुआ होता, अथवा उसे विश्व के मूर्धन्य लोक नायकों के हाथ में सुरक्षित रखा गया होता तो भी एक बात थी पर अब तो उसका विस्तार इतना अधिक हो गया है और इतनी तेजी से हो रहा है कि अगले दिनों कोई सिरफिरा आदमी कुछ लाख रुपये की लागत से विश्व विनाश का पागलपन प्रस्तुत कर सकता है। यह विभीषिका कम चिन्ताजनक नहीं है।

तथाकथित प्रगति का एक कदम और आगे बढ़ा है और अणु आयुधों ने हाइड्रोजन बमों के रूप में अपनी समर्थता का और भी अधिक विस्तार किया है। अणु बमों की तुलना में हाइड्रोजन बमों की शक्ति को अनेक गुना भयानक आँका जा सकता है।

अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन के शासनकाल में जापान पर अणु बम गिराये गये थे। उसके बाद इस सामर्थ्य के बनाने के लिए प्रयत्नों में और भी अधिक तेजी आई। सन् 1950 में अमेरिका ने 1000 अरब डालर की एक योजना हाइड्रोजन बम बनाने की तैयार की। योजना को रूस ने अपने अस्तित्व के लिए चुनौती माना। स्पष्ट था कि यह तैयारी समतुल्य सामर्थ्यवान समझे जाने वाले रूस के विरुद्ध ही की जा रही थी। वही सैद्धान्तिक एवं भौतिक क्षेत्र में उन दिनों एक मात्र चुनौती देने वाला देश था। रूस के कान खड़े हुए और उसने भी अपने साधनों का एक बहुत बड़ा भाग इसी निमित्त झोंक दिया। प्रतिस्पर्धा का चक्र द्रुतगति से परिभ्रमण करने लगा। अणु बम व उद्जन बम का तुलनात्मक अध्ययन किया जय तो उद्जन बम की विस्फोटक शक्ति का भीषण स्वरूप सामने आता है।

अणु बम का ज्वाला 3 सेकेंड तक जलती है, एवं इसका प्रभाव केवल 1 सेकेंड तक रहता है, जबकि उद्जन बम का प्रभाव पूरे 10 सेकेंड तक बना रहता है, ज्वाला 20 सेकेंड तक प्रज्वलित रहती है एवं इसके विस्फोट से 80 वर्गमील के क्षेत्र क सभी इमारतें नष्ट हो ईंट तथा पत्थर पिघल जाते है। 1000 वर्ग मील की इमारतों को आँशिक क्षति पहुँचती है एवं आसपास के 100 वर्गमील क्षेत्र में कोई भी प्राणी जीवित नहीं रहता।

आशय यह कि अकेला एक उद्जन बम लन्दन या न्यूयार्क सरीखे विशाल नगर को नेस्तनाबूद कर सकता है।

हाइड्रोजन बम के दाहक प्रभाव से 800 वर्गमील के क्षेत्र में व्यक्तियों की खुली त्वचा पर जलन के घाव (रेडियेशन बर्न्स) उत्पन्न हो सकते हैं जो उनकी मृत्यु का कारण बन सकते हैं।उत्सर्जित किरणें मानव सभ्यता के लिये अभिशाप है। इनसे आयु घट जाती है, वंशानुगत रोग उत्पन्न हो सकते है एवं अंततः जिंदा लाश के रूप में ही मनुष्य बच पाता है।

प्रथम उद्जन बम का परीक्षण 1 नवम्बर 1952 को पैसिफिक महासागर के एक द्विप पर किया गया। सफल परीक्षण के बाद एक क्रम आरम्भ हो गया-इस शक्ति से युद्धोपयोगी शस्त्र बनाने का।

पर उधर सोवियत रूस भी चुप नहीं बैठा था। रूस ने साइबेरिया के निर्जन प्रान्तों में हाइड्रोजन बम के परीक्षण कर उसे अमेरिका के समकक्ष ला दिया।

एक अनुमान हमें इन हाइड्रोजन बमों की शक्ति के विषय में लगाना हो तो 1950 मार्च के बम परीक्षण का वर्णन पढ़कर जान सकते हैं। बिकनी द्वीप समूह के चारों ओर 100 मील दायरे का क्षेत्र खतरनाक घोषित कर दिया गया था। विस्फोट के समय करोड़ों डिग्री के ऊँचे ताप के कारण द्वीप की भूमि के मूँगे, पत्थर आदि तप्त होकर पहले तो वाष्प बन गये फिर ठण्डे होने पर नन्हें-नन्हें जर्रे के रूप में ये हवा में उतराते रहे। आकाश में वाष्पी भूत हुए 20 लाख टन पदार्थ के जर्रे (कण) कई समाप्त तक भयंकर रेडियो सक्रिय रश्मियाँ उत्सर्जित करते रहे। इस बम की क्षमता हिरोशिमा वाले बम से 1000 गुणा अधिक थी। इस अस्त्र के विस्फोट से लगभग 1 लाख वर्ग मील के क्षेत्र की वायु दूषित हो गयी। यह शक्ति लगभग उतनी ही शक्ति के बराबर है जितनी समस्त भारत में सूर्य किरणों से दो मिनट में प्राप्त होती है।

शक्ति का यह विस्मयकारी भंडार मनुष्य के हाथ में आने पर कुछ देश उस पर गर्व अनुभव कर सकते हैं पर यथार्थता यह है कि उससे आतंक और अविश्वास की ही अभिवृद्धि हुई है। भय एवं आशंका का वातावरण बढ़ा है। महाविनाश का संकट सघन हुआ है कि जनमानस को असुरक्षा की उद्विग्नता ने भयभीत किया है। इन प्रयत्नों में अब तक जितना धन लगा है उसे देखने से गणितज्ञ कहते है कि इस राशि का उपयोग यदि गरीबी बीमारी एवं अशिक्षा के निराकरण में किया गया होता तो स्थिति आज की तुलना में कहीं अधिक अच्छी होती और व्यक्ति तथा समाज को अधिक सुख शाँति से रहने का अवसर मिला होता।

सामर्थ्य, उपार्जन और उसका विनाश के लिए उपयोग ऐसा कुचक्र है जिससे संलग्न प्रतिभाएं अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय नहीं देती। भस्मासुर, हिरण्यकश्यप रावण, सहस्रबाहु, वृत्तासुर, महिषासुर आदि की समर्थता प्राचीन काल में भी चरम सीमा तक पहुँची थी पर उसका दुरुपयोग होने से उपार्जनकर्त्ता भी घाटे में रहे और तत्कालीन जन समाज को भी असीम कष्ट सहने पड़े। शक्ति का असीम संचय और उसका दुरुपयोग भूतकाल में भी दुखद परिणाम ही उत्पन्न कर सका। आज भी विश्व के मूर्धन्य उसी नीति को अपना रहे हैं हम इतिहास को जानकर रह जाते हैं, उससे शिक्षा ग्रहण नहीं करते यदि वैसा किया जा सका होता तो अणु शक्ति के दुरुपयोग की ऐसी योजना न बनती जैसी कि आज बन रही है।

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Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
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June 1979
Type: TEXT
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