• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • मनुष्य जीवन सुनिश्चित कल्पवृक्ष
    • साधनों का प्रथम चरण
    • परमात्म-सत्ता के अकाट्य प्रमाण
    • Quotation
    • तथ्यों और मान्यताओं का अन्तर समझा जाय
    • यही गुण ब्राह्मण के (kahani)
    • वासाँसि जीर्णानि यथा विहाय
    • श्रेयात् सिद्धिः
    • यह जीवन भी कोई जीवन है
    • महामानव अर्थात् चरित्र-निष्ठा
    • प्रकृति के बन्धनों से मुक्त मानवी चेतना
    • निर्भयता- श्रेयस् की जननी
    • अवाँछनीय अभिवृद्धि के दुष्परिणाम
    • जड़ का मजबूत होना आवश्यक (kahani)
    • अपनी इच्छा ही नहीं, दूसरों का हित भी देखें!
    • पूर्वाग्रह छोड़ प्रगतिशीलता अपनायें
    • अदृश्य शक्तियों का परोक्ष सहयोग
    • Quotation
    • उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः
    • सृजन की ओर बढ़ें ध्वंस को रोकें
    • Quotation
    • संकल्प शक्ति का सदुपयोग किया जाय!
    • मंत्र विद्या ध्वनिशक्ति का उच्चस्तरीय उपयोग
    • स्वस्थ जीवन की कुँजी
    • मस्तिष्क की प्रसुप्त क्षमताएं और उनकी जागृति
    • सर्वचिन्ता परित्यागो निश्चिन्तो योग उच्यते।
    • क्रोध-के सर्वनाशी आवेग से बचे!
    • अधिक श्रेष्ठता सादगी और सज्जनता की (kahani)
    • शक्ति के दुरुपयोग की विभीषिका
    • Quotation
    • वैज्ञानिक दृष्टि से अध्यात्म का प्रतिपादन साहित्य
    • “फसल उगाना है”
    • फसल उगाना है (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • मनुष्य जीवन सुनिश्चित कल्पवृक्ष
    • साधनों का प्रथम चरण
    • परमात्म-सत्ता के अकाट्य प्रमाण
    • Quotation
    • तथ्यों और मान्यताओं का अन्तर समझा जाय
    • यही गुण ब्राह्मण के (kahani)
    • वासाँसि जीर्णानि यथा विहाय
    • श्रेयात् सिद्धिः
    • यह जीवन भी कोई जीवन है
    • महामानव अर्थात् चरित्र-निष्ठा
    • प्रकृति के बन्धनों से मुक्त मानवी चेतना
    • निर्भयता- श्रेयस् की जननी
    • अवाँछनीय अभिवृद्धि के दुष्परिणाम
    • जड़ का मजबूत होना आवश्यक (kahani)
    • अपनी इच्छा ही नहीं, दूसरों का हित भी देखें!
    • पूर्वाग्रह छोड़ प्रगतिशीलता अपनायें
    • अदृश्य शक्तियों का परोक्ष सहयोग
    • Quotation
    • उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः
    • सृजन की ओर बढ़ें ध्वंस को रोकें
    • Quotation
    • संकल्प शक्ति का सदुपयोग किया जाय!
    • मंत्र विद्या ध्वनिशक्ति का उच्चस्तरीय उपयोग
    • स्वस्थ जीवन की कुँजी
    • मस्तिष्क की प्रसुप्त क्षमताएं और उनकी जागृति
    • सर्वचिन्ता परित्यागो निश्चिन्तो योग उच्यते।
    • क्रोध-के सर्वनाशी आवेग से बचे!
    • अधिक श्रेष्ठता सादगी और सज्जनता की (kahani)
    • शक्ति के दुरुपयोग की विभीषिका
    • Quotation
    • वैज्ञानिक दृष्टि से अध्यात्म का प्रतिपादन साहित्य
    • “फसल उगाना है”
    • फसल उगाना है (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1979 - June 1979

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


पूर्वाग्रह छोड़ प्रगतिशीलता अपनायें

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 15 17 Last
विचारशीलता तथा बुद्धिमत्ता अब इसी बात में है कि प्राचीन परम्पराओं, रीति-रिवाजों तथा रूढ़ियों को विवेक की कसौटी पर कसने के उपरान्त ही अपनाया जाय। पुरातन होना मात्र किसी रीति-रिवाज अथवा परम्परा की महत्ता और उपयोगिता को सिद्ध नहीं करता है। पुरातन के नाम पर ही रूढ़ियों को पोषण दिया जाता रहेगा तो सामाजिक विकास न हो पायेगा। रूढ़िगत समाज आर्थिक एवं मानसिक रूप में अपने आप ही उन बन्धनों में बँधा रहता है तथा अपने प्रगति पथ प बढ़ने वाले चरणों को कम देता है। आज सम कहता है और पुकार रहा है। प्राचीनता का व्यामोह छोड़ो इसका निर्देशन तो हमारे शास्त्र भी देते है।

जनोऽयमन्यस्यमृतः पुरातनः, पुरातनैरेव समोभविष्यति। पुरातने पिवत्यन्त स्थितेषु, कः पुरातनों कन्तान्य परीक्ष्यरोचयेत्। (सिद्धसेन)

