
स्वस्थ जीवन की कुँजी
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अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करने एवं निरोग बने रहने की आकाँक्षा सभी करते हैं। किन्तु स्वस्थ बने रहना एवं दीर्घ जीवन की प्राप्ति जिन बातों पर आधारित है, उन सामान्य नियमों की उपेक्षा अधिकाँशतः व्यक्ति करते देखे जाते हैं। फलस्वरूप अनेकानेक आधि व्याधियों से घिरे एवं ग्रस्त दिखाई देते हैं।
समझा यह जाता है कि पोषक आहार पर ही अच्छा स्वास्थ्य अवलम्बित है तथा इसके द्वारा आरोग्य की प्राप्ति हो सकती है। यह मान्यता एक सीमा तक ही सही है। पोषक तत्वों का अपना महत्व है तथा स्वस्थ बने रहने में इनका योगदान भी है। इसकी महत्ता से इन्कार नहीं किया जा सकता किन्तु इससे भी अधिक महत्वपूर्ण जो चीज है, जिस पर स्वास्थ्य की नींव आधारित है वह है- संयम एवं सदाचार युक्त जीवन। सच पूछा जाये तो सदाचार युक्त जीवन ही आरोग्य की कुँजी है। शास्त्र भी इसका समर्थन करते हुए कहते हैं -
इत्याचार समासेन भाषितं यः समाचरेत्।
स विंदत्यायुरारोग्यं प्रीतिं धर्म धन यशः॥
(भाय प्रकाश)
जो व्यक्ति सदाचरण का पालन करेंगे वे आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य, यश, प्रीति तथा धर्म प्राप्त करेंगे।
न केवल आरोग्य अपितु आत्मलक्ष्य क गति भी सदाचार युक्त जीवन से ही सम्भव है;
महाभारत में वर्णन है -
तस्मात् कुर्यादिद्वाचारं यदिच्छेद् भूति आत्मन;।
अभिपाप शरीरस्य आचारो हन्त्य लक्षणम्॥
आत्म-कल्याण चाहने वाला सदाचार बरते। शरीर की व्याधियाँ भी सदाचरण से नष्ट होती है।
चरक ऋषि कहते हैं -
तस्मादात्महितं चिकीर्षता सर्वेण
सर्व सर्वदा स्मृतिमास्थाय सद्वृन्तमनुष्ठेयम्।
तदनुष्ठानंयुग पत् सम्पादय र्त्यथद्धय
मारोग्यमिंद्रिय विजय चरेत।
आत्म कल्याण के अभिलाषी सर्वदा अंतःकरण से सदाचार का आचरण करें। सदाचार के आचरण से आरोग्य की प्राप्ति होती है इन्द्रियों पर विजय भी प्राप्त होती है। इस प्रकार दोहरा प्रयोजन सिद्ध होता है।
बीमार पड़ने पर अन्धाधुन्ध दवाओं का सेवन करते लोग देखे जाते हैं। इसका परिणाम क्षणिक लाभ के रूप में भले ही दिखायी दे किन्तु स्थायी लाभ तो नहीं ही मिल सकता। दवाओं के सेवन करने की अपेक्षा आत्म संयम किया जाय तो स्थायी स्वास्थ्य लाभ मिल सकता है शास्त्रों में भी वर्णन है -
प्रयोगः शमयेद् व्याधियों नैवान्य मुदीरयेत्।
तासौ विशुद्ध शुद्धस्तु शमयेद् योन कोपयेत्॥
रोग उत्पन्न होने पर चिकित्सा करने की अपेक्षा यह उत्तम है कि आत्म नियन्त्रण करके रोग उत्पन्न ही न होने दिया जाय।
आचाराल्लभते ह्ययायुरा चारा दीप्सिताः प्रजाः।
आचाराद्धन क्षय्यमाचारों हन्त्यलक्षणम्॥
सदाचारवान् मनुष्य दीर्घ जीवी होता है सुयोग्य सन्तान का लाभ प्राप्त करता है। सदाचार से सम्पत्ति सुरक्षित रहती, शरीर में यदि जन्मजात रोग हो तो वह भी नष्ट हो जाता है।
संयमित जीवन एवं आचरण की श्रेष्ठता और पवित्रता का महत्व समझा जा सके तथा जीवन क्रम में इसका समावेश किया जाय तो आरोग्य और दीर्घ जीवन की प्राप्ति सम्भव है।