-जो पुरातन काल था वह मार चुका। वह दूसरों का था, आज का जन यदि उसको पकड़कर बैठेगा तो वह भी पुरातन की तरह ही मृत हो जायेगा। पुराने समय के जो विचार हैं वे तो अनेक प्रकार क हैं। कौन ऐसा है जो भली प्रकार उनकी परीक्षा किये बिना अपने मन को उधर जाने देगा।

प्राचीन रूढ़ियों पर अन्धश्रद्धा के साथ चलने वालों को बौद्धिक रूप से परावलम्बी ही कहा जाना चाहिए। ऐसे लोगों की प्रगति हो सकना सम्भव नहीं इसी बात को स्पष्ट करते हुए विद्वान् ने लिखा है -

विनिश्चंधनैति यथा-यथा लसस्तथा तथा,

निश्चितवान् प्रसीदति। अपन्धवाक्या गरवोऽहमल्पधीरिति, व्यवस्यन स्ववधाय धावतिं (पूर्व नूतन द्वात्रिशिका-6)

अर्थात् - जो स्वयं विचार करने में आलसी है, वह किसी निश्चय पर नहीं पहुँच पाता। जिसके मन में सही निश्चय करने की बुद्धि है उसी के विचार प्रसन्न और साफ सुथरे रहते हैं। जो यह सोचता है कि पहिले आचार्य और धर्मगुरु जो कह गये हैं, वह सब सच्चा है। उनकी सब बात सफल हैं और मेरी बुद्धि या विचार शक्ति टटपूंजिया है। ऐसा “बाबा वाक्य प्रमाण” के ढंग पर सोचने वाला मनुष्य केवल आत्म-हनन का मार्ग अपनाता है।

किन्तु खेद की बात है कि जहाँ हमारे वेद और शास्त्र हमेशा चलते रहने की, विवेक, बुद्धि की और ज्ञान की प्रेरणा देते हैं अपने हाथ-पैरों को ही नहीं अपनी अकल को भी जकड़े हुए है। वे रूढ़ियों के जाल में फँसे हुए हैं। इनमें केवल अशिक्षित, अज्ञानी, असभ्य लोग ही बाँधे होते तो कुछ कहने की बात थी लेकिन इसमें तो पण्डित, शास्त्री, पढ़े-लिखे, शिक्षित कहाने वाले लोग भी फँसे है। यह बात और भी अधिक खेदजनक है।

अपनी प्रगति की इच्छा रखने वालों के लिए मनुस्मृति में स्पष्ट निर्देश है कि -

प्रत्यक्षं चानुमानं च शास्त्रं च विविधागमम्। त्रयं सुविदित कार्य धर्मशुद्धिमभीप्सता॥ (मनु. 12/105)

अर्थात्- धर्म शुद्धि चाहने वाले को उचित है कि वह प्रत्यक्ष, अनुमान एवं विविध आगमन शास्त्र इन्हें भली−भांति हृदयंगम करें तथा वाद में उन पर आचरण करें।

पवित्रता की रक्षा, देवत्व की प्रतिष्ठा, निष्ठा- भावना सब अच्छा बातें हैं पर यदि उन्हें विवेक की परिधि से परे और पूर्वाग्रह की स्थिति में पहुँचा दिया जाय तो उससे अनेक विकृतियाँ सामने आ सकती हैं।

First 15 17 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

June 1979
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • मनुष्य जीवन सुनिश्चित कल्पवृक्ष
  • साधनों का प्रथम चरण
  • परमात्म-सत्ता के अकाट्य प्रमाण
  • Quotation
  • तथ्यों और मान्यताओं का अन्तर समझा जाय
  • यही गुण ब्राह्मण के (kahani)
  • वासाँसि जीर्णानि यथा विहाय
  • श्रेयात् सिद्धिः
  • यह जीवन भी कोई जीवन है
  • महामानव अर्थात् चरित्र-निष्ठा
  • प्रकृति के बन्धनों से मुक्त मानवी चेतना
  • निर्भयता- श्रेयस् की जननी
  • अवाँछनीय अभिवृद्धि के दुष्परिणाम
  • जड़ का मजबूत होना आवश्यक (kahani)
  • अपनी इच्छा ही नहीं, दूसरों का हित भी देखें!
  • पूर्वाग्रह छोड़ प्रगतिशीलता अपनायें
  • अदृश्य शक्तियों का परोक्ष सहयोग
  • Quotation
  • उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः
  • सृजन की ओर बढ़ें ध्वंस को रोकें
  • Quotation
  • संकल्प शक्ति का सदुपयोग किया जाय!
  • मंत्र विद्या ध्वनिशक्ति का उच्चस्तरीय उपयोग
  • स्वस्थ जीवन की कुँजी
  • मस्तिष्क की प्रसुप्त क्षमताएं और उनकी जागृति
  • सर्वचिन्ता परित्यागो निश्चिन्तो योग उच्यते।
  • क्रोध-के सर्वनाशी आवेग से बचे!
  • अधिक श्रेष्ठता सादगी और सज्जनता की (kahani)
  • शक्ति के दुरुपयोग की विभीषिका
  • Quotation
  • वैज्ञानिक दृष्टि से अध्यात्म का प्रतिपादन साहित्य
  • “फसल उगाना है”
  • फसल उगाना है (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj